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मुण्डाओं की स्वशासन व्यवस्था  का विस्तार रूप से वर्णन करें?

मुण्डाओं की भाषा मुण्डारी है जिसकी जड़े आस्ट्रों एशियाटिक परिवार से जुड़ी है। उनका मुख्य निवास स्थान राँची, सिंहभूम, हजारीबाग, पलामू और धनबाद हैं। इनकी आबादी 12.29 लाख हैं। अपने समाज को संगठित और सुचारू रूप से चलाने के लिए प्राचीन समय से ही इनकी अपनी पारंपरिक सामाजिक स्वशासन व्यवस्था रहीं हैं। इसी शासन व्यवस्था के द्वारा वे अपने समाज के घटित सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और आपराधिक मामलों का निपटारा करते हैं।

मुण्डाओं की पारंपरिक सामाजिक स्वशासन व्यवस्था में मुख्य भूमिका मुण्डा, पड़हा राजा, दीवान, ठाकुर आदि की होती हैं। (1) पड़हा राजा, (2) राजा, (3) ठाकुर, (4) दीवान, (5) लाल, (6) पाण्डे (7) पुरोहित, (8) घटवार, (9) चवार डोलाइत, (10) बरकंदाज, (11)दारोगा, (12)पाहन (13) पुजारी पाहन (14) महतो हैं।

1)मुण्डा : गाँव का प्रधान होता है। गाँव की शासन व्यवस्था में इसकी प्रमुख भूमिका होती हैं। बाहरी कार्यों या मामलों में गाँव का प्रतिनिधित्व करता है। गाँव के प्रशासनिक, न्यायिक तथा सामाजिक कार्यों का दायित्व लेता है। गाँव की बैठक अध्यक्षता करता है। गाँव की मालगुजारी (कर) वसूलता है और कर्मचारी के माध्यम से अंचल कार्यालय में जमा करता है। आजादी के पहले वह अंचल कार्यालय के बदले अपने क्षेत्र के पड़हाराजा/मानकी को और पड़हाराजा/मानकी ठाकुर के माध्यम से महाराजा को देता था।

  1. *पड़हा राजा : कई गावों (लगभग 12 से 20) को मिलाकर जो संगठन बनता है उसे ‘पड़हा’ कहते हैं। पड़हा राजा पड़हा का प्रधान है। कुछ मुण्डा क्षेत्रों में पड़हा राजा को मानकी कहा जाता है। मुंडा क्षेत्र के पहले  12 पङहा  थे लेकिन अब 22पड़हा  है। जिन विवा दो या मामलों को गांव के मुंडा द्वारा नहीं सुलझाया जा सकता उन मामलों को अन्य सहयोगियों के साथ सुलझाना पड़हा राजा का काम है।
    *राजा: 22पङहा  मैं एक राजा होता है

मुंडा पङहा राजा और राजा के बीच रिश्ता

मुण्डा गाँव के विकास, सुरक्षा, झगड़ों के निपटारा और गाँव के अन्य मामलों का फैसला करने में स्वतन्त्र होता हैं। पड़हाराजा गाँव के मामलों में हस्तक्षेप तक तक नहीं करता है जब तक कि गाँव का मुण्डा पड़हाराजा या राजा को आमन्त्रित नहीं करता है। यद्यपि कई मुण्डाओं के ऊपर पड़हाराजा होता है और पूरे पड़हा की सुरक्षा की जिम्मेदारी पड़हाराजा पर होती है।
*ठाकुर : पड़हाराजा के कामों में सहयोग के लिए एक ठाकुर होता हैं। इसे सहायक
भी कह सकते हैं।

  • दीवान : दीवान राजा का मंत्री होता हैं जो राजा के हुक्म को आगे अमल में लाता है। किसी सभा के लिए राजा दीवान को आदेश देता हैं और दीवान आगे की कार्रवाई करता है।

दीवान  दो प्रकार का होता है

(1)गढ़ दीवान : यह गढ़ के अन्दर के क्रियाकलापों में शामिल होता हैं।
(2) राज दीवान : राज दीवान गढ़ बाहर के क्रियाकलापों में शामिल होता है।

