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Q. समाज के प्रति भारतीय लोगों के चिंतन पर ब्रिटिश शासन का क्या प्रभाव पड़ा?

  • समाज के प्रति भारतीय लोगों के चिंतन पर ब्रिटिश शासन के कुछ मुख्य प्रभाव पड़े :-
  • पहले जहां भारत में जाति प्रथा ने ऊंच-नीच और और असमानताओ को जन्म दिया था, जहां स्त्रियों का सम्मान नहीं होता था बल्कि उत्पीड़न किया जाता था और अमानवीय प्रथाएं प्रचलित थी ।
  • वही 19 वी सदी के आरंभिक दशकों तक देश के हर भाग में यह महसूस किया जाने लगा कि भारतीय समाज पिछड़ा हुआ है और इसे सुधारना अति आवश्यक है ।
  • इसके बाद कुछ सामाजिक कुरीति और अंधविश्वासों ने धार्मिक विश्वासों का रूप धारण किया एवं देश के हर भाग में और हर धार्मिक समुदाय में सामाजिक सुधार को लेकर जो भी आंदोलन हुए वे धार्मिक सुधार के आंदोलन थे। जिसमें यह सुधारक बुद्धि वाद, मानवतावाद और मानव एकता के विचारों से काफी प्रभावित थे।
  • शिक्षित भारतीय भी दुनिया के अन्य भागों के राष्ट्रीयता कथा जनतंत्र के आंदोलनों से और बाद में समाजवाद के आंदोलन से परिचित हुए भारतीय जनता की सर्वतो मुखी जागृति के लिए शुरू हुए इन आंदोलनों ने आधुनिक भारत के निर्माण की आधारशिला रखी है।
  • यह सुधार देश के सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक जीवन में भी फैला जिसके बाद भारतीयों में अपनी सभ्यता के प्रति अभिमान की भावना जागने लगी और इसे बढ़ावा देने के लिए कई धार्मिक और सामाजिक आंदोलनों को भी बढ़ावा मिला।
  • समाज सुधारकों ने अंधविश्वास और अमानवीय प्रथाओं के लिए कई आंदोलन किए जिसमें राजा राम मोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना की गई, ईश्वर चंद्र विद्यासागर द्वारा भी स्त्रियों के उत्थान के लिए कई महान कार्य किए गए, पश्चिम बंगाल में भी कई समाज सुधार आंदोलन किए गए।

Q. ब्रह्म समाज की स्थापना कब और किसने की? इसके मुख्य सिद्धांत क्या थे?

  • ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राममोहन राय ने की थी इनका जन्म 1772 ईसवी के आसपास बंगाल के एक संपन्न परिवार में हुआ था।
  • उन्होंने परंपरागत शिक्षा वाराणसी में और अरबी तथा फारसी की शिक्षा पटना से प्राप्त की थी। उन्होंने इसके अलावा अन्य भाषाएं भी सीखी थी जिसमें अंग्रेजी, ग्रीक, हिब्रू आदि मुख्य हैं ।
  • इन्होंने बांग्ला, हिंदी, संस्कृत ,अंग्रेजी ,फारसी में भी कई ग्रंथों की रचना थी, इन्होंने दो समाचार पत्र भी शुरू किए जो एक बांग्ला में और दूसरा फारसी में थी।
  • राजा राममोहन राय का सोच यह था कि हिंदू धर्म में जो कुरीतियां है उन्हें दूर करना अति आवश्यक है तथा जनता को उनके मूल धर्म ग्रंथों की भी जानकारी दी जानी चाहिए ।
  • इसी कारण धार्मिक क्षेत्र के सुधार में उन्होंने सन् 1828 ईस्वी में ब्रह्म सभा की एवं 1830 ईसवी में ब्रह्म समाज की स्थापना की जो इनका पहला समाज धार्मिक सुधार संगठन था ।
  • इन्होंने इस में मूर्ति पूजा और कुरीति प्रथाओं का बहिष्कार किया एवं भारत में ज्ञान-विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए अंग्रेजी शिक्षा को आवश्यक बताया ।
  • राममोहन राय की सबसे बड़ी उपलब्धि थी 1829 ईस्वी में सती प्रथा का अंत करना ।उन्होंने बड़े भाई की पत्नी को सती होने के लिए मजबूर किया जा रहा था जिस कारण उन्होंने इस कट्टरपंथी प्रथा के खिलाफ विरोध किया एवं राममोहन राय ने यह महसूस किया कि सती प्रथा हिंदुओं के लिए अत्यंत दयनीय दशा का एक अंग है।
  • उन्होंने इसके साथ ही बहुपत्नी प्रथा का भी विरोध किया जिसके बाद राजा राममोहन राय और उनके सहयोगियों को काफी उपहास का पात्र बनना पड़ा, मगर धीरे-धीरे ब्रह्म समाज का प्रभाव देश के विभिन्न भागों में बढ़ता गया और इसकी कई शाखाएं स्थापित हुई।
  • जिसमें दो प्रमुख नेता थे- देवेंद्रनाथ ठाकुर और केशव चंद्र सेन
  • केशव चंद्र सेन ने मद्रास तथा मुंबई की यात्रा की और बाद में इन्होंने उत्तर भारत का भी दौरा किया और 1866 ईसवी में ब्रह्म समाज में विभाजन हुआ केशव चंद्र सेन ने भारतीय ब्रह्म समाज की स्थापना की।
  • धार्मिक और सामाजिक मामलों में केशव चंद और उनके सहयोगियों ने विचार अन्य समाजों के विचारों से अधिक पुरोगामी थे उन्होंने जाति प्रथा धार्मिक, रीति-रिवाज और धर्म ग्रंथों को मानने से इनकार कर दिया और अंतरजातीय विवाह तथा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
  • उन्होंने पर्दा प्रथा और जाति भेद का भी विरोध किया ,केशव चंद्र सेन द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज फलता फूलता गया और सामाजिक सुधार में दूसरे समुदाय द्वारा कोई दिलचस्पी नहीं लेने के कारण इसका प्रभाव कम गया जिस कारण ब्रह्म समाज कि संख्या बहुत ज्यादा नहीं रही।
  • उन्होंने जाति प्रथा की कठोर व्यवस्था पर प्रहार किया तथा अन्य जातियों के एवं अन्य धर्मों के लोगों के साथ खान-पान शुरू किया साथ ही साथ संबंधित वस्तुओं पर लगाए गए प्रतिबंधों का भी विरोध किया।

