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वर्तमान में महिला शोधकर्ताओं को प्रोत्साहित करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने सर्व पावर योजना की शुरुआत की जानिए इसके बारे में।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने सर्व- पावर योजना शुरू की है ,जिसका उद्देश्य विज्ञान और इंजीनियरिंग के अग्रणी क्षेत्र में अनुसंधान और विकास गतिविधियों को शुरू करने के लिए उभरती हुई और प्रख्यात महिला शोधकर्ताओं को प्रोत्साहित करना है। ( SERB POWER ) सर्व पावर (साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड – प्रमोटिंग अपॉर्चुनिटीस फॉर वूमेन इन एक्सप्लोरेट्री रिसर्च) है,अर्थात विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड- की खोजपूर्ण अनुसंधान में महिलाओं के लिए अवसरों को प्रोत्साहित करना है। यह योजना भारतीय शैक्षणिक संस्थानों और अनुसंधान और विकास प्रयोगशालाओं में कई तरह की साइंस और टेक्नोलॉजी कार्यक्रमों में विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान के वित्तपोषण में लैंगिक असमानता को कम करने के लिए तैयार की गई है, लेकिन अनुसंधान और विकास गतिविधियों में लगी भारतीय महिला वैज्ञानिकों के लिए सामान पहुँच और अधिक अवसरों को सुनिश्चित किया जा सके। यह योजना की शुरुआत विशेष रुप से महिला वैज्ञानिकों को सहायता देने के लिए हर्षवर्धन द्वारा शुरू की गई।
यह योजना अनुसंधान की शुरुआत दो श्रेणियों में समर्थन प्रदान करने के लिए की गई है।
सर्व पावर फेलोशिप – पावर फेलोशिप योजना इनोवेटर्स की पहचान करना और विज्ञान और इंजीनियरिंग की किसी भी शाखा में पीएचडी डिग्री हासिल करने वाले भारतीय शैक्षणिक संस्थानों और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में लगी उत्कृष्ट महिला शोधकर्ताओं को पुरस्कृत करेगी।इसके साथ ही नियमित आय के अलावा पंद्रह हजार रुपये हर महीने फेलोशिप प्रदान की जाएगी।और साथ ही दस लाख रुपए प्रति वर्ष का अनुसंधान का आर्थिक सहायता प्रदान करेगी।
सर्व पावर रिसर्च ग्रांट्स- यह योजना उभरती और प्रख्यात महिला शोधकर्ताओं को व्यक्तिगत वित्त पोषण के लिए प्रोत्साहित करेगी और शोध के लिए प्रतिस्पर्धी होगी।इसके तहत, वित्त पोषण निम्नलिखित दो श्रेणियों मे किया जाएगा।
पहला स्तर- तीन साल की अवधि के लिए साठ लाख तक की फंडिंग।
दूसरा स्तर – तीन साल की अवधि के लिए तीस लाख तक की फंडिंग।


सर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग,भारत सरकार के तहत एक संवैधानिक समुदाय हैं, जिसे वर्ष 2009 में भारत की संसद के एक अधिनियम (सर्व एक्ट, 2008) के तहत स्थापित किया गया था।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है ।प्राचीन समय में इसे भौतिक विज्ञान के नाम से जाना जाता था एवं उच्च शैक्षणिक संस्थाओं में छात्र इसे अत्यंत उत्साह से पढ़ते थे ।भारतीय पुनर्जागरण के समय ( बीसवीं सदी के शुरुआत ) मे भारतीय वैज्ञानिकों ने उल्लेखनीय प्रगति की थी।1947 में देश के आजाद होने के बाद संस्थाओं की स्थापना की गई ताकि विज्ञान के क्षेत्र में हुई इस सहज एवं रचनात्मक प्रगति को और बढ़ावा मिल सके। इस कार्य में विभिन्न राज्यों ने अपना भरपूर सहयोग दिया ।इसके बाद भारत सरकार ने देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की आधुनिक अवसंरचना के निर्माण के लिए हर प्रयास किए। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग देश मे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दूसरे शब्दों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का यह अर्थ है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को लघु रूप में डीएसटी भी कहते हैं। भारत सरकार का विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के नए क्षेत्रों को बढ़ावा देने के उद्देश्य उन विषयों से संबंधित गतिविधियों के आयोजन एवं समन्वय के लिए स्थापित किया गया एक विभाग है। यह भारत में एक नोडल विभाग की भूमिका निभाने का काम करता है।यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन आता है।इसका मुख्यालय दिल्ली में है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की स्थापना मई 1971 में हुई। इसका उत्तरदायी मंत्री डॉ हर्षवर्धन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री हैं। इसका संस्था कार्यपालक प्रो आशुतोष शर्मा ,सचिव हैं।
इस विभाग के कई दायित्व है जिनमें से विशिष्ट परियोजनाओं और कार्यक्रमों के प्रमुख दायित्व है, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित नीतियों का निर्माण करना। कैबिनेट की वैज्ञानिक सलाहकार समिति से संबंधित मामले ( एसएसीसी)। उभरते हुए क्षेत्रों पर विशेष जोर देने के साथ ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी के नए क्षेत्रों को बढ़ावा देना है। जैव इंधन उत्पादन, प्रसंस्करण, मानकीकरण और अनुप्रयोगों कि स्वदेशी प्रौद्योगिकी के विकास के लिए अपने अनुसंधान संस्थानों या प्रयोगशालाओं के माध्यम से अनुसंधान और विकास के विषय में संबंधित मंत्रालय या विभाग के साथ संयोग बनाए रखना। उप उत्पादों से मूल्य वर्धित रसायन विकास के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान और विकास गतिविधियाँ को अपनाना। पार- क्षेत्रीय संबंधों वाले विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों का समन्वय और एकीकरण जिसमें कई संस्थानों के हित के लिए बहुत ही क्षमताएँ जुड़ी हो। उपक्रम अथवा आर्थिक रूप से वैज्ञानिक और तकनीकी सर्वेक्षण, अनुसंधान डिजाइन, और जहाँ आवश्यक हो वहाँ अनुसंधान डिजाइन और विकास का प्रायोजन किया जाए। वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थानो, वैज्ञानिक संघों और समुदायों के लिए समर्थन और अनुदान सहायता प्रदान करना।
इस विभाग के उप – विभाग एवं संबंधित मामलों में निम्न है:-जैसे कि विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान परिषद। प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड और संबंधित अधिनियम जैसे कि अनुसंधान और विकास उपकर अधिनियम,1986, (1986 का 32) और प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड अधिनियम, 1995 (1995 का 44 )। राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद। राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उद्यमिता विकास बोर्ड। विदेश में वैज्ञानिक संलग्न की नियुक्ति के साथ अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग ( इन कार्यों का निष्पादन विदेश मंत्रालय के साथ निकट सहयोग में किया जाएगा )। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत इस विषय से संबंधित स्वायत्त विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान सहित खगोल भौतिकी संस्थान और भूचुम्बकत्व संस्थान। पेशेवर विज्ञान अकादमियों को बढ़ावा दिया गया और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित किया गया। भारतीय सर्वेक्षण, और नेशनल एटलस और थीमेटिक मैपिंग ऑर्गेनाइजेशन । राष्ट्रीय स्थानिक डेटा बुनियादी संरचना और जी.आई.एस को बढ़ावा देना। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन, अहमदाबाद।
