कुछ महत्वपूर्ण बिंदु :-
- यूरोप के विभिन्न देशों ने भारत में अपना कंपनी का व्यापारी केंद्र स्थापित किया एवं जिसमें पुर्तगाल ,हॉलैंड, फ्रांस, इंग्लैंड, डेनमार्क आदि शामिल है ।
- इन कंपनियों की प्रमुख केंद्र मुख्यतः समुद्री तटवर्ती क्षेत्र थे।
- इस व्यापारिक केंद्रों को “फैक्ट्री ” कहा जाता था जिसका अर्थ था वह स्थान जहां “फैक्टर्स ” जहां कंपनी के अफसर काम करते थे ।
- कुछ फैक्ट्रियों में किलाबंदी की गई थी, किलाबंदी का उद्देश्य था विरोधी के हमलो से फैक्ट्रियों को की रक्षा करना।
- यह कंपनियां भारत में मसाले, हथकरघा से बने सूती कपड़े, नील, शोरा इत्यादि का खरीदारी करते थे ।
- इसमें नील का इस्तेमाल कपड़ा रंगने के लिए तथा छोरा का इस्तेमाल बारूद बनाने के लिए किया जाता था।
- यूरोप में इन चीजों का अभाव था इसलिए यूरोप वाशी इनमें से कुछ चीजों का उपयोग शानो शौकत के लिए भी करते थे ।
- व्यापारी कंपनियां भारत में इन चीजों को सस्ती दर पर खरीदकर यूरोप तथा अमेरिका में ऊंची कीमत पर बेचकर ज्यादा मुनाफा कमाती थी। यह सोना चांदी देकर भारत से इन चीजों की खरीदारी करते थे।

Q. 18 वीं शताब्दी के दौरान भारत में अंग्रेजों और फ्रांसीसीयों के बीच झगड़े के क्या कारण थे?
- Ans:-18 वीं सदी के आरंभ में अंग्रेज और फ्रांसीसी ने पुर्तगाली और स्पेनवासियों को उनके महत्वपूर्ण स्थलों से हटा दिया था , जो उन्होंने एशिया और यूरोप के बीच में व्यापार करने से पहले स्थापित किया था ।
- इंदौर की कंपनियां भारत के बीच व्यापार का प्रभुत्व स्थापित हो गया था ।
- फ्रांसीसी और अंग्रेज एक-दूसरे के विरोधी होने के कारण उनके बीच झगड़े होते रहते थे।
- ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए हर कंपनी कम से कम कीमत पर भारतीय माल खरीदने का प्रयास करती थी। एक दूसरे का प्रभाव खत्म करने के प्रयास में लगी रहती थी।
- जिसके कारण कंपनियों के बीच लड़ाइयां हुई एवं कंपनियों द्वारा भारत के राजनीतिक मामलों में भी हस्तक्षेप शुरू किया गया।
- व्यापार पर अपना नियंत्रण करने और गैर प्रतिद्वंद्वियों को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य कंपनी राजनीतिक सत्ता स्थापित करने की भी योजनाएं बनाने लगी।
Q. ब्रिटिश शक्ति का उदय कब और कैसे हुआ?
- ब्रिटिश शक्ति के उदय के समय कर्नाटक का युद्ध हुआ जिसमें अंग्रेज और फ्रांसीसी के बीच पहला युद्ध कर्नाटक में शुरू हुआ एवं उस समय कर्नाटक मुगल साम्राज्य का एक सुबा था, मगर वह लगभग स्वतंत्र हो चुका था।
- उस समय कर्नाटक की राजधानी मद्रास और पांडिचेरी के बीच स्थित आर्काट शहर में थी।
- सन 1740-48 ई० के दौरान यूरोप में एक युद्ध चला जिसे “ऑस्ट्रियाई उत्तराधिकार का युद्ध” कहा जाता है ।
- उस युद्ध में फ्रांसीसी और अंग्रेज पर दोनों के विरोधी थे उस समय डुप्ले पांडिचेरी में फ्रांसीसी कंपनी का मुख्य अधिकारी था।
- इंग्लैंड और फ्रांस के बीच यूरोप में युद्ध शुरू हुआ तो सांसदों ने फोर्ट सेंट जॉर्ज को लूटा।
- जब कर्नाटक के नवाब ने देखा कि इनकी शक्ति बढ़ती जा रही थी तो उसने उनके खिलाफ एक सेना भेजी जिसमें कर्नाटक सेना पराजित हुए। इस लड़ाई के परिणाम यह निकला कि एक छोटी सेना भी यदि अनुशासन में हो एवं नियमित रूप से वेतन दिया जाए तो वह बड़ी सेना को भी हरा सकती है।
- भारतीय शासकों को काफी बड़ी सेना को भी हरा सकती है ,भारतीय सैनिक अनुशासन हीन थे उन्हें नियमित रूप से वेतन नहीं दिया जाता था और उनके लड़ाई के अच्छे साधन भी उपलब्ध नहीं थे उस समय कंपनी में राबर्ट क्लाइव क्लर्क था उसने इस लड़ाई के महत्व को समझते हुए आगे चलकर अपनी कंपनी के हितों के लिए अपने अनुभवों का उपयोग किया।
- सन 1748 में यूरोप शांति समझौता हुआ जिसमें फ्रांसीसी ने अंग्रेज को मद्रास वापस दे दिया ।
- इसके बाद फ्रांसीसी के विरुद्ध लड़ाई में कर्नाटक का नवाब मारा गया और उसी दौरान निजाम की थी मृत्यु हो गई।
