Q. राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों के क्या कार्यकलाप थे?
- असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद 1920 में पुनः क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत हुई जिसमें सचिन सान्याल ,जोगेश चटर्जी तथा अन्य ने मिलकर ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ नामक एक संगठन का स्थापना किया।
- जिसका उद्देश्य था ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए एक सशस्त्र विद्रोह का संगठन करना ।
- 1925 ईस्वी में क्रांतिकारियों के एक दल में हरदोई से लखनऊ जा रहे रेल को काकोरी नामक स्थान पर रोका और एक बक्से में बंद सरकारी खजाने को लूट लिया, क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए पैसा जुटाने के उद्देश्य से यह लूट की गई थी।
- इस घटना के बाद कई क्रांतिकारियों को पकड़ा गया और काकोरी षड्यंत्र केस के अंतर्गत उन पर मुकदमा चलाया गया। उनमें से प्रमुख राम प्रसाद बिस्मिल ,अशफाक उल्ला खां, रोशन सिंह राजेंद्र लहरी थे जिन्हें मृत्युदंड सुना दी गई। चंद्रशेखर आजाद ने दूसरे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर 1928 ईस्वी में ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ की स्थापना में योगदान किया। इस संगठन के प्रमुख नेता भगत सिंह थे। 1928 ई० में पुलिस अफसर सौंडर्स की हत्या कर दी गई एवं पुलिस द्वारा पीटे जाने के कारण लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।
- 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय विधानसभा में नाटककिय घटना घटित हुई जिसमें भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय विधानसभा में बम फेंके जिसके बाद कई अन्य मजदूरों की भी गिरफ्तारी हुई ।
- भगत सिंह और दत्त ने भागने की कोशिश नहीं थी वे वहीं पर खड़े रहे और ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा लगाते रहे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया । उनके साथ बुरा सलूक किया गया जिसके विरोध में भूख हड़ताल किए गए भूख हड़ताल के 64वें दिन क्रांतिकारी की मृत्यु हो गई जिससे सारे देश को सदमा पहुंचा भगत सिंह के साहस का सारे देश में विशेष गौरव हुआ एवं 23 मार्च 1931 को तीन क्रांतिकारी भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई।
- चंद्रशेखर आजाद गुणा भाग निकलने में सफल हुआ मगर इलाहाबाद में पुलिस के साथ हुई एक निरंत में उनकी मृत्यु हो गई इसकी सबसे महत्वपूर्ण घटना 1930 ईस्वी में बंगाल में घटित हुई।
- 18 अप्रैल 1930 ईस्वी को इंडियन रिपब्लिकन आर्मी के क्रांतिकारियों ने सूर्य सेन के नेतृत्व में गांव के पुलिस शस्त्रागार पर हमला कर दिया उसके तुरंत बाद दूसरे स्थानों पर भी क्रांतिकारी हिंसा की घटनाएं घटी।
- समाजवादी क्रांतिकारी लाने के लिए किसानों और मजदूरों को संगठित करने पर जोर दिया गया देश के आजादी के जंग संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

Q. साइमन आयोग क्या था ?भारत की जनता ने क्यों इसका विरोध किया?
- ब्रिटिश सरकार ने 1919 ईस्वी में इंडिया एक्ट के कामकाज की जांच करने के लिए एक कमीशन आयोग की नियुक्ति की उस कमीशन को साइमन कमीशन कहा जाता है इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे।
- उस कमीशन की नियुक्ति में भारतीय जनता को बड़ा धक्का लगा क्योंकि इस कमीशन में एक भी भारतीय नहीं थे सभी अंग्रेज इसके सदस्य थे।
- सरकार ने स्वराज की मांग स्वीकार करने के बारे में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी, कमीशन की नियुक्ति से सारे देश में विरोध की लहर फैल गई।
- 1927 ई० में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मद्रास में हुआ अधिवेशन में कमीशन का बहिष्कार करने का निर्णय लिया इसके साथ ही मुस्लिम लीग ने भी कमीशन का बहिष्कार करने का फैसला किया।
- 3 फरवरी 1928 को कमीशन भारत पहुंचा उस दिन पूरे देश में हड़ताल हुई ,दिन दोपहर को कमीशन की निंदा करने और बहिष्कार करने की घोषणा करने के लिए पूरे देश में कई सभाएं हुई मद्रास में प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई गई और अन्य स्थानों पर भी लाठीचार्ज किए गए यह कमीशन जहां भी गया वहां जबरदस्त स्थित खिलाफ प्रदर्शन और हड़ताल किए गए।
