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राष्ट्रीय विकास परिषद के क्या कार्य है ? इसका गठन कब हुआ ? इसके सदस्य कौन होते हैं ? इसका उद्देश्य क्या है?


राष्ट्रीय विकास परिषद का गठन 1952 ईस्वी में हुआ। इसे गैर संवैधानिक संस्था कहते हैं क्योंकि मूल संविधान में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है। सरकारिया आयोग ने अपनी सिफारिश में यह कहा था कि इसे संवैधानिक आयोग की तरह देखा जाना चाहिए और इसकी अनुशंसा भी किया था ।यह बताया था जिसका नाम राष्ट्रीय आर्थिक और विकास परिषद रखा जाए लेकिन सरकार ने इसे उसी रूप में रहने दिया जिस रूप में या पहले से संविधान में था ।यानी कि गैर संवैधानिक संस्था। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं ,1967 ईस्वी से मंत्री मंडल के सभी सदस्य भी इसके सदस्य होते हैं। राज्यों के मुख्यमंत्री ,केंद्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री ,अगर है तो अथवा प्रशासक और योजना आयोग के सदस्य भी इसके सदस्य होते हैं ।इसका मूल उद्देश्यों को सहायता करना है कि राज्य विकास कैसे करें ,एवं राज्य में जो संसाधन दिया गया, उस संसाधन का प्रयोग कैसे करें ?इसका यह भी काम है कि पूरे भारत के प्रत्येक क्षेत्र का चाहे वह पर्वतीय राज्य ,मरुस्थलीय राज्य, आर्थिक रूप से पिछड़ा राज्य ,आर्थिक रूप से विकसित राज्य ।

सभी राज्यों में एक जैसा विकास होना चाहिए। किसी भी राज्य के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। आर्थिक नीति सभी राज्यों के लिए एक जैसी हो पूरे देश के लिए योजना बनाना, योजना आयोग जो योजना को बनाती है उसके लिए योजना को निर्देशन देना। संसाधन का आकलन करना ,संसाधन का प्रयोग कैसे किया जाएगा यह बताना संसाधन को बेहतर रूप से प्रयोग कर सकते हैं यह भी बताना। उद्देश्य प्राप्ति कैसे होगा? यह समझाने की कोशिश करना ।जब योजना आयोग की योजना को प्रारूप तैयार करती है ।वह प्रारूप केंद्रीय मंत्रिमंडल को दिया जाता है और केंद्रीय मंत्रिमंडल से राष्ट्रीय विकास परिषद को दे देती है ।राष्ट्रीय विकास परिषद जब पूरी योजना को अच्छे प्रकार से अध्ययन कर लेते हैं तथा उसमें संसाधनों के प्रयोग को लिखते हैं तो फिर फिर इसके बाद इसे संसद में रखा जाता है। संसद की स्वीकृति अगर मिल जाती तो अधिकारिक रूप से योजना लागू हो जाता है सही मायने में राष्ट्रीय विकास परिषद वह संस्था है जो योजना आयोग को योजना बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैvinayiasacademy.com


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