- एवं फ्रांसीसीयो ने मुजफ्फर जंग को नवाब बना दिया परंतु दोनों कंपनियों ने अलग-अलग उम्मीदवार को समर्थन दिया जिसके बाद चाँद साहब को कर्नाटक का नवाब बनाया जबकि अंग्रेज मोहम्मद अली को कर्नाटक का नवाब बनाना चाहते थे । इसलिए उन्होंने इस काम के लिए क्लाइव को 1751 में एक छोटी सेना आर्काट भेजा। जिसके बाद फ्रांसीसी को के साथ जो अंग्रेजों की लड़ाई हुई उसमें फ्रांसिस्को की हार हुई ।
- डुप्ले को फ्रांस वापस बुला लिया गया और दोनों कंपनियों के बीच शांति समझौता हुआ तथा मोहम्मद अली को कर्नाटक का नवाब बनाया गया।
- इस युद्ध से अंग्रेजों ने फ्रांसीसीयो के कंपनी पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया ।

- फ्रांसीसीयों के हार होने के बावजूद उन्होंने हैदराबाद में अपने प्रभाव को बरकरार रखा ।
- उनकी फौज की खर्च के लिए निजाम को राजस्व वसूली का अधिकार दिया।
- निजाम की रक्षा के नाम पर उन्होंने अपने सेना की सहायता से उस पर अपना नियंत्रण भी स्थापित कर लिया ।
- इसके बाद भारतीय राज्यों में फौज का खर्च लेकर उसी फौज में राज्यों के शासकों को नियंत्रण में रखने के लिए एक नया तरीका सामने आया। जिसके बाद अंग्रेजों ने जल्द ही यह तरीका बंगाल में अपनाया तथा इसी बीच बंगाल एक संघर्ष का क्षेत्र बन गया।
- अंग्रेज तथा फ्रांसीसी पास से संघर्ष का अंतिम दौड़ 1756 ईस्वी तक चला।
- जब यूरोप में 7 वर्षीय युद्ध तब चला जब यूरोप में 7 वर्षीय युद्ध शुरू हुआ।
- कर्नाटक में पार्टी की हार हैदराबाद में फ्रांसीसी का स्थान अंग्रेजों ने ले लिया एवं निजाम ने उन्हें उत्तर की सरकारी 1763 में यूरोप में युद्ध समाप्त हुआ ।
- फ्रांसीसी उपनिवेश वापस दे दिए गए इसी बीच अंग्रेजों ने बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था।
Q. बंगाल पर अंग्रेजों ने कैसे कब्जा किया?
अथवा
अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाब के बीच झगड़ों में जगत सेठ परिवार की क्या भूमिका थी?
- अलवर्दी खाँ 1740 में बंगाल का नवाब बना था उसने अधिकारियों से प्राप्त बंगाल में कुशल प्रशासन कायम किया।
- अलवर्दी खाँ ने यूरोप के सौदागरों को हमेशा अपने नियंत्रण में रखा जिसके बाद उसका तरुण नाती सिराजुद्दौला नवाब बना ।
- सिराजुद्दौला के नवाब बनते ही परिवार में झगड़े एवं कलह शुरू हो गए एवं इन साजिशों ने अंग्रेज कंपनी को बंगाल की राजनीति में हस्तक्षेप करने का मौका दे दिया ।
- जिसके बाद कोलकाता की किलाबंदी का विस्तार शुरू हुआ एवं नवाब के ढाका के खजाने में रकम का गबन किया और गबन की जो वह जो रकम थी वह अंग्रेजों के पास थी ।
- नवाब ने अंग्रेजों से गबन की रकम लौटाने को कहा तो अंग्रेजों ने नवाब की मांग को ठुकरा दिया जिसके बाद उसने अनुभव किया कि अंग्रेज कंपनी उसकी सत्ता के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन गई है।
- उसके इस खतरे को खत्म करने का फैसला लिया और 1756 में सिराजुद्दौला के सैनिकों ने कलकत्ता पर कब्जा कर लिया।
- कोलकाता की हार की खबर मद्रास पहुँची व क्लाइव ने नौसैनिक बेड़े के साथ कलकत्ता पर दुबारा अंग्रेजों का कब्जा हो गया ।

- उन्होंने नवाब के सेनापति मीर जाफर को समर्थन देना शुरू किया एवं अंग्रेजो और सिराजुद्दोला के बीच प्लासी में 23 जून 1757 को युद्ध हुआ तथा अंग्रेज के साथ षड्यंत्र में मिर्जापुर तथा उनके अन्य सहयोगियों ने भाग नहीं लिया।
- जगत सेठ ने कंपनी अंग्रेज कंपनी के साथ व्यवसायिक संबंध थे और बंगाल के वित्त व्यवस्था पर भी उसका काफी नियंत्रण था। जफर जगत सेठ ने भी मीर जाफर का समर्थन करने का निर्णय लिया और नवाब को पकड़ लिया और उसे मार दिया गया ।
- मीर जाफ़र को नवाब बनाया गया एवं क्लाइव और कंपनी के अन्य अफसरों ने भी उसका समर्थन किया एवं लड़ाई के साथ भारत में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना की शुरुआत हो गई। प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल पर अंग्रेजों की सत्ता कायम रखी और नवाब उनकी कठपुतली बनकर रह गया ।