Q. ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मुख्य उपलब्धियां क्या थी?

  • ईश्वर चंद्र विद्यासागर एक महान सुधारक थे जिनका जन्म 1820 ईस्वी में ब्राह्मण के गरीब परिवार में हुआ था इन्होंने संस्कृत का गहन अध्ययन प्राप्त किया था।
  • बाद में वे कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज के प्रिंसिपल भी बने उन्होंने संस्कृत कॉलेज ने उन्हें विद्यासागर की उपाधि प्रदान दी थी।
  • उनके जीवन की सादगी, निस्वार्थ सेवा और निर्भयता तथा दलितों के उत्थान और शिक्षा के प्रसार के लिए किए गए अथक प्रयास ने उन्हें एक महान पुरुष बना दिया ।
  • इन्होंने संस्कृत कॉलेज में आधुनिक पाश्चात्य विचारों पर आधारित शिक्षा की शुरुआत की थी उससे पहले संस्कृत कॉलेज में केवल परंपरागत विषय ही पढ़ाए जाते थे ।
  • संस्कृत के अध्ययन पर ब्राह्मण वर्ग का एकाधिकार था । उन्होंने बांग्ला भाषा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया उन्हें आधुनिक बंगला का प्रणेता माना जाता है।
  • उन्होंने सामाजिक सुधारों के बारे में अनेक करारे लेख भी लिखे, विद्यासागर ने स्त्री जाति के उत्थान के लिए महान कार्य किया जिसमें विधवा पुनर्विवाह का कानून बनाने में उन्होंने कई कार्य किए।
  • उन्होंने कन्याओं की शिक्षा के लिए अथक प्रयास किए जब 1855 ईसवी में विद्यासागर स्कूल के विशेष निरीक्षक नियुक्त हुए तब उन्होंने अपने इलाके में कई विद्यालय कन्या विद्यालय भी खोलें परंतु अधिकारियों को यह बात पसंद नहीं आई जिसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
  • कोलकाता में 1856 ईसवी में पहली बार जिस विधवा पुनर्विवाह का आयोजन हुआ उसमें विद्यासागर ने व्यक्तिगत भूमिका अदा की।
  • कोलकाता में बेथ्यून ने 1849 ई० में कन्याओं की शिक्षा के लिए पहला स्कूल खोला था।
  • कन्या शिक्षा के समर्थक के कारण उन्हें कई विरोध का सामना भी करना पड़ा।

