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सागर नितल प्रसार सिद्धांत 1960 ई में हरीहैस महोदय के द्वारा प्रस्तुत किया गया था यह सिद्धांत उन्होंने समुद्री नितल का 5 वर्षों तक अनुसंधान करने के बाद प्रस्तुत किया था| हरीहैस से पहले ऑथर होम्स महोदय ने सागरीय नितल के प्रसार के संबंध में संभावना व्यक्त किया था इसके संबंध में कोई विशेष मत प्रकट नहीं किया कालांतर में जब प्लेट टेक्टोनिक सिद्धांत का आगमन हुआ तो उससे भी सागर निकाल सिद्धांत पर प्रकाश पड़ा|

हैरिहेस महोदय ने अपना समुद्री नितल प्रसार सिद्धांत निम्नलिखित मान्यताओं पर प्रस्तुत किया:—

1.हैरिहेस ने अपना सिद्धांत तभी प्रस्तुत किया जब यह पूर्णत स्पष्ट हो गया कि महासागरीय भूपटल की सामान्य मोटाई 6-7km और महाद्वीपीय भूपटल की मोटी 30- 40 है| उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि महासागरीय भूपटल का तात्पर्य बेसाल्टिक चट्टान से है और महाद्वीपीय भूपटल का तात्पर्य ग्रेनाइट चट्टानों से है |

  1. सभी महासागरों में महासागरीय कटक पाए जाते हैं जो बेसाल्टिक चट्टानों से निर्मित है और महासागरीय निकाल मैदान से इसकी सामान्य ऊंचाई 2-3 किलोमीटर है|
  2. हैरिहेरस ने अपना मत तभी प्रस्तुत किया जब यह ज्ञात हो गया कि महासागरीय भूपटल की चट्टानें महाद्वीपीय भूपटल की तुलना में कम आयु के हैं| महाद्वीपीय चट्टानों के अधिकतम आयु 4600 मिलियन वर्ष और महासागरीय भूपटल की आयु 160 मिलियन वर्ष अनुमानित की गई|
    इन्हीं तीन मान्यताओं के आधार पर हैरिहेस महोदय ने अपना सिद्धांत प्रस्तुत किया है| हैरिहेस ने अपना सिद्धांत प्रस्तुत करते हुए कहा कि “समुद्र का नितल सतत प्रसार की अवस्था में है|”

सिद्धांत की व्याख्या:–
हैरिहेस ने महासागरीय नितल प्रसार का केंद्र महासागरीय कटक को मना है|उन्होंने ऑथर होम्स की संवहन तरंग सिद्धांत को आधार मानते हुए यह विचार प्रस्तुत किया कि मध्य महासागरीय कटक के पास संवहन तरंग लंबवत रूप से ऊपर उठती है और अपनी ऊर्जा का उत्सर्जन करती है| लंबवत ऊर्जा उत्सर्जन के कारण ही ज्वालामुखी की क्रिया होती है और इस ज्वालामुखी क्रिया से महासागरीय कटक का निर्माण होता है |पुनः उन्होंने यह भी बताया की लंबवत रूप से निकलने वाली संवहन तरंग का कुछ भाग भूपटल के नीचे ही क्षैतिज रूप से प्रभावित होने लगती है| इन्हीं क्षैतिज तरंगों के कारण भूपटल दो दिशाओं में खिसकने लगती है| ज्यों-ज्यों भूपटल का खिसकाव बढ़ता जाता है त्यों-त्यों लावा उत्सर्जन की मात्रा बढ़ने लगती है| यह क्रिया सतत सक्रिय रहती है| अतः उन्होंने बताया कि प्रत्येक महासागरीय कटक के पास नवीन भूपटल का निर्माण होता है और उसी के साथ समुद्री नितल का प्रसार भी होता है|
हैरिहेस महोदय ने बताया कि जब समुद्र नितल के प्रसार हो रहा है तो इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि पृथ्वी के परिधि में भी वृद्धि हो रही है| वास्तव में महासागरीय कटक के सहारे जब नवीन भूपटल का निर्माण होता है तो महासागरीय भूपटल का दूसरा किनारा महाद्वीपीय भूपटल से अभिसरण करता है |महासागरीय भूपटल का घनत्व अधिक होने के कारण महाद्वीपीय भूपटल में प्रविष्ट कर जाता है और गहराई में जाकर पिघलने की प्रवृत्ति रखता है |अतः यह संभव है कि महाद्वीपीय भूपटल की तुलना में महासागरीय भूपटल नवीन चट्टानों से निर्मित है|

सिद्धांत के पक्ष में प्रमाण—–
समुद्री नितल प्रसार के संबंध में प्रस्तुत किए गए परमाणु को दो वर्गों में बांटते हैं |
A. हैरिहेस के द्वारा एकत्रित किए गए प्रमाण
B. 1960 ई के बाद नवीन अनुसंधानों के द्वारा एकत्रित प्रमाण

