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मृदा संरक्षण की विधियों का वर्णन करें

  • मृदा पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है। जो कि जीवन बनाए रखने में सक्षम है। किसानों के लिए मृदा का बहुत अधिक महत्व होता है क्योंकि किसान इसी मृदा से प्रत्येक वर्ष स्वस्थ एवं अच्छी फसल की पैदावार पर आश्रित होते हैं। हमारे देश में भूमि कटाव की समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है जल ग्रहण व्यवस्था में भूमि संरक्षण प्रमुख कार्य होता है। इसकी उपयोगिता पर्वतीय जल संग्रह करने से और अधिक बढ़ जाती है। जल संग्रहण क्षेत्र सामान्यतया ढलान दार होते हैं। मृदा संरक्षण से तात्पर्य उन विधियों से है जो मृदा को अपने आस्थान से हटने से रोकते हैं। संसार के विभिन्न क्षेत्रों में मृदा अपरदन को रोकने के लिए तमाम विधियां अपनाई गई है जो कि इस प्रकार है वनों की रक्षा, वृक्षारोपण, बांध बनाना, बाढ़ नियंत्रण, अत्यधिक चढ़ाई पर रोक, सीढ़ीदार खेती, शस्यावर्तन।
  • यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण संसाधन है। यह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विभिन्न प्रकार के जीवों का भरण पोषण करती है यह तो हम सब भली भांति से जानते हैं कि मृदा का निर्माण एक बहुत ही धीमी प्रक्रिया है। मृदा अपरदन की प्रक्रिया ने प्रकृति के इस अनूठे उपहार को केवल नष्ट ही नहीं किया अपितु अनेक प्रकार की समस्याएं भी पैदा कर दी है।
  • मृदा संरक्षण की विधियां
  • वन संरक्षण- वनों के वृक्षों की मृदा अपरदन का प्रमुख कारण है। वृक्षों की जड़े मिट्टी को पदार्थों से बांधे रखती है यही कारण है कि सरकार ने वनों को सुरक्षित घोषित कर दिया है तथा इन वनों में वृक्षों की कटाई पर रोक लगा दी है या विधि सभी प्रकार के विभागों के लिए उपर्युक्त है। वनों को वर्षा लाने वाला दूत भी कहा जाता है। इसे मृदा निर्माण की प्रक्रिया भी काफी तेज होती है।
  • वृक्षारोपण- नदी घाटियों बंजर भूमि हो तथा पहाड़ी डालो पर वृक्ष लगाना मृदा संरक्षण की दूसरी विधि है। मस्ती लिया सीमांत क्षेत्रों में पवन अपरदन को नियंत्रित करने के लिए वृक्षारोपण एक प्रभावी उपाय हैं। भारत में थार मरुस्थल के विस्तार को रोकने के लिए राजस्थान , हरियाणा तथा गुजरात में बड़े पैमाने पर वृक्ष लगाए जा रहे हैं।
  • बाढ़ नियंत्रण- वर्षा ऋतु में नदियों में जल की मात्रा काफी बढ़ जाती है जिससे मृदा के अपरदन में वृद्धि होती है। बाढ़ नियंत्रण के लिए नदियों पर बांध बनाया जाना चाहिए। जिससे मृदा का अपरदन रोकने में मदद मिलती है।
  • नियोजित चराई- अत्यधिक चराई से पहाड़ी दलों की मृदा ढीली हो जाती है और जल इन दिल्ली मृदा को आसानी से बहाकर ले जाता है इन क्षेत्रों में नियोजित चराई से वनस्पति के आवरण को बचाया जा सकता है।
  • सीढ़ीदार खेत बनाना- पर्वतीय धारों पर मैदा के संरक्षण के लिए सीढ़ीदार खेत बनाना एक अन्य विधि है। सीढ़ीदार खेत बनाने से तात्पर्य पर्वतीय प्रदेशों में ढलान के आर पार समतल चबूतरे बनाने से है।
  • इस वीडियो से इन क्षेत्रों में मृदा का अपरदन रुक जाता है और साथ ही जल संसाधनों का समुचित उपयोग भी होता है।
  • शस्यावत्तन- प्रत्यावर्तन से तात्पर्य मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए चुने हुए खेत में विभिन्न फसलों की बारी बारी बोने से हैं ।इस प्रक्रिया के द्वारा खेतों की उर्वरता भी बनी रहती है जिनमें लगातार कोई ना कोई फसल खड़ी रहती है।�

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