1.भारत पर अरबों का आक्रमण कब हुआ ?इस आक्रमण से भारत को क्या क्या हानियां हुई वर्णन करें?
2.मोहम्मद बिन कासिम का इस आक्रमण में क्या योगदान था?
3.मोहम्मद गजनवी ने भारत में कब और कैसे आक्रमण किया वर्णन करें?
4.मोहम्मद गौरी के आक्रमण पर टिप्पणी दें तथा इससे भारत पर क्या प्रभाव पड़ा इस पर विमर्श करें।
भारत पर अरबों का आक्रमण का वर्णन 9 वी शताब्दी के बिलादूरी रचित पुस्तक ” फुतुल अल बलदान एवं 13वीं शताब्दी में अबू बर्क कुफी द्वारा रचित पुस्तक चचनामा में मिलती है। खलीफा उमर साहब के समय अरबो ने थाने, भड़ौच और देवल को जीतने की असफल कोशिश की। अरब के आक्रमण के समय सिंध पर दाहिर का शासन था। इस आक्रमण का मूल उद्देश्य भारत के खजाने को लूटना तथा इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार करना था। सर्वप्रथम मुसलमानों का आक्रमण 636 ईसवी में हुआ था यह आक्रमण खलीफा उमर के समय हुआ परंतु यह आक्रमण और सफल रहा था। इस मध्यकालीन भारत में सूफी आंदोलन की शुरुआत भी इसी समय हुई थी। अपनी सफलताओ से खुश होकर अरबो ने सिंध पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। इस आक्रमण के पीछे का मुख्य कारणः उस समय इराक का शासक था अल हज्जाज वह भारत की संपन्नता को देखकर आश्चर्य हो चुका था और इसे जीतकर अपने शासन पद्धति में मिलाकर उसे और संपन्न बनाना चाहता था। दूसरा कारण यह भी माना जाता है कि अरबो के कुछ जहाज सिंध के देवल बंदरगाह पर कुछ समुद्री लुटेरों द्वारा लूट लिए गए थे जिसके बदले में खलीफा ने के राजा दाहिर से जुर्माना मांगा था परंतु दाहिर ने यह कह कर मना कर दिया डाकू पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। इस जवाब से खलीफा गुस्से में आकर सिंध पर आक्रमण करने का निश्चय कर लिया।

मोहम्मद बिन कासिम का आक्रमणः
मोहब्बत बिन कासिम का जन्म सऊदी अरब में हुआ था उसके पिता कासिम बिन यूसुफ का देहांत काफी जल्द हो गया था उसे युद्ध और प्रशासन की कलाओं से उसके चाचा हज्जाज बिन यूसुफ ने अवगत कराया।
मोहब्बत बिन कासिम ने मकरान तट के रास्ते से भारत पर आक्रमण किया था किया था।
712 इसवी में मोहम्मद बिन कासिम जो उस समय 17 वर्ष का था ने सिंध पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया उसने सिंध, सीविस्तान जैसे महत्वपूर्ण किलो को जीत कर उसे अपने अधिकार में कर लिया।
इसे जीतने के बाद मोहब्बत बिन कासिम ने बहमनाबाद आदि स्थानों को जीतते हुए मध्यप्रदेश की ओर प्रस्थान किया।
देशद्रोही सरदार मौकाह की सहायता से कासिम ने दाहिर को हराया था।
देवल के विजय के बाद मोहम्मद बिन कासिम ने नेऊन पर आक्रमण करने का निश्चय किया परंतु यहां पर बौद्धों की संख्या अधिक थी इसलिए वहां के लोगों ने मोहम्मद बिन कासिम का स्वागत किया और बिना युद्ध किए ही कासिम ने नेऊन के दुर्ग पर अधिकार जमा लिया।
नेऊन जीतने के बाद कासिम सिविस्तान की और बढा। उस समय यहां का शासक माझरा था वह बिना युद्ध किए ही कासिम के डर से अपने राज्य छोड़कर चला गया इस तरह यहां भी कासिम बिना युद्ध के जीत गया ।
इसके बाद कासिम ने जाटों की राजधानी सीसम पर भी अधिकार कर लिया। यहां के शासक को कासिम ने मार डाला और यहां के लोगों ने कासिम को अपने शासक के रूप में स्वीकार कर लिया।
सीसम को जीत लेने के बाद कासिम राओर की ओर बढा। यहां दाहिर और मोहम्मद बिन कासिम के बीच में युद्ध हुआ। इस युद्ध में दाहिर मारा गया और इसके बाद यहां पर कासिम का अधिकार हो गया।
यह सभी क्षेत्रों को जीतने के के बाद ताकि इनकी नजर ब्राह्मणवाद पर पड़ी। यहां के शासक जयसिंह ने बहादुरी से कासिम का सामना किया परंतु वहां की जनता के विश्वास था के कारण व मारा गया और यहां पर भी कासिम का अधिकार हो गया।
