1.संघीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति की शक्ति की वर्णन कीजिए 2. भारत में राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया क्या है और राष्ट्रपति पद की क्या योग्यताएं चुनाव पद्धति को समझाइए 3.राष्ट्रपति के निर्वाचन को लेकर विवाद किस प्रकार के होते हैं इन विवादों का निपटारा कैसे किया जाता है इस पर प्रकाश डालिए क्या भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन दो बार हो सकता है vinayiasacademy. Com
Ans:-भारत एक गणतंत्र देश है जिसका अर्थ है कि भारत के राष्ट्र अध्यक्ष का चुनाव होगा, भारत में राष्ट्रपति राष्ट्र के अध्यक्ष होते हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से चुने हुए होते हैं, संविधान के अनुच्छेद 52 एवं 53 में यह कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति पूरे कार्यपालिका के प्रधान होंगे और इसकी सारी शक्ति का प्रयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करवाएंगे लेकिन भारत के राष्ट्रपति के संबंध में यह भी जानना जरूरी है कि अनुच्छेद 74 के द्वारा यह कहा गया है कि भारत में एक मंत्रिपरिषद होगा प्रधानमंत्री जिसके प्रमुख होंगे समय-समय पर मंत्री परिषद एवं प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सलाह देंगे राष्ट्रपति इस सलाह को मानने के लिए बाध्य होगा यानी कि भारत के राष्ट्रपति इसमें संविधान संशोधन 1976 के अनुसार एवं 44 वें संविधान संशोधन 1978 के अनुसार मंत्रिपरिषद और प्रधानमंत्री के सलाह पर ही कार्य करेंगे vinayiasacademy. Com भारत का राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 35 वर्ष की आयु होनी चाहिए और भारत की नागरिकता अनिवार्य है इसके साथ लोकसभा के सदस्य के निर्वाचित होने की जो योग्यता होती है वह भी होना चाहिए एवं कोई भी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए यहां यह जानना जरूरी है कि अगर राष्ट्रपति निर्वाचित है उपराष्ट्रपति निर्वाचित है राज्यों का राज्यपाल संज्ञा राज्य के मंत्री यह सारे लोग राष्ट्रपति पद के लिए अपनी योग्यता रखते हैं 1974 ईस्वी में 39 वा संविधान संशोधन के द्वारा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए एक कम से कम जमानत राशि और प्रस्तावित अनुमोदक की व्यवस्था की गई थी जो उस समय ₹2500 एवं 10 प्रस्तावक 10 अनुमोदक था लेकिन 1997 में इसे बढ़ाकर ₹15000 एवं 50 प्रस्तावक और 50 अनुमोदक कर दिया गया ,यहां पर जमानत राशि का मतलब यह है कि अगर चुनाव लड़ रहे राष्ट्रपति के उम्मीदवारों में से किसी को कुल वैध मतों का 1/ 6 भाग प्राप्त नहीं होता है उसकी जमानत राशि जब्त कर ली जाएगी vinayiasacademy. Com

अनुच्छेद 54 एवं अनुच्छेद 55 के अनुसार राष्ट्रपति के चुनाव के लिए एक निर्वाचक मंडल होगा इस निर्वाचक मंडल में लोकसभा एवं राज्यसभा के सभी चुने हुए सदस्य एवं भारत के सभी राज्यों के विधानसभा के चुने हुए सदस्य केंद्रशासित प्रदेश पांडिचेरी एवं दिल्ली के चुने हुए सदस्य भी शामिल होंगे यहां पर यह व्यवस्था दी गई है कि राष्ट्रपति के चुनाव में निर्वाचक मंडल द्वारा एक गुप्त मतदान किया जाएगा जिसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति एवं एकल संक्रमणीय पद्धति कहा जाता है प्रत्येक राज्य के विधानसभा का एक-एक सदस्य का इसमें मूल्य निकाला जाता है vinayiasacademy. Com
राष्ट्रपति के चुनाव में सभी विधायकों का अलग-अलग मत मूल्य होता है एवं सभी विधायकों के मत मूल्य को जोड़कर लोकसभा एवं राज्यसभा के चुने हुए प्रतिनिधियों से भाग देने पर जो मत मूल्य आता है वह एक सांसद का मत मूल्य होता है ऐसा जनसंख्या के अनुपात के अनुसार बनाया गया है अनुच्छेद 71 में यह बताया गया है कि 1952 में राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी जो अधिनियम है वह निर्वाचन आयोग के द्वारा ही पूरा किया जाएगा जिस कैंडिडेट को कुल डाले गए वैद्य मतों का 50% से ज्यादा आएगा वही कैंडिडेट चुनाव में जीतेगा अगर किसी भी कैंडिडेट को 50% से ज्यादा वोट नहीं आता है तो सबसे कम जिस कैंडिडेट को वोट आया है उसे हटा दिया जाएगा एवं उसके वोट को दूसरे वरीयता में जोड़ दिया जाएगा इस प्रकार की प्रक्रिया को लगातार करते रहने से जिस कैंडिडेट को सबसे पहले 50% से ज्यादा वोट आ जाएगा वह चुनाव में विजय माना जाएगा
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आमतौर पर भारत के राष्ट्रपति के चुनाव के समय यह तय हो जाता है कि जिस पार्टी को बहुमत है उसने किसे अपना समर्थन दिया है केंद्र में व राज्यों में इसके द्वारा ही राष्ट्रपति का निर्वाचन तय हो जाता है लेकिन कभी-कभी ऐसा भी हुआ है जिसमें विपक्ष के अच्छे कैंडिडेट हो जाने के कारण राष्ट्रपति का पद रोमांचक हो जाता है और ऐसे में दूसरे व तीसरे वरीयता क्रम के वोट महत्वपूर्ण हो जाते हैं जैसे वीवी गिरी के चुनाव में हुआ था
