शिक्षण अधिगम परिस्थितियों में अध्यापक की भूमिका का वर्णन करें?
- अध्यापक शिक्षा पद्धति का केंद्र बिंदु होता है। चाहे मुख्याध्यापक कितना भी विद्वान व कुशल क्यों न हो यदि उसे उसके शिक्षकों का सहयोग नहीं मिलता है तो वह विद्यालय को सुचारू रूप से चलाने में समर्थ नहीं हो सकता। मानवीय साधनों में अध्यापक और मुख्याध्यापक दो बड़ी शक्तियां हैं जो किसी भी विद्यालय की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
- एच . जी .वेलेज के अनुसार,” इतिहास का वास्तविक निर्माता अध्यापक होता है”
- हुमायूं कबीर ने अध्यापक के विषय में कहा है कि” अच्छे अध्यापकों के बिना शिक्षा की सर्वोत्तम पद्धति भी सफल नहीं हो सकती। अच्छे अध्यापकों से शिक्षा पद्धति के दोषों को भी दूर किया जा सकता है।”
- अध्यापक के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मुदालियर शिक्षा आयोग ने कहा है कि,” हम इस बात से पूर्ण रूप से सहमत हैं कि शिक्षा के पुनर्निर्माण में सबसे अधिक महत्वपूर्ण तत्व अध्यापक है- उसके व्यक्तिगत गुण, उसकी शैक्षणिक योग्यताएं, उसका व्यावसायिक जीवन, प्रशिक्षण तथा विद्यालय और समुदाय में उसका स्थान। विद्यालय की प्रसिद्धि तथा सामुदायिक जीवन पर उसका प्रभाव, उस में कार्यरत अध्यापकों पर आधारित होता है।”(Vinayiasacademy.com)
- कोठारी शिक्षाआयोग1964-1966) ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा है कि,” शिक्षा के गुणात्मक रूप से प्रभावित करने वाले सभी विभिन्न तथ्यों में अध्यापक के गुण, कुशलता एवं चरित्र का महत्व निसंदेह सर्वोपरि है”
- वस्तुत शिक्षक कौन भाभी नागरिकों का निर्माण करता है जिनके ऊपर राष्ट्र के उत्थान एवं पतन का भार है। इसलिए जब भी कोई व्यक्ति इस अध्यापन कार्य को चुनता है तो वह किसी व्यवस्था के कारण नहीं होना चाहिए। उसका यह चुनाव उसकी रुचियां, प्रवृत्तियों के अनुरूप होना चाहिए। केवल ऐसा इस व्यवसाय में कोई सार्थक कार्य कर सकता है।
- आदर्श शिक्षक के गुण- शिक्षण एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें मस्तिष्क का मस्तिष्क से संबंध स्थापित किया जाता है यह संबंध मुख्य रूप से अध्यापक के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। इस विषय पर संसार घर में अनेकों अध्ययन किए गए हैं। संत राष्ट्र अमेरिका के डॉक्टर एफ. एल. कलैप ने1913 में अध्ययन के आधार पर अच्छे शिक्षक में कौन-कौन से गुण होने चाहिए उसकी एक सूची बनाई थी जो इस प्रकार हैः(Vinayiasacademy.com)

- संबोधन
- व्यक्तिक आकृतिक
- आशावादिता
- संयम
- उत्साह
- मानसिक निष्पक्षता
- शुभ चिंतन
- सहानुभूति
- जीवन शक्ति
- विद्वता
अध्यापकों का विद्यार्थियों के साथ संबंध-
जाति से संबंध अभिभावक के समान है बचपन में जैसे बच्चे का सर्वस्व उसकी मां होती है ।उसी प्रकार विद्यालय स्तर पर अध्यापक विद्यार्थी का सर्वे सर्वा होता है इसलिए अध्यापक अपने तथा विद्यार्थी के बीच संबंध को श्रेष्ठ बताने का संपूर्ण प्रयास करना चाहिए ।इस विषय में अध्यापक को निम्नलिखित नियम अपनाने चाहिए- - विद्यार्थियों की रुचियोंतथा आवश्यकता ओं को समझना।
2 उसका स्वयं का आचरण से स्टोर क्योंकि यदि अध्यापक का खुद का आचरण निम्न स्तर का होगा तो विद्यार्थियों पर उसका प्रभाव नहीं पड़ सकता है।