दूसरे शब्दों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान उसे कहते हैं जिसके अंतर्गत, विज्ञान प्रौद्योगिकी तथा इन दोनों के आपस में संबंध हो और अन्तः क्रियाओं पर विचार किया जाता है।क्योंकि, विज्ञान के विकास से प्रौद्योगिकी का विकास होता है, जिसमें बहुत सारी प्रौद्योगिकियाँ सिद्धांतों पर आधारित होती हैं। इसी प्रकार, प्रौद्योगिकी के विकास से विज्ञान का विकास होता है बहुत से प्रयोग विज्ञान अनुसंधान में तभी किए जा सकते हैं जब उसके लिए आवश्यक उन्नत उपकरण और साज सामान उपलब्ध हो। इसके साथ ही विज्ञान के दर्शन के अंतर्गत विज्ञान (जिसमें प्राकृतिक विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान शामिल हैं ) के दार्शनिक तथा तार्किक पूर्वधारणाओं, नींव तथा उनसे निकलने वाले परिणामों का अध्ययन किया जाता है।
इसी तरह, विज्ञान के दर्शन में निम्नलिखित विषयों पर ध्यान दिया जाता है: अभिधारणाओं का चरित्र एवं विकास, परिकल्पनाएँ, तर्क एवं निष्कर्ष, किस तरह विज्ञान में इनका उपयोग होता है, किस तरह से विज्ञान मे प्राकृतिक घटनाओं की व्याख्या तथा भविष्यवाणी होती है, वैज्ञानिक निष्कर्षों तक पहुँचने के लिए किस तरह के तर्क का प्रयोग होता है वैज्ञानिक विधि का सूत्रीकरण, कार्यक्षेत्र और उसकी सीमाएँ वे साधन जिनके द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि कब किसी वैज्ञानिक तथ्य को समुचित वस्तुनिष्ठ समर्थन प्राप्त है, तथा वैज्ञानिक विधि और नमूनों के प्रयोग के परिणाम।
थॉमस कुह्न के अनुसार परीक्षण किए जा रहे सिद्धांत को उस सिद्धांत के प्रभाव से जिस पर प्रेक्षण आधारित है पृथक किया जाना असंभव है।
परीक्षण द्वारा सिद्धांत की अनिर्धारणता मे विज्ञान के दार्शनिकों की सूची, वैज्ञानिक विधि, प्रयोग, और प्रेक्षण एवं मापन को शामिल किया गया है।
वैज्ञानिक विधि प्राकृतिक विज्ञान में कार्यरत गणितीय और प्रयोगात्मक तकनीक, अत्यधिक विशेष रूप से, वैज्ञानिक अवधारणाओं के निर्माण और परीक्षण में उपयोग करने वाली तकनीके हैं तथा दूसरी ओर विज्ञान, प्रकृति का विशेष ज्ञान है।जबकि मनुष्य प्राचीन समय से ही प्राकृतिक संबंधी ज्ञान प्राप्त करता है फिर भी विज्ञान अर्वाचीन काल का ही दिया हुआ है।इसी युग में इसकी शुरुआत हुआ और थोड़े समय के अंदर ही इसने बड़ी उन्नति प्राप्त कर ली। इस तरह संसार में एक बहुत बड़ी क्रांति हुई और एक नई सभ्यता का, जो विज्ञान पर आधारित है उसका निर्माण हुआ। इसके साथ ही ब्रह्मांड में होने वाली परिघटनाओं के परीक्षण का सम्यक् तरीका भी धीरे-धीरे विकसित हुआ। किसी भी चीज के बारे में यूँ ही कुछ बोलने और तर्क वितर्क करने की बजाय उचित यही होता है कि उस पर कुछ प्रयोग किए जाए और उसका सावधानीपूर्वक निरीक्षण किया जाए। इस विधि के परिणाम का इस अर्थ में सार्वत्रिक ( यूनिवर्सल ) है कि कोई भी उन प्रयोगों को पुनः दोहरा कर कर प्राप्त आंकड़ों की जाँच कर सकता है।
सत्य को असत्य और भ्रम से अलग करने के लिए अब तक आविष्कृत तरीकों में वैज्ञानिक विधि सबसे श्रेष्ठ मानी गई है। वैज्ञानिक विधि मे ब्रह्मांड के किसी घटक या घटना का निरीक्षण किया जाता है और एक संभावित परिकल्पना को सुझाया जाता है जो प्राप्त आंकड़ों से मेल खाती हो। इस परिकल्पना के आधार पर कुछ भविष्यवाणी भी की जाती है तथा प्रयोग करने पर वह भविष्यवाणियाँ प्रयोग से प्राप्त आंकड़ों से सत्य सिद्ध होती है या नहीं । यदि आंकड़े और प्राक्कथन में कुछ असहमति दिखती है तो परिकल्पना को उसके अनुसार परिवर्तित किया जाता है।
तार्किक प्रत्यक्षवादियों का विचार था कि किसी सिद्धांत के वैज्ञानिक होने की कसौटी यह है कि उसे कभी भी किसी के द्वारा जाँच किया जा सके। लेकिन कॉर्ल पोपर का विचार था कि यह सोच गलत है। कॉर्ल पोपर का कहना था कि कोई सिद्धांत तब तक वैज्ञानिक सिद्धांत नहीं है ,जब तक उस सिद्धांत को किसी भी एक तरीके से गलत सिद्ध किया जा सके।
