1.ज्वालामुखी उद्गार के कारण क्या है ?
2.भारत में ज्वालामुखी सक्रिय क्षेत्र कौन सा है ?
3.ज्वालामुखी कितने प्रकार के होते हैं ?
4.ज्वालामुखी उद्गार के ऊपर स्वरूप कौन-कौन से पदार्थ आते हैं ?उन आकृतियों को भी बताइए ?
5.विश्व के मानचित्र पर एवं भारत के मानचित्र पर ज्वालामुखी क्षेत्र को दिखाएं?
- ज्वालामुखी उद्गार के पश्चात किस प्रकार के लाभ व हानि होते हैं?
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पृथ्वी की आंतरिक क्रियाओं में हलचल के कारण जब मैग्मा ऊपरी परत को काटकर ऊपर आ जाता है तो वह लावा कहा जाता है और यह ज्वालामुखी की क्रिया है इसके निम्नलिखित कारण है - प्लेट टेक्टोनिक मूवमेंट- जब दो प्लेट जिसमें एक महासागरीय हो और एक महाद्वीपीय हो आमने-सामने हो जाते हैं तो महासागरीय प्लेट महाद्वीपीय प्लेट के नीचे चला जाता है ऐसी स्थिति में वह प्लेट मैग्मा से मिल जाता है .अत्यधिक तापमान के कारण वहां पर ज्वालामुखी की प्रक्रिया शुरू हो जाती है .प्रशांत महासागर में इसी प्रकार की प्रक्रिया के चलते सर्वाधिक ज्वालामुखी है.
- जब पृथ्वी के आंतरिक क्रिया में दो मैग्मा अलग-अलग दिशा में प्रवाहित होते हैं तो पृथ्वी की परत टूट जाती है और क्रस्ट टूटने से ज्वालामुखी उद्गार शुरू हो जाता है जैसे कि अटलांटिक महासागर में ज्वालामुखी का बनना.
- अगर ज्वालामुखी के विश्व वितरण को देखा जाए तो यह दिखाई देता है कि संसार के कमजोर भूभाग से ज्वालामुखी का निकट संबंध है और कमजोर भूभाग को काटकर मैग्मा तुरंत ऊपर आ जाता है .प्रशांत महासागर के तटीय प्रदेश पश्चिमी द्वीप समूह और एंडीज पर्वतमाला के किनारे इसी प्रकार का ज्वालामुखी है.
- ज्वालामुखी विस्फोट के लिए गैसों की उपस्थिति और जल वाष्प का होना बहुत जरूरी होता है .वर्षा के बाद भूपटल की दरार से पृथ्वी के आंतरिक भाग में जल पहुंच जाते हैं और वहां पर अधिक तापमान के कारण जलवाष्प में बदल जाते हैं और यह पृथ्वी को काटकर ऊपर की ओर आ जाता है .जिससे ज्वालामुखी का निर्माण होता है.
- ज्वालामुखी का निर्माण मोड़ दार पर्वत के किनारे होता है, क्योंकि मोड़दार पर्वत के बनने से पृथ्वी का दबाव कम हो जाता है और पृथ्वी के अंदर की चट्टाने कम दबाव पर बिखर जाती है। यही कारण है कि मोड़ दार पर्वत के किनारे ज्वालामुखी पाए जाते हैं।
ज्वालामुखी के प्रकार-
सक्रिय ज्वालामुखी ,सुषुप्त ज्वालामुखी एवं मृत ज्वालामुखी।
इसी प्रकार से ज्वालामुखी में आने वाले तेज लावा के कारण इसे हवाईयन प्रकार का ज्वालामुखी ,स्ट्रांबोली प्रकार का ज्वालामुखी वोल्केनो ज्वालामुखी ,वसुवियस प्रकार का ज्वालामुखी ए
पेलियन प्रकार का ज्वालामुखी पिलियन प्रकार का ज्वालामुखी भी कहा जाता है।
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ज्वालामुखी में जिस प्रकार से लावा आता है ,उसके आधार पर भी इसे अनेक नाम दिया जाता है जैसे सिंदर ज्वालामुखी, फील्ड ज्वालामुखी , dome आकृति वाला ज्वालामुखी, मिश्रित ज्वालामुखी, स्ट्रांबोली ज्वालामुखी बेथो लिथ ज्वालामुखी.
