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अनुच्छेद 12 एवं अनुच्छेद 13 की व्याख्या करें?vinayiasacademy.com

  • अनुच्छेद 12 में राज्य की परिभाषा को तय किया गया है राज्य किसे कहेंगे और इस शब्द के तहत भारत की कौन-कौन सी संस्था आएगी ऐसा इसलिए किया गया है ताकि सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा कई बार अपने निर्णय में सिर्फ राज्य का उल्लेख किया जाता है तो फिर राज्य में कौन-कौन से अस्थाना सकते हैं राज्य के अंतर्गत भारत की सरकार भारत की संसद राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधानमंडल भारत के राज्य क्षेत्र के अंदर यह सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य संस्थाएं को शामिल कर लिया गया है जो सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर भारत सरकार या राज्य सरकार के द्वारा नियंत्रित किए जाते इसलिए अगर राज्य शब्द का उल्लेख होता है तो इस शब्दावली में भारत सरकार संसद राज्य सरकार राज्य विधानमंडल सभी स्थानीय प्राधिकारी सभी अन्य पदाधिकारी को शामिल करेंगे पंचायती राज व्यवस्था के सभी अंग एलआईसी ऑफ इंडिया पब्लिक सेक्टर बैंक ओएनजीसी जीएसआई सहित भारत सरकार के द्वारा चलाए जा रहे सभी उपकरण को भी राज्य का दर्जा दिया गया है राज्य का मतलब सिर्फ भारत की संप्रभुता और अखंडता नहीं है बल्कि भारत सरकार के द्वारा नियंत्रित हो रही सभी गवर्निंग बॉडी को भी माना गया है इसलिए जब कभी सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय या संसद के द्वारा पारित विधि में राज्य का उल्लेख किया जाता है तो इन सभी चीजों के लिए एक वाक्य परिवर्तित हो जाता है इन्हें जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के लिए कृत संकल्प होना होगा vinayiasacademy.com
  • अनुच्छेद 13 में मूल अधिकारों को रोकने के लिए प्रत्येक प्रकार से जो दिखाते थी इसे ही बचाने की कोशिश है यानी कि प्रत्येक व्यक्ति के मूल अधिकार के लिए जिस स्तंभ की जरूरत थी वह अनुच्छेद 13 में व्याख्या सहित बताया गया है इसमें यह बताया गया है कि संविधान परिवर्तित होने के पहले जो भी कानून भारत में लागू थी वह उस मात्रा तक मानी जाएगी जिस मात्रा तत्व संविधान के भाग 3 के उपवन के लिए असंगत होगी इसका यह अर्थ होगा कि संविधान लागू होने के पहले जो भी कानून भारत में था लागू होने के बाद उस कानून का कोई ऐसा जो मौलिक अधिकारों को छीन रहा हो मौलिक अधिकारों को रोक रहा हो तो वहां पर वह कानून निष्क्रिय हो जाएगा यानी कि उस कानून का प्रभाव कम हो जाएगा नग्न हो जाएगा अनुच्छेद 13 के ही दूसरे वाक्य के अनुसार राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार द्वारा कभी भी ऐसा कोई कानून नहीं बनाया जाएगा जो संविधान भाग के तीन के द्वारा दिया गया अधिकार को छीन रहा हो उसे समाप्त कर रहा हूं अगर ऐसा कोई कानून बना दिया जाता है तो वह कानून स्वयं में उच्च मात्रा तक सुने हो जाएगा जैसा कि संविधान के उल्लंघन के मामले में होता है यानी कि संसद द्वारा किसी भी रूप में किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार को रोकने के लिए कभी कोई कानून नहीं बनाई जाएगी अनुच्छेद 13 के इतिहास के द्वारा यह बताया गया है कि समय-समय पर कभी कोई अध्यादेश जारी हो जाता है आदेश जारी हो जाता है कोई विधि बना दी जाती है कभी कोई नियम अथवा उप नियम बना दिया जाता है अधिसूचना जारी की जाती है तो इन सभी के द्वारा कभी भविष्य में भी किसी व्यक्ति का मूल अधिकार का अतिक्रमण हो जाएगा तो उस अतिक्रमण को न्यायालय में सीधे तौर पर चुनौती दी जा सकती है अनुच्छेद 13 के साथ अगर अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 को भी देखा जाए तो अस्पष्टता के साथ यह पता चलता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने हर प्रकार की व्यवस्था करने के लिए बैठी हुई है जिसमें कि व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को ना रोका जाए यानी कि अनुच्छेद 13 एक प्रकार से किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार को रोकने संबंधी अध्यादेश का विरोध कर रहा है वह इसे बचाने का कार्य करता है इसलिए जब कभी भी किसी की मौलिक अधिकार को रोकी जाती है तो वह अनुच्छेद 32 का प्रयोग करते हुए सीधा सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकता है सर्वोच्च न्यायालय के लिए पांच प्रकार की रिट जारी कर सकती है इससे व्यक्ति का मौलिक अधिकार हमेशा के लिए बचा हुआ रहेगा

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