Q. अंग्रेजी राज में भारत में कृषि के पिछड़ेपन के कारण क्या थे?
- ब्रिटिश शासकों द्वारा केवल ब्रिटेन के औद्योगिक और व्यापारी हितों को ही लाभ पहुंचा था । भारतीय अर्थव्यवस्था का पिछड़ापन बरकरार रहा और जनता गरीब होती गई ।
- 19वीं सदी के उत्तरार्ध में और उसके बाद भारतीय जनता के आर्थिक जीवन में अनेक परिवर्तन हुए जिससे भारत के विभिन्न क्षेत्रों में धीरे-धीरे एक दूसरे पर आश्रित होते चले गए। भारत के समरूप आर्थिक जीवन का उदय हुआ जिसने देश को एकीकरण करने में योग दिया, कंपनी के शासन काल में जमींदारी और रैयतवाड़ी व्यवस्थाएं लागू की गई थी।
- जिन क्षेत्रों में जमींदारी व्यवस्था लागू की गई थी वहां जमींदारों, सरकारों और किसानों के बीच मध्यस्थ बनकर राजस्व वसूल करके सरकार को दिया जाता था, रैयतवाड़ी व्यवस्था में सरकार का किसानों से सीधा संपर्क था इसलिए राजस्व की नियमित वसूली हो इस कारण यह व्यवस्था लागू की गई।
- जिससे जमींदार व्यवस्था ने किसानों पर भारी बोझ डालना शुरू कर दिया एवं किसान यह कानून जमींदारों द्वारा किसानों की बेदखली पर भी रोक लगाते थे।
- यह कानून काफी हद तक असफल रहा रजवाड़ी क्षेत्रों में तो जहां सरकार के राजस्व अधिकारी की असली मालिक थे, वहाँ कानून भी नहीं थे। शोषण के खिलाफ बंगाल और दक्कन उन्नीसवीं सदी के आठवें दशक में किसान विद्रोह हुए किसानों ने दुकानों तथा घरों को आग लगा दिया और अनाजों के गोदाम लूट लिए।
- जमींदारी और रैयतवाड़ी दोनों ही क्षेत्रों में बड़े किसानों ने अपनी जमीन छोटे किसानों को लगा लगान व बटाई पर देना शुरू कर दिया।
- किसानों के श्रम पर ही उनका जीवन यापन चलता था ।
- किसानों से राजस्व वसूली करने की जिम्मेदारी अक्सर दूसरे लोगों पर सौंप दी जाती थी परिणाम स्वरूप राज्य और किसानों के बीच मध्यस्थों की संख्या बढ़ गई एवं सभी बिचौलियों की खेती में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
- इसलिए कृषि क्षेत्र पिछड़ा रह गया एवं भारत के स्वतंत्र होने के बाद तक इस दिशा में कोई भी लाभकारी कदम नहीं उठाया गया जिससे कि लाभ हो सके।
- कृषि के पिछड़ेपन का एक महत्वपूर्ण कारण छोटी-छोटी जोतें भी थी जिसके कारण आबादी बढ़ती गई और जमीन का भार भी बढ़ता चला गया एवं उद्योगों का विकास नहीं हो पाया।
- जैसे जैसे अपनी जीविका के लिए कृषि पर निर्भर होते गए जोतों का अधिक बंटवारा होने लगा ।
- अधिकतर किसान अपने परिवारों के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त अनाज पैदा नहीं कर पाते थे बढ़ती आबादी के लिए रोजगार के अतिरिक्त अवसर उपलब्ध नहीं थे।
- 1861 में जब पहली बार जनगणना की गई तो उस समय भारत की आबादी से करोड़ 60 लाख थी ,जो 1901 में बढ़कर ₹28 करोड़ 30 लाख, 40 साल बाद 1941 ईस्वी में आबादी 38 करोड़ 90 लाख तक पहुंच गए ।
- जनसंख्या वृद्धि के बराबर कुल कृषि उत्पादन में वृद्धि नहीं हो पाई और खाद्यान्नों का उत्पादन घटता चला गया।