- इसके बाद कंपनी के अफसर और उनकी किसानों व दस्ताकारो को अपना माल बाजार में सस्ता के लिए मजबूर करते थे और स्वयं भारी मुनाफा कमाते थे।
- यहां तक कि सैनिकों को वेतन देने के लिए भी नवाब के पास पर्याप्त धन नहीं बचा था साथ ही साथ नवाब अफसर भारी धन की मांग करते थे। जिसमें वह पूरा करने में असमर्थ था क्योंकि उसके पास सैनिकों को वेतन देने के लिए पर्याप्त धन नहीं बचा था।
- अंततः नवाब भी उस कंपनी के खिलाफ हो गया एवं उसके बाद उसे गद्दी से हटाकर दामाद मीर कासिम को नवाब बनाया गया। मीर कासिम ने अंग्रेज कंपनी पर अपनी पूर्ण निर्भरता की स्थिति को समझा एवं स्वतंत्र होने की कोशिश करने वाला बंगाल का आखिरी नवाब बना जिसके बाद उसने मीर जाफर ने उन सभी अफसरों को बर्खास्त करना शुरू किया जो कंपनी के हिमायती थे 1763 में जो लड़ाई हुए उसमें नवाब की हार हुई।
- उसे बंगाल और बिहार से खदेड़ दिया गया जिसके बाद मीर जाफर ने अवध के नवाब के यहां शरण ली और सफदरजंग के शाह आलम के पिता आलमगीर द्वितीय की हत्या हो जाने पर उसे दिल्ली में घुसने नहीं दिया।
- 22 अक्टूबर 1764 को पश्चिम बिहार के बक्सर नामक स्थान पर लड़ाई हुई जिसमें भारतीय सेना की हार हुई जो बक्सर की लड़ाई निर्णायक सिद्ध हुई ।
- 1765 में शुजाउद्दौला व शाह आलम ने इलाहाबाद में क्लाइव के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किया क्लाइव उस समय कंपनी का गवर्नर बन गया था।
- ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल ,बिहार और उड़ीसा की दीवानी मिल गई एवं कंपनी ने मुगल बादशाह को हर साल ₹2600000 देना स्वीकार किया।
- मगर जल्द ही वह अपने वादे से मुकर गए एवं भुगतान रोक दिया मगर सेना का खर्च उठाने की जिम्मेदारी नवाब की थी।
- इस प्रकार अवध का नवाब कंपनी का आश्रित होकर रह गया एवं इसी बीच बंगाल का नवाब मीर जाफर को पुनः बनाया गया एवं उसकी मृत्यु के बाद उसके बेटे को नवाब बनाया गया इसमें कंपनी के अफसरों ने नए नवाब से मोटी रकम वसूल कर संपत्ति बनाएं।

Q.भारत में हस्तक्षेप ना करने की ब्रिटिश नीति का क्या मतलब था अंग्रेजों ने जब तब यह नीति क्यों अपनाई?
- Ans:-अमेरिका की स्वतंत्रता की लड़ाई के बाद ब्रिटेन की हार होने के बाद मिला इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों पर काफी आलोचना हुई जिसके बाद ब्रिटिश सरकार भारतीय शासकों के झगड़ों में हस्तक्षेप नहीं करने तय किया। ब्रिटिश संसद में एक कानून बनाकर भारत के विभिन्न इलाकों की शासन व्यवस्था की एक व्यवस्था प्रस्तुत की जिसमें वारेन हेस्टिंग्स ने भारत में बड़ी भारी निजी संपत्ति जमा कर ली थी ।
- वह जब इंग्लैंड लौटा तो पार्लियामेंट में उस पर मुकदमा चलाया गया हालांकि बाद में उसे आरोपों से मुक्त कर लिया गया उस पर आरोप लगाया गया था कि उसने भारतीय शासकों से घूस ली है।
- उसके उत्तराधिकारी कार्नवालिस और जोन शोरे ने भारतीय शासकों के मामलों में अपने को अलग रखने की कोशिश की । इस हस्तक्षेप न करने की नीति कहा गया।
- शाह आलम पर हमला करके उसे अंधा बना दिया था जिसके बाद मराठा सरदार महादजी सिंधिया की सुरक्षा में वह चला गया।
- मराठो ने निजाम के खिलाफ हमले शुरू कर दिया और बर्मी ने भी अपना राज्य भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र तक बना लिया था।
- कार्नवालिस ने इन हमलों पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।
- मैसूर के मामले में यह नीति नही अपनाई गई टीपू सुल्तान ने कुर्ग और त्रावनकोर के राज्यों पर हमला किया।
- अंग्रेज शासकों ने इन राज्यों के शासकों के बीच मित्रता वाले संबंध थे ।
- टीपू सुल्तान ने दक्षिण भारत में अपनी शक्ति का विस्तार मार्ग में सबसे बड़ा खतरा समझते थे। जिसके फलस्वरूप अंग्रेज व मैसूर के बीच तीसरा युद्ध हुआ, जिसमें टीपू सुल्तान की हार हुई ।
- परंतु अंग्रेज इस पर भी अंग्रेज हस्तक्षेप न करने की नीति पर ही कायम रहे एवं कॉर्नवालिस का उत्तराधिकारी जोन शोरे भी इसी नीति पर चला।