Q. तरुण (यंग) बंगाल आंदोलन का क्या अर्थ है इस आंदोलन में डेरोजियो की क्या भूमिका थी?

  • आधुनिकीकरण के आंदोलन में कोलकाता के हिंदू कॉलेज की महत्वपूर्ण भूमिका रही इसकी स्थापना 1817 ईस्वी में हुई थी।
  • राम मोहन राय के सहयोगी डेविड हारे ने भी इस कॉलेज की स्थापना में बड़ा योगदान दिया था यह स्कॉटलैंड के निवासी थे और कोलकाता में यह घड़ी बेचने आए थे मगर बाद में इनका उद्देश्य बंगाल में आधुनिक शिक्षा का प्रसार करना बन गया ।
  • 1826 ईसवी में 17 साल के तरुण हेनरी लुई विवियन डेरोजियो हिंदू कॉलेज में अध्यापक बने उनके पिता पुर्तगाल के तथा माता अंग्रेज थी। कुछ समय बाद कॉलेज के अनेक प्रतिभाशाली विद्यार्थी डेरोजिओ के साथ एकत्र हुए और उन्होंने स्वतंत्रता से सोचने और परंपरागत मान्यताओं पर प्रश्नचिन्ह लगाने को प्रोत्साहित किया ।
  • विरोधियों ने अपने विद्यार्थियों के सामने पुरोगामी विचार रखे और साहित्य ,इतिहास, दर्शन तथा विज्ञान के बारे में विचार विमर्श करने का एक संगठन बनाया।
  • डेरोजिओ के इस गतिविधि से कोलकाता के तरुण विद्यार्थियों को बढ़ा आकर्षित किया और उन्होंने इस प्रकार एक बौद्धिक क्रांति को जन्म दिया विरोधियों के विद्यार्थियों ने जिन्हें सामूहिक रूप से तरुण बंगाल या यंग बंगाल कहा जाता है।
  • इन्होंने सभी प्रकार की परंपराओं को मजाक बनाया एवं ईश्वर के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया सामाजिक व धार्मिक रूढ़ि वादियों को तोड़ा एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और स्त्रियों की शिक्षा की मांग की।
  • इन्होंने मूर्ति पूजा का बहिष्कार जैसे परंपरा विरोधी आचरण में कोलकाता में कट्टरपंथी हिंदुओं में हलचल मचा दी थी एवं उन्होंने यह आरोप लगाया कि डेरोजिओ कि विचारों के कारण ही तरुण लड़के बिगड़ रहे हैं जिसके बाद डिरोजियो को कॉलेज से निकाल दिया गया। कॉलेज से बर्खास्त करने के बाद 1831 में उनकी मृत्यु हो गई परंतु यंग बंगाल आंदोलन जारी रहा।

Q. आर्य समाज के संस्थापक कौन थे? उनकी शिक्षाएं क्या थी? भारत में शिक्षा प्रसार में आर्य समाज का क्या योगदान था?

  • आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती थे इन्होंने उत्तर भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार में सबसे प्रभावशाली आंदोलन किया। इनका जन्म 1824 ईस्वी में काठियावाड़ में हुआ था इनका बचपन का नाम मूल शंकर था।
  • 14 वर्ष की आयु में उन्होंने मूर्ति पूजा का बहिष्कार किया एवं कुछ समय बाद उन्होंने घर छोड़ दिया और घुमक्कड़ पंडित बनकर ज्ञान की खोज करते थे ।
  • इस दौरान इन्होंने संस्कृत भाषा और साहित्य भाषा का ज्ञान प्राप्त किया 1863 ईसवी में दयानंद ने अपने मत का प्रतिपादन शुरू किया जिसमें उन्होंने कहा कि ईश्वर केवल एक है जिसकी पूजा मूर्ति में नहीं बल्कि जीवात्मा के रूप में की जानी चाहिए।
  • उनकी यह धारणा थी कि मनुष्य को ईश्वर द्वारा प्रदत्त ज्ञान वेदों में विधमान है और उनमें आधुनिक विज्ञान की प्रमुख उपलब्धियां भी समाहित हैं इस संदेश के साथ इन्होंने पूरे देश की यात्रा की।
  • 1875 ई० में मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की ,दयानंद ने अपने उपदेश हिंदी भाषा में दिए उनका सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ – सत्यार्थ प्रकाश है।
  • हिंदी भाषा का उपयोग करने के कारण यह उत्तर भारत आम जनता तक पहुंचे । उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और पंजाब में आर्य समाज का तेजी से प्रचार-प्रसार हुआ आर्य समाज के सदस्य “10 सिद्धांतों” का अनुसरण करते थे इनमें प्रथम है- वेदों का अध्ययन।
  • बाकी सिद्धांत सद्गुण और नैतिकता से संबंधित है दयानंद ने आर्य समाज के सदस्यों के लिए सामाजिक व्यवहार के जो नियम बनाए थे उसमें जातिभेद,सामाजिक और समानता का कोई स्थान नहीं था ।
  • आर्य समाज बाल विवाह का विरोध और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन करते थे ,शिक्षा के प्रसार के कारण इन्होंने उत्तर भारत में लड़के तथा लड़कियों के लिए कई सारे स्कूल और कॉलेज खोले ।
  • लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल जो जल्द ही पंजाब का एक प्रमुख कॉलेज बन गया, लाहौर इस कॉलेज में अंग्रेजी तथा हिंदी माध्यम से आधुनिक शिक्षा दी गई जो आर्य समाजी दयानंद की मूल शिक्षाओं का अनुसरण करना चाहते थे उन्होंने हरिद्वार में गुरुकुल की स्थापना की।
  • दयानंद वेदों को प्रमाण ग्रंथ मानते थे । वे चाहते थे कि जो हिंदू मुसलमान या ईसाई बन गया है उसे पुनः हिंदू बना लेना चाहिए।
  • इसके लिए उन्होंने शुद्धिकरण की भी व्यवस्था की शिक्षा के प्रचार-प्रसार स्त्रियों के उत्थान तथा जाति प्रथा के बंधनों को कमजोर करने में दयानंद सरस्वती और आर्य समाज के विचारों ने दूसरे अनेक सुधारवादी आंदोलन की अपेक्षा ज्यादा प्रभावकारी कार्य किया।

