एरिक्सन के मनोसामाजिक सिद्धांत का वर्णन करें
एरिकसन के मनोसामाजिक विकास के प्रतिमान का बहुत महत्व है। यह सिद्धांत बाल विकास के साथ प्रौढ़ों के विकास में भी सहायक है। एरिक एरिकसन ने सर्वप्रथम 8 स्तरीय मानव विकास का सिद्धांत 1950 मैं अपनी पुस्तक बाल्यकाल और समाज नामक पुस्तक में प्रकाशित किया। इस अध्याय का नाम था “मनुष्य की आठ आयु” इसके पश्चात उसने अपनी बात की पुस्तकों में इसमें और सुधार कर लिया। एरिकसन के इस मॉडल के लिए विभिन्न शब्दों का प्रयोग किया गया जैसे जीव मनोसामाजिक सिद्धांत, एरिकसन का मानव विकास का चक्र। मनोसामाजिक शब्द एरिकसन का प्रयोग किया गया शब्द है। जिसमें मनोविज्ञान का अर्थ मन और समाज से अभिप्राय है संबंध।(Vinayiasacademy.com)
मनोसामाजिक अवस्थाओं की विशेषताएं-

1.प्रत्येक मनोसामाजिक अवस्था में एक संक्रांति होती है, जिस से अभिप्राय है जीवन काल का एक ऐसा वर्तन बिंदु होता है, जो उस अवस्था में जैविक परिपक्वता तथा सामाजिक मांग दोनों में अंतर क्रिया के फल स्वरुप व्यक्ति में उत्पन्न होता है।
2.प्रत्येक मनोसामाजिक संक्रांति मैं धनात्मक और ऋणात्मक दोनों ही तत्व होते हैं। प्रत्येक अवस्था में उसके जैविक परिपक्वता तथा नए-नए सामाजिक मांग के कारण संघर्ष का होना एरिकसन आवश्यक मानते हैं। यदि इस संघर्ष का व्यक्ति संतोषजनक ढंग से समाधान कर लेता है तो इससे उसके विकसित अहम में ऋण आत्मक तत्व अवशोषित हो जाते हैं तथा व्यक्तित्व विकास में बाधा पैदा होने की संभावना कम रह जाती है।
3.प्रत्येक मनोसामाजिक अवस्था के संक्रांति को व्यक्ति को दूर करना होता है या उसका समाधान करना होता है। ऐसा ना करने से मनोसामाजिक विकास की अगली अवस्था में उसका विकास नहीं हो पाता है। मनोविकास की प्रत्येक अवस्था में संक्रांति का करने से व्यक्ति में एक विशेष मनोसामाजिक सकती की उत्पत्ति होती है इस शक्ति को एरिकसन ने सदाचार का नाम दिया हैं।

4.हर मनोसामाजिक अवस्था में कर्मकांडता, कर्मकांड, तथा कर्मकांडवाद होते हैं। इसे एरिक्सन ने “तीन आर” का नाम दिया है। कर्मकांडता से अभिप्राय है समाज के दूसरे व्यक्ति के साथ सांस्कृतिक रूप से स्वीकृत ढंग से अंतर क्रिया करना। ऐसे व्यवहार थोड़े-थोड़े समय के बाद अर्थपूर्ण संदर्भ में दोहराए भी जाते हैं।(Vinayiasacademy.com)
प्रत्येक मानव समाजिक अवस्था का निर्माण उससे पहले की अवस्था में हुए विकास से संबंधित होता है
एरिक्सन द्वारा प्रतिपादित मनोसामाजिक अवस्थाएं-
विश्वास बनाम अविश्वास
स्वतंत्रता बनाम लज्जाशीलता और संदेह
पहल शक्ति बनाम दोषिता
परिश्रम बनाम हीनता
अहम पहचान बनाम भूमिका संभ्रांति
6 . घनिष्ट बनाम विलगन
अहम संपूर्णता बनाम निराशा
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एरिक्सन के सिद्धांत के गुण-
इस सिद्धांत में व्यक्तित्व के विकास की व्याख्या करने के लिए समाज एवं स्वयं व्यक्ति की भूमिका पर समान रूप से बल डाला गया है।
एरिक्सन ने इस सिद्धांत में किशोरावस्था को बहुत महत्वपूर्ण माना है।

एरिक्सन ने अपने इस सिद्धांत में आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है। किसी एक अवस्था में असफल होने पर दूसरी अवस्था में भी असफलता ही होगी यह आवश्यक नहीं है।
एरिक्सन के इस सिद्धांत में जन्म से लेकर मृत्यु तक की मनो सामाजिक घटनाओं को एवं समन्वय की व्याख्या में शामिल किया गया है जो अपने आप में एक विशिष्टता है।(Vinay ias academy.com)
एरिक्सन के सिद्धांत के अवगुण-
एरिक्सन ने आवश्यकता से अधिक आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है ऐसा आलोचकों कामत है इससे उनके सिद्धांत में अव्यावहारिकता झलकती है। लेकिन एरिक्सन ने इस आलोचना का खंडन किया है तथा उन्होंने अपने सिद्धांत में आशावादी दृष्टिकोण के साथ साथ वैसे दृष्टिकोण को भी अपनाया है जिससे व्यक्ति में चिंता आदि उत्पन्न होते हैं।

कुछ आलोचकों के अनुसार, एरिक्सन ने अपने सिद्धांत में फ्रॉयड किस सिद्धांत का सरलीकरण ही किया है और कुछ नहीं किया।
कुछ मनोवैज्ञानिकों का मत है कि एरिक्सन के सिद्धांत में जितने तथ्य की व्याख्या की गई है उनका कोई प्रयोगात्मक समर्थन भी नहीं है। उनके सारे तथ्य तथा संप्रत्यय उनके व्यक्तिगत परीक्षणों पर आधारित हैं जो बहुत आत्मनिष्ठ है।
कुछ आलोचकों का यह कथन मान्य नहीं की बदलती हुई सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार समायोजन करके ही उत्तम एवं स्वस्थ व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है। जैसा कि आलोचकों का मानना है कुछ ऐसे व्यक्ति भी हैं जो समाज की परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना ही स्वयं समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन लेकर आए हैं और वे एक स्वस्थ व्यक्तित्व का निर्माण करने में सफल हुए हैं।शुल्ज के अनुसार अंतिम मनोसामाजिक अवस्था की व्यवस्था अधूरी और असंतोषजनक है। आलोचकों का मानना है कि अंतिम अवस्था में व्यक्ति में विकास उतना संतोषजनक नहीं होता जितना कि एरिक्सन के अहम संपूर्ण के संप्रत्यय से संकेत मिलता है।��