Q. 18वीं शताब्दी के अंत से लेकर 1849ई० तक पंजाब के राजनीतिक इतिहास में क्या मुख्य परिवर्तन हुए?
- Ans:-रंजीत सिंह के अधीन पंजाब:- जिसमें रंजीत सिंह ने एक छोटी मिसल में 1792 ईस्वी में अपनी सत्ता की स्थापना की थी ।
- 1798 ई० में सतलज के पश्चिमी इलाकों में मिसलों को संगठित कर आफगान शासक जमान शाह के आक्रमण को विफल कर दिया।
- इस सफलता में उसके कारण उन्हें एक शक्तिशाली शासक बना दिया था जिसके बाद उन्होंने 1801 में मिसलों ने उन्हें पंजाब का महाराजा मान लिया था।
- जिसके बाद राज्य का विस्तार मुल्तान, कश्मीर, कांगड़ा, पेशावर के पहाड़ी इलाकों समेत एक विशाल क्षेत्र में बढ़ गया था ।
- उन्होंने एक बड़ी एवं शक्तिशाली सेना बनाई जिसमें सेना को संगठित करने के लिए यूरोप की सेवाएं भी प्राप्त किया ।
- उन्होंने पंजाब में कुशल प्रशासन स्थापित करने के लिए हिंदू ,मुसलमान और सिकखों अफसरों ने पूरा सहयोग दिया एवं अफसरों की नियुक्ति में इन्होंने कोई धार्मिक भेदभाव नहीं किया था।
- अंग्रेजों ने 1809 ईस्वी में रंजीत सिंह के साथ अंग्रेज़ो ने एक मैत्री संधि की परंतु बाद में 1838 में महाराजा की मृत्यु हो गई।
Q. 1809-1848 इस्वी तक ब्रिटिश राज्य का विस्तार कैसे हुआ?
- Ans:-फ्रांस की क्रांति के समय इंग्लैंड और फ्रांस के बीच लड़ाई शुरू हुई थी वह अभी भी जारी रही उस समय मिंटो को गवर्नर जनरल बनाकर भारत भेजा गया था ।
- उसे उत्तर पश्चिम और दक्षिण पूर्व भारत में ब्रिटिश प्रदेशों की सुरक्षा के उपाय करने के आदेश भी दिए गए थे।
- जावा और सुमात्रा बच्चों के अधिकार में थे उस समय अंग्रेजों ने उन द्वीपों पर भी कब्जा कर लिया व बाद में वे द्वीपों को लौटा दिए।
- अंग्रेजों ने सिंगापुर पर कब्जा किया और बाद में भी इन विजयों के साथ अंग्रेजों को दक्षिण पूर्व एशिया के व्यापार पर नियंत्रण करने में सहायता मिली और उन्होंने उस क्षेत्र में ब्रिटेन की नौसेना सत्ता की नींव डाली।
- अंग्रेजों ने अफगानिस्तान, ईरान और भारत के पश्चिमोत्तर इलाकों में भी अपना प्रभाव बनाने का कोशिश जारी रखा। वे सतलुज नदी तक अपने सत्ता बढ़ाने में सफल भी हो गए।
- उन्होंने सतलज के पूर्व में रंजीत सिंह के विस्तार को भी रोक दिया मिंटों के बाद माकि्विस्ट हेस्िटंग गवर्नर जनरल बना उसने नेपाल से लड़ाई की जिसमें नेपालियों की हार हुई एवं अन्य राज्य के इलाके अंग्रेजों को देना पड़ा। उन्नीसवीं सदी के आरंभ में पिंडारी लुटेरों का उदय हुआ जो कई देश-प्रदेश में लूटमार किया करते थे।
- अंग्रेजों ने भारतीय शासकों के साथ सहायता संधि करके अपने सैनिकों को बर्खास्त कर दिया और पिंडारी के गिरोह में शामिल हो गए ।
- अंग्रेजों ने पिंडारी के खिलाफ मराठा सेना का इस्तेमाल करने का फैसला लिया व जल्द ही तीसरी अंग्रेज मराठा युद्ध में बदल गई व हार हुई।
- तीसरे अंग्रेज मराठा युद्ध में मराठों को बर्बाद कर दिया पेशवा को पेंशन उत्तर भारत से निर्वासित कर दिया गया एवं उसके देहांत के बाद उसका बेटा नाना साहब पेशवा के विशेष अधिकार हासिल करने के लिए प्रयास करता रहा कुछ ही वर्षों में पेशवा के इलाके अंग्रेजों के पश्चिम भारत के क्षेत्रों के हिस्सा बन गए ।
- अन्य मराठा सरदारों ने भी अपने अधिकांश इलाके को दिए एवं जल्द ही राजपूत राज्यों पर भी सहायक संधि थोप दी गई
- 1824 ईसवी तक अंग्रेजों ने राज्य के खिलाफ लड़ाई कि असम में अपने प्रभाव को बढ़ाते जा रहे थे उनकी हार के बाद असम अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया अंग्रेजों ने अफगानिस्तान पर बीच लड़ाई की परंतु उन्हें हार का सामना करना पडा।
