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Q. इन परिस्थितियों में 1773 ईस्वी में रेगुलेटिंग एक्ट पास हुआ?

  • Ans:- कुशासन के कारण बंगाल में बड़ी अव्यवस्था पैदा हो गई जिसके बाद ब्रिटिश संसद को मजबूर होकर ईस्ट इंडिया कंपनी के मामले में जांच करनी पड़ी।
  • जांच में पता चला कि कंपनी के बड़े अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर जालसाजी और धोखाधड़ी की है।
  • उस समय कंपनी वित्तीय संकट में थी जिसके बाद ब्रिटिश सरकार से 10 लाख पौंड कर्ज मांगा गया था।
  • उस वक्त ब्रिटिश सरकार को महसूस हुआ कि भारत में कंपनी की गतिविधियों पर नियंत्रण रखना अति आवश्यक है इसलिए 1773 ई० में रेगुलेटिंग एक्ट कानून बनाया गया।
  • यह पहला मामला था जिसमें ब्रिटिश सरकार का सीधा हस्तक्षेप था, भारतीय कंपनी के हाथों से राजनीतिक सत्ता छीनने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार द्वारा पहला कदम उठाया गया था।
  • इस एक्ट के अंतर्गत एक नए प्रशासनिक ढांचा खड़ा किया गया।
  • जिसमें कंपनी की कलकत्ता की फैक्ट्री का अध्यक्ष बंगाल का गवर्नर होता था। उसे कंपनी के सभी भारतीय क्षेत्रों का गवर्नर जनरल बनाया गया, इसके साथ ही गवर्नर जनरल की मदद से 4 सदस्यों की एक परिषद बनाई गई जिसमें न्याय व्यवस्था के लिए एक्ट के अंतर्गत कोलकाता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई।

रेगुलेटिंग एक्ट की खामियां-

  • प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेसि्टंग्ज और उसकी परिषद के सदस्यों के बीच लगातार झगड़े होते रहे ।
  • सर्वोच्च न्यायालय भी ठीक से काम नहीं कर सका क्योंकि उसके अधिकार और परिषद के साथ उनके संबंध स्पष्ट नहीं थे ।
  • इसके बाद इस न्यायालय ने मुर्शिदाबाद के भूतपूर्व दीवान महाराज नंद कुमार को जालसाजी के अभियोग में मौत की सजा सुनाई। उस समय ब्रिटिश कानून में जालसाजी के लिए मृत्युदंड की सजा दी जाती थी जिसके लिए अपराध के लिए भारत में ब्राह्मण को मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता था ।
  • जिसके बंगाल में इस मामले को लेकर सरकार का कंपनी के ऊपर नियंत्रण अस्पष्ट बना रहा।