ज्वालामुखी उद्गार के फलस्वरूप निम्नलिखित पदार्थ बाहर निकलते हैं .जिसमें धूल कण से लेकर बड़े शिलाखंड भी होते हैं. मटर के दाने के आकार वाले शिलाखंड को लेपीली कहते हैं जबकि बहुत छोटे-छोटे नुकीले शिलाखंड लावा से चिपक कर एक चट्टान बन जाते हैं जिसे ज्वालामुखी बम कहा जाता है. इसी प्रकार से ज्वालामुखी शंकु भी बनता है .ज्वालामुखी से निकलने वाले तरल पदार्थ को लावा कहते हैं यह बहुत गर्म होता है इसका तापमान 12000 डिग्री सेल्सियस तक होता है ,15 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से भी कभी-कभी लावा बाहर निकलता है और 80 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार हो जाती है .इससे पदार्थ भी निकलता है और धूल भी निकलता है और जलवाष्प भी बाहर आता है.
ज्वालामुखी एक पर्वत है ,जिसके नीचे पिघले लावा की एक झील होती है .पृथ्वी के नीचे की उर्जा धीरे-धीरे ऊपर आने के लिए पृथ्वी को काट देती है और यही ज्वालामुखी की प्रक्रिया होती है. इसके फटने के बाद पत्थर और गैस बाहर आ जाते हैं. ज्वालामुखी के फटने से गैस और पत्थर ऊपर निकलते हैं इसके फटने से लावा भी बाहर आने लगता है लेकिन गर्म राख भी हवा के साथ बहने लगती है इसके कारण अलग-अलग क्षेत्र में भूस्खलन और बाढ़ की संभावना हो जाती है
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ज्वालामुखी में कुछ बाहरी आकृति बनती है ,जिसे शंकु सिंडर शंकु ,कंपोजिट शंकु , बेसिक लावा शंकु ,एसिड लावा शंकु ,लावा गुंबद कहा जाता है. जब ज्वालामुखी द्वारा निकला हुआ राख, धूल से एक पर्वत का निर्माण हो जाता है जैसा कि मेक्सिको का पर्वत एवं फिलीपींस का ज्वालामुखी. इसी प्रकार से सबसे ऊंचा शंकु , पर्वत ज्वालामुखी का उदाहरण है जैसे कि जापान का फ्यूजी यामा पर्वत. बेसाल्ट निर्मित लावा जो कम चौड़ा होता है यह बेसिक लावा का उदाहरण है हवाई द्वीप के ज्वालामुखी इसी प्रकार के हैं .ज्वालामुखी में एसिड ज्यादा होता है वह सिलिका प्रधान लावा है इसे स्ट्रांबोली लावा कहते हैं
ज्वालामुखी के द्वारा क्रेटर एवं केलडेरा का भी निर्माण होता है। यह ज्वालामुखी का मुंह कहा जाता है और इसमें जब जल भर जाता है तो फिर झील का निर्माण होता है। महाराष्ट्र का लोनार झील और और राजस्थान का पुष्कर झील इसी प्रकार का उदाहरण है
लावा के उद्गार से लावा पठार एवं गुंबद का निर्माण होता है। लावा मैदान मेसा और बूटी का भी निर्माण होता है ।इसी प्रकार से बेथोलित ,लैकोलिथ, लोपोलिथ ,sills, dyke फैकोलिथ का भी निर्माण होता है
ज्वालामुखी बनने के समय हानी के साथ-साथ कई लाभ भी होते हैं जैसे की झील का निर्माण हो जाना ,जिससे जल स्रोत उस क्षेत्र में तैयार हो जाता है ।राख के जमा होने से मिट्टी काफी उपजाऊ जाती है ।इसी प्रकार से पठार की श्रृंखला का निर्माण होता है जिस पत्थर से मकान पुल और सड़क का निर्माण होता है। कई पर्वतों का निर्माण हो जाता है ,जहां पर पेड़ पौधे अपने आप आ जाते हैं और पर्यावरण को लाभ होता है ।कुछ आकृतियां पिकनिक स्पॉट बनती है और वहां पर टूरिस्ट सेंटर बन जाता है ।सभी प्रकार के धातु का निर्माण ज्वालामुखी से ही होता है ।दक्षिण अफ्रीका का किंबरलाइट में हीरा पाया जाता है वह ज्वालामुखी से ही बना है। इसी प्रकार से कर्नाटक की माइंस में सोना ज्वालामुखी चट्टान में ही मिलता है