- अंग्रेजों को डर लगने लगा था कि ईरान और अफगानिस्तान से होकर उस उनके भारत प्रदेशों पर आक्रमण कर सकता है ।
- जिसके बाद उन्होंने अफगानिस्तान के शासक दोस्त मोहम्मद को सेना हटाने के लिए भेजी परंतु वह असफल रहे।
- अफगान ने अपनी स्वतंत्रता कायम रखने में सफल रहे दोस्त मोहम्मद के वंशज 1929 ईस्वी तक सत्ता में बने रहे।
- अंग्रेजों ने सिंध में अपना प्रभाव जमा लिया था सिंध के अमीरों ने उनके साथ सहायक संधि कर ली थी मगर 1843 इसमें सिंह को प्रशासन में मिला लिया गया।

- Q.अंग्रेजों ने भारत में अपने साम्राज्य की स्थापना एवं विस्तार कैसे की?
- Ans:-रंजीत सिंह के जीवन काल में अंग्रेजों ने राज्य के विस्तार को रोक दिया था जिसके बाद सतलज के पूर्व के राज्य अंग्रेजों के प्रभाव में आ गए थे 1843 में सिंध पर उन्होंने कब्जा कर लिया।
- अफगानिस्तान में भी अंग्रेजों के दिलचस्पी बढ़ गई थी इसलिए पंजाब के शक्तिशाली राज्य के साथ अंग्रेजों का मुकाबला होना स्वभाविक था रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद पंजाब में राजनैतिक अस्थिरता आ गई ।
- सेना में सिक्खों के खालसा नामक समूह का प्राधान्य हो गया और उसने राज्य के मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया।
- विभिन्न गुटों में शत्रुता भी बढ़ने लगी ऐसी स्थिति में खालसा राजगद्दी के बारे में भी फैसला करने लगे व रंजीत सिंह के बाद उनका बेटा दिलीप सिंह गद्दी पर बैठा।
- मगर उसकी महारानी जिंदल और कृपा पात्र अफसरों की सहायता से ही राजकाज किया करती थी।
- कृपा पात्र अफसरों ने एक तरफ अंग्रेजों के साथ सांठगांठ की तो दूसरी तरफ अंग्रेजों पर आक्रमण करने के लिए उकसाया।
- जिसके बाद 1845 में पहला अंग्रेज सिख युद्ध शुरू हुआ था खालसा कि हार के बाद युद्ध समाप्त हुआ ।
- पंजाब ब्रिटिश संरक्षण में आ गया दिलीप सिंह गद्दी पर बना रहा एवं अंग्रेजों ने गुलाब सिंह का राजा बना दिया 1848 इसवी में पंजाब में अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह हुए और उसके बाद दूसरा युद्ध हुआ उस समय डलहौजी गवर्नर जनरल था उसके कार्यकाल 1848 से 18 से 56 ईसवी तक भारत में अंग्रेजों की प्रभुसत्ता स्थापित कि यह 2 तरीके थे जिसमें सीधी का क्या कर लेना और भारतीय राज्यों पर सहायता संगीत होप ना जिसका अंत भी अक्षर कब्जा करने में होता था पंजाब और सिंध को सीधे ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया था।

- अंग्रेजों की प्रभुसत्ता प्रमुख दो तरीकों से स्थापित की गई –
- जिसमें पहला था सीधा कब्जा करना तथा दूसरा था भारतीय राज्यों पर सहायता संधि थोपना। जिसका अंत भी अक्सर कब्जा करना ही होता था।
- पंजाब और सिंध को सीधे ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया।
- 1865 ईसवी में अवध के नवाब को गद्दी से हटाकर कोलकाता में निर्वासित किया गया और अवध को अंग्रेजों ने अपने राज्य में मिला लिया। भारतीय शासक ब्रिटिश फौजों का खर्च उठाते थे और अंग्रेजों पर प्रशासन और कानून व्यवस्था की कोई जिम्मेदारी नहीं होती थी।
- इसके अंतर्गत जनता को अत्यंत कष्ट झेलने पड़े थे ब्रिटिश सेना का खर्च देने के लिए किसानों पर भारी कर लादे जाते थे एवं स्थानीय अधिकारियों और जमींदारों ने लूट कर बहुत संपत्ति बना ली थी।
- भारतीय राज्यों को हड़पने के नए बहाने भी निकाले गए।
- वह था ‘विलय नीति’ डलहौजी के कार्यकाल में यह तरीका अपनाया गया।
