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1) जीन- पियाजे के बौद्धिक या संज्ञानात्मक सिद्धांत अर्थ तथा मूल्यांकन की विवेचना करें?

  • जीन पियाजे जेनेवा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। उन्होंने अपने ही 3 बच्चों का अध्ययन किया। इन बच्चों के अध्ययन से पियाजे ने जो सीखा उससे उन्हें मानसिक विकास के सिद्धांत निर्माण का एक आधार प्राप्त हुआ। अपने बच्चों के विस्तृत अध्ययन और अन्य प्रयोगशाला अध्ययनों से पियाजे ने बदलते हुए स्वरूपों के बारे में निष्कर्ष निकाले, यह पता चलता है कि बच्चा जैसे जैसे शैशवावस्था से किशोरावस्था तक पहुंचता है, वैसे वैसे बच्चे के प्रत्यक्षीकरण और उसके विचारों के बारे में पता चलता है।
  • पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की व्याख्या करते हुए उसके संबंध में कहां है कि संज्ञान प्राणी का वह ज्ञान है, जिसे वह वातावरण के संपर्क में आकर प्राप्त करता है और इसमें अनेक मानसिक कि्याओं जैसे चिंतन, तर्क, प्रत्यक्षीकरण, समस्या समाधान आदि शामिल होती है। जो निरंतर रूप से चलती रहती है। vinayiasacademy.com
  • पियाजे का यह मानना है कि बालक द्वारा प्राप्त या अर्जित किए गए ज्ञान भंडार का स्वरूप और बनावट विकास की प्रत्येक अवस्था के दौरान बदलता रहता है तथा संशोधित होता रहता है। पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धांत को विकासात्मक सिद्धांत के नाम से भी जानते हैं, क्योंकि पियाजे का मानना है कि बालक के अंदर संज्ञान का विकास अनेक अवस्थाओं से होकर गुजरता है। इसके अतिरिक्त पियाजे के सिद्धांत को अवस्था सिद्धांत भी कहा जाता है क्योंकि बालक के संज्ञान की संरचना और स्वरूप अलग-अलग अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न होती है।
  • पियाजे के बौद्धिक विकास के सिद्धांत पर विभिन्न क्रियाओं की विस्तृत श्रृंखला को शामिल किया गया है। पियाजे का सिद्धांत इस बात पर केंद्रित है कि लोक कैसे सोचते हैं, बजाय इसके लोग क्या सोचते हैं ।इनके की सबसे प्रमुख शक्ति यह है कि यह सिद्धांत हमें यह बताता है कि व्यक्ति की वंशानुक्रम क्षमताएं वातावरण के साथ अंतरिया करती है बौद्धिक रूप में क्रियाशील बालक या व्यक्ति उत्पन्न करती है इस प्रकार पियाजे के सिद्धांत में दोनों वंशानुक्रम और वातावरण को महत्व मिला है।
    अब तक की मनोवैज्ञानिक ने मानव विकास के 3 पक्ष बतलाए थे-vinayiasacademy.com
    1) जैविकीय परिपक्वता
    2) भौतिक वातावरण के साथ अनुभव
    3) सामाजिक वातावरण के साथ अनुभव
    परंतु जीन पियाजे ने कहा कि मानव विकास के उक्त तीन पक्षों के अलावा सन्तुलनीकरण नामक एक और पक्ष होता है। जीन पियाजे के अनुसार करण मानव विकास की एक अनिवार्य शर्त है सन्तुलीनकरण मानव विकास के अन्य पक्षों के मध्य संतुलन एवं समन्वय स्थापित करने का कार्य करता है। इस संतुलन के अभाव में दिलीप रानी का विकास संभव नहीं है। जीन पियाजे के अनुसार यह एक स्वचालित उन्नतोन्मुखी प्रक्रिया है। vinayiasacademy.com
  • बालक ज्ञान प्राप्त करने के लिए न केवल वातावरण का ज्ञान प्राप्त करता है, वातावरण के साथ समायोजन भी स्थापित करता है। जब तक वह वातावरण के साथ समायोजन व संधानी करण वह वातावरण( दोनों ही भौतिक एवं सामाजिक) का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है और ना अपने व्यक्तित्व कहीं समन्वित विकास कर सकता है। बाय वास्तविकता और वातावरण का समायोजन वर्तमान संगठन के साथ अनिवार्य है। यह समायोजन यह संतुलनीकरण है। बच्चे जन्म से लेकर किशोरावस्था तक किस तरीके से सोचते हैं, इस पथ पर पर्याप्त खोज करने के बाद पिया जी ने बच्चों के विभिन्न आयु वर्ग के बीच उनके मानसिक विकास की क्रमिकता को देखा पर था और उसे चार चरणों में विभक्त किया। वह चार अवस्थाएं इस प्रकार हैं-
