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1.भारत के राष्ट्रपति की वास्तविक स्थिति क्या है ?क्या वह भारत का वास्तविक प्रधान होता है ?2. राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां क्या है? इसका प्रयोग अभी तक कितना बार हुआ है?42 वें संविधान संशोधन 1976 एवं 44 वें संविधान संशोधन 1978 के द्वारा यह बताइए कि राष्ट्रपति की शक्ति कितनी सीमित की गई है?
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Ans:-भारत के संविधान में आपातकाल की व्यवस्था जर्मनी के संविधान से ली गई है। जर्मनी में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद आपातकाल की स्थिति को लागू किया गया था। भारत का संविधान बनाते समय भी इस स्थिति को ले लिया गया 42 में एवं 44 में संविधान संशोधन के द्वारा आपातकाल को और मजबूत किया गया संविधान के भाग अट्ठारह में अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 के बीच आपातकाल की व्यवस्था को बताया गया है। जिसमें पहले देश का युद्ध और बाहरी आक्रमण ।दूसरा राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता। तीसरा भारत में वित्तीय स्थिति समाप्त होना। अनुच्छेद 352 के द्वारा राष्ट्रपति को अगर ऐसा लगता है कि भारत की स्थिति गंभीर हो गई है या तो बाहरी आक्रमण से भारत को दिक्कत है या फिर भारत के किसी भी प्रांत में विद्रोह होने वाला है शस्त्र के साथ तो ऐसी स्थिति में वे चाहें तो 352 का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं। 42वां संविधान संशोधन 1976 ईस्वी में भारत के प्रांतों में राष्ट्रपति शासन आंतरिक विद्रोह की गई थी, जिसे 44 वा संविधान संशोधन 1978 में सशस्त्र विद्रोह के रूप में परिवर्तित कर दिया गया ।
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वही पहले सिर्फ मौखिक आदेश पर राष्ट्रपति शासन लगाने की बात की जाती थी लेकिन बाद में इसे लिखित कर दिया गया यहां पर यह जरूरी है कि अगर राष्ट्रपति अनुच्छेद 352 के द्वारा देश में राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर देते तो 1 महीने के अंदर लोकसभा एवं राज्यसभा से अलग-अलग दो तिहाई बहुमत से यह विधेयक पारित होना चाहिए, इसे अनुमोदन कहते हैं अगर एक बार राष्ट्रपति शासन लग जाता है तो वह 6 महीने तक ऐसी स्थिति में रह सकता है, 6 महीने के लिए इस अवधि को बढ़ाया जा सकता है लेकिन प्रत्येक बार लोकसभा एवं राज्यसभा दोनों से अलग-अलग दो तिहाई बहुमत से अनुमोदन होना चाहिए। अगर जब इमरजेंसी लगाई गई यह कब तक रहेगी इसके लिए संविधान में अधिकतम सीमा का कोई निर्धारण नहीं है। अगर यह स्थिति उस समय होती है जब लोकसभा विघटित हो चुका है तो फिर बाद में राज्यसभा ने संकल्प का अनुमोदन कर दिया है तो आपातकाल के प्रथम बैठक जो लोकसभा की होगी आपातकाल के बाद उस तिथि से 60 दिन के अंदर इसे पारित कर लिया जाएगा नहीं तो 90 दिन की अवधि के बाद यह स्वत ही समाप्त हो जाएगा ।44 वा संविधान संशोधन से पहले यह संकल्प साधारण बहुमत का था जिसे अब दो तिहाई बहुमत का कर दिया गया है ,अभी तक भारत में 3 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है 19 अक्टूबर 1962 को चीन से आक्रमण के समय 10 जनवरी 1968 को इसे वापस ले लिया गया। दूसरी बार 1971 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया था और तीसरी बार 26 जून 1975 को भारत में आंतरिक अशांति के आधार पर किया गया था।

