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अमेरिका की चुनावी व्यवस्था और भारत की चुनावी व्यवस्था में मुख्य अंतर क्या है- इस समय पूरी दुनिया की नजर अमेरिका के ऊपर है क्योंकि वहां राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा है ।अमेरिका के कई राज्य में वोटिंग के दिन कोई राष्ट्रीय अवकाश नहीं होती है जबकि भारत में राष्ट्रीय अवकाश एक परंपरा रही है। अमेरिका में जिस राज्य में कोई व्यक्ति रहता है वहां 3 नवंबर को अगर चुनाव होने वाला है तो उसके 6 हफ्ते पहले भी वह वोट डाल सकता है। यानी कि चुनाव की तिथि के पहले भी वहां वोटिंग की प्रक्रिया होती है ।इसके साथ ही अमेरिका में पोस्टल बैलट को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता है। आप इसे इस प्रकार से समझ सकते हैं कि अमेरिका में 3 नवंबर को चुनाव होना है लेकिन 22 अक्टूबर तक में 5000000 से अधिक मतदाताओं ने पोस्टल बैलट से अपना मत दे दिया था। इसके साथ ही यहां वोटिंग की गणना में लगभग 1 सप्ताह का समय लग जाता है ,जिससे यह पता चलता है कि किन किन राज्यों में कौन सा उम्मीदवार आगे जा रहा है। भारत में यह प्रक्रिया नहीं है।
पोस्टल बैलट आने के बाद 3 नवंबर को जब मतगणना की प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी उसके बाद ही खोला जाएगा। हालांकि कुछ राज्यों में पोस्टल बैलट चुनाव के दिन से पहले खोलकर गिनती कर लेने का भी नियम यहां बनाया गया है लेकिन गिनती के बावजूद इसकी जानकारी मतगणना के दिन दी जाएगी। कभी कभी यही गिनती अगर लीक हो जाती है तो इससे उम्मीदवार की बढ़त पता चल जाती है। इसलिए वहां पोस्टल बैलट में कोई एक उम्मीदवार आगे चलते चलते बाद में पिछड़ जाता है। ऐसा कई बार हुआ है जब वहां पर चुनाव का मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाता है ।यह सिर्फ राष्ट्रपति के चुनाव में नहीं होता है बल्कि अलग-अलग राज्यों के गवर्नर के चुनाव में भी ऐसा देखने को अक्सर मिल जाता है। अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव में दोनों उम्मीदवार को राष्ट्रीय टेलीविजन पर आकर बहस करने की भी एक परंपरा रही है ।इसके माध्यम से देश के लोग समझ पाते हैं कि किसकी भविष्य की नीति क्या है। अमेरिका को किसके हाथ में देना चाहिए, बहस के दौरान यह भी सिस्टम लाया गया है कि जब कोई एक उम्मीदवार इस पर कुछ बोल रहा है तो दूसरे उम्मीदवार की माइक 2 मिनट के लिए बंद कर दी जाएगी ।जिससे देश की जनता स्पष्ट रूप से किसी की बात को समझ पाएगी


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