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मांझी परगना स्वशासन व्यवस्था

संथाल राज्य की प्रमुख आदिम जनजातियों में से एक है तथा उसमें मांझी परगना स्वशासन व्यवस्था बहुत प्रचलित हुई। राज्य के अनेक भागों में पाए जाने वाली यह परंपरा मुख्य रूप से संथाल परगना में ही निवासी है। इस व्यवस्था में सबसे ऊपर परगनैत जाति होता है। परगनैत के नीचे देश मांझी और मान्झी आते हैं। प्रत्येक ग्राम में प्रशासकीय और धार्मिक प्रधान जो ग्राम के सामाजिक जीवन को और संगठित रूप से चलाने हेतु निर्धारित है:-परगनैत, मोड़े पांझी, प्रधान, जोग मांझी, गोड़ाईत, प्रानीक, जोग प्रानीक ,भग्दो प्रजा, लासेर टैंगोय,नायके, चौकीदार, सुसारिया, दिशुम परगना।

  1. परगनैत: 15 से 20 ग्रामों के बीच  परगनैत होता है। यह ग्रामों के मान्झी का प्रधान है। जिस मामले को देश मांझी नहीं निपटा पाते हैं उसे परगनैत के पास संबंधित गांव के मांझी द्वारा ले जाया जाता है।
  2. मोड़े मांझी- 5 से 8 ग्रामों के मांझीयों को मोड़े मांझी या देश मांझी कहते हैं। अगर किसी मामले का फैसला मांझी न ले पाए तो उस मामले को मांझी मोड़े मांझी या देश मांझी के पास ले जाता है तथा 5 – 8 मांझी मिलाकर मामले का निर्णय करते हैं।
  3. मांझी-यह ग्राम का प्रधान है। मांझी को ग्राम के आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार की व्यवस्था के लिए ग्राम द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है। मांझी को ग्राम का व्यवसायिक प्रशासनिक और कर लेने का अधिकार होता है।
  4. प्रानीक : यह गांव के सभा का प्रमुख व्यक्ति हैं। इन्हें उप मांझी भी कहा जाता है। मांझी के उपस्थित न होने पर प्राणिक ही मांझी का काम करता है। प्रानीक किसी अपराधी का दंड भी निश्चय करता है। जो प्रानीक निश्चित करता है वही दंड अपराधी को दिया जाता है।
  5. गोड़ाईत: यह मानकी का सचिव होता है। गोड़ाईत मांझी के आदेशानुसार ग्राम में बैठकी करने हेतु गांव वालों को सूचित करता है। इसके अतिरिक्त ग्राम के पूजा -पाठ में खजांची का भी कार्य करता है। यह घर -घर से चंदा इकट्ठा करता है। यह धार्मिक कार्यों एवं पर्व त्योहारों का संदेश ग्राम वालों को पहुंचाता है। गोड़ाइत को पूरे ग्राम की जनसंख्या और परिवार की जानकारी होनी आवश्यक है।
  6. जोग मांझी-यह मांझी का उप सचिव होता है जो ग्राम के शादी- विवाह के बारे में हिसाब किताब रखता है और यह युवा वर्ग का नेता भी होता है। जोग मांझी शादी- विवाह में वाद- विवाद में निर्णय सुनाने का भी काम करता है।
  7. जोग प्रानीक- जो उप मांझी होता है इसकी जब जोग मांझी उपस्थित न हो पाए तो जोग प्रानीक पूरा कार्य भार लेता है।
  8. भग्दो प्रजा- यह ग्राम के कुछ प्रमुख सज्जन होते हैं जो ग्राम के प्रत्येक मामले में विचार-विमर्श हेतु ,सभा में जाकर प्रत्येक टोले अथवा एक या दो लोग जाकर उपस्थित होते हैं।
  9. लासेर टैंगोय- यह संगठनात्मक प्रमुख है जिसका काम गांव वालों की बाहरी हमलो से सुरक्षा प्राप्त करवाना है।
  10. नायक – यहां ग्राम के धार्मिक पूजा- पाठ कराते हैं और धार्मिक अपराधों के मामले पर इनका फैसला होता है। यह ग्राम के अंदर के देवी- देवताओं का पूजा- पाठ और उसका प्रबंध करते हैं।
  11. चौकीदार- चौकीदार मांझी के आज्ञा से अपराधी को पकड़ा कर अरेष्ट करवाते हैं। चौकीदार का पद वंशज के अनुसार नहीं चलता है।
  12. दिशुम परगना- अनेक प्रदेशों में सभी पदों से उच्च एक डिशूम परगना होती है, जिसमें कोई मामला परगना तो द्वारा नहीं निपटाया गया हो, तो उस मामले को दिशुम परगना की सभा में ही अंतिम निर्णय होता है। ग्राम को संभालने हेतु यह अपने आप में एक कैबिनेट की तरह है। भग्दो लोगों को छोड़कर बाकी सभी पदाधिकारी को ग्राम की ओर से भूमि मिली रहती है।

