राजनीतिक दल और दृबाव समूह:-
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राजनीतिक दल नागरिकों का एक ऐसा समूह होता है, जो समान सिद्धांतों पर विश्वास करते हुए चुनाव के माध्यम से सत्ता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, जबकि दबाव समूह साझे हितों से संचालित लोगों का संगठन है, जो अपने साधनों की प्राप्ति के लिये राजनीति को प्रभावित करते हैं। राजनीतिक दल और दबाव समूह मैं अंतर को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-
राजनीतिक दल औपचारिक संगठन होते हैं। जबकि दबाव समूह औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार के संगठन हो सकते हैं।
राजनीतिक दल चुनाव के माध्यम से सत्ता प्राप्त कर अपने सिद्धांतों का क्रियान्वयन करने का प्रयास करते हैं जबकि दबाव समूह प्रत्यक्षतः सरकार में शामिल होने के लिये चुनाव नहीं लड़ती हैं।
एक व्यक्ति एक ही राजनीतिक दल का सदस्य हो सकता है। जबकि एक व्यक्ति एक समय में अनेक दबाव समूहों का सदस्य हो सकता है।
राजनीतिक दलों में विचारधारा का महत्त्व अत्यधिक होता है। किसी राजनीतिक दल में शामिल होने वाले सभी व्यक्ति एक विचारधाराओं पर सहमती होती हैं । जबकि दबाव समूह में विचारधारा का महत्त्व अपेक्षाकृत कम होता है।
राजनीतिक दल सामान्यतः लोकतांत्रिक देशों की विशेषता है किंतु दबाव समूह सभी प्रकार की शासन प्रणाली में पाए जाते हैं।
भारतीय राजनीति में दबाव समूह को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-
सामाजिक पहचान पर आधारित दवाब समूह
ऐसे समूह धर्म, जाति, भाषा अथवा क्षेत्र के आधार पर सामुदायिक हितों से जुड़े होते हैं। इनकी सदस्यता जन्म से निर्धारित होती है।
उदाहरण के लिये बजरंग दल तथा जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन धर्म पर आधारित दबाव समूह हैं।

व्यावसायिक संघ:-
यह सब अपने संयुक्त व्यवसायिक हितों के लिये एकत्रित होते हैं। और सरकार पर अपने हितों के लिये नियम बनाने का दबाव डालते हैं। मज़दूर संघ व्यापार संस्थाएँ इसी प्रकृति के दबाव समूह में शामिल होता है। फिक्की, एन.एस.यू.आई जैसे संगठन व्यवसायिक दबाव समूहों के उदाहरण होते हैं।
संस्थात्मक दबाव समूह:-
यह सरकारी कर्मचारियों तथा अधिकारियों द्वारा निर्मित दबाव समूह होता है। उदाहरण के लिये सरकारी चिकित्सकों का संगठन तथा IAS अधिकारियों का संगठन इसके उदाहरण है।
उद्देश्य समूह :-
इनका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण, मानव अधिकार जैसे सामाजिक विषयों से संबंधित सामाजिक हितों की रक्षा करना है। इसके लिये यह मानव अधिकारों के पक्ष में कार्य करने के लिये सरकार पर दबाव डालते हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन तथा नाज फाउंडेशन जैसे संगठन उद्देश्य समूह के उदाहरण हैं।
प्रदर्शनात्मक समूह:-
यह प्रदर्शन तथा हिंसा के माध्यम से दबाव डालकर अपने हितों की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। पीपुल्स वार ग्रुप जैसे संगठन ऐसे ही संगठन है।
तदर्थ दबाव समूह :-
किसी विशेष कार्य के लिये बनते हैं और कार्य में सफलता के साथ ही समाप्त हो जाते हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं अपनी प्रकृति के आधार पर दबाव समूहों को कई भागों में बाँटा जा सकता है। उद्देश्य समूह जैसे कई संगठन मानव हितों को उठाकर लोकतांत्रिक शासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।

दबाव समूह:-