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राष्ट्रपति अथवा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित अगर किसी प्रकार का विवाद हो भी जाता है इसका निर्णय उत्तम न्यायालय में ही होगा ऐसा अनुच्छेद 71 में कहा गया है 1967 ईस्वी में राष्ट्रपति के निर्वाचन के बाद सर्वोच्च न्यायालय में इसे चुनौती भी दिया गया था बाबूराव पटेल तथा 12 अन्य जन संघ के सांसदों ने अपनी याचिका में ऐसा कहा था कि डॉक्टर जाकिर हुसैन ने शपथ नहीं लिया है इसलिए इसे हटा दिया जाए एक प्रकार की इसे भ्रष्टाचार की श्रेणी में रखा गया था इसी प्रकार से निर्दलीय उम्मीदवार ने 1967 में एक याचिका दायर किया था 1969 में भी उच्चतम न्यायालय में कई याचिकाएं दाखिल की गई थी लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इस निर्वाचन प्रक्रिया को गलत करार नहीं दिया 1961 ईस्वी में 11 वां संविधान संशोधन हुआ था जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के चुनाव में कोई स्थान रिक्त निर्वाचक मंडल में रह जाता है तो इस आधार पर उसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है vinayiasacademy. Com
अनुच्छेद संचालन के अनुसार कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति के पद पर भारत में कितने बार रहेगा इसके लिए संविधान में कोई लिखित आदेश नहीं है जबकि अमेरिका में यह लिखा हुआ है कि वहां 2 बार से अधिक कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति पद पर नहीं रह सकता है लेकिन भारत में ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है अनुच्छेद 60 के द्वारा राष्ट्रपति को उसके पद का शपथ सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दिलाते हैं अगर वह नहीं है तो सबसे वरिष्ठ न्यायधीश और इसी प्रकार से यह चलता रहता है भारत के राष्ट्रपति ईश्वर की शपथ लेते हैं कि वे सत्य निष्ठा से प्रतिज्ञा करते हैं कि श्रद्धा पूर्वक भारत के राष्ट्रपति पद का कार्य पालन करेंगे तथा अपनी पूरी उपयोगिता से संविधान और विधि का परीक्षण करेंगे संरक्षण करेंगे प्रतिरक्षण करेंगे भारत की जनता के कल्याण और सेवा करते रहे
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भारत में आम तौर पर राष्ट्रपति 5 वर्षों के लिए चुने जाते हैं उनका चुनाव दो बार या तीन बार जितना बार भी हो सकता है इसके लिए कोई निश्चित समय सीमा नहीं रखी गई है, लेकिन वे अगर चाहे तो उपराष्ट्रपति को हस्ताक्षरित करके अपना त्यागपत्र भी दे सकते हैं यदि राष्ट्रपति की मृत्यु हो जाती है यह वह त्यागपत्र दे देते हैं या उन्हें महाभियोग लगाकर के हटा दिया जाता है तो उनके पद को उपराष्ट्रपति संभालते हैं इतने दिनों में राष्ट्रपति का निर्वाचन कम से कम 6 महीने के अंदर हो जाना चाहिए राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की निम्नलिखित प्रक्रिया होती है
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महाभियोग संविधान के उल्लंघन पर यह मामला बनता है अनुच्छेद 56 में कहा गया है कि अगर राष्ट्रपति के द्वारा कभी भी संविधान को उल्लंघन कर दिया जाता है तो उनके ऊपर महाभियोग लगाया जा सकता है यह एक प्रकार का अर्ध न्यायिक प्रक्रिया होता है जिसे संसद लगाती है अनुच्छेद 61 में इसकी पूरी प्रक्रिया को बताया गया है यह बताया गया है कि जब तक राष्ट्रपति के ऊपर संविधान के उल्लंघन का आरोप नहीं लगता है तब तक उनके ऊपर महाभियोग नहीं लगाया जाएगा या एक संकल्प के रूप में होगा जिसे कम से कम 14 दिन पहले ही राष्ट्रपति को सूचना दे दी जाएगी जिस दिन सदन में महाभियोग की प्रक्रिया की सुनवाई होगी उसमें कम से कम एक चौथाई सदस्य का हस्ताक्षर होना चाहिए अगर कोई भी सदन उस प्रस्ताव को दो तिहाई बहुमत से पारित कर देता है एवं दोनों सदन के द्वारा इस प्रक्रिया को अपना लिया जाता है तो फिर अनुच्छेद 61 के अनुसार इस आरोप की जांच होगी या इसके लिए एक समिति का गठन किया जाएगा राष्ट्रपति अगर चाहे तो इस जांच में सामने आकर अपने बारे में बता सकते हैं अगर जांच होने के बाद दूसरा सदन में भी प्रस्ताव लाया जाता है और दो तिहाई बहुमत से पुष्टि कर दिया जाता है तो प्रस्ताव को पारित मानते हुए जिस तिथि को पारित होगा राष्ट्रपति को पद छोड़ना होगा जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में यह प्रावधान रखा गया है कि निम्न सदन द्वारा महाभियोग की कार्यवाही की जा सकती है ।भारत में राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया लोकसभा राज्यसभा में से किसी भी सदन में शुरू किया जा सकता है, इसके बाद एक कमेटी का गठन हो सकता है कमेटी का गठन होने के बाद तब जाकर दूसरे सदन में इसे पारित करना जरूरी होगाhttps://vinayiasacademy.com/?p=2143 veto power of president
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