विवादों का निपटारा

  1. जमीन वाद-विवाद

संथाली में भूमि जीविका का मुख्य आधार है। यही कारण है कि भूमि -जायदाद को लेकर कुटुंब- कुटुंब ,ग्राम- ग्राम ,भाई -भाई और रिश्तेदारों में वाद – विवाद होता रहता है।

भूमि- जायजाद के  वाद-  विवाद को परंपरा के अनुसार नेतृत्व के दौरान मांझी परगनैत ही निपटाते हैं। यदि भूमि -जायजाद में किसी प्रकार का वाद -विवाद हो तो कोई एक पक्ष इस वाद -विवाद के बारे में ग्राम के मांझी को बताता है। शिकायत करने वाले पक्ष के अनुसार मांझी ग्राम वालों की बैठक की बुलाते हैं। बैठक की में वाद- विवाद मामले पर दोनों पक्ष और गवाहों की देखी सुनी जाती है ।दोनों पक्ष से बात होती है और अंतिम निर्णय लिया जाता है। ‘भग्दो प्रजा’ विचार-विमर्श करके उचित फैसला ‘मांझी’ सुनाते हैं।

अगर मांझी के फैसले से संतुष्टि न हो तो वाद- विवाद ‘मोड़े मांझी’ के पास जाता है। निर्णय यहां भी न हो पाए तो अंत में परगनैत के पास केस पहुंचता है। पहले के समय में कोर्ट कचहरी लोग नहीं जाया करते थे और परगनैत में निपटारा होता था। परंतु आज के समय में मांझी से संतुष्ट न होने पर लोग सीधे कोर्ट की ओर जाते हैं। संस्थानों में गांव वाले अपनी समुदाय की सुरक्षा शांति और एकता बनाए रखने हेतु जिम्मेदारी पूरे गांव के साथ- साथ पारंपरिक नेतृत्व के जिम्में भी होती है। यही कारण है कि गांव वाले का समुदाय को बाहरी खतरों का भय नहीं होता और समुदाय में एकता और शांति बरकरार रहती है।

अपराधिक मामले

          गांव के सारे अपराध केवल हत्या को छोड़कर पारस्परिक नेतृत्व में ही सुलझता है। यदि अपराधी का अपराध सिद्ध हो जाए तो ,उसे निश्चित दंड दिया जाता है। दंड के कई प्रकार होते हैं। सबसे छोटे अपराध के लिए ‘करेला दंड’ शब्द का उपयोग करते हैं जिसमें 1.50 रुपए का भुगतान होता है। यदि कोई अपराधी गंभीर रूप से दोषी पाया जाता है तो इस गंभीर अपराध हेतु उसे बड़ा आर्थिक दंड का भुगतान करना पड़ता है। जूरी अथवा विचार मंच में बैठे हुए लोग को यह अधिकार दिया जाता है कि दंड जो दिया गया है उसे संशोधित करें।

मूल्य के रूप में जो दंड होता है उसे अपराधी पाए गए व्यक्ति के पास अगर पैसा न हो तो समय भी दिया जाता है। आमतौर पर ग्राम के लोग सारी स्थिति को मद्दे नजर रखते हुए फैसला सुनाते हैं और दंड देते हैं। अपराधिक मामले में जो गंभीर अपराध में पाए गए दोषी होते हैं, उन्हें किसी प्रकार की रिहाई नहीं मिलती है।