किसी वैज्ञानिक सिद्धांत या वैज्ञानिक परिकल्पना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसे असत्य सिद्ध करने की गुंजाइश होनी चाहिए। जबकि कई तरह की मान्यताए ऐसी होती हैं जिन्हें असत्य सिद्ध करने की कोई गुंजाइश नहीं होती। उदाहरण के तौर पर जो जीसस के बताए मार्ग पर चलेंगे ,केवल वे ही स्वर्ग जाएंगे- इसकी सत्यता की जाँच नहीं की जा सकती।
विज्ञान का इतिहास में वर्णित -अर्वाचीन विज्ञान की शुरुआत लगभग तीन सौ वर्ष पहले हुआ था। प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों ने भी बहुत ही अलौकिक ज्ञान अर्जित किया, उन्हें बुद्धिमान कहना सही रहेगा। उन्होंने अपनी बुद्धि और तर्क के बल पर ज्ञान की उच्च कोटि की बातें बताईं लेकिन उनके प्रकार और वर्धन की व्यवस्था नहीं थी और इसी वजह से पूरे विश्व में उनका व्यापक प्रचार और प्रसारण नहीं हो पाया, इसी के साथ अर्वाचीन विज्ञान इसके विपरीत प्रायोगिक ज्ञान है, जिसकी शुरुआत में बहुत विरोध हुआ और यही वजह है कि गैलिलियो जैसे अग्रगामी वैज्ञानिकों को कड़ी यातनाएँ सहनी पड़ी। फिर भी उनके प्रयोग द्वारा सत्यापन विधि के अंदर ही प्रसारण का बीज भी छुपा हुआ था। इस प्रकार जो ज्ञान मिलता गया वह एक श्रृंखला में परिवर्तित होता चला गया जिसका क्रम आगे भी जारी रहेगा। इस ज्ञान से शक्ति के नए नए स्रोतों का पता चला और परिणाम स्वरुप ना केवल इसका विरोध कम होता गया लेकिन एक बहुत बड़ी क्रांति समाज में हुई। मशीन युग का सूत्रपात हुआ और संसार में आशा की एक नई किरण सामने आई। जिस प्रकार सभी वस्तुओं के साथ अच्छाई और बुराई दोनों के पहले जुड़े हुए हैं विज्ञान भी मानव के लिए वरदान ही नहीं रहा, उसका भयंकर रूप हिरोशिमा में एटम बम के रूप में विश्व ने देखा जिसके विस्फोट के कारण संसार के विनाश तथा और प्रलय की लीला का दृश्य उपस्थित हो गया। इस प्रकार संसार के सामने सत्य को केवल सत्य के लिए खोज न करने की आवश्यकता ज्ञात पड़ी और सत्यम शिवम सुंदरम के आदर्श को विज्ञान जगत में भी अपनाना सबसे उचित माना गया। विज्ञान इस प्रकार नियंत्रित होकर ही मानव कल्याण में योगदान कर सकता है। इसे नियंत्रण के फलस्वरुप परमाण्वीय भट्ठियाँ बनीं, जो एक प्रकार से नियंत्रित एटम बम मात्र है किंतु जिनसे अपार सुविधाएं मिल सकती हैं ।इस प्रकार अल्प काल में ही विज्ञान ने बड़ी उन्नति की और इसका सब श्रेय प्रयोगविधि को जाता है।इस प्रयोग विधि में प्रयोग का महत्व सर्वोपरि है फिर भी दूसरे और विधियों का उपयोग भी एक विशेष ढंग और क्रम से किया जाता है ,जिन्हें हम वैज्ञानिक विधियाँ कह सकते हैं ।वैज्ञानिक विधि ज्ञान प्राप्त करने का एक अनुभवजन्य तरीका है जो कम से कम 17वीं शताब्दी के बाद से विज्ञान के विकास की विशेषता है ।इसमें सावधानी पूर्वक अवलोकन शामिल है, जो कि मनाया जाता है ,इसके बारे में कठोर संदेह को लागू करना , यह देखते हुए कि संज्ञानात्मक मान्यताएँ एक को कैसे व्याख्या करती है इसमें शामिल है, इसमें प्रेरणों के माध्यम से, अवधारणाओं से उत्पन्न कटौती के माध्यम से, संवेदनाओं से उत्पन्न कटौती के प्रयोगात्मक और माप -आधारित परीक्षण और प्रायोगिक निष्कर्षों के आधार पर अवधारणाओं ( परिमाण),ये वैज्ञानिक पद्धति के सिद्धांत हैं ,जैसा कि सभी वैज्ञानिकों उद्यमों के लिए लागू की निश्चित सीमा से अलग है।
विज्ञान के अध्ययन में जिन विधियों का उपयोग सामूहिक रूप से अथवा आंशिक रूप से किया जाता है उनका निम्नलिखित वर्णन किया गया है:-
निरीक्षण – जिस प्राकृतिक वस्तु या घटना का अध्ययन करना हो , सबसे पहले उसका ध्यानपूर्वक निरीक्षण तू आवश्यक है। यदि कोई घटना क्षणिक हो, तो उसका चित्रण कर लेना आवश्यक है ,ताकि बाद में उसका निरीक्षण हो सके ,जैसे ग्रहण। निरीक्षण के लिए सूक्ष्मदर्शी या दूरदर्शी का उपयोग किया जा सकता है, ताकि अधिक विस्तार के साथ और ठीक-ठीक निरीक्षण हो सके। यदि अन्य लोग भी निरीक्षण का कार्य कर रहे हैं तो उसका स्वागत करना चाहिय कि केवल निरीक्षित वस्तु पर ही ध्यान केंद्रित रहे, जैसे अर्जुन को वाणविद्या के परीक्षण के समय केवल पक्षी का सिर दिखाई पड़ रहा था