3 उसे निष्पक्ष होना चाहिए। पक्षपात तथा सांप्रदायिकता से दूर रहना उसके लिए अत्यंत आवश्यक है। उसके द्वारा लिए गए निर्णय गहरी सोच पर आधारित होनी चाहिए। उसे किसी भी मामले में अपनी व्यक्तिगत राय को सर्वोपरि नहीं रखनी चाहिए। - विद्यार्थियों के प्रति विश्वास, सहयोग आदर की भावना को अपनाना सभा तथा रुख अपनाने से दूर रहना चाहिए। उसे बच्चों पर अपनी दादागिरी नहीं तो अपनी चाहिए और ना ही तानाशाही प्रवृत्ति का सहारा लेना चाहिए।।
- अध्यापक को सदैव छात्रों से निकटता रखनी चाहिए तथा उसे छात्रों के साथ लोकतंत्र आत्मक पद्धति के आधार पर व्यवहार करना चाहिए। अहंकार एवं अहम से दूर रहना चाहिए वह छात्रों के प्रति संवेदनशील है।
- कठिन समय आने पर उसे अत्यंत और न्याय पूर्ण नीति को अपनाना चाहिए। उसे किसी को शत्रु नहीं बनाना चाहिए और ना ही उसे किसी को हद से ज्यादा नजदीक रखना चाहिए। खतरों के प्रति उसका दृष्टिकोण समानता का होना चाहिए । इस संदर्भ में अरविंद घोष ने कहा है कि,” अध्यापक केवल, शिक्षक या निर्देशक ही नहीं, सहायक तथा सच्चा मार्गदर्शक भी है। के कार्य सुझाव देना है ना की किसी बात का और कारण दबाव डालना।”
- वर्तमान समय में विद्यार्थी तथा अध्यापकों के संबंध में अधिक बदलाव आ चुका है अब अध्यापक का काम विद्यालय की गतिविधियों तक सीमित नहीं रहा है। वह जाति के उत्थान तथा सर्वांगीण विकास के लिए हर समय प्रयासरत रहता है। वाह अब अभिभावक, सच्चा मित्र, मार्गदर्शक, मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक आदि अनेक रोल निभाता हैं।
अध्यापक के मुख्य कार्य- - शिक्षण- प्रभावशाली शिक्षण के लिए अध्यापकों पाठ्यक्रम को विशेष योजना के अनुसार बनाना तथा शिक्षा क्रम को साप्ताहिक एवं मासिक इकाइयों में बांट देना चाहिए। अध्यापक का प्रथम कर्तव्य है शिक्षा देना इसलिए उसे अपना संपूर्ण ध्यान शिक्षण कार्य पर केंद्रित रखना चाहिए। अध्यापक सदैव विद्यार्थियों के लिए आदर्श होता है वह कक्षा में तथा कक्षा से बाहर भी विद्यार्थियों को सिखाता है ऐसा वह तभी कर सकता है जब उसे अपने विषय का संपूर्ण ज्ञान हो।
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2 . गठन- अध्यापक का कार्य कक्षा में पढ़ाने तक ही सीमित नहीं है| वह विद्यालय की रीढ़होता है ।वह विद्यालय गठन और उसका सुचारू रूप से कार्य संचालन करने में मुख्याध्यापक को सकारात्मक सहयोग देता है। - निरीक्षण- यदि अध्यापक निरीक्षण को आवश्यकतानुसार सहयोग करता है तो स्वाभाविक रूप से वह इस कार्य को सीख लेता है। इसी प्रकार निरीक्षक का भी कर्तव्य है वह अध्यापक की समस्याओं के समाधान में अपना सहयोग दें। उस द्वारा दी गई सहायता, परामर्श तथा प्रेरणा के रूप में हो सकती है। अध्यापक द्वारा निरीक्षण कार्य को अपनी सहायता के रूप में लेना चाहिए ना की आलोचना के रूप में।
4 . परीक्षण एवं मूल्यांकन- शिक्षा से संबंधित कोई भी कार्य तब तक पूरा नहीं माना जाता जब तक उसका मूल्यांकन न किया जाए। अतः अध्यापक को पढ़ाने के साथ-साथ विद्यार्थियों की परीक्षा लेना तथा उनका मूल्यांकन करना एक अति अनिवार्य कर्त्तव्य है अध्यापक को यह जानना जरूरी होता है कि उसके द्वारा दिया गया ज्ञान विद्यार्थियों ने किस स्तर तक ग्रहण किया है इस कार्य के लिए वह मौखिक तथा लिखित परीक्षाएं ले सकता हैं। - रिकॉर्ड रखना- छात्रों के पूरे साल का लेखा-जोखा रखना अध्यापक का कर्तव्य है। इसके अंतर्गत उसे विद्यार्थी की जन्मतिथि, प्रवेश तिथि, उपस्थिति, फीस, मासिक परीक्षाओंं कथा परीक्षाओं के अंकों का रिकॉर्ड भी रखना होता है।
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