- जिसमें प्राचीन काल में भारत में यह प्रथा रही कि यदि किसी व्यक्ति का कोई पुत्र नहीं होता तो वह अपने अपने निकट के किसी रिश्तेदार को गोद ले लेता था एवं वही उसका उत्तराधिकारी होता था जब भारतीय शासक अंग्रेजों पर आश्रित हो गए तब गोद लिए पुत्र उत्तराधिकारी के स्वीकार करने का अधिकार अंग्रेजों ने अपने हाथ में ले लिया था एवं अंग्रेजी के उत्तराधिकारी को अस्वीकार करते तो वह उस राज्य को देश में मिला देते थे।
- डलहौजी के कार्यकाल में विलय नीति को कड़ाई से लागू किया गया एवं उनके राज्य को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया ऐसे राज्य में झांसी नागपुर और सातारा भी शामिल थे।
- निर्वासित पेशवा के गोद लिए पुत्र को नाना साहब की गद्दी नहीं दी गई । कर्नाटक के नवाब के मृत्यु के बाद उसको मिलने वाली पेंशन उसके रिश्तेदारों को नहीं दी जाती थी।
- लगभग 1865 ई० तक अंग्रेजों की भारत विजय पूर्ण हो गई और भारत में ब्रिटिश साम्राज्य स्थापित हो गया।
- जैसे- जैसे उनकी सत्ता बढ़ती गई वैसे ही उनके खिलाफ असंतोष बढ़ता गया और यही असंतोष के कारण 1857 ई० में व्यापक विरोध हुआ। अंग्रेज की नई प्रशासन व्यवस्था स्थापित की गई और कई परिवर्तन भी किए गए।
Q. अंग्रेजों की सफलता के क्या कारण थे?
- Ans:- अंग्रेजों का उदय मुगल साम्राज्य के बिखरने के बाद हुआ था।
- एकता के अभाव के कारण भारत राज्य आसानी से ईस्ट इंडिया कंपनी के शिकार बनते रहे। अंग्रेज हर राज्य के दूसरे इलाके को हड़प कर अपना विस्तार करना चाहते थे।
- एकता ना होने के कारण अंग्रेजों की अति दूर की चौकियां भी एक केंद्रीय नेतृत्व के अधीन थी।
- इस तरह के केंद्रीय नियंत्रण में अंग्रेजों को 1757 ईस्वी में भारत के राजनीतिक मामलों में एक केंद्रीय शक्ति बना दिया था।
- केंद्रीय शक्ति में सफलता के बाद अंग्रेजों के सामने भारतीय राज्य की आंतरिक कमजोरियां सामने आई तथा अंग्रेजों ने अपना साम्राज्य स्थापित करना शुरू किया।
- अंग्रेज ने “फूट डालो और शासन करो” की नीति करते थे ,जिसमे ब्रिटिश अफसर में सफलता हासिल की ।
- इस नीति से भारतीय राज्य के पतन की एक महत्वपूर्ण और तात्कालिक कारण थी।इसका वास्तविक कारण यह था कि – सि्थर कुशल राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करने में भारतीय शासकों का असमर्थ होना था।
- पानीपत की लड़ाई में मराठा सेना की करारी हार होने पर उन्होंने अपनी शक्ति पर स्थापित कर ली थी मराठी अपने लड़ाई-झगड़ों में रहते थे जिस कारण अंग्रेज उन्हें हराने में सफल हुए।
- कमजोरी और पड़ोसी राज्यों के आक्रमण के भय से अनेक राज्यों के साथ अंग्रेजों के संरक्षण में चले गए थे।
- भारतीय राज्य की कमजोरी और उनकी अर्थव्यवस्था और टेक्नोलॉजी पिछड़ेपन पर इन्हें और अधिक उभारा।
- इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति होने के बाद यह पिछड़ापन का अधिकाधिक महत्वपूर्ण कारण बनता गया ।
- औद्योगिक क्रांति के कारण ब्रिटेन की समूची सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था बदल गई थी और व संसार में उनकी ताकत अधिक हो गई थी।
- ब्रिटेन की बढ़ती हुई शक्ति के कारण भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार को रोकना आसान नहीं था एवं भारतीय राज्यों के आपसी झगड़ों और आंतरिक कमजोरियों में अंग्रेजों का काम आसान कर दिया था।
- इस प्रकार 1856 ईसवी तक भारत पूरी तरह से अंग्रेजों का गुलाम बन गया।
Q. भारतीय उद्योग ब्रिटिश सरकार की नीतियां से कैसे प्रभावित हुई ?
अथवा
देश में आर्थिक और प्रशासनिक परिवर्तनों के कारण किस सामाजिक वर्ग का उदय हुआ ?