कभी-कभी किसी वस्तु के विषय में मस्तिक में पहले से कुछ थाना बनी रहती है ,जो निष्पक्ष निरीक्षण में बहुत बाधक होती हैं। निरीक्षण के समय इस प्रकार की धारणाओं से उन्मुक्त होकर कार्य करना चाहिए।
वर्णन – निरीक्षण के साथ-साथ या तुरंत बाद निरीक्षित वस्तु या घटना का वर्णन लिखना चाहिए। इसके लिए नपे तुले शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जिससे पढ़ने वालों के सामने निरीक्षित वस्तुओं आ जाए जहाँ कहीं
आवश्यकता हो अनुमान के द्वारा अंकों में वस्तु के गुणविशेष की माप दे देनी चाहिए। किंतु यह तभी करना चाहिए जब ऐसा करना बाद में उपयोगी सिद्ध होने वाला हो। फूलों के रंग का वर्णन करते समय अनुमानित तरंगधैर्य देना व्यर्थ है ,लेकिन किसी वस्तु की कठोरता की तुलना अन्य वस्तु की अपेक्षा अंकों में देना ही ठीक है। व्यर्थ के ब्यौरे न दिये जाए और भाषा सरल तथा सुबोध हो ।देश काल एवं वातावरण का वर्णन दे देना चाहिए। ताकि वस्तु किन परिस्थितियों में उपलब्ध हो सकती है या ज्ञात हो सके।
कार्य – कारण – विवेचन – प्रकृति के रहस्यों का उद्घाटन में कार्यकारण का विवेचन महत्वपूर्ण है। वर्षा का होना, बादल की गरज, बिजली की चमक, आँधी और तूफान आदि घटनाएँ साथ हो सकती हैं इनमें कौन कितना कारण है अक्सर कारण पहले आता है ,लेकिन केवल क्रम ही कारण का निश्चय नहीं करता। इसलिए इन बातों पर थोड़ा विचार कर लेना चाहिए ताकि आगे किसी प्रकार का भ्रम ना पैदा हो सके। साथ ही विभिन्न कारणों का तारतम्य भी बाँध रखना चाहिए ।यह सब बातें घटना को समझने में सहायक होती हैं।
प्रयोगीकरण – विज्ञान के इस युग में जो भी शीघ्र उन्नति हो पाई, उसका एकमात्र श्रेय इस विधि को ही है क्योंकि अन्य विधियाँ तो इसी मुख्य विधि के इर्द-गिर्द संजोई गई हैं। यह तकनीक इस युग की देन है ।प्राचीन समय में इसी के अभाव में विज्ञान की प्रगति नहीं हो पाई थी ।अंतरिक्षयात्रा एवं पारमाण्वीय शक्ति का विकास ,इसी प्रयोगीकरण के कारण, संभव हो सका है।
प्रयोग और साधारण निरीक्षण में यही अंतर है कि प्रयोग में भी तो निरीक्षण का कार्य होता है वास्तव में साधारण निरीक्षण में प्रकृति के साथ किसी प्रकार का दखल नहीं दिया जाता है लेकिन प्रयोग में दखल दिया जाता है। इसी तरह ऐसी संभावनाएँ एवं परिस्थितियां निकल आती हैं जिनसे प्रयोग के समय का निरीक्षण रहस्य की उद्घाटन मे बड़ा सहायक होती हैं।
सच्चाई को जानने के लिए प्रयोग किए जाते हैं, लेकिन निरंतर वैज्ञानिक प्रयोगों के वजह से ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि केवल सत्य के ही नाम पर प्रयोग करना श्रेयस्कर नहीं यदि वह सत्य मंगलकारी ना हो। उस सत्य से क्या लाभ जिसकी वजह से सारे संसार का विनाश निश्चित रूप से हो जाता है इसलिए अच्छा ही है कि इस समय सारे संसार में परमाण्वीय परीक्षण का विरोध हो रहा है। सत्य की खोज के वास्ते ही यह परीक्षण कुछ राष्ट्रों के द्वारा होते रहते हैं, किंतु उसके परिणाम स्वरूप रेडियो एक्टिवता बढ़ती जा रही है और हो सकता है, भविष्य में उसके कारण जनजीवन के लिए भी भारी खतरा पैदा हो सकता हैं।प्रयोग करते समय सच्चाई और ईमानदारी अपनानी चाहिए शुद्ध और त्रुटियों का ध्यान रखना पड़ता है।अनेक विविधताओं के अध्ययन के पश्चात कोई परिणाम निकाला जाता है यदि कोई असंगत बात दिखलाई पड़े तो उसे छोड़ नहीं दिया जाता है बल्कि ध्यानपूर्वक उस पर विचार किया जाता है ।कभी-कभी इसी क्रम में बड़े-बड़े आविष्कार हुए हैं निरीक्षण को कई बार दोहराया जाता है और मध्यमान परिणाम पर ही बल दिया जाता है। तकनीकी भाषा में विधि ,निरीक्षण एवं परिणाम का वर्णन किया जाता है।