Q. प्रार्थना समाज क्या है ?उसके मुख्य गतिविधियां क्या थी?

  • 1867 ईस्वी में मुंबई में प्रार्थना समाज की स्थापना हुई इसके दो प्रमुख नेता थे महादेव गोविंद रानाडे तथा रामकृष्ण गोपाल भंडारकर।
  • प्रार्थना समाज के नेता ब्रह्म समाज से प्रभावित हुए थे उन्होंने जाति प्रथा और अस्पृश्यता की निंदा की उन्होंने स्त्रियों के उद्धार के लिए काम किया और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया। रानाडे जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में भी योगदान दिया था सारे देश में सामाजिक सुधार के कार्य को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से 1887 ईसवी में भारतीय राष्ट्रीय सामाजिक सम्मेलन की स्थापना की।
  • रानाडे की मान्यता थी कि सामाजिक सुधारों के बिना आर्थिक राजनीतिक क्षेत्रों में उन्नति कर पाना असंभव है वह हिंदू मुसलमान एकता के जबरदस्त समर्थक थे ।
  • उन्होंने कहा था कि -“जब तक हिंदू और मुसलमान एक दूसरे से हाथ नहीं मिलाते तब तक इस विशाल देश कोई प्रगति नहीं हो सकती”।
  • पश्चिम भारत के दो और महान सुधारक थे- गोपाल हरी देशमुख जो “लोकहितवादी” के नाम से प्रसिद्ध हुए और ज्योतिराव गोविंदराव फुले जो “ज्योतिबा” के नाम से प्रसिद्ध हुए। लोकहितवादी जाति प्रथा का विरोध किया और स्त्रियों के उत्थान के लिए कई काम किए ।
  • 1848 में तथाकथित फुले ने निम्न जातियों की कन्याओं के लिए स्कूल खोला एवं उन्होंने अपनी पत्नी को पढ़ाया ताकि उस कन्या को स्कूल में पढ़ा सकें।
  • 1873 ईस्वी में उन्होंने “सत्यशोधक समाज” की स्थापना की उन्होंने ब्राह्मण पुरोहित के बिना विवाह समारोह संपन्न करने की प्रथा चलाई। ज्योतिबा ने दलित के उद्धार का जो महान कार्य किया उसके लिए उन्हें महात्मा की पदवी दी गई।