3. बलात्कार अथवा यौन अत्याचार

बलात्कार अथवा यौन अत्याचार, पीड़िता व महिला अथवा लड़की के अभिभावक सबसे पहले मांझी को जानकारी देते हैं तथा बैठक की बुलाकर संबंधित व्यक्तियों के समक्ष पीड़िता को सौंपने और दंड  देने का आग्रह किया जाता है। बुलाए गए बैठक में अथवा बुलाए गए सभा में शिकायत कर्ता के सुनने के पश्चात आरोपित व्यक्ति से भी गवाही ली जाती है और अनेक गवाहों से पूछताछ की जाती है। सभी पक्षों के विचार सुनकर उसके पश्चात आरोपित या अपराधी को दोषी पाया जाता है ,अगर पीड़िता और अपराधी दोनों को मंजूर हो तो लड़की को पत्नी के रूप में स्वीकार करता है। तमाम सबूतों को मद्देनजर रखते हुए अगर दोषी लड़की को पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करता है तो यह मामला देश मांझी अथवा मोड़े मांझी तक जाता है। अगर मोड़े मांझी भी इस फैसले को नहीं ले पाते हैं और अपराधी लड़की को पत्नी स्वीकार नहीं कर पाता है तो यह मामले को परगनैत के पास पहुंचाया जाता है।

4. अवैध संतान

यदि संथाली कुंवारी लड़की अवैध रूप से गर्भवती हो जाती है तो उसके अभिभावक सबसे पहले या बाद जो गुमान जी को बताता है। जो गुमान जी गांव में बैठ कर बुलाते हैं और अवैध संतान के बाप के बारे में पूछताछ की जाती है। जब वह महिला उस बच्चे के बाप का नाम बताती है तभी गवाहों से प्रमाणित किया जाता है और पीड़िता को उस लड़के के पास सौंपा जाता है।

यदि कोई लड़की किसी लड़के को नहीं पहचान पाती है तो ऐसी स्थिति में संथाली समाज के ग्राम वाले उसे अपवित्र अथवा अछूता मानकर ग्राम को पवित्र करने हेतु पूजा पाठ के सामग्री यानी हंसी और चावल के रूप में लड़की के कुटुम्ब वाले दंड के रूप में देते हैं। इस समाज में जब इस तरह से अवैध संतान जन्म लेता है तो उस संतान का गोत्र अथवा नामकरण ‘जोग मांझी’ के गोत्र से मिलाकर रख दिया जाता है। अगर किसी कुमारी लड़की का गर्भ ठहरा हो तथा सारी कोशिशों के बाद भी लड़का पकड़ा न जा सके ऐसे मामलों में लड़की के पिता या अभिभावक किसी भी लड़के को उस लड़की के पति के रूप में  स्वीकारने के लिए आग्रह भी करता है। लड़का -लड़की दोनों के राजी होने पर विवाह कर दी जाती है तथा अवैध संतान को उस वर और उसके गोत्र के साथ नाम दिया जाता है। कन्या के पिता वर पक्ष को हर्जाने के तौर पर धन -संपत्ति इत्यादि भेंट देता है।

5. कुटुंब और ग्राम के विवाद

कुटुंब और ग्राम के बाद विवादों में पीड़िता कन्या के बारे सबसे पूर्व गांव के मांझी को वाद -विवाद के बारे में जानकारी मिलती है तथा इस वाद -विवाद को विराम देने हेतु  सभा में बुलाकर फैसला अथवा निर्णय करने का आग्रह किया जाता है। वाद- विवाद की जानकारी मिलने के पश्चात मांझी, गोड़ाइत के द्वारा अन्य पदधारी (प्रानीक,जोग मांझी,जोग प्रानीक,नामके,कुड़ाम नामके), भग्दो प्रजा, गांव और आरोपी को सभा में उपस्थिति की सूचना देते हैं।

बैठक में शिकायतकर्ता अपराधी पक्ष और गवाह दोनों और की बातें सुनने के पश्चात वहां उपस्थित पदाधिकारी और भग्दो प्रजा से विचार- विमर्श का निर्णय लेते हैं। विचार -विमर्श के पश्चात यदि किसी अपराधी का अपराध सिद्ध हो जाए तो प्रानीक उसका दंड निश्चित करता है ।दंड अपराध के ऊपर ही निर्भर करता है। अगर किसी मामले को ग्राम वाले सभा में नहीं निपटा पाते हैं या अपराधी व्यक्ति को दंड देने से इन्कार करते हैं तो ऐसी स्थिति में ग्राम के मांझी मोड़े मांझी के पास संदेश पहुंचाता है। मोड़े मांझी भी अगर इस केस को नहीं सुलझा पाता है तो यह केस फिर से वापस मांझी द्वारा परगनैत के पास बढ़ाया जाता है और परगनैत का निर्णय अंतिम निर्णय होता है।