परिकल्पना- प्रयोग करने का एकमात्र उद्देश्य प्रकृति के किसी रहस्य का उद्घाटन होता है कोई घटना क्यों और कैसे घटित होती है इसको समझना पड़ता है,वर्षा क्यों होती है। इंद्रधनुष कैसे बनता है। इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए परिकल्पना की आवश्यकता पड़ती हैं यदि प्रकल्पना ठीक है तो वह जाँच में ठीक बैठेगी परिकल्पना की जाँच के लिए विभिन्न प्रयोग किए जा सकते हैं आगे चलकर ऐसे तथ्य भी प्रकाश में आते हैं जो उस परिकल्पना की पुष्टि कर सकते हैं यदि ऐसी बातें हैं तो उसी परिकल्पना को सिद्धांत या नियम की संज्ञा दी जाती है ,अन्यथा उनका संशोधन करना पड़ता है, या उसे छोड़ देना पड़ता है। न्यूटन के गति के नियम और आइन्स्टाइन का सापेक्षवाद का सिद्धांत किसके उदाहरण है।
आगमन- जब किसी वर्ग के कुछ सदस्यों के गुण ज्ञात हो, तो उनके आधार पर कुछ विशेष वर्ग के गुणों के बारे में अनुमान लगाना उपपादन कहलाता है। उदाहरण के लिए अ,ब,स और आदि। मनुष्य मरणशील प्राणी है इसके आधार पर कहा जाता है कि सब मनुष्य मरणशील प्राणी है। इसी प्रकार के सामान्यीकरण के लिए आवश्यक है कि जो नमूने इकट्ठे किए जाएँ वे अनियत तरीके से किए जाएँ नहीं तो जो परिणाम निकाला जाएगा वह ठीक नहीं होगा। कभी-कभी कुछ राशियों का मध्यमान निकाला जाता है लेकिन यह तभी करना ठीक होगा जब ऐसा करना तर्कसंगत हो ।
निगमन – आगमन में जो कार्य होता है, उसका उल्टा निगमन में होता है। इसमें किसी वर्ग विशेष के गुणों के आधार पर उस वर्ग के किसी सदस्य के गुणों के बारे में अनुमान लगाया जाता है, जैसे मानव मरणसील प्राणी है ।निष्कर्ष निकालने की इस विधि को ही निगमन कहते हैं इसके लिए दो बातें आवश्यक है निगमन व्यवहार और तर्कसंगत होना चाहिए ।
गणित और प्रतिरूप – बहुत सी बातें हमारी समझ से परे हैं उनके समझने में प्रतिरूप से बड़ी सहायता मिलती है। शरीर की आंतरिक रचना, अणुओं का संगठन आदि विषय प्रतिरूप की सहायता से अच्छी तरह बोधगम्य हो जाते हैं। गणित के द्वारा भी विज्ञान के कठिन प्रश्नों को हल करने में बड़ी सहायता मिलती है ।बहुत सी बातें हैं जो हमारी विद्वानों द्वारा आत्मसात नहीं की जा सकती ,जैसे पदार्थतरंगे किंतु गणित के सूत्रों के द्वारा उनकी छानबीन संभव हो पाई है और प्रयोगो द्वारा उनकी पुष्टि भी हुई है । इस प्रकार देखा जाए आधुनिक विज्ञान की प्रगति में गणित का बहुत बड़ा हाथ है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण – अंत में एक बहुत ही महत्वपूर्ण विधि रह जाती है। वह है किसी प्रश्न के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अपनाना।खुले दिमाग से खोज की भावना रखकर विचार करना ही सही दृष्टिकोण है ।अपने व्यक्तित्व को प्रश्न से अलग रखना चाहिए और सच्चाई एवं पक्षपात रहित भाव से किसी निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए जीवन के रोज के प्रश्नों में भी इसी प्रकार का दृष्टिकोण अपनाना सबसे उचित है।
विज्ञान का इतिहास अर्थात विज्ञान व वैज्ञानिक ज्ञान के ऐतिहासिक विकास के अध्ययन से हैं। यहाँ विज्ञान के अंतर्गत प्राकृतिक विज्ञान व सामाजिक विज्ञान दोनों सम्मिलित हैं।
प्रागैतिहासिक काल से ही, सलाह तथा ज्ञान वाचिक परंपरा के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहा था। उदाहरण के तौर पर मक्के का कृषि के लिए गृहीकरण दक्षिणी मेक्सिको में कई वर्ष पूर्व हुआ था अर्थात लिपि के विकास से भी पहले। इसी प्रकार, पुरातात्विक प्रमाण संकेत देते हैं कि साक्षरतापूर्ण समाजों में खगोलीय ज्ञान का, विकास हो चुका था।