Q. 19वीं सदी में खाद्यान्नों के उत्पादन में कमी क्यों आई?
- खाद्यान्नों के उत्पादन में कमी आने का मुख्य कारण था कपास जूट और तिलहन जैसी नकदी फसलों के उत्पादन को ज्यादा महत्व दिया जाता था ।
- सरकार ने भी व्यवसायिक फसलो अथवा नकदी फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया मगर खाद्यान्नों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। 1861-1865 ईसवी तक अमेरिका में गृह युद्ध हुआ और वहां से इंग्लैंड के कपड़ा मिलों पर कपास पहुंचने बंद हो गए।
- इंग्लैंड के कपड़ा मिलों की आवश्यकता के लिए अंग्रेजों ने भारत में कपास के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जिससे कुछ समय बाद कुछ भारतीय किसानों का एक समुदाय समृद्ध हो गया ।
- परंतु खाद्यान्नों का उत्पादन घटता गया किसानों देश के कुछ भागों में किसानों को अंग्रेज बागान मालिकों ने नील की खेती करने के लिए और उन्हीं के द्वारा तय की गई कीमतों पर इन्हें बेचने के लिए भी मजबूर किया।
Q. भारत में अंग्रेजी राज के समय किसानों की ऋण ग्रस्तता के क्या कारण थे?
अंग्रेजी राज में भारत में बार-बार अकाल पड़ने के क्या कारण थे?
- देश के स्वतंत्र होने तक भारत की ग्रामीण जनता दो प्रकारों की विपदा से लगातार त्रस्त रहें।
- यह दो त्रासदीयां थी कर्ज का बोझ और अकाल। भारत की कृषि का स्तर घटिया था भारत के अधिकतर किसानों को दो समय की रोटी भी खाने को नहीं मिलती थी।
- किसान कहीं के भी हो परंतु वो आसानी से कर्जदार बन जाते थे भारत के किसानों में केवल महाजनों से ही कर्ज मिलता था जहां अन्य देशों के किसान कर्ज का इस्तेमाल बीज, खाद और औजार खरीदने तथा जमीन को सुधारने के लिए लेते थे वहां भारत के किसान कर्ज का उपयोग मुख्यतः गैर-उत्पादक कार्यों में करते थे ।
- भारतीय किसान कर्ज का उपयोग भू राजस्व देने जमींदारों को लगान देने, परिवार का भरण पोषण करने ,जन्म,मृत्यु व शादी के अवसरों पर खर्च करते थे ।
- जिस कारण भारतीय किसानों को कर्ज लौटाना मुश्किल हो जाता था, 1860 ईसवी में सभी प्रांतों के दो तिहाई किसान कर्ज में डूबे हुए थे और भारत में ब्रिटिश शासन के दौर में लगभग यही स्थिति बनी रही।
- कर्ज वापस ना करने का परिणाम यह होता था कि किसानों की जमीन जमींदारों के कब्जे में चली जाती थी।
- अंग्रेजों के शासन के पहले जमीन के हस्तांतरण पर अनेक पाबंदियां थी बाद में ब्याज की राशि अधिकतम निश्चित कर दी गई थी ,जिस कारण सदी के आरंभिक सालों में किसानों को सस्ते दरों पर कर्ज मुहैया करने के लिए सहकारी समितियां की स्थापना की गई, पर इसका असर बहुत कम ही पड़ा।

- भारतीय किसानों का मॉनसून पर आश्रित होते थे जिस कारण यहां अकाल पड़ना एक मुख्य कारण था।
- फसल अच्छी होने पर भी वे इतना नहीं बचा पाते थे कि सूखे के दिनों में कुछ सुरक्षित रख सके जिस साल मानसून नहीं होता था उस साल अकाल पड़ता एवं 1807 ईस्वी से 1908 के बीच में कुल 20 साल बार-बार अकाल पड़े ।
- 19 वी सदी के उत्तरार्ध में सड़कों में सुधार और रेलवे मार्गो का निर्माण के कारण अभावग्रस्त क्षेत्रों में अनाज पहुंचाने में तो आसानी हुई परंतु फिर भी देश के किसी न किसी क्षेत्र में अकाल पड़ते ही रहते थे ।