  • सिपाही (बरकंदाज) : दीवान के आदेश पर गाँव-गाँव में नोटिस तामिल करना
    सिवाही या बरंकदाज का काम होता है।
  • दारोगा : सभा की कार्रवाई में सभा का नियन्त्रण दारोगा करता है। यह सभा में प्रवेश करने वाने व्यक्तियों की जाँच-पड़ताल भी करता है कि कहीं कोईहथियार तो नहीं छिपाया है।

*पाण्डेय : यह सभी के कागज-पत्रों को  रखने की जिम्मेदारी लेता है। यह राजा के आदेश पर नोटिस भी जारी करता है।

  1. लाल : एक प्रकार से वकील के समान होते हैं। ये सभा में बहस करने का काम करते हैं, जैसे जिरह करना। लाल तीन प्रकार के होते हैं : (क) बड़लाल, (ख) मझलाल अझलाल और (ग) छोटेलाल। ये तीनों लाल निर्णय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  2. पाहन : वह मुण्डा का सहायक होता है। मुण्डा की अनुपस्थिति में पाहन ही गाँ व के सभी कार्यों को करता है।
  3. पुजारी पाहन : गाँव  के पर्व त्योहारों में पूजा पाठ करता है पुजारी पहन के बिना कोई भी धार्मिक पर्व त्योहारों का पूजा पाठ नहीं होता है

6.महतो : मुण्डा और पाहन का सहायक होता है। यह गाँव में सूचना जारी करने का काम करता है। मुण्डा के आदेश को समूचे गाँव में या किसी व्यक्ति विशेष को सूचना देना इनका प्रमुख काम है। गाँव के बाहर की सूचना को भी मुण्डा तक पहुँचाना इनका काम होता है। पुजारी पाहन को भी यह सहायता करता है।

  1. पुरोहित : यह शुद्धिकरण का कार्य करता है। जब कोई व्यक्ति समाज विरोधी काम करता है, जो जाति या गोत्र के विरूद्ध होता है। तब उसे दण्ड मिलने के बाद शुद्धिकरण का बाद ही उसे समाज में दोबारा मिला लिया जाता है। दण्ड नहीं देने पर उस व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार किया जाता है।
  2. घटवार : घटवार दण्ड में मिले सामग्री को बाँटता है। दण्ड की सामग्री या रूपये-पैसे  फोन उसको चार्ज में लगाई है ना थोड़ा उसको दिया फोटो थोड़ा सा मिला रहा हैइनके जिम्मे रहता है।
  3. चवार डोलाइत : सभा में हाथ-पैर धुलाने का काम चवार डोलाइत करता है।
  4. पान खवास : सभा में चूना-तम्बाकू बाँटने वाला व्यक्ति पान खवास कहलाता है।
    अखड़ा : अखडा में किसी भी समस्या से सम्बन्धित बैठक होती है। साधारणतया अखड़ा गाँव के बीच में और पुराने पेड़ के नीचे स्थित होता है। अखड़ा में सामूहिक रूप में और सर्वसम्मति से विचार-विमर्श होता है तथा नैतिकता एवं औचित्य के आधार पर निर्णय किया जाता है। इस प्रकार के विचार से सभी लोग संतुष्ट एवं प्रसन्न रहते हैं। न्याय भी जल्दी और कम खर्च में मिल जाता है।
    विवाद निस्पादन की पारम्परिक विधि-

प्रथम चरण : गाँव का पीड़ित व्यक्ति या आपत्तिकर्ता गाँव के ‘मुण्डा’ को घटना की जानकारी देता है और आग्रह करता है कि गाँव में सभा बुलाकर विचार करें। तब गाँव का मुण्डा महतो को सूचित करता है कि घटना की जानकारी लो और सभा बुलाओ। सभा में दोनों पक्षों की बात सुनी जाती हैं और जिरह किया जाता है। सभा में मुण्डा, महतो और गाँव के बुजुर्ग उपस्थित रहते हैं। विचार-विमर्श के बाद यदि किसी का अपराध पाया जाता है तो मुण्डा अपने सहयोगी पाहन और महतो से सलाह से दण्ड निश्चित करता है। दण्ड अपराध के स्तर को खकर तय किया जाता है। दण्ड छोटे अवराधों के लिए आर्थिक होते हैं। बड़े अपराधों के लिए समाज से बहिष्कार तक किया जाता है।