- इसी दौरान इंग्लैंड में कपड़ा उद्योग का भी विकास हो रहा था उस उद्योग ने भारतीय कपड़ों की किस्मो का मुख्य मुकाबला करने की बहुत कोशिश की । जैसे लखनऊ में बनने वाली छींट को इंग्लैंड की महिलाएं बड़ा पसंद करती थी मगर 1754 में अंग्रेज रंगरेज दावा करने लगे कि वे भारतीय से भी बेहतर छपाई कर सकते हैं। उस समय औद्योगिक क्रांति और नई मशीनों ने इंग्लैंड के कपड़ा उद्योगों की काफी मदद की। इससे भारतीय कपड़ों के निर्यात की स्थिति बिगड़ती चली गई । उस समय भारत का कंपनी का शासन शुरू हो गया था ब्रिटिश व्यापारियों और उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए यहां लोग भारत और इंग्लैंड में कुछ कदम उठाए गए ,जिससे भारतीय उद्योगों को काफी हानि पहुंची ।
- कंपनी का मुनाफा बढ़ाने के लिए उसके एजेंटों ने कपड़ा तथा अन्य वस्तुओं के भारतीय उत्पादकों को मजबूर किया जिसके बाद बाजार भाव से 20 से 40% तक कम कीमत में लें।
- उस समय ढाका मलमल के उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र था ढाका के उत्पादकों ने कीमत घटाने का विरोध किया एवं ऊंची कीमतों की मांग की उनके खिलाफ बल प्रयोग किया गया ।
- कंपनी के अफसर कपास की कीमत को नियंत्रित करने लगे तो कपड़ा उत्पादकों की कठिनाइयों और भी बढ़ गई ।
- बंगाल से बढ़िया किस्म का कपास आता था कंपनी के दक्कन से थोक भाव में कपास खरीदते थे और उसे ऊंची कीमत पर बंगाल के बुनकरों को बेचते थे ।
- इस प्रकार सूती कपड़ा उद्योग चौपट हो गया एवं 18 वीं सदी के अंत तक औद्योगिक समृद्धि वाला बंगाल प्रांत भी लगभग बर्बाद हो गया। मशीन से बने सस्ते सूती कपड़ों के आने से भारतीय कपड़ा उद्योगों को सबसे बड़ा धक्का लगा ।
- इंग्लैंड से भारत आने वाली वस्तुओं पर चुंगी नहीं लगती थी दूसरी ओर भारत से इंग्लैंड पहुंचने वाली वस्तुओं पर वहां ऊंची चुंगी लगाई जाती थी इस नीति के कारण भारत में ब्रिटिश माल की बाढ़ सी आ गई।
- भारत के विभिन्न भागों को बंदरगाहों से जोड़ने वाली सड़कों को सुधारा गया तथा नदी-नौ परिवहन का भी विकास किया गया ।
- मगर परिवहन के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण सुधार था भारत में रेलवे की शुरुआत- भारत में पहली रेलवे 1853 ईस्वी में मुंबई और थाने के बीच शुरू हुई ।
- 1853 ईसवी में भारत में टेलीग्राफ की भी शुरुआत हुई इसके साथ ही डाक व्यवस्था में भी काफी सुधार हुआ ।
सामाजिक कानून
- भारतीय समाज में सदियों से ही कई रीति- रिवाज और अमानवीय प्रथाएं चलती आ रही थी ऐसे ही कुछ प्रथाओं के शिकार थे उस समय की निम्न जातियों के लोग उनमें स्त्रियां और विशेषकर बच्चे और कन्याएं ।
- ब्रिटिश सरकार ने लंबे समय तक इन बुरी प्रथा पर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि उनका मुख्य उद्देश्य था- भारत का आर्थिक शोषण करना नाकि सामाजिक बुराइयों को दूर करना।
- इस काल में भारत आए कुछ ब्रिटिश शासक ने मानवतावादी तथा सुधारवादी विचारों से प्रभावित थे और उनके प्रयासों से 19 वीं सदी के पहले चरण में भारत में कुछ मानवतावादी सुधार कदम उठाए गए ।
- जिसमें कुछ बिरादरीयों में कुछ कन्या वध की प्रथा प्रचलित थी कन्या के जन्म लेते ही उसे मार दिया जाता था।
- उस समय की सामाजिक प्रथाओं के अनुसार कन्याओं का विवाह अपनी बिरादरी में ही करना अनिवार्य था।
- विवाहिता के पिता को बहुत ज्यादा धन खर्च करना पड़ता था कन्या का अविवाहित रहना परिवार के लिए कलंक की बात मानी जाती थी ।
- ऐसा ना हो इसलिए कई कन्याओं को बचपन में ही जन्म के बाद मार दिया जाता था एवं कभी-कभी धार्मिक मन्नत को पूरा करने के लिए भी इनका इन्हें मार दिया जाता था और पवित्र नदियों में प्रवाहित किया जाता था।
- इस प्रथा को बंद करने के लिए सरकार ने कानून बनाए मगर इस प्रथा को बंद करने में लंबा समय लगा जिससे भारत समाज में स्त्रियों की दशा काफी दयनीय हो गई थी।
- कन्या का विवाह काफी छोटी उम्र में हो जाता था एवं कुछ वर्गों में विधवा पुनर्विवाह नहीं करने दिया जाता था।
- हिंदू जातियों में प्रचलित प्रथा थी विधवाओं का पति की चिता में जल मरना इसे सती प्रथा कहते थे ।
