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1.भारत के राष्ट्रपति की शक्ति और कार्य का वर्णन कीजिए 2. भारत के राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्ति क्या है? किन परिस्थितियों में इसका प्रयोग किया जाता है ?3. भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्ति और वित्तीय शक्ति का वर्णन कीजिए 4. भारतीय राष्ट्रपति के वीटो की शक्ति क्या है?5. राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान कितने प्रकार का दिया जाता है ?क्या इसके लिए राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सलाह लेते हैं
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Ans:- भारत एक गणतंत्र देश है जिसमें यहां के राष्ट्र के अध्यक्ष राष्ट्रपति का भी अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव होता है। भारत में राष्ट्रपति की शक्तियां और कार्य संविधान में इस प्रकार से वर्णित किया गया है कि वह मंत्रिमंडल मंत्रिपरिषद और प्रधानमंत्री की सलाह से कार्य करते रहेंगे। लेकिन कार्यपालिका की समस्त शक्तियों का निर्धारण राष्ट्रपति के द्वारा ही किया जाएगा ।अनुच्छेद 53 के द्वारा कार्यपालिका की शक्ति राष्ट्रपति में निहीत होगी और राष्ट्रपति अपने अनुसार इसका प्रयोग करेंगे ।वे सेना के सर्वोच्च सैनिक कमांडर होते हैं, इनकी सामान्य शक्तियों में कार्यपालिका की शक्ति, वित्तीय शक्ति ,न्यायिक शक्ति ,कूटनीतिक की शक्ति विधायी शक्ति शामिल होती है वहीं राष्ट्रपति के पास आपातकालीन शक्ति भी है
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राष्ट्रपति की प्रशासनिक शक्ति- राष्ट्रपति अपने प्रशासनिक शक्ति का प्रयोग भी मंत्री परिषद एवं मंत्री मंडल के सलाह पर ही करेगा, यह जानकारी संविधान के अनुच्छेद 74 में दिया गया है। भारतीय संघ का पूरा प्रशासन राष्ट्रपति के नाम पर ही संचालित होता रहता है। जितने भी दस्तावेज, उसमें राष्ट्रपति के ही सिग्नेचर होते हैं। राष्ट्रपति को यह भी अधिकार है कि वह सभी कानून को देखें जिससे जनकल्याणकारी योजनाएं चलती है। सही मायने में अगर देखा जाए तो राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करते हैं, और प्रधानमंत्री के कहने पर अन्य मंत्रियों की भी नियुक्ति करते हैं ।राष्ट्रपति किसी भी मंत्री को कभी भी उसके पद से हटा सकते हैं। लोकसभा को भंग भी कर सकते हैं, अनुच्छेद 155 के द्वारा राज्यों के राज्यपाल की नियुक्ति करते हैं, अनुच्छेद 124 एवं 214 के द्वारा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं, अनुच्छेद 76 के द्वारा महान्यायवादी एवं अनुच्छेद 148 के द्वारा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति करते हैं इसी प्रकार से संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और उसके सदस्य, पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य, अनुसूचित जनजाति ,अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष और सदस्य, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष एवं सदस्य, अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य ,मुख्य निर्वाचन आयुक्त की भी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं vinayiasacademy. Com


भारत के विदेशी मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व राष्ट्रपति करेंगे विदेश से जो भारतीय राजदूत आते हैं अथवा वहां नियुक्त होते हैं,उच्चायुक्त और अन्य पदाधिकारी को राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं ,प्रत्येक राजदूत जो दूसरे देश से आए हैं वह अपना प्रमाण पत्र राष्ट्रपति को ही देंगे। विदेशों से जितनी भी संधि होती है जितना भी समझौता होता है वह सारी चीजों में राष्ट्रपति का सिग्नेचर जरूरी है लेकिन संसद द्वारा यह सारी जानकारी रखी जाएगी
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राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियां- अगर धन विधेयक की बात की जाए तो बिना राष्ट्रपति के पूर्व निर्देश के इसे लोकसभा में प्रस्तुत नहीं किया जाता है, किसी भी विधेयक को धन विधेयक तभी कहते हैं जब लोकसभा का अध्यक्ष के लिए सर्टिफिकेट दे देता है ,राष्ट्रपति द्वारा ही कहने पर संसद में बजट प्रस्तुत किया जाता है। इसी प्रकार से भारत के आकस्मिक निधि और संचित निधि पर नियंत्रण राष्ट्रपति का होता है राष्ट्रपति चाहेंगे तभी इसके धन की निकासी हो सकती है। राष्ट्रपति कभी-कभी केंद्र और राज्य के बीच राजस्व बंटवारे पर भी मुख्य ध्यान देते हैं ,इसी प्रकार से उत्तर पूर्वी भारत में जूट निर्यात से होने वाली आमदनी में राज्यों का प्रतिशत कितना होगा यह राष्ट्रपति तय करते हैं। अगर जल विद्युत परियोजना की बात की जाए तो जब 2 राज्यों में इसे लेकर विवाद उत्पन्न हो जाता है कि जल विद्युत परियोजना का लाभ किस राज्य को मिलेगा ऐसे में राष्ट्रपति के द्वारा दिया गया निर्णय सर्वोपरि माना जाता है। यही कारण है कि अनुच्छेद 280 के द्वारा राष्ट्रपति को एक वित्त आयोग गठन करने का अधिकार है, जिसके द्वारा राष्ट्रपति विभिन्न राज्य एवं केंद्र के बीच राजस्व और टैक्स के बंटवारे पर अपना मुख्य ध्यान रखते हैं
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राष्ट्रपति की विधायी शक्ति- राष्ट्रपति को संसद से सूचना मांगने का अधिकार है या अधिकार अनुच्छेद 78 एवं अनुच्छेद 86 के द्वारा दिया गया है अगर आप राष्ट्रपति चाहे तो किसी विधेयक के संबंध में अपने विचार भी प्रधानमंत्री को बता सकते हैं, जिसे मंत्रिमंडल तक पहुंचाया जा सकता है। अगर राष्ट्रपति चाहे तो कोई संदेश औपचारिक संबोधन के समय भी दे सकते हैं ,जब सदन की संयुक्त बैठक होती है उस समय में राष्ट्रपति इसे संबोधित करते हुए देश के संबंध में अपनी भावना बता सकते हैं
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जब संसद के दोनों सदन से कोई विधेयक पारित हो जाता है तो राष्ट्रपति से कितना बार लौटा सकते हैं या राष्ट्रपति इस पर क्या निर्णय ले सकते हैं ?राष्ट्रपति के पास कौन-कौन से विकल्प हैं?- अगर संसद के दोनों सदन से कोई विधेयक धन विधेयक को छोड़कर पारित हो जाता है संविधान संशोधन विधेयक को छोड़कर पारित हो जाता है जिसे साधारण विधेयक कहते हैं तो इस पर राष्ट्रपति मुख्य रूप से निम्नलिखित निर्णय ले सकते हैं -अगर राष्ट्रपति चाहे तो पहला बार में ही इस पर अपना हस्ताक्षर कर देंगे, जिसके बाद विधेयक कानून बन जाएगा और इसमें किसी प्रकार की कोई चर्चा की संभावना नहीं होती है ।अगर राष्ट्रपति चाहें तो एक बार इस विधेयक को वापस कर सकते हैं, वापस करने के बाद मंत्री परिषद इस विधेयक पर पुनर्विचार करती है अगर मंत्रिपरिषद फिर से उस विधेयक को वापस भेज देती है तब राष्ट्रपति को सिग्नेचर करना पड़ता है। इसके अलावा राष्ट्रपति चाहे तो किसी विधेयक को अपने पास अनिश्चितकाल तक वह रख सकते हैं