द्वितीय चरण : यदि कोई व्यक्ति दण्ड देने से इनकार करता है या कोई मामला गाँव स्तर में नहीं सुलझता है तब और आसपास के दो-तीन गाँव के मुण्डा विवाद का निपटारा करने की कोशिश करते हैं। फिर भी यदि फिर भी यदि फैसला नहीं हो पाता हैं तब पड़हा सभा’ में फैसला करते हैं। इसके लिए गाँव का मुण्डा पड़हाराजा को जानकारी देता है और पड़हाराजा दीवान को बुलाकर मामले की जानकारी लाने का आदेश देता है। दीवान पाण्डेय को सूचना जारी करने का आदेश देता हैं। सूचना को ‘बरकंदाज या सिपाही’ गाँव-गाँव पहुँचाता हैं और सभा की पड़हाराजा की सभा में विवाद का निपटारा किया जाता है. जिसे मानना ही पड़ता है। अन्यथा 22 पडहासभा उसे जाति निकाल की सजा भी  दे सकता है मुंडा में 22पर हा सभा उच्चतम न्यायालय के समान है।
शासन व्यवस्था की विभिन्न भूमिकाएं

विभिन्न मामलों में पारंपरिक व्यवस्था : उनकी सफाईहत्या जैसे गम्भीर मामलों को छोड़कर अन्य मामलों का निपटारा पारंपरिक नेतृत्व के द्वारा सुलझाया जाता है। छोटे-छोटे मामले गाँव  फैसला करने की कोशिश की जाती है फिर पढ़ा राजा के सभा में फैसला करने की कोशिश की जाती है।सबसे आखिर में 2 2पड़हाराजा की सभा का फैसला मानना ही पड़ता हैं। आपराधिक मामलों में ज्यादातर आर्थिक दण्ड का प्रावधान है। जैसे को तैसे वाला फैसला नहीं सुनाया जाता है। फैसला मानवीय मूल्यों को नजर में रखकर किया जाता है।

यौन अत्याचार के मामले :यदि कोई लड़का अपने ही किसी (गोत्र) की लड़की का बलात्कार करता है तो लड़के को कठोर से कठोर दण्ड दिया जाता है। यदि शादी का रिश्ता बनने लायक होता है तो लड़के को लड़की का जिम्मा लेना पड़ता है या लड़के का अपराध सिद्ध होने पर लड़की को लड़के के सुपुर्द किया जाता है। ग्राम स्तर पर मामला नहीं निपटाने पर पड़हाराजा की सभा में यौन अत्याचार का फैसला सर्वमान्य होता है।
विकास कार्यों में  :विकास कार्यों के लिए मुण्डा गाँव सभा बुलाता है। गाँव के वयस्क सदस्य फैसला करते हैं कि गाँव में किस स्थान पर सड़क की जरूरत है या नहर की आवश्यकता है। छोटे-छोटे विकास के काम श्रमदान द्वारा किए जाते हैं।

जमीन-जायदाद के विवादों में योगदान :गाँव में जमीन-जायदाद के बंटवारे के लिए हकदार मुण्डा को सूचना देता है। मुण्डा अपने सहयोगी पाहन और महतो के साथ ग्रामीणों की उपस्थिति में जमीन का बंटवारा करता है। भाइयों में बराबरी का हिस्सा बाँटता है। भूमि संबंधी विवादों का निपटारा गाँव का गुण्डा गाँव में ही निपटाने का प्रयास करता है। नहीं निपटने पर पड़हाराजा सभा में मामला निपटाने का प्रयत्न किया जाता। और अन्त में 22 पडहाराजा सभा में मामला निपटा ही लिया जाता है।

धार्मिक पर्व-त्योहारों में :
धार्मिक पर्व-त्योहारों की तिथि निश्चित करने में पुजारी पाहन की मुख्य भूमिका रहती है। हर एक गाँव में एक पुजारी पाहन होता है जो गाँव के पर्व-त्योहारों की तिथि निश्चित करता है। पर्व की तिथि तय करते समय गाँव के मुण्डा, महतो. पाहन के अलावा गाँव के बड़े-बुजुर्ग और वयस्क व्यक्ति उपस्थित रहते है।