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जिसे 21 मार्च 1977 को वापस लिया गया संविधान संशोधन में यह बताया गया है राष्ट्रपति जब राष्ट्रपति शासन लगाएंगे तो इसे समाप्त करने के लिए लोकसभा का साधारण बहुमत काफी होगा या फिर लोकसभा के 1/ 10 सदस्य द्वारा लिखित नोटिस देकर सदन का सत्र चलते समय समाप्त किया जा सकता है। लेकिन यहां पर यह जानना जरूरी है की आपातकालीन उद्घोषणा का प्रभाव भी अलग अलग होता है ।इसमें कार्यपालिका को निर्देश देने की सारी शक्ति संघीय कार्यपालिका के पास ही आ जाती है। आपातकाल के समय में राज्य के किसी भी विषय पर केंद्रीय कानून बना सकता है इसी प्रकार से आपातकाल के समय भारतीय संसद के अधिकार होता है कि वह राज्य में वर्णित किसी भी विषय कानून बना दे जो जो आपातकाल की व्यवस्था समाप्त होने के 6 महीने के बाद स्वत ही नष्ट हो जाएगा ।इसी प्रकार से लोकसभा का कार्यकाल भी बढ़ाया जा सकता अनुच्छेद 353 के अनुसार संसद जब कानून बना देती है तो संघीय कार्यपालिका को राज्य के क्षेत्र से बाहर शक्ति व शुल्क लगाने के बारे में भी कानून बनाने का अधिकार होता है। इसी प्रकार से मौलिक अधिकार को उस समय रोका जाता है, लेकिन कुछ अधिकार ऐसे हैं जो आपातकाल के समय में भी जारी रहते हैं समय-समय पर संविधान संशोधन के द्वारा ऐसे अधिकारों में परिवर्तन किया जाता है अनुच्छेद 14 ,अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद21 है ,कई अलग-अलग स्थितियों में रोक दिए जाते हैं ।
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वहीं अगर वित्तीय आपातकाल की बात की जाए तो भारत में अभी तक इसे लागू नहीं किया गया है यह अनुच्छेद 360 के द्वारा होता है इसे लागू करने के बाद सरकारी कर्मचारियों का वेतन रोक दिया जाता है। केंद्र सरकार विभिन्न प्रकार के निर्णय वित्तीय हालत को सुधारने के लिए ले सकती है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण होता है किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन का लगा देना जो अनुच्छेद 356 के द्वारा किसी राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट अगर उस राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है, प्रशासन नाम की चीज नहीं है, कानून व्यवस्था नष्ट हो गया है तो राज्यपाल रिपोर्ट लिख कर राष्ट्रपति को देते हैं इसके बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर देती है लेकिन यहां पर यह समझना जरूरी होगा कि अनुच्छेद 355 में यह बताया गया है कि केंद्र सरकार को पहले राज्य को अपना दोस्त बनाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए


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अगर राज्य में कभी खतरा हो जाए किसी दूसरे देश का आक्रमण हो जाए उसकी आर्थिक स्थिति समाप्त हो जाए तो केंद्र को मित्रता पूर्ण संबंध बनाकर राज्य को बचाने की कोशिश होनी चाहिए ,ना कि राज्य के प्रति दुश्मनी भावना से काम करना चाहिए, अगर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता है तो इसे प्रत्येक 6 महीने के लिए बढ़ाते हुए 3 वर्ष की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए निर्वाचन आयोग का एक सर्टिफिकेट की जरूरत होती है, अगर 42 वें संविधान संशोधन 1976 और 44 वा संविधान संशोधन 1978 को देखा जाए तो समय-समय पर राष्ट्रपति के अधिकार को परिवर्तित किया गया है, 44 वें संविधान संशोधन में राष्ट्रपति को यह शक्ति दी गई कि वे राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने वाले मुद्दे को पुनः मंत्रिमंडल को पुनर्विचार के लिए भेज सकते हैं साथ ही साथ 30 दिन के अंदर संसद के दोनों सदन से इसका अनुमोदन भी आवश्यक है ।संसद को ही प्रस्ताव पारित करके आपातकाल समाप्त करने का पूरा अधिकार है
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