प्राकृतिक विज्ञान के अंतर्गत भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान आता है।
भौतिक विज्ञान यह विज्ञान की एक ऐसी शाखा है जिसमें द्रव तथा ऊर्जा और उसकी आपस में क्रियाओं का अध्ययन होता है। भौतिकी प्राकृतिक जगत का मूल्य विज्ञान है, क्योंकि विज्ञान की दूसरी शाखाओं के विकास भौतिकी के ज्ञान पर बहुत हद तक निर्भर करता है
जीव विज्ञान -विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत संजीवों के उत्पत्ति विकास कार्य संरचना और क्रिया का अध्ययन करते हैं जीव विज्ञान कहलाते हैं। जीव विज्ञान का पिता अरस्तू को माना जाता है क्योंकि उन्होंने पहली बार जीवो को उतवीकास और आकार आकृति के आधार पर वर्गीकृत किया ।जिसके बाद जीवों का अध्ययन आसान हो गया।
भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में से एक है ।भारत में विज्ञान का उद्धव ईसा से तीन हजार वर्ष पूर्व हुआ हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंधु घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगो का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान और गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजो का प्रयोग आजकल के इस आधुनिक दौर में किसी न किसी रूप में हो रहा है। और यही वजह है कि आज भी विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चंद्र बसु, प्रफुल्ल चंद्र राय, सी वी रमण, सत्येंद्रनाथ बोस, मेघनाथ साहा, प्रशांत चंद्र महलनोबिस,श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविंद खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है।
जानिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ हर्षवर्धन के बारे में
हर्षवर्धन भारतीय राजनेता है जो भारतीय जनता पार्टी भाजपा के सदस्य हैं। यह कृष्णा नगर विधानसभा क्षेत्र से दिल्ली विधानसभा के सदस्य रहे हैं। डॉक्टर हर्षवर्धन वर्तमान में दिल्ली के चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं और केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, पृथ्वी विज्ञान मंत्री हैं। इनके नेतृत्व में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तमाम उपलब्धियां हासिल की हैं। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री के तौर पर इन्होंने पर्यावरण की रक्षा के लिए एक बड़े नागरिक अभियान’ ग्रीन गुड डीड्स’ की शुरुआत की है। इस अभियान को ब्रिक्स देशों ने अपने आधिकारिक प्रस्ताव में शामिल किया है।
डॉ हर्षवर्धन नाक कान ,और गले के रोगों के चिकित्सक हैं। दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार 1993 -1998 के वक्त उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री ,कानून मंत्री ,और शिक्षा मंत्री के साथ राज्य मंत्री मंडल में विभिन्न पदों पर कार्य किया।हर्षवर्धन दिल्ली विधानसभा चुनाव के इतिहास में कभी नहीं हारे हैं। इसके साथ ही प्राइवेट अस्पतालों में लगातार होते जा रहे हैं महंगी दवाई और इलाज की अत्यधिक खर्च के कारण खुद को ठगा सा महसूस कर रही आम जनता को स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन से बहुत आशाएँ हैं कि वे इलाज को सस्ता करने के साथ ही दवा कंपनी द्वारा दवा पर लागत से कई एमआरपी अंकित करने की व्यवस्था पर रोक लगाते हुए दवा पर कमीशन की अधिकतम मात्रा निर्धारित करने का काम करेंगे जिससे गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार आसानी से अपने परिवार का इलाज करा सकेगा।
हर्षवर्धन का जन्म 13 दिसंबर 1954 को दिल्ली में ओम प्रकाश गोयल और स्नेहलता देवी के घर हुआ। यह हिंदू धर्म के अनुयायी हैं और वैश्य समुदाय से संबंध रखते हैं। एंग्लो संस्कृत विक्टोरिया जुबली सीनियर सेकेंडरी स्कूल, दरियागंज से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की। गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, कानपुर, से इन्होंने आयुर्विज्ञान तथा शल्य- चिकित्सा स्नातक की डिग्री प्राप्त की तथा इसकी कॉलेज से ओटोलर्यनोल़ोजी मे शल्यविज्ञान निष्णात अर्जित की।
