गैने द्वारा प्रतिपादित शिक्षण अधिगम के सिद्धांत का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए?
रॉबर्ट गाने का शैक्षिक तकनीकी को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जेनेलिया सुझाव दिया है कि अधिगम के साधारण सिद्धांत अधिगम की व्याख्या नहीं कर सकते के समर्थन में ज्ञानी ने यह तर्क दिया कि अधिगम के स्वरूप में सामान्यीकरण अधिगम परिस्थितियों के निरीक्षण के आधार पर ही किया जा सकता है। जिन परिस्थितियों में अधिगम की प्रक्रिया होती है। रॉबर्ट गैने ने अधिगम या सीखने पर अधिक जोर दिया है। इसके अनुसार अधिगम उपलब्धि में परिवर्तन की क्षमता को विकसित करना है। गैने के अनुसार अधिगम परिस्थिति दो प्रकार की होती है-
(Vinayiasacademy.com)

1.आंतरिक परिस्थितियां 2.बाहरी परिस्थितियां
आंतरिक परिस्थितियों में ध्यान, अभिप्रेरणा और पूर्व अधिगम द्वारा अर्जित क्षमता को शामिल किया जाता है।
बाहरी परिस्थितियों के अंतर्गत विद्यार्थी के बाहर की परिस्थितियां अर्थात भौतिक ऊर्जा के विभिन्न प्रकार के परिवर्तन शामिल किए जाते हैं। गैने का मानना है कि अध्यापक को विद्यार्थियों में विद्यमान पूर्व अपेक्षित क्षमता को प्रयुक्त करने की अपेक्षा विद्यार्थी के बाहर की उपयुक्त अधिगम परिस्थितियों को क्रमबद्ध करना अधिक लाभकारी सिद्ध होता है।(Vinayiasacademy.com)
गैने द्वारा बताई गई अधिगम परिस्थितियां निम्न प्रकार से है-
1.संकेत अधिगम- संकेत अधिगम वास्तव में पैवलव और वाटसन द्वारा बताया गया प्राचीन अनुबंधन है। अधिगम प्रक्रिया में प्राकृतिक और अप्राकृतिक उद्दीपन को एक साथ प्रस्तुत किया जाता है। यह केवल उद्दीपन विकल्प है। अप्राकृतिक उद्दीपन से अप्राकृतिक अनुप्रिया उत्पन्न होती है। उदाहरणार्थ पैवलव के प्रयोग के अनुसार घंटी बजने पर कुत्ते के मुंह में लार उत्पन्न होता है। जब की घंटी और खाने को उसके सामने एक साथ ही प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रयोग में घंटी संकेत का कार्य करती है इसी प्रकार जीवन में छोटे बच्चों के अक्षर ज्ञान में संकेत अधिगम परिस्थिति को उत्पन्न करता है। जैसे क= कबूतर, ख = खरगोश आदि।(Vinay ias academy.com)

2.उद्दीपन अनुक्रिया अधिगम- यह थानृडाइक के यांत्रिक अनुबंधन की तरह है। इस प्रकार का अधिगम सक्रिय अनुबंधन क्रिया का रूप है। इस प्रकार का अधिगम वास्तव में शुद्ध और अशुद्ध उद्दीपन में विभेदीकरण, उद्दीपन के समूह में विभेदीकरण जो पुरस्कार उत्पन्न करते हैं और जो नहीं करते शामिल हैं।गैने का विचार है कि उद्दीपनों का विभेदीकरण करना अनु क्रियाओं के पुनर्बलन से अधिक महत्वपूर्ण है। जब किसी परिस्थिति में विद्यार्थी अनुक्रिया करता है और उसकी शुद्धता की पुष्टि की जाती है तब उससे विद्यार्थी को आगामी अनुक्रिया के लिए पुनर्बलन मिलता है। इसी आधार पर शिक्षण परिस्थितियों में ऐसा ही वातावरण पैदा किया जाता है। जिससे विद्यार्थी अनुक्रिया करते हैं तथा उसकी पुष्टि की जाती है।(Vinay ias academy.com)
3.श्रृंखला या चैन अधिगम- इसे व्यवहार आत्मक श्रृंखला कहना अधिक उपयुक्त है। श्रृंखला अधिगम के लिए उद्दीपन अनुक्रिया की आवश्यकता होती है। जिसकी व्याख्या गिल्बर्ट ने की है। श्रृंखला से अभिप्राय है- व्यक्तिगत उद्दीपन अनुक्रिया ओके समूह का एक क्रम से संबंध।
गाने ने अपने सिद्धांत में दो प्रकार की श्रृंखला अधिगम की व्याख्या की है साब्दिक और अशाब्दिक।