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ऐसे कौन कौन से विधेयक हैं जिसमें राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति जरूरी होती है- राष्ट्रपति द्वारा कुछ ऐसे विधेयक को सहमति दी जाती है जिसे सदन में प्रस्तुत करना है ।उदाहरण के लिए अनुच्छेद 110 के द्वारा जो धन विधेयक लाया जाता है इसे राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति लेनी जरूरी होती है। इसी प्रकार से अगर किसी राज्य का कुछ हिस्से को काट कर एक नए राज्य का निर्माण करना है अथवा राज्य का नाम बदलना है तो अनुच्छेद 3 के द्वारा ऐसे विधेयक पर भी राष्ट्रपति की पूर्व सहमति जरूरी होती है ।अनुच्छेद 274 के द्वारा अगर टैक्स से संबंधित ऐसा कोई विधेयक हो जिससे कि राज्य के राजस्व संग्रह में कोई दिक्कत आएगी तो इसे लेकर राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति चाहिए
व्यापार की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए भी राष्ट्रपति की अनुमति जरूरी है। भूमि अधिग्रहण से संबंधित विधेयक को भी राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी मिलनी जरूरी होती है। अनुच्छेद 117 के द्वारा कोई भी संचित निधि ,आकस्मिक निधि से पैसा खर्च करने की बात हो तो इसमें राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी चाहिए
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राष्ट्रपति की दया याचिका क्या है राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान कितने प्रकार से दिया जाता है- मुख्य रूप से राष्ट्रपति द्वारा जो क्षमादान दिया जाता है इसमें राष्ट्रपति अपने से निर्णय नहीं ले सकते हैं यहां यह नियम है कि राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल की सलाह लेनी ही पड़ेगी 42 वें संविधान संशोधन एवं 44 वें संविधान संशोधन में यह प्रावधान कर दिया गया था जिसमें राष्ट्रपति कोई भी कार्य मंत्रिमंडल की सलाह पर ही करेंगे राष्ट्रपति द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है कोई व्यक्ति या नहीं कह सकता है कि राष्ट्रपति से क्षमा पाना इसका मौलिक अधिकार है यह एक प्रकार का कानूनी अधिकार है। जिसका प्रयोग अंतिम अवस्था में लोग राष्ट्रपति के पास जाकर कर सकते हैं ।राष्ट्रपति क्षमा में किसी को भी पूर्णरूपेण दंड से मुक्ति दे देते हैं, लेकिन इसके लिए मंत्रिमंडल की सिफारिश जरूरी होती है ,इसी प्रकार से राष्ट्रपति प्रति लंबन का आदेश दे सकते हैं यानी कि अस्थाई रूप से दंड को रोक देना ।परिहार का आदेश दे सकते हैं जिसमें दंड की प्रकृति तो वही रहेगी उसकी सजा को कम किया जा सकता है ।राष्ट्रपति लघु करण का प्रयोग कर सकते हैं जिसमें दंड की प्रकृति में परिवर्तन हो जाता है लेकिन सजा की मात्रा में परिवर्तन नहीं होता। इसी प्रकार से राष्ट्रपति विराम लगा देते जिसमें दंड की प्रकृति और दंड की मात्रा दोनों को कम करने के लिए कह देते हैं
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राष्ट्रपति की न्यायिक शक्ति क्या है- राष्ट्रपति 143 अनुच्छेद के द्वारा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श ले सकते हैं इस परामर्श को मानना ना मानना राष्ट्रपति के इच्छा पर निर्भर है अनुच्छेद 124 के द्वारा राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं वह उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं अनुच्छेद 143 के द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्मित किए जाने वाले न्यायालय की पद्धति और प्रक्रिया और जो भी नियम है इसे राष्ट्रपति के द्वारा अनुमोदित करवाया जाता है


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