- विधानसभा में बहुमत से फैसला किया कि वह कमीशन को कोई सहयोग नहीं दिया जाएगा सारे देश में “साइमन वापस जाओ” का नारा गूंज उठा उस दौर में पंजाब केसरी लाला लाजपत राय को भी बेरहमी से पीटा गया और उनकी मृत्यु हो गई लखनऊ में अन्य प्रदर्शनकारियों के साथ जवाहरलाल नेहरू गोविंद बल्लभ पंत को भी लाठीयां खानी पड़ी।
- नमक के सरकारी डिपो तक अहिंसात्मक सत्याग्रहियों ने यात्रा का नेतृत्व किया। जिसमें पुलिस ने लाठीचार्ज की जिससे 300 से भी ज्यादा सत्याग्रही घायल हुए ।
- के बाद देशभर में प्रदर्शन व हड़ताल हुए ,विदेशी वस्तुओं का भी बहिष्कार किया गया बाद में लोगों ने कर देने से भी इनकार कर दिया और इस आंदोलन में बड़ी तादाद में लोगों ने और महिलाओं ने भी हिस्सा लिया।
- आंदोलन शुरू होने के 1 साल के भीतर लगभग 90,000 लोगों को जेल में बंद कर दिया गया। यह आंदोलन देश के सभी हिस्सों में फैल गया था ।
- पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में इस आंदोलन का नेतृत्व खान अब्दुल गफ्फार खाँ ने किया वह “सरहदी गांधी” के नाम से मशहूर भी हुए।
- इस आंदोलन के दौरान उस प्रदेश में एक महत्वपूर्ण घटना हुई जिसमें गढ़वाली सिपाहियों की दो पलटनो को पेशावर के प्रदर्शनकारियों ने गोलियां चलाने का हुक्म दिया कुछ समय बाद पेशावर शहर पर ब्रिटिश सत्ता नहीं रही।
- सोलापुर में गांधीजी की गिरफ्तारी के खिलाफ आंदोलन हुए और लोगों ने शहर में अपना शासन स्थापित किया।

- साइमन कमीशन द्वारा सुझाए गए सुधारों पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने नवंबर 1930 में लंदन में पहला गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया।
- इसमें देश की आजादी से लड़ रहे कांग्रेस ने उस सम्मेलन का बहिष्कार किया परंतु भारतीय राजा, मुस्लिम लीग ,हिंदू महासभा तथा कुछ अन्य संगठन के प्रतिनिधि उसमें शामिल हुए। ब्रिटिश सरकार को यह बात पता थी कि कांग्रेस की सहमति के बिना भी भारत में संवैधात्मक फेरबदल के बारे में फैसले लिए जाते हैं तो फिर भारत की जनता को स्वीकार नहीं होंगे।
- 1931 ई० में वायसराय इरविन के आरंभ में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने के लिए कांग्रेस को राजी करने के प्रयास किए गए इसमें गांधी और इरविन के बीच एक समझौता हुआ। सरकार ने उन सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करना स्वीकार किया जिनके खिलाफ हिंसा के आरोप नहीं थे कांग्रेस ने भी सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस लेने लेना स्वीकार कर लिया परंतु अनेक राष्ट्रीय नेता इस समझौते से कुछ नहीं थे ।
- सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में मार्च 1931 में कराची में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में समझौते को मान लेने और दूसरे गोलमेज सम्मेलन में सम्मिलित होने का निर्णय लिया गया इस सम्मेलन के लिए गांधी जी को कांग्रेस का प्रतिनिधि चुना गया।
- मद्रास में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता डॉ एम ए अंसारी ने किया जिसमें एक प्रस्ताव पास किया गया जिसमें यह घोषणा की गई कि भारतीय जनता का लक्ष्य पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना है।
- इस बीच पूर्ण स्वराज की मांग को तेज करने के लिए ‘इंडियन इंडिपेंडेंस लीग’ नामक एक संगठन की स्थापना की गई जिसके प्रमुख नेतृत्वकर्ता जवाहरलाल नेहरू ,सत्यमूर्ति ,सुभाष चंद्र बोस ,शरद चंद्र बोस थे । दिसंबर 1928 ईस्वी में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ जिसमें सभी नेताओं ने पूर्ण स्वाधीनता की मांग करने के लिए कांग्रेस पर जोर डाला परंतु कांग्रेस ने स्वतंत्र उपनिवेश के स्वरूप की मांग का प्रस्ताव पास किया इसका अर्थ था पूर्ण स्वाधीनता से कम की मांग करना।
- 1929 ईस्वी में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग ने पूरे साल पूर्ण स्वाधीनता के लिए जनमत बनाने में जुटी रही और कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन होने तक देश भर की जनता का रूप में बदलाव आ गया था।