ब्राह्मणवाद जीतने के बाद कासिम की नजर आलोर पर पहुंची यहां के लोगों ने विवश होकर आत्मसमर्पण कर दिया।
आलोर पर विजय प्राप्त करने के बाद काफी मुल्तान पहुंचा। यहां पर के बीच में काफी आंतरिक कलह था यहां के नगर के जल स्रोत के जानकारी मिलते ही सैनिकों ने दुर्ग पर कब्जा जमा लिया क्योंकि यहां से नगर के लोगों को जल की आपूर्ति होती थी यहां पर अधिकार मिलते हैं कासिम को बहुत सारा खजाना प्राप्त हुआ इसलिए उसने इस नगर का नाम स्वर्ण नगर रख दिया।
भारत में पहली बार जजिया नामक कर की वसूली मोहब्बत बिन कासिम द्वारा ही की गई थी।
715 ईसवी में खलीफा सुलेमान ने मोहम्मद बिन कासिम की हत्या करवा दी।

भारत पर अरबों के आक्रमण का परिणामः
यह सभ्यता एवं संस्कृति पर इस आक्रमण का परिणाम 1000 ईस्वी तक रहा।
शुरुआती दौर में अरबियों ने लोगों को इस्लाम अपनाने के लिए विवश किया।
अरबिया की मुस्लिम संस्कृति पर भारतीयों की संस्कृति का काफी गहरा प्रभाव पड़ा।
अरब वासियों ने चिकित्सा, दर्शन, नक्षत्र, विज्ञान, गणित एवं शासन प्रबंध की शिक्षा भारतीयों से ग्रहण की।
उस समय अरबियों ने चरक संहिता एवं पंचतंत्र जैसे ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद करवाया।
बगदाद के खलीफाओं द्वारा भारतीय विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया गया।
भारतीयों से शिक्षित होने के बाद खगोल शास्त्र पर अरबों ने अनेक पुस्तकों की रचना की जिसमें अल्फाज री की किताब उल जिज प्रमुख है।
इस्लाम धर्म के लोगों ने हिंदू धर्म के प्रति सहिष्णुता का प्रदर्शन भी किया।
अरबो का सिंध के विजय के बाद आर्थिक क्षेत्र पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा।
महमूद गजनवी का आक्रमणः
गजनवी वंश की नींव सामान्य साम्राज्य के तुर्क दास अधिकारी अलप्तगिन जो उस समय खुरासान का राज्यपाल था उन्होंने डाली थी।
932 ईसवी में अलप्तगिन ने गजनी साम्राज्य की स्थापना की थी जिसकी राजधानी गजनी थी।।
अलप्तगिन के दास तथा उसके दामाद सुबुक्तगीन ने शासक बनते ही जयपाल के विरुद्ध आक्रमण किया था।
सुबुक्तगीन 977 में गजनवी की गद्दी पर बैठा था
गजनबी सुबुक्तगीन का पुत्र था जिसका जन्म 1 नवंबर 971 में हुआ था। गजनवी खुरासान का शासक था
गजनबी 27 वर्ष की उम्र में अर्थात 998 ईसवी में गद्दी पर बैठा। उसने सिस्तान के खलीफा को पराजित करके सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला प्रथम मुस्लिम शासक बना।
महमूद गजनबी को बगदाद के खलीफा अल कादर बिल्लाह ने उसके पद के अनुरूप मान्यता प्रदान करते हुए उसे “यामीन उद दौला ” और ” यामीन उल मिल्लाह ” की उपाधि दी।
महमूद एक मूर्ति भंजक आक्रमणकारी था तथा इसका उद्देश्य भारत में मौजूद सभी खजानो तथा धन प्राप्ति करना था
इसका विशेष उद्देश्य हिंदुओं के मंदिरों पर आक्रमण करना तथा इनके मंदिरों को लूटना और उन्हें कमजोर बनाकर मार देना था।
महमूद गजनबी ने भारत पर 1000 से 1026 ईस्वी तक 17 बार आक्रमण किया। इन आक्रमणों का उल्लेख हेनरी इलियट ने किया है। vinayiasacademy.com

इन 17 आक्रमण का उल्लेख इस प्रकार हैः
गजनबी ने भारत पर पहला आक्रमण 1001 ईसवी में किया तथा पेशावर के कुछ भागों पर अधिकार जमा कर वहां से वापस लौट गया। परंतु उसने अपना दूसरा आक्रमण 1000 से 1000 दो इसवी के बीच में पेशावर के राजा जयपाल के ऊपर किया था इसमें राजा जयपाल की हार हुई थी राजा जयपाल ने आत्महत्या कर ली थी। और गजनबी ने उसके राज्य पर अधिकार जमा लिया।
सन 1002 ईस्वी में उसने सिस्तान के खुलुफ को बंदी बनाया।