A. हैरिहेस के द्वारा एकत्रित किए गए प्रमाण–
हैरिहेस महोदय ने अपनी परिकल्पना के समर्थन में कुल 9 प्रमाण एकत्रित किए है—-

  1. चट्टानों की आयु से संबंधित प्रमाण– हरी हेयर के अनुसार महासागरीय भूपटल में महासागरीय कटक के पास सबसे कम आयु के चट्टान और जहां पर महासागरीय भूपटल महाद्वीपीय भूपटल में प्रविष्ट कर रहे हैं वहां पर अधिक उम्र के चट्टान मिलती है|पुनः उन्होंने यह भी कहा कि ज्यों -ज्योः गर्त से कटक की ओर जाते हैं त्यों-त्यों चट्टानों की आयु में कमी होती जाती है| ऐसा तभी संभव है जब समुद्री नितल का प्रसार हो रहा है|
  2. महासागरीय नितल पर Sea mount और गयाॅट जैसी अपशिष्ट पहाड़ियां मिलती है| यह दोनों स्थलाकृतियां बैसाल्टिक चट्टानों से निर्मित है| हैरिहेस के अनुसार यह अपशिष्ट पहाड़ियां कभी महासागरीय कटक के शिखर थे लेकिन प्रसार प्रक्रिया के कारण यह महासागरीय कटक से दूर हट गए हैं| यह तभी संभव है जब महासागरीय नितल का प्रसार हो रहा है|
    कैलिफोर्निया तट से रूस के कमचटका प्रायद्वीप तक ऐसे लगभग दो दर्जन दरारें हैं| इन्हीं दरारों से मैग्मा पदार्थ बाहर निकलकर ज्वालामुखी द्वीपों का निम्न करती है| इन दरारों का निर्माण होना सागरीय नितल के प्रसार के संबंध में सशक्त प्रमाण प्रस्तुत करता है|
  3. महासागरीय नितल के किनारे महासागरीय गर्त का पाया जाना नितल प्रसार के पक्ष में एक महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करता है| हैरिहेस के अनुसार समुद्री गर्तों का निर्माण प्लेटों के प्रत्यावर्तन से संभव है और प्रत्यावर्तन तभी समय में जब समुद्री नितल का प्रसार हो रहा है|
  4. तटीय वलित पर्वतों के निर्माण भी महासागरीय नितल प्रसार का महत्वपूर्ण प्रमाण है |वस्तुतः प्रसारित हो रहे समुद्री नितल के दबाव से ही महाद्वीपीय चट्टानें मुड़कर किनारो पर वलित पर्वत का निर्माण करते हैं|
  5. पूरा-चुंबकीय प्रमाण—
    यह साबित हो चुका है की प्रति 3 लाख वर्ष के बाद चुंबकीय दिशा में परिवर्तन हो जाता है| ऐसा तभी संभव है जब भूपटल के गर्भ में मैग्मा पदार्थ बाहर निकल रहे हो| नवीन चट्टानों के निर्माण कर रहे हो और भूपटल एक दूसरे के सापेक्ष में प्रसारित हो रहे हो|
  6. महासागरीय नितल और तटवर्ती क्षेत्रों में होने वाली विवर्तनिकी क्रियाएं भी महासागरीय नितल प्रसार की पुष्टि करते हैं| अभिसरण और अपसरण के क्षेत्र में ही अधिकांश भूकंप एवं ज्वालामुखी की क्रियाएं होती है जो समुद्री नितल प्रसार की पुष्टि करते हैं|
  7. विभिन्न महाद्वीपों के विस्थापन तथा अनेक प्रणाली द्वीपों का विस्थापन भी नितल प्रसार को पुष्टि करता है|
  8. महासागरीय मैदान के सतह पर परतदार चट्टान का ना पाया जाना भी महासागरीय नितल के प्रमाण प्रस्तुत करता है

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

पृथ्वी की आंतरिक संरचना को समझने हेतु अप्रत्यक्ष साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है |यही कारण है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना के संबंध में अधिकतर ज्ञान अनुमान पर आधारित है| विज्ञान या भूकंपीय तरंग को सबसे सटिक वैज्ञानिक साधन माना जाता है| पृथ्वी का आंतरिक संरचना के अध्ययन से ज्ञात होता है कि पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 है पृथ्वी के धरातल से केंद्र की ओर जाने पर घनत्व में लगातार बढ़ोतरी होती जाती क्योंकि ऊपर से नीचे जाने पर चट्टान की दबाव एवं भार में बढ़ोतरी होते जाती है|
सामान्य नियम के अनुसार दाब बढ़ने से तापमान में बढ़ोतरी होती है| अतः प्रत्येक 32 मीटर की गहराई पर 1°C तापमान में बढ़ोतरी होती है|
स्वेस महोदय ने पहली बार पृथ्वी की रासायनिक संरचना का अध्ययन किया उन्होंने बताया की रासायनिक संरचना के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक भागों को तीन परतों में बांटा जा सकता है |
1.सियाल—-
पृथ्वी का सबसे उपरी परत सिलिकन एवं एलुमिनियम से निर्मित है |