6. विटलाह

संथाल शासन में अगर कोई व्यक्ति किसी अपराधी मामले में दोषी पकड़ा जाता है तो अपराध हेतु पारंपरिक नेतृत्व मांझी से लेकर परगना तक उसे दंड सुनाया जा सकता है किंतु वह दंड लेने से इंकार कर दे तो ऐसे में पूरा संथाल समाज उसका विटलाह भी करता है। विठलाह एक सामाजिक बहिष्कार होता है जिसमें एक परगनैत की अध्यक्षता में सारे व्यक्ति किसी कुटुंब का विटलाह कर उसे दंड देते हैं। विठला बहुत पुरानी प्रथा है जिसमें ग्राम और सारे क्षेत्र के मान्झीओ को यह बताया जाता है कि अपराधी ने इस प्रकार का अपराध अथवा दोष किया है तथा वह अपराधी दंड स्वीकार करने से इन्कार भी कर रहा है कारणवश उनका विटलाह होता है। विटलाह के पूर्व ग्राम- ग्राम के लोग जाकर कुटुंब को समझाते हैं अगर उसके बाद भी अपराधी अपने अपराध को स्वीकारने से इंकार करता है तो पूरे ग्राम के लोग दिन -तारीख ,स्थान और समय निश्चित करके बैठक करते हैं और ग्राम के मांझी को बुलाकर वहां अमुक व्यक्ति का विटलाह किया जाता है। इसमें मांझी कहता है कि ठीक है वह हमारी राजा जरूर है लेकिन यदि अमुक व्यक्ति दोषी है तो वहां हम इस परिवार का विठलाह करने की अनुमति दे देते हैं परंतु मेरा आप लोगों से आग्रह है कि उस कुटुंब को छोड़कर अन्य किसी परिवार को किसी प्रकार की क्षती नहीं पहुंचने चाहिए। लोग जुलूस लेकर तथा उससे पूर्व चूल्हा तोड़ने का काम करते हैं। संस्थानों में चूल्हा तोड़ना अर्थात बहुत बड़ा अमुख कुटुंब का अपमान होता है। विटलाह पूरे कुटुंब को आतंकित बनाता है। कभी -कभार यह भी देखा गया है कि अमुक कुटुंब की लूटपाट के साथ उसके मकान को भी उजाड़ दिया जाता है। हमको कुटुंब के संपत्ति को नष्ट किया जाता है। उस कुटुंब के गाय -बैल को छोड़ दिया जाता है उन्हें खेद दिया जाता है जो एक तरह की अपराधिक सजा मानी जाती है। यह घटना ज्यादातर बलात्कार या यौन शोषण के आरोप में फंसे हुए अपराधी के कुटुंब के साथ होता है।

7. धार्मिक पर्व त्योहार और सामाजिक पर्व त्यौहार

सामान्यत: संथाली समाज में मान्झी और अन्य पारंपरिक पदों वाले ग्राम के प्रमुख लोग होते हैं तथा ग्राम में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी उनके ऊपर ही होती है। यही कारण है कि संथाली समाज के सामाजिक और धार्मिक सभी पर्व त्योहारों में पारंपरिक नेतृत्व की मुख्य भूमिका देखी जाती है। 18 संथाली समाज के सामाजिक और धार्मिक पर्व -त्योहारों का निश्चित रूप से पारंपरिक नेतृत्व के द्वारा ही कार्य होता है।

8. परगनैत तथा मांझी के बीच का रिश्ता

परगना के अधीन मांझी कार्यरत होता है। परगनैत के हुक्म के अनुसार ही मांझी काम करता है। पूर्व जमाने में मांझी के द्वारा वसूला गया खजाना परगनैत के यहां ही जमा होती थी, किंतु वर्तमान में इसे अब मांझी द्वारा सीधे अंचल अधिकारी को जमा कर दिया जाता है।


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