सन 1004 ईस्वी में उच्छ के शासक वजीरा को दंडित करने के लिए आक्रमण किया परंतु वह गजनबी के डर से भाग कर आत्महत्या कर लिया।
सन 1005 में गजनबी ने मुल्तान के शासक के विरुद्ध युद्ध किया और उसे पराजित करके उसे अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया।
1008 में नगरकोट के विरुद्ध आक्रमण मूर्ति वाद के विरुद्ध आक्रमण था गजनबी ने जयपाल के बेटे आनंदपाल को हराया। इसके साथ साथ उसने हिमाचल के कांगड़ा की संपत्ति तथा कई हिंदू राजाओं को( उज्जैन, ग्वालियर कन्नौज, कालिंजर, और अजमेर) को हराने के बाद हड़प ली।
महमूद गजनबी थानेसर के चक्र स्वामी इनकी का से निर्मित आदम कद प्रतिमा को अपने साथ गजनवी ले गया था।
1009 ईस्वी में अलवर के राज्य नारायणपुर पर विजय प्राप्त की थी।
हजार दस एसपी ने महमूद का आठवां आक्रमण मुल्तान पर था वहां के साथ-साथ दाऊद को पराजित कर उसने मुल्तान के शासन को सदा के लिए अपने अधीन कर लिया।
सन 1013 ईस्वी में नवीन ने त्रिलोचन पाल को हराया।
1015 ईस्वी में त्रिलोचन पाल के पुत्र भीम पाल के विरुद्ध था जो उस समय कश्मीर का शासक था इस युद्ध में भीमताल पराजित हुआ था।vinayiasacademy.com
1018 में उसने कन्नौज पर आक्रमण किया और बुलंदशहर के शासक हरदत्त को पराजित किया। 1019 में उसने पुनः कन्नौज पर आक्रमण किया उस समय वहां के शासक ने बिना युद्ध किए ही आत्मसमर्पण कर दिया।
1020 ईस्वी में महमूद का 13 वां आक्रमण और उसने बुंदेलखंड ,कीरात तथा लोहकोट को जीत लिया था।
1021 में महमूद के 14 में आक्रमण के दौरान महमूद ने ग्वालियर तथा कालिंजर पर आक्रमण किया ग्वालियर पर कब्जा करने में असफल रहा परंतु कालिंजर के सांसद गोंडा ने विवश होकर संधि कर ली।
सन 1024 में अजमेर नहर वाला और काठियावाड़ में आखरी युद्ध लड़ा गया।
सन 1025 से 26 में उसने सोमनाथ मंदिर जो गुजरात में स्थित है उसे लूट कर 2000000 दिनार की संपत्ति हासिल की और वहां के राजपूतों से बचने के लिए थार मरुस्थल के रास्ते का सहारा लिया। इस मंदिर को लूटते समय महमूद ने लगभग 50000 ब्राह्मणों एवं हिंदुओं का कत्ल किया था।
सोमनाथ मंदिर लूट कर ले जाने के रास्ते मैं उस पर जाटों ने हमला किया था।
महमूद गजनवी का भारत पर अंतिम आक्रमण 1027 ईसवी में जाटों के विरुद्ध था।
1028-29 में निशापुर के शासकों से पराजित हुआ।
1030 में उसे बीमारी हो गई जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
महमूद गजनबी ने भारत में एक सेना का गठन किया था जिसका सरदार तिलक नामक एक हिंदू था।
महमूद गजनवी के सिक्कों पर केवल अमीर महमूद ही लिखा गया है।
महमूद गजनी भाग पर कली मा का संस्कृत रूपांतरण ” अव्यमेकं अवतारः” अंकित करवाया।
भारत पर गजनवी के आक्रमण का कोई राजनीतिक असर तो नहीं पड़ा परंतु इन आक्रमणों से राजपूत राजाओं के युद्ध रणनीतियों की कमियों के बारे में खुलासा हो गया। इसे एक और खुलासा हुआ कि भारत में एक राजनीतिक एकरूपता नहीं थी।

मोहम्मद गौरी का भारत पर आक्रमणः
मोहम्मद गौरी का पूरा नाम सुल्तान शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी था इसका जने 1149 एसपी में अफगानिस्तान में हुआ था मोहम्मद गौरी का भारत पर आक्रमण करने का मुख्य उद्देश्य इस्लामी साम्राज्य का विस्तार करना था इसके साथ-साथ भारत में मौजूद धन संपत्ति को भी लूटना था। मोहम्मद गौरी गौर के शासक गयासुद्दीन का छोटा भाई था। मोहम्मद गौरी अफगान का सेनापति था। 1173 ईसवी में वह गौरी साम्राज्य का शासक बना। vinayiasacademy.com
मोहम्मद गौरी ने भारत पर लगातार आक्रमण करके दिल्ली सल्तनत की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।