  1. सिमा–
    स्वेस ने मध्यवर्ती परत को सिमा से संबोधित किया है और उन्होंने बताया कि सिमा सिलिकॉन एवं मैग्नीशियम से बना है |

3.निफे—
पृथ्वी के सबसे आंतरिक भाग को निफे से संबोधित किया है और बताया कि यह निकेल एवं लोहा से बना है |
भूकंप के साक्ष्यों के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक संरचना का सबसे अधिक वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है जिसके अनुसार पृथ्वी को तीन परतों में बांटा गया है–‘

  1. भूपर्पटी
  2. भूप्रावर
  3. कोड
    1.भूपर्पटी—-
    यह पृथ्वी का सबसे ऊपरी एंव पतली परत है| पृथ्वी के कुल आयतन का 0.5% और कुल द्रव्यमान का 0.2% crust में शामिल है| इसकी औसत मोटाई 33 किमी है| महाद्वीपों पर इसकी अधिकतम मोटाई 70 किमी तक और महासागरीय क्षेत्र में औसत मोटाई 5 किमी है| इसमें परतदार चट्टानों के प्रधानता होती है, लेकिन महाद्वीपीय भागों में परतदार चट्टानों के नीचे ग्रेनाइट चट्टानों की परत मिलती है, जबकि महासागरीय भूपटल पर वेसाल्ट चट्टानें मिलती है|
    भूपति की रासायनिक संरचना से स्पष्ट होता है कि इसमें सर्वाधिक आक्सीजन(46.80%), सिलिकॉन(27.72%), अल्युमिनियम8.13%) पाई जाती है |यह पृथ्वी का वह मंडल है, जिसमें प्राथमिक तरंग द्वितीयक तरंग सतही तरंग P, S, Pg & Sg जैसे भूकंपीय तरंग चला करते हैं| भूपर्पटी भी दो भागों में विभक्त है–
  4. महासागरीय भूपटल
  5. महाद्वीपीय भूपटल
    महाद्वीपीय भूपटल का घनत्व कम (2.75) है जबकि महासागरीय भूपटल का घनत्व अधिक (3.75) है| यही कारण है कि महाद्वीपीय भूपटल फुला/ खुला हुआ है जबकि महासागरीय भूपटल धंसा हुआ है |महाद्वीपीय भूपटल में भी अलग-अलग घनत्व की चट्टानें पाई जाती है |जैसे- पर्वतीय चट्टानों के घनत्व सबसे कम होता है |इससे अधिक घनत्व पठारों का और पठारों से ज्यादा घनत्व मैदानी चट्टानों में होता है|
  6. भूप्रावार—–
    भूप्रावार की मोटाई मोहो असंबद्धता से 2900 किलोमीटर तक है पृथ्वी की कुल आयतन का 83% और कुल द्रव्यमान का 68% भाग भूप्रावार में शामिल है| यह अधिक तापमान के कारण पिघली हुई अवस्था के समान हैं| भूप्रावार पृथ्वी का वह मंडल है, जिसमें प्राथमिक तरंग तो संचारित होते हैं, लेकिन द्वितीय तरंग विलुप्त हो जाती है |इनका निर्माण सिलिकॉन एवं मैग्नीशियम जैसे तत्वों से हुआ है| भूप्रावार का घनत्व 3 से 5.5 तक मानी जाती है|
    ▪ भूपर्पटी और भूप्रावार के बीच एक संक्रमण पेटी पाई जाती है, जिसे मोहोअसंबंद्धता कहते हैं|
    ▪ क्रस्ट और मेंटल के ऊपरी भाग को मिलकर स्थलमंडल कहा जाता है|
    ▪ स्थलमंडल के नीचे वाले मंडल को दुर्लभमंडल कहते हैं| होम्स ने बताया है कि दुर्लभमंडल में ही संवहन तरंगे चलती है| यह तरंगे इतनी शक्तिशाली होती है जो स्थलमंडल को तोड़ने एवं मोड़ने की क्षमता रखती है|
  7. क्रोड(Core)अंतर्तम—-
    यह पृथ्वी का केंद्रीय भाग है इसका घनत्व -10 -13.6 g/cm³ है | पृथ्वी के कुल आयतन का 16% एवं द्रव्यमान का 32% भाग क्रोड में शामिल है|क्रोड पृथ्वी का वह मंडल है, जिसमें केवल प्राथमिक तरंगे गुजरती है| यह मंडल निकेल एवं लोहा से निर्मित है| इसी कारण से पृथ्वी में चुंबकीय गुण है| क्रोड अत्यधिक दबाव के कारण ठोस भाग के रूप में परिणत हो चुका है| क्रोड की औसत मोटाई 3471 किमी है| Mantle और Core के बीच में एक संक्रमण पेटी पाई जाती है जिसे गुटेनबर्ग असंबद्धता कहते हैं|
    इस तरह उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना के संबंध में भूकंपीय तरंग सबसे अधिक वैज्ञानिक साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं

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