- केवल 1815-1828 ई० तक 8134 घटनाएं हुई थी 1829 में एक कानून के द्वारा इस प्रथा पर रोक लगा दी गई ।
- यह ब्रिटिश शासन द्वारा लागू किया गया महत्वपूर्ण सामाजिक कानून था।
- उस समय गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक ने इसे लागू किया था एवं राजा राम मोहन राय द्वारा शुरू किए गए जबरदस्त आंदोलन से इस प्रथा को बंद करने में काफी मदद मिली।
- इसमें एक अन्य सुधारक थे ईश्वर चंद्र विद्यासागर उनके प्रयासों से सरकार ने 1856 ईसवी में विधवा पुनर्विवाह कानून बनाया जिसके बाद हिंदू विधवा को पुनर्विवाह करने की छूट दे दी गई भारत में गुलामों का व्यापार भी सतत होता रहा। हालांकि यह बड़े पैमाने पर नहीं होता था गरीबी के कारण लोग अपने बच्चों को बेचने के लिए मजबूर हो जाते थे कभी-कभी उन्हें कई ब्रिटिश उपनिवेश में भेजा जाता था। 1848 इसवी में एक कानून बनाकर इस दास प्रथा पर भी पाबंदी लगा दी गई परंतु इस महत्वपूर्ण प्रयास से भारतीय जनता में एक का एक बहुत छोटा समुदाय प्रभावित हुआ। भारत में आधुनिक शिक्षा का प्रारंभ कंपनी शासन शुरू होने के समय में प्रारंभिक शिक्षा के लिए पाठशाला मकतब और उच्च शिक्षा के लिए टोल तथा मदरसा प्रारंभिक स्तर पर विद्यार्थियों को स्थानीय भाषा में लिखे गए धार्मिक ग्रंथों के कुछ अंश पत्र लेखन और पहाड़े पढ़ाए जाते थे । उच्च वर्गीय मुसलमान ही प्राप्त कर सकते थे व्याकरण शास्त्रीय भाषा संस्कृत अरबी फारसी साहित्य धर्मशास्त्र कानून चिकित्सा शास्त्र ज्योतिष का विशेष अध्ययन करते थे। दुनिया के कुछ अन्य भागों में ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति हुई थी उनकी उन्हें कोई जानकारी नहीं थी कंपनी के अधिकांश इलाके में कुछ समय तक यह शिक्षा व्यवस्था जारी रहेगी कंपनी के शिक्षा प्रणाली को भी काफी क्षति पहुंची अंग्रेजी भाषा और पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान शिक्षा देने के लिए सबसे पहले और बाद में स्कूल खोले गए कंपनी की सहायता से खुलने वाली थी। बनारस संस्कृत कॉलेज की स्थापना हुई थी इसकी स्थापना का उद्देश्य भारतीय को प्रशिक्षित करना था जो कंपनी के अफसरों को प्रशासन के कार्यों में मदद कर सके इसमें पाठ्यक्रम काफी हद तक पुरानी भारतीय पद्धति का ही था । ब्रिटिश शासकों ने भारत में शिक्षा के विकास के लिए पहला कदम 1813 ईसवी में के चार्टर एक्ट के बाद उठाया था भारत में शिक्षा के प्रसार के लिए ₹1 लाख मंजूर किए गए थे। इस शिक्षा नीति को तय करने में कंपनी को 20 साल लग गए हम लंबे समय तक इस पर वाद विवाद होता रहा इनके दो समुदाय थे एक समुदाय परंपरागत शिक्षा पद्धति का समर्थक तो दूसरा पाश्चात् समर्थक।
- राममोहन राय जैसे कुछ भारतीय समाज सुधारक पाश्चात्य शिक्षा पद्धति के समर्थक थे। 1835 ईस्वी में सरकार ने भारतीयों को यूरोपीय साहित्य और ज्ञान विज्ञान की शिक्षा देने का निर्णय लिया व कुछ स्कूलों और कॉलेजों में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया कुछ साल बाद मुंबई कोलकाता मद्रास में विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई।
- अंग्रेजो ने भारत में जो शिक्षा पद्धति चलाई वह अंग्रेजी शिक्षा कहलाई।
- अंग्रेजी शिक्षा की मांग तेजी से बढ़ती गई, 1844 ई० में सरकार ने घोषणा की सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाएगी।
- अंग्रेजों द्वारा प्राथमिक शिक्षा की उपेक्षा के कारण 90% भारतीय अशिक्षित रह गए। भारतीय अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त भारतीयों में और सिर्फ भारतीय जनता में खाई बन गई ।
- इन सभी गंभीर खामियों के बावजूद अंग्रेजी शिक्षा की कुछ अच्छाइयां भी थी। आधुनिक विज्ञान विज्ञान और स्वतंत्रता, समानता, जनतंत्र और राष्ट्रीयता के आधुनिक विचारों के संपर्क में आए व आधुनिकीकरण के तरीकों और उपायों के बारे में सोचने लगे ।
- इस तरह ब्रिटिश शासकों की यह आशा की अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त भारत में ब्रिटिश शासन के समर्थक होंगे गलत साबित हुई।