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मानसिक व बौद्धिक विकास से आपका क्या अभिप्राय है? बाल्यावस्था के दौरान बालकों की विभिन्न मानसिक व बौद्धिक पहलुओं का विकास कैसे होता है टिप्पणी दे?

मानसिक विकास को बौद्धिक विकास या ज्ञानात्मक विकास भी कहते हैं। व्यापक दृष्टिकोण से मानसिक विकास में निम्नलिखित पथ शामिल किए जाते हैं-

  • स्मृति की योग्यताएं 2. कल्पना 3. भाषा का विकास 4. प्रत्यक्षीकरण 5. प्रत्यय 6. समस्या समाधान की योग्यता।
    (Vinay ias academy.com)
    मानसिक व बौद्धिक विकास का अर्थ – मानसिक तथा बौद्धिक विकास से तात्पर्य व्यक्ति की उन सभी मानसिक योग्यता और क्षमताओं में वृद्धि और विकास से है, जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति बदलते हुए परिवेश के साथ कि प्रकार समायोजन करता है और समस्त कठिनाइयों का हल ढूंढने में अपनी मानसिक शक्तियों को समर्थ पाता है| जन्म के समय बच्चे का केवल शरीर ही होता है और उस शरीर में अर्थहीन भावनाएं होती हैं, लेकिन समय के साथ-साथ धीरे-धीरे उसमें परिवर्तन आते हैं और इन्हीं परिवर्तनों को हम मानसिक विकास का नाम देते हैं|(Vinayiasacademy.com)
    लॉक(Locke) ने जन्म के समय बच्चे के मस्तिष्क को एक ‘कोरी स्लेट’ (tabula rasa) का नाम दिया है। और अनुभव द्वारा ही मस्तिष्क में विचारों और अर्थ की उत्पत्ति होती है। प्रथम अनुभव किसी अर्थ के बिना होता है, परंतु किसी अनुभव को दोहराते रहने से वह अनुभव मस्तिष्क के लिए महत्वपूर्ण बन जाते हैं। लेकिन कोफ्का(koffka) का कहना है कि पहला पहला अनुभवी अर्थ विहीन नहीं होता। प्रत्येक अनुभव में किसी न किसी प्रकार का अर्थ विद्यमान रहता है। एक प्रकार के अर्थ से दूसरे प्रकार के अर्थ का ज्ञान होता है।(Vinayiasacady.com)
    बाल्यावस्था के दौरान विभिन्न मानसिक व बौद्धिक बच्चों का विकास-
  • संवेदन और प्रत्यक्षीकरण(Sensation and perception)- प्रत्यक्षीकरण और संवेदन का आपस में गहरा संबंध है। क्योंकि सबसे पहले संवेदन द्वारा ही ज्ञानेंद्रियों से हमें सूचनाएं प्राप्त होती है। और फिर हम उसका अर्थ निकालते हैं या अर्थ निकालने की प्रक्रिया ही प्रत्यक्षीकरण कहलाती है करण के अंतर्गत कुछ प्रत्यक्ष ज्ञान योग्यताएं प्रमुख होती है जैसे दृश्य, स्वाद , सूंघना और स्पर्श आदि।
    प्रत्यक्षीकरण की प्रक्रिया इस उदाहरण द्वारा भी स्पष्ट की जा सकती है जैसे बच्चा किसी वस्तु को एक कोने पर रखने का प्रयत्न करता है तो वह उसे मैच पढ़ना रखकर मैच की ऊंचाई से कम या ज्यादा रखकर या इधर-उधर करके छोड़ देता है और वह समझता है कि उसने उस वस्तु को मैच कर रख दिया है हां के साथ-साथ उसकी प्रत्यक्ष ज्ञान की योग्यता भी बढ़ती जाती है और परिपक्वता ग्रहण करने के पश्चात वह उस वस्तु को नीचे या इधर-उधर कदापि नहीं गिरने देगा बल्कि उसे सटीक जगह पर रखेगा।(Vinayiasacademy.com)
  • भाषा का विकास(Language development)- मानसिक विकास भाषा के विकास के साथ भी जुड़ा हुआ है| इस आयु में भाषा का विकास अधिकतर ‘ क्यों’ और ‘ कैसे’ पर ही आश्रित होता है जैसे विकास भी विकास की अवस्थाओं के अनुसार होता है जैसेजैसे-
  • प्रारंभ में बालक चिल्लाता है या किलकारी जैसी धनिया निकालता है।
  • जन्म के बाद प्रथम वर्ष में बच्चा कुछ शब्द सीख जाता है तथा फिर उसका शब्द भंडार बढ़ने लगता है।
  • भाषा के विकास में अनुकरण का बहुत महत्व होता है।