मोहम्मद गौरी ने प्रथम आक्रमण 1175 इसवी में गोमल दर्रा होते हुए मुल्तान पर किया। इस युद्ध में उस ने मुल्तान को जीत लिया था।
1178 इसवी में गौरी ने गुजरात के शासक मूलराज द्वितीय पर आक्रमण किया परंतु इस युद्ध में गौरी की हार हुई या उसकी पहली हार थी। इस युद्ध का संचालन नायिका देवी ने किया था जो मूलराज की पत्नी थी।
इस युद्ध से सीखने के बाद गाड़ी ने पहले संपूर्ण पंजाब पर अपना अधिकार करने के बाद भारत पर अधिकार करने का प्रयास करने लगा।
1179 – 1180 इसवी के बीच में पेशावर पर कब्जा कर लिया।
1182 ईस्वी में उसने जींद के निचले भाग पर आक्रमण करके सुमरा वंश के शासक को अपने अधीन कर लिया।
1186 ईसवी में गौरी ने लाहौर, सियालकोट तथा भटिंडा को जीत लिया था।
1190 इसवी तक गौरी ने संपूर्ण पंजाब को गौर साम्राज्य का अंग बना लिया।
1191 एसपी में दिल्ली और अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी के बीच तराइन के मैदान में पहला मुकाबला हुआ जिसमें मोहम्मद गौरी पराजित हुआ इसे तराइन का प्रथम युद्ध कहा जाता है।
1192 एसपी में गवरी एवं चौहान के बीच तराइन के मैदान में दूसरा युद्ध हुआ जिसमें पृथ्वीराज चौहान पराजित हुआ साथ ही चौहान साम्राज्य का नाश हुआ। इसे तराइन का द्वितीय युद्ध कहा जाता है
1194 ईस्वी मोहम्मद गौरी ने ऐबक की सहायता से कन्नौज नरेश जयचंद को हराकर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
1195 से 1194 इसवी में गौरी ने चुनार के पास जाटों और राजपूतों को पराजित किया।
1194 के बाद गाड़ी के दो सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक तथा बख्तियार खिलजी ने भारतीय क्षेत्रों को एक-एक करके जीतना प्रारंभ कर दिया इसी के दौरान बख्तियार खिलजी ने बिहार तथा बंगाल के कुछ क्षेत्रों को जीता और नालंदा विश्वविद्यालय एवं बंगाल विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था।
1205 ईसवी में गौरी ने खोखरा को पराजित किया।
गजनी जब वापस लौट रहा था तो 15 मार्च 1206 इसवी को सिंधु नदी के दमक नामक स्थान पर धोखे से उसकी हत्या कर दी गई थी।
मोहम्मद गौरी ने अपनी मृत्यु से पूर्व ही अपने दासो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।
मोहम्मद गोरी ने अपने साम्राज्य के समय सिक्कों में एक तरफ शिव के बैल तथा देवनागरी लिपि में पृथ्वीराज तथा दूसरी तरफ घोड़े के साथ मुहम्मद बिन शाम लिखा था।
मोहम्मद गौरी के कुछ सिक्कों पर लक्ष्मी की आकृति भी अंकित रहती थी।
मोहम्मद गौरी के आक्रमण के बाद भारत में तुर्क सत्ता की स्थापना हुई। इसने राजनीतिक तत्व के प्रवेश के मूलभूत ढांचे में बदलाव ना होने के बावजूद भी तुर्कों के आक्रमणों ने भारतीय समाज के जीवन के सभी क्षेत्रों में नए तत्वों को पैदा किया। भारत में शक्तिशाली केंद्रीय सत्ता की स्थापना हुई तथा इसके साथ ही सामंती प्रथा का अंत हुआ। और नई स्थापत्य कला का उदय हुआ। तुर्की अपने साथ कला के फारसी तत्वों को लेकर आएं जिसे फारसी कला के भारतीय कला में मिल जाने से एक नई कला का उदय हुआ।अढाइ के दिल का झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण इसी इसी कला से हुआ था। भारतीय समाज पर भी इसका गहरा असर पड़ा था इसमें सल्तनत की स्थापना हो जाने पर भेदभाव और जातिवाद में कुछ हद तक गिरावट आई। आगमन से शिक्षा के क्षेत्र में एक नई प्रणाली की शुरुआत हुई जिसे मदरसा प्रणाली कहा जाता है। यह प्रणाली भारतीय प्रणाली से अलग थी। ओड़िया शिक्षा मस्जिदों में दी जाती थी। ट्रकों के आगमन से भारत में फारसी भाषा का उदय हुआ था तथा राज कार्यों में इस भाषा को प्राथमिकता भी दी गई थी।