Q. 1774 से 1856 ईसवी तक की न्याय व्यवस्था के विकास पर प्रकाश डालें?

  • Ans:-1773 का रेगुलेटिंग एक्ट में काफी खामियां थी जिसके बाद इन खामियां को दूर करने तथा इसे स्पष्ट करने के लिए पीट का इंडिया एक्ट 1784 लागू किया गया ।
  • जिससे कंपनी के भारतीय क्षेत्रों में प्रशासन को कुशल तथा जिम्मेदार बनाया जा सके इसके लिए काफी जांच पड़ताल की गई,ब्रिटिश संसद द्वारा कई उपाय किए गए।
  • इन उपायों में से महत्वपूर्ण था पीट का इंडिया एक्ट।
  • यह एक्ट उस समय लागू किया गया जब विलियम्स पिट (कनिष्ठ) ब्रिटेन का प्रधानमंत्री था।
  • उस समय कानून के अंतर्गत ब्रिटेन में एक नियंत्रण परिषद (बोर्ड आफ कंट्रोल)की स्थापना की गई. इसके अंतर्गत भारत में कंपनी अपने अधिकारियों की नियुक्ति और बरखास्तगी अपनी इच्छा के अनुसार कर सकती थी ।
  • इस प्रकार ब्रिटिश भारत पर दोहरी शासन व्यवस्था स्थापित हो गई -सरकार और कंपनी इन दोनों का शासन व्यवस्था लागू हो गया ।
  • मद्रास और मुंबई प्रेसिडेंसियों को उनके अधीन कर दिया गया।
  • 1784 में प्रस्तुत किए गए सिद्धांत भारत में ब्रिटिश शासन के आधार बने उस समय से गवर्नर जनरल भारत का वास्तविक शासक बन गया।
  • भारत में कुछ एजेंसी के काम थे जिसमें अंग्रेजी राज की रक्षा व विस्तार करना ,आंतरिक कानून व्यवस्था बनाए रखना राजस्व वसूल करना, प्रशासन संभावना और न्याय की व्यवस्था करना प्रमुख है।
  • ब्रिटेन के आर्थिक हितों के लिए नए इलाकों को जितना आवश्यक हो गया था जबकि पिट इंडिया के एक्ट की धारा में यह कहा गया था कि अंग्रेज अब नए इलाके नहीं जीतेंगे ।
  • इंग्लैंड के कारखानों में बनने वाले के सामान के लिए नए बाजार की जरूरत थी कारखानों के लिए कच्चे माल के लिए नए स्त्रोत खोजना काफी आवश्यक था, इन आवश्यकताओं के लिए जीते गए इलाकों में कानून व्यवस्था भी जल्द से जल्द स्थापित करना जरूरी हो गया। कार्नवालिस ने अपने कार्यकाल में इसे सुगठित रूप दिया एवं 1791 ई० में कोलकाता के लिए पुलिस सुपरिटेंडेंट नियुक्त हुआ ।
  • इसमें परंपरागत ग्राम रक्षक को चौकीदार कहा गया ।
  • इसमें पुलिस लोकप्रिय नहीं हो सकी मगर भ्रष्टाचार और जनता को तंग करने के लिए पुलिस जरूर बदनाम हो गई।
  • सिविल सर्विस का संगठन ब्रिटिश प्रशासन के लिए मजबूत चौखट की भूमिका सिविल सर्विस में आधा की कंपनी के अधिकारी भ्रष्ट होते थे ऐसे हालात में और वारेन हेस्टिंग्स को कुछ नए कदम उठाए।
  • भारत में रेलवे सिविल सर्विस की स्थापना का श्रेय कार्नवालिस को जाता है उन्होंने वाणिज्य तथा राजस्व शाखा को अलग कर उपहार स्वीकार करवाना बंद करवा दिया एवं अच्छे वेतनो की व्यवस्था की सिविल सर्विस प्रभावशाली पर और ऊंचा वेतन प्रदान करती थी।
  • इसलिए इंग्लैंड के खानदानी परिवारों के तरुण इसके लिए लालायित रहते थे नियुक्ति की यह व्यवस्था 1853 ईसवी तक चली इसके बाद इसके लिए प्रतियोगिता परीक्षा की व्यवस्था शुरू की गई भारतीयों को सिविल सर्विस के सदस्य बनने की अनुमति नहीं थी।
  • दरअसल 1793 ई० में यह नियम बना दिया गया था कि 500 पौंड या उससे अधिक वेतन पाने वाले पद पर भारतीयों की नियुक्ति नहीं की जाएगी ।
  • इंजीनियरिंग तथा अन्य सेवाओं के लिए भारतीयों पर इसी तरह का प्रतिबंध लगाया गया था प्रशासन की जिम्मेदारियां बढ़ती गई तो यह महसूस किया गया कि सदस्यों को भारत की शासन व्यवस्था तथा भाषाओं तथा परंपरा से भली-भांति परिचित होना चाहिए।
  • इन विषयों की शिक्षा देने के लिए 1801 ईसवी में कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की शुरुआत की गई तथा बाद में इसी प्रयोजन से इंग्लैंड में इंडिया की स्थापना हेलिबरी में की गई। सदस्यों का मुख्य उद्देश्य हितों की रक्षा करना इसलिए भारतीयों के नजदीक जाने में उन्हें कठिनाई हुई।
  • न्याय व्यवस्था