दबाव समूह का वर्तमान राजनीतिक व्यवस्थाओं में विशेष स्थान होता है। … दबाव समूहों के संदर्भ में यह कहा जा सकता है, कि जब कोई संगठन अपने सदस्यों के हितों की पूर्ति के लिए राजनीतिक सत्ता को प्रभावित करता है। और उनकी पूर्ति के लिए दबाव डालता है तो उस संगठन को ‘दबाव समूह’ कहते हैं।
औपचारिक दबाव समूह भारत मे निम्न प्रकार के है ।
- व्यवसाय समूह – फिक्की , एसोचेम ,एमओ इत्यादी
- व्यापार संघ – AITUC , INTUC , HMS , CITU इत्यादि
- खेतिहर समूह – भारतीय किसान यूनियन , ऑल इंडिया किसान सभा , भारतीय किसान सभा इत्यादि
- छात्र संगठन – ABVP , NSUI , AISA इत्यादि
- पेशेवर समितियां – इंडियन मेडिकल एसोसिएशन , बार काँसिल ऑफ इंडिया इत्यादि
- धार्मिक संगठन – आरएसएस , विहिप , जमात – ए – इस्लामी , शिरोमणि अकाली दल इत्यादि
- जातीय समूह – हरिजन सेवक संघ , कायस्थ समूह , ब्राह्मण सभा , राजपूत समूह इत्यादि
- भाषागत समूह – तमिल संघ , नागरी प्रचारिणी सभा , हिंदी साहित्य सम्मेलन इत्यादि
- आदिवासी संघठन समूह – NSSCN , PLA , JMM , TNU इत्यादि
- विचारधारा समूह – अम्बेडकवादी ,गांधीवादी, पर्यावरणवादी इत्यादि
राजनीतिक दल political parties:-
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राजनीतिक दल या राजनैतिक दल (Political party) लोगों का एक ऐसा संगठित गुट होता है। जिसके सदस्य किसी साँझी विचारधारा में विश्वास रखते हैं। या समान राजनैतिक दृष्टिकोण रखते हैं। यह दल चुनावों में उम्मीदवार उतारते हैं और उन्हें निर्वाचित करवा कर दल के कार्यक्रम लागू करवाने क प्रयास करते हैं। राजनैतिक दलों के सिद्धान्त या लक्ष्य (vision) प्राय: लिखित दस्तावेज़ के रूप में होता है।

विभिन्न देशों में राजनीतिक दलों की अलग-अलग स्थिति व व्यवस्था होती है। कुछ देशों में कोई भी राजनीतिक दल नहीं होते हैं। कहीं एक ही दल सर्वेसर्वा (डॉमिनैन्ट dominate) होता है। कहीं मुख्यतः दो दल होते हैं। किन्तु बहुत से देशों में दो से अधिक दल होते हैं। लोकतान्त्रिक राजनैतिक व्यवस्था में राजनैतिक दलों का स्थान केन्द्रीय अवधारणा के रूप में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। राजनैतिक दल किसी समाज व्यवस्था में शक्ति के वितरण और सत्ता के आकांक्षी व्यक्तियों एवं समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे परस्पर विरोधी हितों के सारणीकरण, अनुशासन और सामंजस्य का प्रमुख साधन रहे हैं। इस तरह से राजनैतिक दल समाज व्यवस्था के लक्ष्यों, सामाजिक गतिशीलता, सामाजिक परिवर्तनों, परिवर्तनों के अवरोधों और सामाजिक आन्दोलनों से भी सम्बन्धित होते हैं। राजनैतिक दलों का अध्ययन समाजशास्त्री और राजनीतिशास्त्री दोनों करते हैं, लेकिन दोनों के दृष्टिकोणों में पर्याप्त अन्तर होता है। समाजशास्त्री राजनैतिक दल को सामाजिक समूह मानते हैं। जबकि राजनीतिज्ञ राजनीतिक दलों को आधुनिक राज्य में सरकार बनाने की एक प्रमुख संस्था के रूप में देखते हैं।
विशेषताएँ:-
राजनीतिक दल की संरचना में कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो इसे अन्य समूह से अलग करती हैं:
राजनीतिक दल ऐसा संगठन है जिसका प्राथमिक उद्देश्य राजनीतिक नेतृत्व की प्राप्ति होता है। इसमें दल का नेता संगठित अल्पतंत्र (कार्यकारिणी) द्वारा शक्ति हथियाने का पूरा-पूरा प्रयत्न करता है।
सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों को लेकर उप संरचनाएं एवं समितियां होती है, जो भौगोलिक सीमाओं, सामाजिक समग्रताओं के आधार पर होती हैं। दल में कई परस्पर विरोधी समूह किसी उद्देश्य तथा राजनीतिक विचारधारा को लेकर साथ में जुड़े हुए रहते हैं।
हर राजनीतिक दल में अल्पतन्त्र होता है। प्रथम अवस्था में शक्ति का केन्द्रीकरण कुछ अनुभवी नेताओं के हाथ में होता है, जो प्रमुख पदाधिकारी होते हैं, जबकि दूसरी अवस्था में दल का संगठन एक विशेष स्तरीकरण व्यवस्था में विभाजित होता है और हर स्तर पर कुछ स्वायत्तता पाई जाती है।

दल में सदस्यता निरन्तर बनी रहती है। एक सदस्य दूसरे सदस्य को दल की गतिविधियों की जानकारी देते रहते हैं। नए सदस्यों के लिए दल में सदस्यता के द्वार हमेशा खुले रहते हैं। यहीं यह एक खुली संरचना होती है। कुछ लोग दल के सदस्य इसलिए होते हैं कि उन्हें समाज में उसके कारण एक विशेष स्थान मिल जाता है।
उपर्युक्त लक्षणों द्वारा राजनीतिक दल को अन्य संगठन से भिन्न करके देख सकते हैं। राजनीतिक दल का गठन समाज व्यवस्था की दो विशेषताओं द्वारा पाया जाता है:
राजनीतिक शक्ति का आधार ‘वोट’ है अर्थात् सरकार का निर्धारण मतदान प्रणाली से किया जाता है।
विभिन्न समूहों में शक्ति के लिए परस्पर प्रतिस्पर्धा होती रहती है। अर्थात् राजनीतिक शक्ति को सत्ता हथियाने के लिए परस्पर होड़ हो रही होती है।
संरचना:-
मौरिस डुवर्जर ने राजनीतिक दल के सामाजिक संगठन का महत्वपूर्ण विश्लेषण प्रस्तुत किया है। इन्होंने दल के संगठन को चार सूत्रीय वर्गीकरण द्वारा समझाने का प्रयास किया है। जोकि निम्नलिखित हैं-
(१) समिति ( कॉकस / Caucus)
(२) शाखा (ब्रांच / Branch)
(३) कोष्ठक (सेल / Cell)
(४) नागरिक सेना (मिलिशिया / Militia)

- कॉकस दल के जाने-पहचाने लोगों का एक लघु समूह कहा जा सकता है, जो न अपने विस्तार और न ही अपनी भर्ती में रूचि रखता है। वास्तव में यह एक बन्द समूह होता है। जिसकी प्रकृति अर्द्ध-स्थायी होती है। केवल चुनाव के समय ही कॉकस अधिक सक्रिय होता है। तथा चुनावों के बीच के समय में यह निष्क्रिय रहता है। इसके सदस्यों की न्यून संख्या इसकी शक्ति का माप नहीं होती है। क्योंकि इसके सदस्यों का व्यक्तिगत प्रभाव, शक्ति एवं क्षमता उनकी संख्या से काफी अधिक होती है। अतः इसके ख्याति प्राप्त सदस्यों की संख्या की अपेक्षा उनका प्रभाव एवं क्षमता अधिक महत्वपूर्ण होता है। डुवर्जर ने फ्रांसीसी रैडिकल पार्टी और 1918 से पूर्व की ब्रिटिश लेबर पार्टी को इसका उदाहरण बताया है। मताधिकार के विस्तार के साथ ‘कॉकस’ प्रकार के दल का ह्रास हो जाता है।
- शाखा या ब्रांच दल परिश्मी यूरोप में मताधिकार के विस्तार का परिणाम है। इसका सम्बन्ध जनता से होता है, तथा कॉकस की तरह यह एक बन्द समूह नहीं होते है। क्योंकि इनमें गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्व दिया जाता है। अतः यह अधिक से अधिक सदस्यों की भर्ती में सदैव रूचि रखते है। इनकी राजनीतिक संक्रियताएं केवल चुनाव तक ही सीमित नहीं होती अपितु निरन्तर चलती रहती हैं। ब्रांच कॉकस की अपेक्षा बड़ा समूह है, इसलिए इसका संगठन अधिक होता है। तथा इसमें कॉकस की अपेक्षा अधिक एकीकरण पाया जाता है। इसमें संस्तरण तथा कर्त्तव्यों का विभाजन सुस्पष्ट होता है। तथा स्थानीयता एवं संकीर्णता का भी आभास पाया जाता है। इसमें अधिकतर केन्द्रीकृत दल संरचना होती है और प्रारम्भिक इकाईयां निर्वाचन क्षेत्रों की ही भांति भौगोलिक आधार पर संगठित होती हैं। यूरोप के समाजवादी दलों में ब्रांच के सभी लक्षण पाये जाते हैं। कैथोलिक और अनुदारवादी दलों ने न्यूनाधिक सफलता पूर्वक इसका अनुसरण किया है। जर्मन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी संगठनात्मक आधार पर इस प्रकार के दल का एक अच्छा उदाहरण है।
