कोलबर्ग के नैतिक विकास के सिद्धांत का वर्णन करें?
मनोवैज्ञानिकों के अध्ययन से यह पता चला है कि किस प्रकार स्वाभाविक वृतियों से नियंत्रित होने वाला बालक सामाजिक नियमों व मर्यादाओं के अनुसार आचरण करके नैतिक व्यवहार को प्रदर्शित करने लगता है।(Vinay ias academy.com)
फ्रॉयड के अनुसार जब बच्चा माता-पिता की भावनाओं और अभी वृत्तियों को उनसे ग्रहण करता है तथा उनसे ग्रहण की हुई नैतिकता ही आगे चलकर उसके लिए विवेक का रूप धारण कर लेती है। बालक नैतिक आचरण के लिए भीतर से निर्देशित होता है।(Vinay ias academy.com)
बैंडूरा और वॉल्टर्स ने1963 में बताया कि बच्चों में नैतिक विकास सामाजिक अधिगम का परिणाम होता है। स्किनर ने अधिकतर प्रबलन का प्रभाव प्रदर्शित करते हुए बताया है कि नैतिक व्यवहार का विकास दंड एवं पुरस्कार पर निर्भर होता है।
कोलबर्ग के सिद्धांंत

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- कोलबर्ग के नैतिक विकास सिद्धांत को ‘अवस्था सिद्धांत ‘भी कहा गया है। उन्होंने संपूर्ण नैतिक विकास को छःअवस्थाओं में बांटा है तथा इन्हें सार्वभौमिक माना है। उनके अनुसार सभी बच्चे इन अवस्था में से गुजरते हैं। नैतिक विकास की अवस्थाएं एक निश्चित क्रम में आती है और वह क्रम हम बदल नहीं सकते।कोलबर्ग के नैतिक विकास के सिद्धांत का वर्णन करें?
मनोवैज्ञानिकों के अध्ययन से यह पता चला है कि किस प्रकार स्वाभाविक वृतियों से नियंत्रित होने वाला बालक सामाजिक नियमों व मर्यादाओं के अनुसार आचरण करके नैतिक व्यवहार को प्रदर्शित करने लगता है।(Vinay ias academy.com)
फ्रॉयड के अनुसार जब बच्चा माता-पिता की भावनाओं और अभी वृत्तियों को उनसे ग्रहण करता है तथा उनसे ग्रहण की हुई नैतिकता ही आगे चलकर उसके लिए विवेक का रूप धारण कर लेती है। बालक नैतिक आचरण के लिए भीतर से निर्देशित होता है।(Vinay ias academy.com)
बैंडूरा और वॉल्टर्स ने1963 में बताया कि बच्चों में नैतिक विकास सामाजिक अधिगम का परिणाम होता है। स्किनर ने अधिकतर प्रबलन का प्रभाव प्रदर्शित करते हुए बताया है कि नैतिक व्यवहार का विकास दंड एवं पुरस्कार पर निर्भर होता है।
कोलबर्ग के सिद्धांत- - बालक के नैतिक विकास के स्वरूप को समझने के लिए उनके तर्क और सिद्धांत के स्वरूप का विश्लेषण करना आवश्यक होता है। बच्चे द्वारा प्रदर्शित प्रतिक्रिया के आधार पर उनकी नैतिकता का सही अनुमान लगाना नहीं है । अधिकतर परिस्थितियों में बच्चा भय्या पुरस्कार के प्रलोभन ने वांछनीय व्यवहार प्रदर्शित करता है, नैतिक चिंतन या नैतिक निर्णय के कारण नहीं। कोलबर्ग ने बालक को किसी धर्म संकट की स्थिति में रखकर यह देखा है कि बालक उस परिस्थिति में क्या सोचता है किस तर्क के आधार पर उचित व्यवहार के लिए निर्णय लेता है। कोलबर्ग के इस उपागम को प्राणी गत उपागम भी कहा गया है।
3.(Vinayiasacademy.com) जब बच्चा एकअवस्था से दूसरी अवस्था में प्रवेश करता है तो उस बच्चे की भीतर नैतिक व्यवहार गुणात्मक परिवर्तन और कैसे उत्पन्न होते हैं, यह एक विचारणीय प्रश्न है। कोलबर्ग के अनुसार नैतिक व्यवहार में गुणात्मक परिवर्तन क्रमिक रूप से ही आते हैं। अचानक ही पैदा नहीं हो जाते। किसी भी अवस्था विशेष में पहुंचने पर बालक केवल उसी अवस्था की विशेषताओं का ही प्रदर्शन नहीं करता बल्कि उसमें कई अवस्था के व्यवहार निश्चित रूप से दिखाई देते हैं। जिस अवस्था के अनुरूप होते हैं बच्चे को उसी अवस्था का मान लिया जाता हैं।
4.कोलबर के एक सहयोगी इलियट टूरियल ने1969 मैं बताया कि प्रायः सभी बच्चे नैतिक विकास की एक अवस्था के बाद दूसरी अवस्था में प्रवेश होता है, परंतु सभी बालक छः अवस्था तक नहीं पहुंच पाते। नैतिक विकास की अंतिम अवस्था तक पहुंचने वाले बालकों की संख्या बहुत कम होती है। अतः नैतिक शक्ति की दृष्टि से बच्चों में व्यक्तिगत भिन्नता देखने को मिलती है यह भिन्नता विकास की गति तथा विकास की सीमा दोनों ही कारणों से पैदा होती है।(Vinayiasacademy.Com)