Q. वेद समाज के संस्थापक कौन थे ? इनकी मुख्य उपलब्धियां क्या थी?

  • ब्रह्म समाज से प्रेरणा लेकर 1864 ईसवी में मथुरा में वेद समाज की स्थापना की गई।
  • इसका मुख्य उद्देश्य समाज के जाति भेद का विरोध और विधवा पुनर्विवाह तथा कन्याओं की शिक्षा व्यवस्था का समर्थन करना था।
  • चेंबेटी श्रीधारलु नायडू वेद समाज के प्रमुख नेता थे।
  • इन्होंने ब्रह्म समाज की पुस्तकों का अनुवाद तमिल और तेलुगू में किया तथा दक्षिण भारतीय ब्रह्म समाज की शाखाएं तमिलनाडु, आंध्र, कर्नाटक में स्थापित हुई।
  • दक्षिण भारत में सुधार आंदोलन के एक और प्रमुख नेता थे- कुंडूकुरी वीरेसलिंगम। इनका जन्म आंध्र के एक कट्टरपंथी ब्राह्मण परिवार में 1848 में हुआ था ।
  • केशव चंद्र सेन के विचारों से काफी प्रभावित हुए इन्होंने 1876 ई० में एक तेलुगू पत्रिका शुरू की जो लगभग लगभग सामाजिक सुधार कार्य के लिए समर्पित थी
  • केरल में नारायण गुरू ने दलितों के उद्धार के लिए महत्वपूर्ण आंदोलन शुरू किया था इनका जन्म एक एझवा परिवार में 1854 ईसवी में हुआ था।
  • केरल के उच्च जाति के हिंदू एझवानों को अछूत मानते थे, नारायण गुरु ने संस्कृत का ज्ञान प्राप्त कर एझवा तथा अन्य दलित वर्गों के लिए उत्थान का कार्य किया।
  • उन्होंने ऐसे मंदिर को स्थापित किए जिनमें ईश्वर या उसकी मूर्ति का कोई विशेष महत्व नहीं था इन्होंने पहला मंदिर एक नदी के समीप पत्थर लाकर स्थापित किया। उस पर उन्होंने शब्द खुदवाए थे- “इस स्थान पर सभी लोग बिना किसी जाति भेद तथा धर्म वेद के बंधुओं से रहते हैं”।
  • नारायण गुरु ने 1930 ईस्वी में श्री नारायण धर्मपुरी परिपालन योगम् संस्था की स्थापना की। जो सामाजिक सुधार का एक महत्वपूर्ण साधन बनी,वह चाहते थे कि मंदिरों की संपत्ति- जो कुछ मंदिरों के पास बेशुमार संपत्ति थी जो पुरोहितों के कब्जे में ना जाकर वह जनता के नियंत्रण में होना चाहिए।
  • कुछ मंदिरों में निम्न जाति के लोगों का प्रवेश मना था सुधारकों ने मंदिर प्रवेश के लिए मंदिर से जुड़ी कुप्रथा को भी बंद करने के लिए कई आंदोलन शुरू किए ।
  • इतने सुधारकों द्वारा किए गया प्रयासों के बाद भी आज भी देश के कुछ भागों में ऐसे मामले जाति धर्म को लेकर उठाए जाते हैं तथा मंदिर के अंदर निम्न जाति के लोगों का जाना वर्जित है।

Q. रामकृष्ण मिशन के मुख्य कार्य क्या थे ?भारतीय जनता को जागृत करने में विवेकानंद का योगदान क्या था?

  • 19वीं सदी के एक महत्वपूर्ण समाज सुधारक(1836-1886ई०) रामकृष्ण परमहंस थे । यह कलकत्ता के समीप के दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी थे उस समय के प्राय सभी धर्म सुधारकों ने केशव चंद्र सेन और दयानंद ने भी रामकृष्ण परमहंस से धार्मिक चर्चा की और उनसे प्रेरणा ली।
  • पश्चिम के प्रभाव के कारण जिन समकालीन शिक्षकों का अपनी ही संस्कृति के प्रति विश्वास डगमगा गया था उन्हें रामकृष्ण की शिक्षाओं से ही सांत्वना मिली।
  • राम कृष्ण के उपदेशों के प्रचार तथा उन्हें व्यवहार में उतारने के उद्देश्य से उनके प्रिय शिष्य विवेकानंद ने 1897 ईसवी में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
  • मिशन का उद्देश्य था -समाज की सेवा करना। बाढ़, अकाल तथा महामारी के समय कई राहत कार्य किए एवं इस मिशन ने अस्पताल और कई शिक्षण संस्थाएं भी खोलें।
  • विवेकानंद का जीवन चरित्र रामकृष्ण से बिल्कुल अलग था।
  • उन्होंने भारतीय और पाश्चात्य दर्शन का गहन अध्ययन किया था मगर रामकृष्ण परमहंस से मिलने के बाद उन्हें मानसिक शांति नहीं मिली थी।
  • वे आध्यात्मिक शांति पाकर ही संतुष्ट नहीं हुए, मातृभूमि की दुर्दशा देखकर अत्यंत दुखी थे उन्होंने सारे देश का दौरा किया और उन्हें चारों तरफ गंदगी, गरीबी व भविष्य के प्रति निराशा ही देखने को मिली ।
  • उन्होंने स्पष्ट कहा था “अपनी इस दरिद्रता और अवनति के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं”।उन्हें देश की हालत सुधारने के लिए देशवासियों का आह्वान किया उन्होंने नई समाज व्यवस्था लाने के लिए गरीबी दूर करने और जनता को जागृत करने के लिए भारतीयों से आजीवन प्रयास करने को कहा ।
  • विवेकानंद ने देश के बाहर जो कार्य किया उसे भारतीय संस्कृति के प्रति विदेशियों का आकर्षण बढ़ा।
  • 1893 में विवेकानंद द्वारा अमेरिका के शिकागो नगर में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में उनका दिया गया भाषण बहुत लोकप्रिय हुआ एवं उस भाषण के कारण दूसरे देशों के लोगों को बड़ा प्रभावित किया और इस प्रकार दुनिया में भारतीय संस्कृति का आदर बढ़ा।