- डुवर्जर द्वारा बताया गया दल संगठन का तीसरा प्रकार कोष्ठक या सेल है जो क्रान्ति-कारी साम्यवादी दलों की खोज है। यह ब्रांच की अपेक्षा काफी छोटा समूह होता है। तथा इसका आधार भौगोलिक न होकर व्यावसायिक होता है। व्यावसायिक आधार के कारण सेल किसी स्थान पर कार्य करने वाले सभी सदस्यों को एक सूत्र में बाँधना होता है। कारखाना, वर्कशॉप, दफ्तर एवं प्रशासन आदि इसके अंग हो सकते हैं। चूंकि सेल उन सदस्यों का समूह होता हैं, जो एक ही व्यवसाय में लगे हुए हैं तथा जो प्रतिदिन कार्य के समय मिलते हैं, इसलिए इसके सदस्यों में दलीय एकात्मकता अधिक होती है। वैयक्तिक सेल का अन्य सेलों से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है। सेल का संगठन अनिवार्य रूप से षड्यन्त्रकारी होता है और इसकी निर्माण शैली इस बात का पक्का इन्तजाम करती है, कि एक सेल के नष्ट होने पर सम्पूर्ण दल-संरचना संकट में पड़े क्योंकि एक ही स्तर पर पृथक-पृथक इकाइयों के बीच कोई संपर्क नहीं रहते। यह गुप्त सक्रियता के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम होता है। इसकी गुप्त सक्रियताएं मुख्यतः राजनैतिक होती हैं तथा सदस्यों के लिए अधिक महत्वपूर्ण होती हैं। मतों को जीतने, प्रतिनिधियों के समूहन तथा मतदाताओं के प्रतिनिधियों से संपर्क रखने की अपेक्षा सेल दल संघर्ष, प्रचार, अनुशासन तथा अगर अनिवार्य तो गुप्त सक्रियता का एक माध्यम है। इनमें चुनाव जीतने की दूसरे दर्जे के महत्व की बात मानने की प्रवृत्ति होती है। प्रजा तांत्रिक केन्द्रवाद की धारणा दल के सभी पहलुओं पर केन्द्रीकृत नियंत्रण स्थापित कर देती है। जिसका उदाहरण 1917 से पहले लेनिनवादी दल था। डुवर्जर फ्रांसीसी साम्यवादी दल के सदस्यों में सेल संरचना के प्रति शत्रु भाव होने का भी संकेत करते हैं।
- डुवर्जर का दल-संगठन का चौथा प्रकार मिलिशिया प्रकार का संगठन है। यह एक प्रकार की निजी सेना है जिसके सदस्यों को सैनिकों की तरह भर्ती किया जाता है। तथा जिन्हें सैनिक संगठन की भाँति अनुशासन में रहना और प्रशिक्षण लेना पड़ता है। इसकी संरचना भी सैनिक संरचना के समान ही होती है अर्थात् इसके सदस्य सेना की तरह टुकड़ियों, कम्पनियों और बटालियनों से संगठित होते हैं। मिलिशिया सेना के अधिक्रमिक लक्षण ग्रहण कर लेती है। मिलिशिया की चुनाव तथा संसदीय गतिविधियों में कोई रूचि नहीं होती है क्योंकि यह प्रजातन्त्रीय व्यवस्था को मजबूत करने की अपेक्षा इसे उखाड़ फेंकने का एक मौलिक साधन होता है। जिस प्रकार सेल एक साम्यवादी खोज है, ठीक उसी प्रकार मिलिशिया क्रान्तिकारियों की खोज है। हिटलर के आक्रामी सैनिक और मुसोलिनी की क्रान्ति-कारी मिलिशिया इस प्रकार की संरचना का उदाहरण हैं। इनकी ओर डुवर्जर यह संकेत करते हैं कि केवल मिलिशिया के आधार पर कभी भी कोई राजनीतिक दल नहीं बना है।

राजनीतिक दलों का सामाजिक संगठन:-
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जिस संगठित रूप में राजनीतिक दल आज हमारे सामने विद्यमान हैं, उस रूप में उनका इतिहास अधिक प्राचीन नहीं है। उनकी उत्पत्ति उन्नीसवीं 19वीं शताब्दी में हुई है। परन्तु इससे पूर्व भी मनुष्यों द्वारा निर्मित कुछ संगठन, शासन से प्रत्यक्ष न होने पर भी जनमत के निर्माण तथा मांगों को शासकों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। आधुनिक समाज में राजनीतिक दलों का गठन विविध आधारों पर किया गया है।