सम्पत्ति पर महिलाओं का अधिकार :यदि कोई लड़की पिता के घर में अविवाहित (डीडा) रहती हैं तो इसे भरण-पोषण के लिए जमीन का कुछ हिस्सा दिया जाता है परन्तु वह जमीन बेच नहीं सकती हैं। विधवा को पति के जमीन पर केवल भरण-पोषण का अधिकार होता है। वह भी जमीन बेच नहीं सकती है।
महिलाओं को अन्य अधिकार :मुण्डा समाज में महिलाओं को मुण्डा पद नहीं दिया जाता है। विचार-विमर्श में भी उन्हें शामिल नहीं किया जाता हैं। यह पद पगड़ी देकर रस्मअदायगी के साथ केवल पुरूषों को  दिया जाता है।

2) पड़हा पंचायत शासन व्यवस्था  का वर्णन करें

पड़हा पंचायत शासन व्यवस्था मुख्यतः उराँव जाति में कार्य करती हैं। यह व्यवस्था दो स्तरों पर कार्य करती हैं-

(1) गाँव पंचायत

(2) पड़हा पंचायत

गाँव पंचायत
इसके प्रमुख कार्यकर्ता महतो, पाहन और भंडारी होते हैं। महतो गाँव का प्रधान होता है और पाहन के साथ मिलकर गाँव के किसी मामले में निर्णय लेता है। गाँव में उनका नेतृत्व होता था। ग्रामवासी किसी समस्या को उनके समक्ष रखते थे। उनकी मान्यता का एक कारणयह भी था कि वे उरांव जनजाति के ग्रामों में यह व्यवस्था कई स्थानों पर आज भी पाई जाती है।

गाँव पंचायत के कार्यो में जनजातीय लोगों के बीच विवाद: हैजा, चक, आदि जैसी आपदाएँ शादी विवाह जैसे झगडे गाँव में पर्व-त्योहारों का आयोजन पडहा पंचायत ने निर्णय का अनुपालन कराना, आदि शामिल है। सामाजिक नियमों के उल्लघन के मामलों को भी कड़ाई से देखा जाता था और दोषियों को समाज से बाहर करने अथवा दण्ड की सजा दी जाती थी।

महतो: गाँव पंचायत का प्रमुख महतो होता था। यह पद वंशानुगत था और ज्येष्ठता के सिद्धान्त पर आधारित था। पुत्र उत्तराधिकारी की अनुपस्थिति में उस वंश का कोई अन्य उत्तराधिकारी होता था। उसे ‘महतवई खेत दिया जाता था जो पद के साथ उत्तराधिकार में मिलता था।

पाहन : वह गाँव का पुजारी होता है और उसका कार्यकाल 3 वर्षों का होता है। तीन वर्ष की समाप्ति के बाद सरहुल के दिन नये पाहन को चयन होता है।

भंडारी: भंडारी संदेशावाहक होता था परन्तु जिस गाँव में राजा का भंडार होता था उसका प्रभारी भी भंडारी होता था। उसे एक जमीन भी दिया जाता था जिसे “भंडार गिरि खेत’ कहा जाता है।

पड़हा पंचायत
यह 9 से 12 ग्रामों का समूह होता हैं जिसका प्रमुख पड़हा राजा होता है। इसके अतिरिक्त राजा, दीवान, मंत्री, पैनभरा और कोटवार होते थे। राजा पड़हा का प्रधान होता है और पंचायत की बैठकों की अध्यक्षता करता है। दीवान उसका सहायक होता है और मंत्री उसका परामर्शी। कोटवार संदेशवाहक का काम करता है। आवश्यकता पड़ने पर किसी दोषी को सजा का तामिला कोटवार के माध्यम से कराया जाता है। पैनभरा का काम बैठकों के लिए खाने और पीने की व्यवस्था करना होताथे। परहा पंचायत अपीलीय न्यायालय की तरह काम करता है गांव पंचायत जिन मामलों में निर्णय नहीं लेता है या कोई उसके निर्णय से असंतुष्ट है तो मामलों की सुनवाई इस स्तर पर होती है और अगर कोई सामाजिक परंपरा या मान्यता को तोड़ता है तो उसे पंचायत दंड अथवा निष्कासन की सजा दी जाती है यह मेले और त्यौहार जैसे  आयोजन कर जनजाम प्रभावी होने का सबसे बड़ा उदाहरण है। प्रत्येक है। रांची जिले का मुडमा मला पड़हा पंचायत पड़हा में पड़हा जतरा का आयोजन जिसमे नृत्य का आयोजन होता है। वर्ष में एक बार पडहा शिकार भी आयोजित किया जाता है अन्य के लिए जनी शिकार होता है जो प्रत्येक 12   वर्ष पर किया जाता है।