4.शाब्दिक साहचर्य- इस प्रकार के अधिगम में शाब्दिक अनुक्रिया क्रम की व्यवस्था की जाती है। अधिक जटिल शाब्दिक श्रृंखला के लिए व्यवस्था क्रम एक संकेत का कार्य करती है। शादी की कई को सीखने के लिए उससे पहले वाली इकाई सहायता करती है। इस प्रकार के अधिगम का प्रयोग प्रायः भाषा शिक्षण में प्रयुक्त किया जा सकता है।
5.विभेदन अधिगम- इस प्रकार के अधिगम तक पहुंचने के लिए शाब्दिक और अशाब्दिक श्रृंखला अधिगम को ग्रहण करने की आवश्यकता होती है। यह अधिगम वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति विभिन्न उद्देश्यों के लिए विभिन्न अनुक्रियाएं करता है जो कि किसी सीमा तक भौतिक दृष्टि से मिलती-जुलती है। इस प्रकार के अधिगम में श्रृंखलाओं में विभेदीकरण करने की क्षमता का विकास किया जाता है। इस प्रकार के अधिगम के लिए बोधा स्तर का शिक्षण अधिक उपयोगी सिद्ध होता है।
(Vinayiasacademy.com)
6.प्रत्यय अधिगम- प्रत्यय अधिगम से अभिप्राय है- उद्दीपनों के वर्ग हेतु सांझी अनुक्रिया करना जबकि यह उद्दीपन एक दूसरे से भिन्न हों। बहूभेदीय अधिगम प्रत्यय अधिगम की पूर्व शर्त होती है। प्रत्यय अधिगम विभेदीकरण अधिगम पर भी निर्भर करता है। कैंडलर ने1964 मैं प्रत्यय अधिगम पर अधिक बल दिया है। उद्दीपनों के एक समूह के लिए एक अनुक्रिया करना जबकि उद्दीपनों में मौलिक दृष्टि से अंतर प्रतीत होता है। इस प्रकार के अधिगम विद्यार्थियों में ऐसी क्षमता का विकास करता है कि वे विद्यार्थी समस्त उद्दीपनों के समूह के लिए अनुक्रिया का निर्धारण कर लेता है।

7.अधिनियम अधिगम- इस प्रकार के अधिगम में दो या दो से अधिक प्रतययों में श्रृंखला का निर्माण करना है। अतः इस प्रकार के अधिगम के लिए दो या दो से अधिक प्रतियों का होना आवश्यक है। व्यवहार पर नियंत्रण किस प्रकार से किया जाता है कि जिससे वह नियमों को शब्दों में प्रस्तुत कर सके। इसके लिए अधिगम के पूर्व आवश्यकता होती है लड़का अधिगम चिंता नाश्ता पर किया जाता है ऐसी शिक्षण व्यवस्था चिंतन अस्तर पर की जाती है यह व्यक्ति की एक आंतरिक स्थिति होती है जो कि उसके व्यवहार पर नियंत्रण करती है यह सुपर प्रत्यय भी कहलाता है।(Vinay ias academy.com)
गैने के अनुसार अनुदेशन को एक विशिष्ट क्रमानुसार प्रस्तुत करना चाहिए। इस क्रम से गैने की अधिकृत परिस्थितियों का क्रम अधिक व्यावहारिक बन जाएगा। गैने ने इस क्रम को तारीख बनाने के लिए शिक्षण तथा अनुदेशन में मनोवैज्ञानिक शक्तियों का एक विशिष्ट क्रम प्रस्तुत किया है- प्रथम- अभिप्रेरणा, दूसरा- स्थानांतरण, तीसरा- मापन, चौथा- अधिगम स्वरूप या परिस्थिति, पांचवा- ज्ञान का स्वरूप, छठा- अधिगम के उद्देश्य। शिक्षक को शिक्षण क्रियाओं की व्यवस्था अधिगम के स्वरूप के अनुरूप करनी चाहिए ताकि इनके अनुसार अभिप्रेरणा प्रविधियां का प्रयोग हो सके। विद्यार्थियों की अनु क्रियाओं का संबंध अधिगम उद्देश्य से होना आवश्यक है।