- इसकी असली समस्या यह थी कि छोटे किसान और मजदूर दिन में दो वक्त की भोजन भी मुश्किल जुटा पाते थे वर्षा ना होने के कारण फसल नहीं होती तो उन्हें भुखमरी का सामना करना पड़ता था ।
- अकाल के कई तरह के परिणाम होते थे जिस कारण लाखों लोग मारे गए, 19वीं सदी में अकाल में 300000 लोगों की मौत हुई और भारी संख्या में मवेशी भी मारे गए।
- लोग अकाल ग्रस्त क्षेत्रों को छोड़कर अकाल के कारण हर साल महामारियो का फैलाव होने लगा जिसके बाद लोग अकाल ग्रस्त क्षेत्रों को छोड़कर अन्य स्थानों पर चले गए।
- बार-बार अकाल पड़ने के कारण सरकार ने अकाल आयोग की स्थापना की जिसमें उनकी सिफारिशों को मान कर सरकार ने 1883 में एक करोड़ 1करोड़ 15 लाख रुपए का राहत कार्य और बीमा के लिए प्रतिवर्ष देने का निर्णय लिया ।
- प्रतिवर्ष लगान माफी ,सिंचाई प्रबंधन का विस्तार और प्रभावित लोगों को आर्थिक सहायता देना इस संहिता के कुछ प्रमुख बातें थी ।
- बीसवीं शताब्दी में कम अकाल पड़े इसका मुख्य कारण- सिंचाई ,परिवहन तथा राहत कार्यों में सुधार था फिर भी 1943 ईस्वी में बंगाल में एक भयंकर अकाल पड़ा जिसमें करीब 30 लाख लोगों की जानें गई दूसरे महायुद्ध के दौरान यह अकाल प्रशासन के गैर इंतजाम के कारण पड़ा था।
Q. अकाल की समस्या को हल करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने क्या कदम उठाए?
- सिंचाई की सुविधाओं का विकास हुआ जिसमें सामूहिक प्रयासों से तालाब ,कुएं ,नहर और बांध बनाया जाते थे।
- अकाल के समय से ही सिंचाई की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया अकाल आयोग ने सिंचाई की सुविधा बढ़ाने की भी सिफारिश की।
- यद्यपि सिंचित भूमि का क्षेत्रफल में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई फिर भी इससे वर्षा को दगा देने पर पड़ने वाली विपदा में जरूर कमी आई ।
- सिंचाई वाले क्षेत्रों में फसलें पैदा करने में ज्यादा खर्च आता था क्योंकि किसानों को नहरों के पानी का पैसा देना पड़ता था इसलिए किसान ऐसी फसल उगाने और बाजार में ज्यादा कीमत जिनकी मिलती थी इस प्रकार नगदी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा मिला।
- कृषि विभाग स्थापित किए गए ताकि कृषि के बारे में जानकारी एकत्र करने में इसे सहायता मिल सके कृषि विभाग विकास की योजनाएं पूरी करने की जिम्मेदारी किसी विभाग को सौंपी गई।
- कृषि के बारे में उच्च शिक्षा देने के लिए अनुसंधान कार्य तथा प्रायोगिक कृषि के लिए बिहार में इंपीरियल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एग्रीकल्चर की स्थापना की गई बाद में यह संस्थान दिल्ली स्थापित किया गया।
- उसके बाद देश के अलग-अलग शहरों में कुछ कृषि स्कूल और कॉलेज स्थापित की गई, बाद पैदावार में वृद्धि हुई पर ज्यादा वृद्धि जनसंख्या में हुई भूमि के असमान वितरण होने के कारण कठिनाइयों और भी ज्यादा बढ़ गई ऐसे में खेतिहर मजदूरों की संख्या बढ़ी जिससे जिन्हें साल में केवल कुछ महीने ही खेती का काम मिल पाता था।
- कृषि के क्षेत्र में उन्नति करने के लिए आवश्यक था कि भूमि स्वामित्व से संबंधित असमानता को खत्म किया जाए एवं असली किसानों को स्वामित्व का अधिकार दिया जाए जिससे खेतिहर मजदूरों के हितों की रक्षा की जा सके।