Q. शिक्षा प्रसार और मुसलमानों में जागृति लाने में सर सैयद अहमद खान का क्या योगदान था?

  • 19वीं सदी में बरेली के सैयद अहमद और बंगाल के शरीयतुल्लाह द्वारा मुसलमानों के जागरण की शुरुआत की गई।
  • उनका विचार था कि इस्लाम के ह्रास के कारण ही भारत अंग्रेजों का गुलाम बना। वे इस्लाम की स्थिति को मजबूत बनाने तथा सुधारने के लिए इस्लामी शिक्षा की वृद्धि में जुट गए।
  • शरीयतुल्लाह ने किसानों के उत्थान के लिए बंगाल में फरायजी आंदोलन के नेता बने उन्होंने मुसलमानों में मौजूद जातिभेद के प्रभावों की काफी निंदा की परंतु भारतीय मुसलमानों पर पाश्चात्य विचारों और आधुनिक शिक्षा का प्रभाव देरी से पड़ा।
  • 19वीं सदी में कोलकाता और दिल्ली के कुछ मुसलमानों ने ही अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की थी आधुनिक शिक्षा के प्रसार के लिए पर्दा प्रथा बहू पत्नी प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए कई आंदोलन हुए थे ।
  • नवाब अब्दुल लतीफ (1828-93 ईसवी) तक द्वारा 1863 ईसवी में स्थापित कोलकाता के मुस्लिम साहित्य सभा ऐसा पहला संगठन था जिसने शिक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • अब्दुल लतीफ ने हिंदू एकता के लिए काफी प्रयास किए सैयद अहमद खान का जन्म(1817-98ई०) मुगल दरबार के एक सरदार परिवार में हुआ था ।
  • उन्होंने अफसर के रूप में ईस्ट इंडिया काम की नौकरी भी की 1897ई० के विद्रोह के दौरान यह कंपनी के प्रति वफादार बने रहें ।
  • ब्रिटिश शासक मुसलमानों को अपना असली दुश्मन और सबसे खतरनाक प्रतिद्वंदी समझते थे सैयद अहमद मुसलमानों की दयनीय स्थिति देखकर काफी चिंतित थे इसलिए उन्होंने मुसलमानों की दशा सुधारने का बीड़ा उठाया। उन्होने मुसलमानों को समझाया कि वे धार्मिक तथा शैक्षणिक सुधारों को अपनाएं।
  • भारतीय मुसलमानों के पुनरुत्थान के लिए उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा अपनाने पर जोर दिया 1864 ईसवी में उन्होंने “अनुवाद समिति” की स्थापना की जिसे बाद में “वैज्ञानिक समिति” का नाम दिया गया।
  • इस समिति का कार्यालय अलीगढ़ में था इन्होंने विज्ञान तथा अन्य विषयों की अंग्रेजी पुस्तकों के प्रकाशन उर्दू में अनुवाद करके किया इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 1875 ईसवी में अलीगढ़ में “मोहम्मद एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज” की स्थापना थी जो आगे चलकर महत्वपूर्ण शिक्षा संस्थान बना जिसमें अंग्रेजी माध्यम से कला विज्ञान और के विषयों की पढ़ाई की जाती है। यहां कई शिक्षक इंग्लैंड से उस वक्त आए थे भारतीय मुसलमानों को जागृत करने में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विरोध किया इन्होंने हिंदू तथा मुसलमान नेतृत्व के सहयोग से “इंडियन पैट्रियोटिक एसोसिएशन” की स्थापना की।
  • इन्होंने मुस्लिम समाज के कई सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए काफी प्रयास किए इसलिए रूढ़िवादी मुस्लिम उनसे खफा रहते थे।