  • भारतीय परंपरा के अनुसार विवाह उत्तराधिकारी आदि से संबंधित कानून तथा धर्मशास्त्र पर आधारित है।
  • राजस्व और अपराधों से संबंधित मुकदमा न्यायाधीश किया करते थे अंग्रेजों ने दखल देना ठीक नहीं समझा।
  • 1774 ईसवी में स्थापित सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कुछ समय तक अंग्रेजी कानून लागू किया मगर कंपनी की सरकार ने पसंद नहीं आई।
  • 1781 में एक ऐक्ट के जरिए कानून को प्रयोग को सीमित कर दिया गया मगर बदलती हुई परिस्थितियों में भारतीय प्रजा के लिए सुनिश्चित कानून व्यवस्था की गई ।
  • इसके लिए 1793 में बंगाल रेगुलेशन एक्ट बना के अनुसार न्यायालय में भारतीयों के निजी और मौलिक अधिकारों के फैसले होने लगे काफी हद तक हिंदू और मुस्लिम के लिए किया गया था। अंग्रेजी भाषा के साथ भारतीय भाषाओं में भी परिभाषित किया गया।
  • इस प्रकार अस्पष्ट प्रथाओं पर आधारित न्याय व्यवस्था के स्थान पर लिखित कानूनों और नियमों का अस्तित्व में आया।
  • भारतीय कानून व्यवस्था और न्यायालय कार्यप्रणाली को सुनिश्चित बनाने के लिए 1835 ईस्वी में भारतीय विधि आयोग का गठन किया गया
  • जिसमें प्रत्येक जिला में आधारित स्थापित कराई गई कानून बनाकर और न्यायालय स्थापित करने करके जो विधि शासन अंग्रेजों ने शुरू किया.
  • वह भारतीयों के लिए एक नया अनुभव रहा जिसे भारतीय लोग बहादुर कंपनी कहा करते थे विधि शासन का अर्थ था कि कानून की दृष्टि में सभी आदमी समान है मगर ब्रिटिश भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ भारत में अंग्रेजों और भारतीय पर नहीं एक से कानून लागू हुए नहीं.
  • उनके लिए एक से न्यायालय थे भारत में रहने वाली अंग्रेजों के लिए अलग अदालतें थी और उन पर सिर्फ अंग्रेजी कानून होते थे।
  • इंडिया एक्ट ने भारत के लिए दो स्वामी बना दिए थे कंपनी और ब्रिटिश सरकार।
  • 1813 ई० ने भारत के साथ अकेले ही व्यापार करने का कंपनी का विशेषाधिकार खत्म हो गया।
  • 1833 ईस्वी के चार्टर एक्ट एकाधिकार को खत्म कर दिया।
  • 1833 ईस्वी के चार्टर एक्ट में भारत के ब्रिटिश प्रदेशों के सैनिक और असैनिक के सारे अधिकार गवर्नर जनरल और उसकी काउंसिल को सौंप दिए ।
  • 1947 ईस्वी में भारत के स्वतंत्र होने तक ब्रिटिश भारत के प्रशासन की यही प्रमुख विशेषता बनी रहे।
  • 1833 चार्टर एक्ट में कहा गया कि भारतीयों को कंपनी के मातहत कोई भी पद नहीं दिया जा सकता है।

Q. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों और उनका क्या प्रभाव पड़ा?