हर्षवर्धन बचपन से ही दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य रहे हैं। ये भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर 1993 में कृष्णा नगर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए थे और दिल्ली की पहली विधानसभा के सदस्य बने इन्हें दिल्ली की सरकार में कानून और स्वास्थ्य मंत्री नियुक्त किया गया। 1996 मे ये शिक्षा मंत्री बने। राज्य के स्वास्थ्य मंत्रालय में अपने समय के वक्त उन्होंने अक्टूबर 1994 में पोलियो उन्मूलन योजना का शुभारंभ किया। कार्यक्रम सफल रहा और फिर से भारत सरकार द्वारा पूरे देश भर में अपनाया गया।हर्षवर्धन 1998 और 2003 में फिर से कृष्णा नगर से विधानसभा के लिए चुने गए । 2008 विधानसभा चुनाव में अपनी मुख्य प्रतिद्वंदी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पार्षद दीपिका खुल्लर को 3,204 मतों द्वारा हराने के साथ ही उन्होंने विधानसभा की चौथी बार सदस्यता प्राप्त की ।इस प्रकार हर्षवर्धन विधानसभा चुनाव इतिहास में कभी भी पराजित नहीं हुए वे अपने पार्टी का एक अनुभवी और सम्मानित सदस्य माना जाते है।
चुनाव से सवा महीने पूर्व 23 अक्टूबर 2013 को उन्हें दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए राज्य के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। 2013 के दिल्ली राज्य विधानसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने कुल 66 सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनाव में उतारे जिनमें से 31 विजई हुए। पिछले चुनाव के मुकाबले भाजपा ने वोटों का प्रतिशत कम होने के बावजूद 8 सीटें अधिक जीती । त्रिकोणीय मुकाबले में उनकी पार्टी पहले स्थान पर रही जबकि उन्होंने स्वयं कृष्णा नगर विधान सभा सीट भारी अंतर से जीती। इनकी पत्नी का नाम नूतन है और उन दोनों के तीन बच्चे हैं- दो लड़के मयंकभरत और सचिन तथा एक लड़की इनाक्षी। हर्षवर्धन दिल्ली के कृष्णा नगर स्थित अपने पिता के घर में परिवार के साथ रहते हैं।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन की कहने के अनुसार हर क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल हो रहा है आज पानी ऊर्जा ऑक्सीजन के अलावा विकास में भी इसके महत्व को भुलाया नहीं जा सकता शहरी विकास से लेकर रेल विकास में विज्ञान का बहुत बड़ा महत्व है। चार साल पहले विज्ञान को किताब से निकाल कर आम लोगों तक पहुंचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसा महोत्सव शुरू हुआ। पहले इस मंत्रालय को पनिश मंत्रालय के रूप में जाना जाता था, मौका था इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में चौथे इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल( आइआइएसएफ )का मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने उत्सव के तीसरे दिन का शुभारंभ करने के बाद यह बात कही अपने देश के लोगों के बीच। उनके अनुसार विज्ञान ऐसा क्षेत्र है जिसका कोई एक सचिवालय नहीं है हर वैज्ञानिक किसी से कम नहीं।सूर्य की रोशनी से सौर ऊर्जा बनाने की प्रयोग विज्ञान की देन है । लोगों को यह समझना चाहिए कि हम अपने राज्य में इस ऊर्जा का प्रयोग किस तरह करें अब तक बारह हजार लोग यह महोत्सव में आ चुके हैं हर पाँच राज्य मिलकर ऐसे ही महोत्सव का आयोजन अपने राज्य के नाम से करें और अभी से हमें इस महोत्सव के आयोजन में जुड़ जाना चाहिए।


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