Q. सिक्ख सुधार आंदोलन की मुख्य गतिविधियां क्या थी?

  • देश के दूसरे समुदाय समुदाय में शिक्षा के प्रसार, स्त्रियों के उद्धार और कई कुरीतियों के आंदोलन शुरू हो गए उसमें हैं पारसी समाज के दो अग्रणी धर्म और समाज सुधारक थे -दादा भाई नौरोजी (1825 से 1917 ईस्वी)और नौरोजी पर फरदूनजी (1817 से 1885) ईसवी दोनों ने मिलकर “रास्त गोफ्तार” नामक पत्रिका की शुरुआत की।
  • इन दोनों ने शिक्षा के प्रसार विशेषकर कन्याओं की शिक्षा के लिए अथक प्रयास किए सोरबजी बंगाल के एक जाने-माने पारसी समाज सुधारक थे ।
  • 1870 ई० में अमृतसर और लाहौर में सिंह सभाएं स्थापित हुई और उन्होंने सिखों के सुधार आंदोलन का आरंभ किया।
  • सिंह सभाओं के प्रयत्न और अंग्रेजों की सहायता से 1892 में अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना की गई ।

  • बीसवीं सदी के दशकों में गुरुद्वारों के सुधार के लिए अनेक आंदोलन की शुरुआत हुई ।
  • गुरुद्वारों का नियंत्रण सिख समाज के प्रतिनिधि को सौंपा जाए इसके लिए अकाली दल तथा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी ने आंदोलन चलाया।
  • गांधी जी के नेतृत्व में आजादी का आंदोलन एक जन आंदोलन बन गया 1925 ईस्वी में एक कानून बनाकर गुरुद्वारों के संचालन की जिम्मेदारी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी को सौंप दी गई।

Q. उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में कला और संस्कृति के क्षेत्र में कौन-कौन से मुख्य विकास हुए?

  • 19 वीं सदी की शुरुआत में अनेक सांस्कृतिक जागरण हुए इसके साथ ही भारत में विदेशी शासन की स्थापना होने के कारण आत्मसम्मान को देने की भावना भी जागृत हुई ।
  • भारत में आए अधिकांश अंग्रेज अधिकारी तथा दूसरों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को निष्क्रिय समझा उसी समय भारतीयों ने भारत के पूर्व कालों के इतिहास तथा संस्कृति का अध्ययन शुरू किया।
  • भारत के अतीत की खोज में कुछ अंग्रेज और यूरोपीय विद्वानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इस में अग्रणी थे विलियम जॉन्स। इन्होंने 1784 में कोलकाता में “एशियाटिक सोसाइटी” की स्थापना की थी।
  • इन्होंने भारत के प्राचीन मध्यकालीन, इतिहास भाषा, साहित्य ,कला, विज्ञान, दर्शन, विज्ञान व कानून के अध्ययन को प्रोत्साहन मिला।
  • जोन्स ने कालिदास के नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम् का संस्कृत से अंग्रेजी में उसका अनुवाद किया ।
  • 19वीं सदी में विद्वानों द्वारा परिश्रम करके सम्राट अशोक द्वारा अपने स्तंभों और चट्टानों पर खुद वाए गए अभिलेखों पर लिखी गई लिपि का पता लगाया ।
  • विद्वानों के प्रयास से भारत की महान विरासत के बारे में उनकी सांस्कृतिक उपलब्धियों की जानकारियां मिलने लगी, बाद में कुछ विद्वानों का उद्देश्य भारत का गौरवशाली अतीत खोजना नहीं था बल्कि इन्होंने यह जानने का प्रयत्न किया कि प्राचीन युग में भारत के लोग किस प्रकार रहते थे, वह अपनी खाद्य सामग्री तथा जरूरत की चीजें पैदा करते थे।
  • यह भी पता लगाया कि वह किस प्रकार विभिन्न भागों के लोगों का और दुनिया के अन्य भागों में आए लोगों का सम्मिश्रण हुआ ,जनता द्वारा निर्मित कला स्मारक ,जिसमे मंदिर ,मस्जिद, गिरजाघरोंं, किलो आदि के बारे में जानने का प्रयत्न किया।