  • Ans:-अंग्रेजों ने आर्थिक नीतियों के अंतर्गत भू राजस्व प्रणाली , व्यापार और उद्योगों के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन लाया ।
  • भारतीय जनता के जीवन में परिवर्तन व ग्रामीण इसका ग्रामीण व्यवस्था पर प्रभाव पड़ा।
  • जिसमें खाने-पीने की चीजें करते थे और खुद बनाते थे गांव में उठने वाले झगड़ों का निपटारा जाति पंचायतों द्वारा किया जाता था।
  • थोड़ी ही चीजों का गांव में आवश्यकता पड़ती जैसे नमक, कपड़ा ,धातु बाजार, सोना -चांदी इत्यादि।
  • किसान परिवार खेती करते थे जिसमें अपनी उपज का एक हिस्सा राजस्व के शासक को देते थे ।
  • गांव के प्रधान के मार्फत राजस्व की वसूली करता था। अंग्रेजों द्वारा अपने अफसरों और भारतीय एजेंटों के नियंत्रण में पुरानी व्यवस्था को जारी रखा।
  • यह किसानों को कष्ट देने लगे जिससे कंपनी की बड़ी बदनामी हुई इसके बाद उन्हें अपनी नीति बदलनी पड़ी।
  • राजस्व अधिकारियों, पुलिस तथा न्यायिक अधिकारियों जैसे बाहरी लोगों का हस्तक्षेप बढ़ने लगा तथा ग्राम पंचायतों की सत्ता खत्म हो गई एवं राजस्व के निश्चित रकम वसूली जाने लगे चाहे उत्पादन कम हो या ज्यादा।
  • इसलिए किसान ऐसी फसल को उगाने के लिए मजबूर हो गए जिन्हें बाजार में बेचा जा सके इन सभी कारणों से गांव की आत्मनिर्भरता समाप्त हो गई आत्मनिर्भरता समाप्त हो गई ।
  • नई भूमि व्यवस्था बक्सर की लड़ाई के बाद कंपनी को पहली बार राजस्व वसूली का अधिकार मिला जिसके बाद ब्रिटिश क्षेत्रों के विस्तार के साथ-साथ वसूली की राशि भी बढ़ा दी गई तथा भू-राजस्व कंपनी की आय का एक बड़ा स्रोत बन गया इस आय का एक हिस्सा ब्रिटिश सरकार को भेंट किया जाता था ।
  • 1766 इसमें कंपनी का हर साल 400000 साल ब्रिटिश सरकार के खजाने में जमा करने पड़ते थे व्यवस्था और अन्य देशों से निर्यात की जाती थी ।
  • उन पर खरीदने के लिए खर्च करते थे वारेन हेस्टिंग्स के समय में कंपनी ने बंगाल और बिहार में राजस्व वसूली के अधिकार की नीलामी शुरू कर दी और इसके साथ ही कंपनी को जितना वसूली की उम्मीद रहती थी उतनी नहीं मिलती थी ।
  • दूसरी तरफ जमींदार किसानों को लूट जा रहे थे स्थाई बंदोबस्ती नीलामी की व्यवस्था से कंपनी की आय में स्थिरता नहीं आई इसलिए कंपनी ने बंगाल और बिहार के भू राजस्व और निश्चित करने का निर्णय लिया ।
  • 1793 में स्थापित की जिसका नाम स्थाई बंदोबस्त रखा गया इसके अंतर्गत जागीर का मालिक बन गया इस व्यवस्था में जमींदार की स्थिति मुगल काल के जागीरदारों से बहुत बेहतर थी जागीरदार जागीर के मालिक नहीं होते थे ना ही वे उसे बेच सकते थे।
  • स्थाई बंदोबस्त में कंपनी को नियमित आय होने लगी इस व्यवस्था में जमींदारों की एक नए वर्ग का उदय हुआ जो अंग्रेज के प्रति वफादार थे ।
  • जागीर के मालिक बन जाने के बाद अनेक जमींदार अधिकतर शहरों में रहने लगे तथा लागत के रूप में अधिक से अधिक पैसा लेने लगे 1799 इसमें उन्हें अधिकार दिया गया।
  • वे लगान देने वाले किसानों की जमीन से बेदखल कर देंते थे उस समय काफी संख्या में किसानों को फेरबदल कर दिया जाता था इसी प्रकार भूमिहार खेतिहर मजदूरों की संख्या बढ़ती चली गई ।
  • गांव में आज भी इनकी आबादी काफी अधिक है खेती के लिए नई भूमि प्राप्त की गई तो जमींदारों में लगा दिया जमींदारों ने लगा दिया एवं स्थाई बंदोबस्त आगे चलकर किसानों की अपेक्षा सरकार को लाभ ज्यादा मिला।
  • रैयतवारी और महालवाड़ी व्यवस्था
  • उड़ीसा आंध्र प्रदेश के तटीय जिलों और वाराणसी में भी लागू किया गया मगर मद्रासी प्रेसीडेंसी में नई व्यवस्था लागू की गई जिसे रैयतवाड़ी कहते हैं।
  • जमीन की उपजाऊ पन और फसल की किस्म के आधार पर राजस्व 30 साल तक की अवधि के लिए निश्चित कर दिया जाता था।
  • फसल पैदावार की कुल कीमत का लगभग आधा हिस्सा सरकार को दिया जाता था इसके अंतर्गत किसान की स्थिति अधिक सुरक्षित हो गई मगर राजस्व वसूली बड़ी शक्ति से होने के कारण अक्सर महाजन के चुंगल में लोग फंस जाते थे।
  • उत्तर भारत में भूमि बंदोबस्त स्थानीय प्रथा के अनुसार हुआ जिसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गांव बिरादरीयों या महालों के साथ भूमि बंदोबस्त किया गया।
  • गांव बिरादरीयों के सामूहिक स्वामित्व को “भाईचारा”कहा जाता था एवं गांव के समूह महाल कहलाते थे,इसलिए इसे महालवाड़ी व्यवस्था भी कहा गया।
  • पंजाब और दिल्ली में भी यही व्यवस्था लागू की गई, पश्चिम भारत द्वारा स्थापित व्यवस्था को चलने दिया गया मगर धीरे-धीरे इसमें भी रैयतवाड़ी व्यवस्था के अनुसार परिवर्तन किए गए।
  • उन्होंने भारतीय समाज में कई स्थितियां पैदा की जिसमें जमीन खरीद बिक्री की चीज हो गई एवं अपनी संपत्ति को गिरवी रखने या राजस्व अदा करने के लिए किसान अपने जमीन से हाथ धोने पर मजबूर हो गए।
  • इतने प्रमुख रूप से इन्हीं नई भूमि व्यवस्थाओं के कारण गांव में जमीन का वितरण असमान हुआ और गरीबी बढ़ गई ।
  • भूमि व्यवस्था ने भारतीय कृषि उत्पादन को बाजार के साथ जोड़कर अप्रत्यक्ष रूप से इसे बढ़ावा दिया खाता और नकदी फसलें तथा बागान की वस्तुएं देसी तथा विदेशी बाजारों के लिए बिक्री की महत्वपूर्ण चीजें बन गई।
  • भारतीय चाय और कहवा के निर्यात से अधिक मुनाफा मिलने लगा मगर इस व्यापार से ज्यादा अंग्रेजों के व्यापारी संस्थानों ने फायदा उठाया। भारतीय किसानों को इससे कोई फायदा नहीं हुआ।