    1) संवेदी पेशीय या गति वाही अवस्था
    2) पूर्व प्रक्रिया या पूर्व ऑपरेशन अवस्था
    3) स्थूल प्रक्रिया या कंक्रीट ऑपरेशन अवस्था
    4) औपचारिकता क्रियाओं की अवस्था या फॉर्मल ऑपरेशन अवस्थाvinayiasacademy.com
    पिया जी द्वारा बताई गई इन चारों विकास की अवस्थाओं में आत्मसात और समंजन प्रक्रिया होती है जिससे बच्चा एक अवस्था से दूसरी अवस्था में प्रवेश करने के योग्य हो जाता है संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाओं का वर्णन इस प्रकार है-
    1) संवेदी पेशीय या गति वाही अवस्था- पिया जी इस अवस्था को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया है। इस अवस्था में बच्चे का बौद्धिक विकास का आधार बनता है। संज्ञानात्मक विकास की अवस्था जन्म से लेकर 2 वर्ष की आयु तक होती है जिसमें बच्चा इंद्रियों के जरिए वस्तुओं ,ध्वनियों ,स्पर्श, रसो एवं गंद का अनुभव प्राप्त करता है। भाषा के बिना वह अपने अनुभवों को इंद्रियों द्वारा व्यक्त करता है जैसे वस्तुओं को टकटकी लगा कर देखना, भूख लगने पर रोना आदि। यह सभी क्रियाएं उसकी बौद्धिक क्रियाएं कहलाती हैं। जन्म के कुछ सप्ताहों में वह कुछ साधारण आदतें निर्मित करता है अपनी मां को देखकर मुस्कुराता है, वह बाहर निकलता है और वातावरण की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाता है। जब वह दूध की बोतल देखता है तो वह समझ जाता है कि उसका भोजन आ रहा है । पियाजे के अनुसार इस प्रकार की स्मृति को प्राप्त करना भविष्य के बौद्धिक विकास की आधारशिला होती है।
    छः या आठ महीने की आयु तक बच्चा नहीं और अधिक रुचिकर उद्दीपन ढूंढता है वह बैठना और रेंगना सीखता है अर्थात ऐसी योग्यता जो बच्चे को यह अनुभव कराए की कोई वस्तु दृष्टि से बाहर होने पर भी विद्यमान होती है। 12 से 24 महीने तक अर्थात इस अवस्था के दूसरे मध्य भाग में बच्चा चलना, बोलना और का प्रारंभिक रूप सीखता है। इस अवस्था में वह अपनी मां को ढूंढता फिरता है। vinayiasacademy.com
  • 2 वर्ष की आयु तक बच्चा अपनी दादी माता पिता, मित्रों ,टीवी कार्यक्रमों तथा अन्य घटनाओं के बारे में बातें करने लगता है सारी अवस्था में बच्चे की मांग बहुत कम होती है वह स्वयं केंद्रीयकरण बच्चे के व्यवहारों को स्वरूप कर प्रदान करता है। एल्किंड के अनुसार इसी मानसिक परिपक्वता के कारण बच्चा अपनी मां से तब भी चिपका रहता है जबकि उसे यह बता दिया जाए कि उसकी मां के सिर में दर्द है तथा वह अकेले रहना चाहती है बच्चा स्वयं को अपनी मां की स्थिति में रखने के अयोग्य होता है।
    2) पूर्व प्रक्रिया अवस्था या पूर्व ऑपरेशन अवस्था- संज्ञानात्मक विकास की दूसरी अवस्था 2 से 6 वर्षों तक मानी जाती है इस अवस्था में बालक स्व केंद्रित न रहकर दूसरों के संपर्क से ज्ञान अर्जित करता है। बच्चे की पहचान क्षमता में परिवर्तन आने लगता है। शब्द ज्ञान में वृद्धि हो जाती है अब वह स्वयं भी शब्दों का प्रयोग करने लगता है, उदाहरण के लिए एक बालक विद्यालय में होने वाले उत्सव जैसे स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाता है, यह तो जानता है, किंतु या किस लिए मनाया जाता है, इस बात का ज्ञान उसे नहीं होता है। इस उम्र के बालक खिलौनों को वास्तविक मानते हैं। तरह-तरह की बिना सिर पैर की बातें बनाते हैं, और घंटों अकेले बैठकर अपने से बात करते रहते हैं। पिया जी ने इसे कलेक्टिव ‘ मोनोलॉग’ कहा है। इस अवस्था में बच्चे अधिक सामाजिकृत होना प्रारंभ कर देते हैं।vinayiasacademy.com
    3) स्थूल प्रक्रिया या कंक्रीट ऑपरेशन अवस्था- संज्ञानात्मक विकास की तीसरी अवस्था 7 से 12 साल तक होती है इस अवस्था में बच्चे अधिक व्यवहार चीन एवं यथार्थवादी होते हैं।(vinay ias academy) अभी सत्य को समझ सकते हैं। वे अब या वस्तुओं के बीच समानता या भिन्नता समझ सकते हैं। 7 से 12 वर्ष की अवस्था में बालक के भीतर जिन प्रमुख क्षमताओं का विकास होता है इसका विश्लेषण पियाजे ने किया है जो इस प्रकार है-vinayiasacademy.com