Q. 19वीं सदी में सांस्कृतिक के अलावा साहित्य और कला का विकास होने लगा ।

  • यह पहले कि साहित्य विषय वस्तु तथा शैली दोनों ही रूपों में काफी अलग था जहां पहले की अधिकांश साहित्य कृतियों के धर्म और आख्यान में निहीत थे। उनमें से अधिकांश की रचना पद में हुई थी परंतु अब गद्द पद को महत्व ज्यादा दिया जाने लगा।
  • इसके अंतर्गत उपन्यास ,नाटक, निबंध ,लघुकथा जैसी साहित्यों का विकास हुआ। इसमें लिखे गए विषय बुनियादी मानवतावादी होते थे एवं इनका संबंध लोगो के जीवन ,उनकी समस्याओं , आकांक्षाओं और संघर्षों से था।
  • साहित्य की भाषा कृत्रिम नहीं रह गई थी यह भाषा जीवंत भाषा हो गई थी ,साहित्य सामाजिक सुधार के प्रचार का सामाजिक समस्याओं को उजागर करने और बाद में देश प्रेम तथा राष्ट्रीय को उभारने का साधन बन गया था।
  • साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान सभी सामाजिक सुधारकों ने दिया था ।
  • भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850-85ई०) यह आधुनिक हिंदी साहित्य के अगुआ थे। उन्होंने विभिन्न उपन्यास, कहानी, नाटक ,निबंध तथा कविताओं के जरिए अपने सुधारवादी विचारों को प्रकट किया था।
  • इसमें बांग्ला के बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय तथा रविंद्र नाथ ठाकुर, तेलुगू के गुरजादा अप्पा राव, मराठी के हरिनारायण आप्टे, मलयालम के कुमारन आसन, तमिल के सुब्रमण्यम भारती, कन्नड़ के केके वेंकटप्पा ,उर्दू के मोहम्मद इकबाल मुख्य है।।
  • जिसमें गरीबों की दयनीय दशा और भारत के गांव की उत्पीड़ित जनता के बारे में लिखने वाले एक महान लेखक प्रेमचंद थे जिन्होंने पहले उर्दू और बाद में हिंदी में लिखा।
  • रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखा हुआ गीत स्वतंत्र भारत का राष्ट्रगान बना ।
  • अन्य राष्ट्रगीत “वंदे मातरम” और “सारे जहां से अच्छा” है जिसे बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय और इकबाल ने लिखे थे ।
  • 1913 में रविंद्र नाथ ठाकुर को अंतरराष्ट्रीय ख्याति का सर्वोच्च नोबेल पुरस्कार मिला। साहित्य ने जनता में देशप्रेम जगाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

Q. भारत में आधुनिक विज्ञान के विकास के प्रमुख सीमा चिन्ह का वर्णन करें?

  • भारत में अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया इसका मुख्य कारण था विज्ञान की शिक्षा को विशेष महत्व देना।
  • भारत का एक प्रमुख कारण भारत में विज्ञान उपेक्षा होना भी था जिस कारण भारत ने विज्ञान की शिक्षा पर जोर देने की मांग उठाई एवं कई समाज सुधारकों ने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए वैज्ञानिक संस्थाएं भी स्थापित की।
  • भारत में विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद विज्ञान विभाग खोले गए विज्ञान की।
  • भारतीयों ने अधिकाधिक संख्या में विज्ञान क्षेत्र को चुना और उनमें से कईयों ने विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण खोज कार्य भी किया.जैसे- चिकित्सा विज्ञान पर आधाकार प्राप्त करने के लिए और शल्य चिकित्सा करने के लिए चिकित्सा के विद्यार्थियों शवच्छेदन करके मानव शरीर के बारे में जानकारी प्राप्त करनी पड़ी।
  • शवच्छेदन करने वाले चिकित्सा विज्ञान के पहले भारतीय विद्यार्थी महेंद्रलाल सरकार थे।
  • 1876 ई० में “इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस “नामक संस्था की स्थापना की ।
  • यह विज्ञान का प्रचार प्रसार करने की प्रमुख एवं पहली संस्था थी। बीसवीं सदी के तीसरे दशक में “इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन” की स्थापना हुई।
  • देश ने विज्ञान के प्रत्येक शाखा में बड़ी संख्या में वैज्ञानिक पैदा किए । जिसमें -जगदीश चंद्र बसु, प्रफुल्ल चंद्र राय ,बीरबल साहनी, डीएम वाडिया, मेघनाद साहा, चंद्रशेखर वेंकटरमन, एस विश्वेश्वरय्या प्रमुख है।
  • चंद्रशेखर वेंकटरमन को भौतिकी के क्षेत्र में उनके खोज कार्य के लिए 1930 में नोबेल पुरस्कार दिया गया।
  • चंद्र महालनोबिस एक श्रेष्ठ वैज्ञानिक थे जिन्होंने सांख्यिकी के अध्ययन की नींव रखी।
  • श्रीनिवास रामानुजन एक महान गणितज्ञ थे।
  • मोसगुंडम् विश्वेश्वरैया ब्रिटिश शासन के दौरान इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एक महान भारत वैज्ञानिक थे । इन्होंने बांध निर्माण, जल विद्युत के विकास, रेशम उद्योग तथा तकनीकी शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण कार्य किया ।
  • धार्मिक और सामाजिक सुधार,शिक्षा, साहित्य व कला विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में सभी विकास भारतीय जनता के जागरण से जुड़े हुए थे। विकास और आर्थिक जीवन में आए परिवर्तनों में भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना के उभार में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी कके खिलाफ लड़ाई को और भी शक्तिशाली बनाया।

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