  • शब्दकोश में वृद्धि होने से उनमें वाक्य निर्माण और अपने भावों को व्यक्त करने की क्षमता में भी वृद्धि होती रहती है।
  • बचपन में कुछ शब्दों के विकास से लेकर किशोरावस्था तक भाषा विकास में परिपक्वता आ जाती है।
  • परिवार में अकेला बच्चा हो तो उसका भाषाई विकास अधिक देखा गया है क्योंकि बच्चा व्यस्त को की भाषा का अनुकरण करता है जुड़वा बच्चे एक दूसरे की भाषा का अनुकरण करते हैं।
  • बुद्धि और भाषाई कौशल भी आपस में संबंधित होते हैं कुछ बुद्धि अस्तर वाले बालकों में भाषाई कौशल का स्तर भी उच्च ही होता है।
    (Vinayiasacademy.com)
  • बोध शक्ति का विकास(Development of power of understanding)- वह शक्ति के अंतर्गत विभिन्न धारणाओं का विकास सम्मिलित है
    ◆ स्वयं की धारणा या प्रत्यय- जया समझने लगे कि उसका किन-किन चीजों से संबंध है तो इसका अर्थ है वह स्वयं ही धारणा यह प्रत्यय प्रस्तुत कर रहा है उसे भूख प्यास लगती है और वह खाना और पानी मांगने लगता है वह अपने कपड़े मांगता है वह अपने उन खिलौनों को मांगता है जिन्हें उससे दूर छुपा कर रख दिया गया होता है इन सभी बातों से यह स्पष्ट होता है कि उसमें स्वयं के बारे में धारणा का विकास हो चुका है|
    ◆ समय की धारणा या प्रत्यय- 4 से 5 वर्ष की आयु तक तो बच्चा दो-तीन दिन पहले हुई घटनाओं को जोड़ने का प्रयास करता है क्या हुआ कि उसमें समय संबंधी धारणा विकसित हो गई है| वह कल, आज, परसों ,सप्ताह ,महीने, वर्ष आदि का अर्थ समझने लगता है।
    ◆ स्थान की धारणा या संप्रत्यय- जब बालक यह समझना शुरू कर दे कि उसे किसी वस्तु को कहां रखना है या उसे कहां बैठना है और कहां नहीं बैठना, तब उसका अर्थ है कि उसमें स्थान संबंधी धारणा विकसित हो गई है। जो कि हर बच्चे में 3 वर्ष की आयु के पश्चात शुरू हो जाता है।
    ◆ आकार का प्रत्यय धारणा- मानसिक विकास का यह एक आवश्यक पक्ष है बालक में आकार संबंधी धारणा का विकास होना। इसका अनुभव तब लगता है जब बच्चा विभिन्न चीजों को उनके आकार के अनुसार व्यवस्थित करना शुरू कर देता है।
    ◆ स्वरूप का प्रत्यय या धारणा- जब बच्चा किसी त्रिकोण, रेत या सीधी लाइन को समझने लगता है तब हम कहते हैं कि उसमें स्वरूप संबंधी धारणा का विकास हो गया है इस विकास के समय वह त्रिभुज, वृत्त, रेखा इत्यादि शब्दों का प्रयोग करने लगता है।
    ◆ सौंदर्य आत्मक अनुभूति- बच्चे अक्सरसुंदर वस्तुओं से प्रेम करते हैं। रंगो को अधिक पसंद करते हैं। कागज पर चित्रों की ड्राइंग करते हैं। तथा उन्हें अपने माता-पिता को दिखाते हैं। वे सुंदर कपड़े पहन कर ही बाहर जाना पसंद करते हैं इस प्रकार के विकास से स्पष्ट होता है कि मानसिक विकास का संबंध सौंदर्य आत्मक अनुभूति से भी है।
    ◆ नैतिक धरना या प्रत्यय- नैतिक प्रत्यय के विकास से हमें मानसिक विकास का संकेत मिलता है। बच्चा कुछ समय लेता है, नैतिकता की भावना का प्रदर्शन करने के लिए प्रारंभ में बच्चा अनैतिक होता है। बच्चा जब आसपास की चीजों को समझना शुरू करता है तो वह अच्छे और बुरे के बारे में भी समझना शुरू कर देता है। यह सोचना शुरु कर देता है कि दूसरों को हानि नहीं पहुंचानी चाहिए। बच्चों में नैतिक धारणा हो या प्रत्यय के विकास के लिए माता-पिता तथा अन्य पारिवारिक सदस्य उत्तरदाई होते हैं। अतः हमें बच्चों के चारों और एक उत्तम नैतिक वातावरण का निर्माण करना चाहिए।

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