Q. देश की अर्थव्यवस्था और लोगों के सामान्य जीवन पर रेल परिवहन के प्रारंभ होने से क्या प्रभाव पड़ा?
- 19वीं शताब्दी के मध्य काल से इन मामलों में भारत की स्थिति बहुत खराब थी।
- उस समय देश में केवल दो सड़कें थी जो निर्माणाधीन थी जिसमें एक था कोलकाता और दिल्ली के बीच की सड़क और दूसरा मुंबई और आगरा के बीच की सड़क ।
- 19वीं सदी में लगभग मध्यकाल से परिवहन संचार के साधनों पर उन्नत बनाने पर विशेष ध्यान दिया गया ।
- 1857 के विद्रोह से अंग्रेजों ने सबक सीखा कि भारत पर अपना शासन कायम करने के लिए उन्हें संचार के माध्यम का विस्तार और विकास करना अति आवश्यक है।
- दिल्ली भारत की परिवहन व्यवस्था में एक प्रकार की क्रांति पैदा कर दी एवं 1853 ईसवी में रेल लाइन में मुंबई और थाना के बीच बनाया गया जिसमें अगले साल कोलकाता की रेल मार्ग से बंगाल के पश्चिमी क्षेत्र की कोयला खानों के साथ जोड़ा गया।
- 1856 ईसवी में मद्रास को आर्कोनाम के साथ जोड़ा गया एवं इसके साथ ही निजी कंपनियों के प्रयासों से रेलवे का विकास तीव्र गति से हुआ एवं भारत के रेलवे निर्माण कार्य में ब्रिटिश व्यापारियों और ठेकेदारों ने काफी मुनाफा कमाया।
- रेलवे के 19वीं सदी के अंत तक 25000 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन देश में तैयार हो गई जिसका मुख्य उद्देश्य बंदरगाहों को देश के ऐसे भीतरी क्षेत्रों से जोड़ना था जो अंग्रेजों के आर्थिक हितों के दृष्टि से महत्वपूर्ण था।
- भारत में रेल लाइन बनाने का मुख्य उद्देश्य था भारत पर अंग्रेजों के शासन को मजबूत करना। रेलवे भारी मुनाफा कमा रही थी और उस मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा देश से बाहर जा रहा था इस स्थिति में 1947 ईस्वी तक कोई खास परिवर्तन नहीं हुए।
- हालांकि तब तक देश में 70000 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन बन चुकी थी और यह सबसे दुनिया का सबसे बड़ा रेलवे जाल भारत में ही था। जिसका भारतीय अर्थव्यवस्था और आम जीवन पर गहरा और व्यापक प्रभाव पड़ा लोगों और वस्तुओं का आवागमन प्रगामी सकता और अधिक सुरक्षित हो गया।
- रेल मार्गों के कारण अकाल के खतरे को भी दूर करना संभव हो गया क्योंकि जहां सूखा पड़ा वहां रेल मार्ग के जरिए अनाज पहुंचाया जाना बहुत आसान हो गया था ।
- रेलवे के कारण ही जहां बड़ी मात्रा में कोयला और कच्चे माल की जरूरत होती थी वह पहुंचाना संभव हुआ रेल मार्ग के निर्माण से समाज में एक नए वर्ग का उदय हुआ।
- यह वर्ग थे अकुशल श्रमिक जिन्हें रेल मार्ग के निर्माण और रखरखाव के लिए रखा गया ऐसे समुदाय थे जो अपनी जीविका के लिए भूमि आदत कारी पर आश्रित नहीं था बल्कि मूलत: गरीब किसान या भूमिहीन खेतिहर ।

- रेलों के लिए बड़े पैमाने पर लोहे तथा कोयले का इस्तेमाल होता था उससे आधुनिक मशीन भाप के इंजन का भी प्रयोग होता था ।
- रेलवे की स्थापना के साथ में आधुनिक उद्योगों लोहे तथा इस्पात के कारखानों और रेल इंजन बनाने वाले कारखानों की शुरुआत भी की जानी चाहिए थी परंतु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि रेलवे की स्थापना का उद्देश्य भारत का औद्योगिक विकास करना नहीं बल्कि अधिक आर्थिक शोषण करना था ।
- रेल इंजन इंग्लैंड से आयात किए जाते थे एवं इससे भारत के लौह इस्पात उद्योग को भी प्रोत्साहन नहीं दिया गया ,इसका मुनाफा भारत के कोयला खानों के अंग्रेज मालिकों को मिलता था रेल के मरम्मत के लिए भी कुछ कारखाने भारत में स्थापित किए गए थे।
- रेलवे के विस्तार के साथ-साथ में सड़कों का भी निर्माण हुआ जिससे सड़कों ने गांव के अलगाव को खत्म कर दिया एवं गांव में पैदा की जाने वाली फसलों को बाजार में बेचना और भी आसान हो गया।
- परिवहन के साधनों से किए गए तमाम सुधार अंग्रेजों के हित को बढ़ाने के लिए थे परंतु इससे देश के विभिन्न भागों को एक दूसरे से नजदीक लाने में भी मदद मिली।