उद्योग और व्यापार

  • भारत की औद्योगिक आबादी दो प्रकार की थी गांव के दस्तकार और विशिष्ट प्रकार की चीजें तैयार करने वाले शिल्पकार ।
  • गांव के साधारण दस्तकार थे जिसमें मोटा कपड़ा बुनने वाले जुलाहे ,औजार बनाने वाले बढ़ई और घरेलू बर्तन बनाने वाले कुम्हार शामिल थे।
  • इनके पेशे मुख्यत: पैतृक होते थे .वे साल के कुछ समय तक खेती भी करते थे।
  • शहरों में बसे हुए शिल्पकार उपयोगी चीजों के अलावा विकास की भी कई चीजें बनाते थे और वे चीजें देशी व विदेशी बाजारों में बिकती थी। उस वक्त विशिष्ट वस्तुओं में सूती वस्त्र कपड़ों का विशेष महत्व था एवं इसका उत्पादन देश के अनेक भागों में होता था जैसे- ढाका ,कृष्ण नगर, वाराणसी, लखनऊ ,आगरा, मुल्तान लाहौर, बुरहानपुर, सूरत ,अहमदाबाद ,मदुरई इत्यादि .इसके अलावा उस समय लोहा इस्पात तांबा और पीतल तथा सोना चांदी के बने वस्तु में भी काफी प्रसिद्ध थी।
  • 17वीं और 18वीं शताब्दी में जहाज निर्माण के क्षेत्र में भारत का बड़ा नाम था इसमें प्रमुख केंद्र थे- गोवा, सूरत, मछलीपट्टनम ,ढाका ,सतगांव और चट गांव।
  • शहरों में उद्योग संगठित थे जिसमें शिल्प कारी पैतृक पेशा थी शिल्पकार एक विशेष जाति के होते थे एवं गुजरात के शिल्पकार श्रेणियों में संगठित थे तथा रेलवे श्रेणियां उत्पादित वस्तुओं के अवसर पर नजर रखती थी और अपने सदस्य के कल्याण का ध्यान रखते थे भारतीय उद्योगों का पतन उन्नीसवीं सदी के आरंभ तक शिल्प और उद्योगों का भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान था लेकिन इसके बाद तेजी से भारतीय उद्योगों का पतन शुरू हुआ इसका मुख्य कारण था ब्रिटिश प्रदेशों में राज्य रजवाड़ों के धीरे-धीरे खत्म हो जाने के कारण भारत उद्योग की बढ़िया वस्तुओं की मांग घटती जा रही थी भारत का भाग्य इंग्लैंड के व्यापारियों और उद्योगपतियों के हाथों में था यूरोप के व्यापारियों का भारत आने का मुख्य उद्देश्य ही था इस देश के साथ व्यापार करके अधिक से अधिक मुनाफा कमाना भारत की अधिकांश कृषि और औद्योगिक उपज कि देश में ही खपत होती थी मगर दूसरे देशों में भी भारतीय चीजों की काफी मांग थी।
  • भारत से निर्यात होने वाली चीज है जिस में बढ़िया सूती वस्त्र रेशमी कपड़े मसाले चीनी औषधि कीमती पत्थर और विभिन्न प्रकार के सिर्फ वस्तुओं को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया था इसके बदले भारत को सोना चांदी मिलता था इंग्लैंड में पहले 1700 ईस्वी और 1720 ईस्वी में कानून बनाकर भारतीय कपड़ों की कई किस्मों की आयात पर पाबंदी लगा दी क्योंकि इंग्लैंड के कपड़ा व्यवसाय बर्बाद हो गई थी। ऐसी कानून पाबंदियां यूरोप के अन्य देशों में भी लगाई गई जिससे भारत के कपड़ा उद्योग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

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