    १. कंजर्वेशन- उस ज्ञान को जो कि कोई पदार्थ, रूप में परिवर्तित हो जाने के बाद भी मात्रा, संख्या, भार तथा आयतन की दृष्टि से सामान अथवा परिवर्तित हो, कंजर्वेशन कहा जाता है।
    २. संख्या बोध -इस अवस्था में बालकों में संख्या का बोध भी पर्याप्त मात्रा में विकसित हो जाता है। एक जगह रखी वस्तुओं, अपने कपड़ों का पुस्तको आदि को गिन सकते हैं।
    ३. वर्गीकरण- 7 से 12 वर्ष की आयु के बालक विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को अनेक विषयों से वर्गीकृत कर सकते हैं। जेसीबी विभिन्न आकृतियों और आकारों के आधार पर वस्तुओं को प्रत्येक प्रत्येक वर्ग में रख सकते हैं।vinayiasacademy.com
    ४. पारस्परिक संबंध-. विभिन्न उद्दीपकों के पार बंधु को भी इस अवस्था के बालक अच्छी तरह समझ लेते हैं। जैसे कि दो रेखा में कौन सी छोटी है तथा कौन सी बड़ी इसकी पहचान सरलता से बालक कर लेते हैं। इसके अतिरिक्त बालक दो प्रकार के प्रकारों में अंतर करना भी सीख लेते हैं।vinayiasacademy.com
    4) औपचारिक प्रक्रिया अवस्था या फॉर्मल ऑपरेशन अवस्था- यह अवस्था किशोरावस्था के आसपास यानी 12 वर्ष के बाद शुरू होती है। संज्ञान विकास की इस अंतिम अवस्था में बालक के भीतर जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण विशेषता विकसित होती है वह है, तार्किक चिंतन की छमता। अब वह सभी समस्याओं का तर्क पूर्ण समाधान कर सकता है तथा किस अवस्था में बालक अन्य वस्तुओं के अतिरिक्त विचारों के संबंध में चिंतन करना सीख जाता है। इस अवस्था में बालक सामान्यता अपने वास्तविक अनुभवों को काल्पनिक स्थितियों में आरोपित करता है और विभिन्न प्रकार की घटनाओं के संबंध में नई-नई परी कल्पनाएं बनाकर उन्हें सत्य सिद्ध करने को कोशिश करता है। पियाजे के अनुसार किशोर उस चरण में से गुजरता है, जिसमें व स्वयं के विचारों पर पूरी शक्ति खर्च कर देता है तथा शानदार भविष्य की कल्पना करने लगता है जीवन की विभिन्न चुनौतियों का सामना करने के साथ-साथ उसका अहम केंद्रीकरण तथा नई आशाएं लुप्त होने लगती है इसके अतिरिक्त इस अवस्था में बालक विभिन्न स्थितियों का प्रतिनिधित्व विभिन्न तरीकों से करना सीख लेता है।vinayiasacademy.com
  • पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत का मूल्यांकन-
  1. पियाजे के अनुसार ज्ञानात्मक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें पिछले अवस्था के आधार पर ही व्यवस्था का निर्माण या विकास होता है।
  2. अहम केंद्रीकरण विकास का बहुत ही गंभीर पक्ष है, जिसे विकेंद्रीकरण द्वारा अवश्य ही परिवर्तित किया जाना चाहिए।
  3. बच्चे के सोचने की विषय वस्तु से अधिक महत्वपूर्ण है उनके चिंतन की प्रकृति। पियाजे का मुख्य लक्ष्य था यह जानना कि लोग कैसे सोचते हैं ना कि वे क्या सोचते हैं। बच्चों के सोचने के ढंग को जान लेने के पश्चात मनोवैज्ञानिक चिंतन का विकास करना सीख सकते हैं।
  4. को बौद्धिक उद्दीपन प्रदान करने चाहिए और यह उद्दीपन उनकी आयु स्तर के अनुसार हो।
  5. बच्चों को उनके आयु अस्तर से अधिक कार्य करवाना समय व्यर्थ गंवाना होगा।
  6. बच्चों के ज्ञानात्मक विकास को समझने के लिए भिन्न आयु स्तर के बच्चों से भिन्न-भिन्न प्रश्न पूछे जाएं।
  7. 7. जीवन के प्रथम 2 वर्षों में बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए माता-पिता का प्यार और अंत:क्रिया आवश्यक है।
  8. उद्दीपन की मात्रा अधिक होनी चाहिए।
  9. बच्चों को भौतिक और बौद्धिक उद्दीपन प्रदान करने चाहिए।
  10. पियाजे के अनुसार इस विकास का बोझ बच्चों पर अधिक नहीं पड़ना चाहिए।

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