विवादों का निपटारा – गाँव के. विवादों और मामलों का निपटारा जब किसी. व्यक्ति या परिवार में किसी प्रकार का विवाद रूप में) महतो को विवाद या मामले के बारे में
शिकायत करता है और बैठक बुलाकर  उचित फैसला करने के लिए आग्रह करता है ऐसे मामले में वह अपने मांझी के द्वारा बैठक की गांव वालों को सूचित करता है
दिन, समय और स्थान निश्चित कर बैठकी की जाती है। बैठक में शिकायतकर्ता तथा आरोपित पक्ष की बातों को सुनने के लिए गाँवों के कुछ प्रमुख लोगों (बड़े बुजुर्ग) को चुना जाता है। इस बैठकों की अध्यक्षता गाँव का महतो करता है। शिकायतकर्ता तथा आरोपित पक्ष की बात सुनने के बाद पंच पर बैठे सदस्यों द्वारा विवाद पर तर्क-वितर्क किया जाता है। विचार -विमर्श के बाद, जो उचित लगे, सभा में फैसला सुना दिया जाता है।

अगर कोई मामला या विवाद ग्राम सभा में  नहीं सुलझाया जा सकता तो इसे गांव के महत्व द्वारा पर हर आजा पंचमी ले जाया जाता है किसी भी मामले में यदि विचार विमर्श के बाद किसी को दोषी पाया गया तो उसे आम तौर पर आर्थिक या कभी-कभी सामाजिक बहिष्कार का भी निर्णय दिया जाता है।

यौन अत्याचार पाबलात्कार के मामलों में
पीडित महिला/लड़की या लड़की के माता-पिता या आई सबसे पहले गाँव के महतों को जानकारी देता है और गाँव में बैठकी बुलाकर आरोपित अजित को दण्ड देने या लड़की को सौंपने का आग्रह करता है।
बैठकी में पंच द्वारा शिकायतकर्ता की बात सुनने के बाद आरोपित व्यक्ति से इसके बारे में सफाई मांगी जाती है तथा गवाहों (यदि गवाह हो तो) से पूछताछ की जाती है। तीनों पक्षों को सुनने के बाद यदि आरोपित व्यक्ति को दोषी पाया जाता है और मामला ज्यादा गम्भीर न हो तो केवल आर्थिक दण्ड देकर मामले को समाप्त  किया जाता है बलात्कार जैसे मामलों में यदि लड़का और लड़की दोनों राजी हो तो दोनों की शादी कर दी जाती है दोषी पाए जाने के बाद भी यदि कोई आरोपित व्यक्ति पंच के निर्णय से इंकार करता है तो उसे या उस परिवार का सामाजिक बहिष्कार किया जाता है।

गम्भीर अपराध या हत्या के मामले में – हत्या जैसे गम्भीर मामलों को गाँव में नहीं सुलझाया जाता है। ऐसे मामलों को गाँव महतो द्वारा थाना बढ़ा दिया जाता है। छोटे-मोन आपराधिक मामलों का निपटारा गाँव में ही किय जाता है।

जमीन-जायदाद का विवाद जमीन जायदाद का विवाद भी पहले गाँव महतो द्वारा यानी ग्राम सभा द्वारा ही निपटा जाता है। यदि ग्राम सभा में विवाद का निपट नहीं हो सकता तो ऐसे मामलों को गाँव  के महत्व द्वारा पर हां राजा के यहां बड़ा  दीयाजाता है।

धार्मिक पर्व-त्योहारों में के धार्मिक पर्व-त्योहारों में पारंपरिक नेतृत्वमहत्वपूर्ण स्थान हैं। महतो की अध्यक्षता में ही गाँव में मनाये जाने वाले पर्व-त्योहारों का दिन तय किया जाता है। महतो के बिना कोई भी पर्व-त्योहार का दिन तय नहीं किया जाता है। करमा त्योहार में महतो द्वारा ही सबसे पहले ‘करमा’ वृक्ष गाड़ा जाता है। इसके बाद ही गाँव के दूसरे लोग गाड़ते हैं।


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