राजनीतिक दलों के निर्माण में मनो-वैज्ञानिक आधार अर्थात् मानव स्वभाव में निहित प्रवृत्तियां प्रमुख हैं। मतैक्य एवं संगठन मानव स्वभाव की दो प्रमुख प्रवृत्तियां हैं।
समान स्वभाव एवं मूल्यों वाले व्यक्ति संगठित होकर राजनीतिक दल का निर्माण करते हैं। तथा फिर उन मूल्यों को बनाये रखने का प्रयास करते हैं। ब्रिटिश कंज़रवेटिव दल का गठन रूढ़िवादी व्यवस्था को बनाये रखने के समर्थक व्यक्तियों द्वारा किया गया था। कुछ व्यक्ति रूढ़िवादी व्यवस्था में परिवर्तन लाना चाहते थे तथा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उदारवादी दलों का निर्माण करते थे, जबकि कुछ लोग विगत युग की पुनरावृत्ति की आकांक्षा के आधार पर प्रतिक्रियावादी दलों का निर्माण करते थे।
मानव इतिहास में धर्म की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। तथा आज भी अनेक देशों में धार्मिक नेता एवं पदाधिकारी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राजनीति में हस्तक्षेप करते हैं। राजनैतिक दलों के सामाजिक संगठन में धर्म प्रमुख भूमिका निभाते रहे है। उदाहरण भारत में मुस्लिम लीग, अकाली दल, जनसंघ, हिन्दू महासभा जैसे दलों के सामाजिक संगठन में धर्म केन्द्रीय भूमिका निभाते रहे है।
राजनीतिक दलों के निर्माण में क्षेत्रीयता अथवा प्रादेशिकता भी एक प्रमुख आधार रहा है। प्रादेशिक हितों की रक्षा के लिए तथा प्रादेशिक समस्याओं के शीघ्र निपटारे के लिए कुछ प्रादेशिक दलों का निर्माण होता है। भारत में डी0एम0के0, तेलंगाना प्रजा समिति, असम गण परिषद, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा आदि।

राजनीतिक दल आर्थिक या वर्गीय आधारों पर भी संगठित होते हैं। मार्क्स के अनुसार राजनीतिक दलों तथा वर्गों का परस्पर सम्बन्ध राज्य व राजनीति के सिद्धान्त का केन्द्रीय बिन्दु होता है। अनेक अन्वेषणों से हमें यह पता चलता है, कि वर्गीय हित, दलीय सम्बद्धताओं तथा निर्वाचनों की पसन्द के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है। तथा अधिकांश समाज में राजनीतिक दल निर्वाचक वर्गीय हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ब्रिटेन में श्रमिक दल, भारत में मजदूर दल, किसान यूनियन आदि हैं।
जाति, भारतीय समाज की आधारभूत विशेषता है। भारत में राजनैतिक दलों के सामाजिक संगठन को जाति हमेशा से प्रभावित करती रही है। स्वतन्त्रता से पूर्व जाति मुक्ति का आन्दोलन राजनैतिक दलों के गठन को प्रभावित करता रहा है। दलित वर्ग कल्याण लीग, बहिष्कृत हितकारिणी सभा, जस्टिस पार्टी इसके प्रमुख उदाहरण रहे हैं।
स्वतन्त्रता के पश्चात् निर्वाचन प्रतियोगिता में ‘जाति’ राजनैतिक गतिशीलता लाने वाला प्रमुख सामाजिक आधार बन गया। ‘जातीय संलयन’ और ‘जातीय विखण्डन’ राजनैतिक प्रक्रियाओं में केन्द्रीय भूमिका निभाने लगी। सभी राजनैतिक दल जातीय गणना के आधार पर उम्मीदवारों को तय करने लगे। वर्तमान समय में जातीय आधार पर राजनैतिक दलों के गठन का प्रमुख आधार रहा है। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
दलीय संगठन में विचारधारा भी प्रमुख भूमिका निभाती है। समाजवादी, लेनिनवादी और माओवादी विचारधाराओं पर आधारित अनेक दलों का निर्माण भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषता रही है।