Q. औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य क्यों बिखरने लगा ?
Ans:- 18वीं सदी में मध्यकालीन भारत जिसमें अकबर के शासन में कुशल प्रशासन कायम हो गया था परंतु आगे के डेढ़ सौ सालों तक साम्राज्य में स्थायित्व और विस्तार में मदद की एवं इस काल में साहित्य, संगीत ,कला और स्थापत्य के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई थी।
अंतिम मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में साम्राज्य में के विरुद्ध अनेक विद्रोह हुए जो मराठों ,जाटों, सीखो आदि लोगों द्वारा किए गए थे।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य तेजी से बिखरने लगा एवं देश छोटे छोटे प्रदेशों में बैठ गया इसका मुख्य कारण था कि औरंगजेब की मृत्यु के बाद जो मुगल बादशाह गद्दी पर बैठा उन्हें परवर्ती मुगल कहा जाता है ।इन शासकों के समय वास्तविक सत्ता अन्य सरदारों के हाथ में चली गई थी और वह सरदार अपने अपने मूल स्थान के आधार पर कई गुटों में बैठे हुए थे जैसे मद्धेशिया के दौरान तुरान प्रदेश से आए सरदार अपना एक अपना गुट बनाया और वे तुरानी कह जाते थे।
इसी तरह से अन्य सरदारों के अलग-अलग गुट थे और इन्होंने अलग-अलग अपने प्रदेश की स्थापना की। औरंगजेब के शासन के अंत समय तक साम्राज्य में मनसबदारों की संख्या काफी बढ़ गई थी मगर राजस्व में घट गया था।
जिसके कारण प्रत्येक मनसबदार पहले से ही बड़ी जागीर की मांग करने लगा था ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा आमदनी हो सके। मनसबदारों ने अपने तबादलों का विरोध किया एवं जागीरो पर अपने अधिकार पक्के करने अधिकार जमाने का प्रयास भी किया । उस वक्त जागीर बांटने का काम वजीर किया करता था, इसलिए वजीर के ओहदे पर कब्जा करने के लिए सरदारों के बीच संघर्ष शुरू हो गया।
जब औरंगजेब की मृत्यु हुई तो उसके बाद गद्दी के लिए संघर्ष में बहादुर शाह विजय हुआ और बहादुर शाह ने अपने शासनकाल 1717 में मराठों और राजपूतों से मेल मिलाप तक अच्छे संबंध कायम करने की कोशिश की उसके बाद औरंगजेब ने शिवाजी के पोते साहू को कैद किया था ,जिसे बहादुर शाह ने छोड़ दिया । जुल्फीकार खाँ गद्दी पर बैठा जो औरंगजेब का सेनापति था । 1 साल में कुछ अधिक समय बाद ही उसे हटा दिया गया जिसके बाद फरुर्खसियर 1713 में गद्दी पर बैठा । उस समय अब्दुल्ला और हुसैन अली सबसे शक्तिशाली सरदार थे इन्हें “सैयद बंधु”के नाम से जाना जाता था, बादशाह ने इन दोनों की शक्तियों को तोड़ने की का काफी प्रयास किए परंतु उसमें के घाट उतार दिया।

फर्रूखसियर के रिश्ते के दो भाइयों को एक-एक कर गद्दी पर बैठाया और चचेरे भाई मोहम्मद शाह को 1720 ईस्वी में बादशाह बनाया ।
परंतु जल्द ही चिन किलीच खाँ के नेतृत्व में सरदारों के दल ने सैयद बंधुओं को भी उखाड़ फेंका। चिन किलीच खाँ औरंगजेब का एक मशहूर सेनापति रह चुका था।
1748 ईस्वी में मोहम्मद शाह ने 29 साल तक शासन किया मगर साम्राज्य का बिखरना बंद नहीं हुआ वह जारी रहा ,जिसके कारण सरदारों के विभिन्न दलों के बीच केंद्रीय सत्ता की शक्ति को और भी कमजोर बना दिया।
धीरे-धीरे अनेक इलाके साम्राज्य से अलग हो गए और बंगाल, अवध ,हैदराबाद तथा रुहेलखंड अर्ध- स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ। नादिरशाह ने 1739 वे में करनाल से मुगल सेनाओं को हराया उसके बाद दिल्ली में कत्लेआम कर धन दौलत लूटी गई।
नादिरशाह के आक्रमण के बाद साम्राज्य का और भी विघटन हुआ एवं मुगल साम्राज्य का गौरव एक तरह से समाप्त हो चुका था। जिसके बाद नई शक्ति का उदय हुआ जिसमें-
मोहम्मद शाह के उत्तराधिकारी –
अहमद शाह -1748 से 1754
आलमगीर द्वितीय- 1754 से 1759
शाह आलम द्वितीय -1759 से 1806 तक बने रहे एवं मराठों का अत्यंत महत्वपूर्ण शक्ति का उदय हुआ।
Q. नए राज्यों का उदय कैसे हुआ ?
Ans:-बंगाल
मुर्शिद कुली खां औरंगजेब के मातहत बंगाल का दीवान था। जिसे फर्रूखसियर ने बंगाल का सूबेदार बनाया व जल्द ही स्वतंत्र शासक बन गया एवं उसने अपनी राजधानी मध्य बंगाल के एक स्थान को बनाया।जिसे वर्तमान में मुर्शिदाबाद के नाम से जाना जाता है।
मुर्शिद कुली खां और उसके उत्तराधिकारी नवाबों ने बंगाल ,उड़ीसा व बिहार पर शासन किया । वह मुगल बादशाह को नियमित रूप से राजस्व भेजते थे उन्होंने सूबे के प्रशासन का पुनर्गठन कर कृषि ,व्यापार तथा उद्योग को बढ़ावा दिया तथा गरीब किसानों को कर्ज दिया परंतु उनके द्वारा राजस्व की मात्रा में कोई कमी नहीं की। इस प्रकार से उन्होंने अपने प्रांत में राजस्व के साधनों को बढ़ाया।
हैदराबाद

चिन किलीच खाँ को निजाम उल मुल्क की पदवी दी गई और उसे दक्कन का सूबेदार बना दिया गया । 1722 ई० में उसे वजीर बनाया गया। मगर वह दक्कन वापस आ गया एवं उसने अपने अधिकार को अधिक मजबूत किया एवं उसने एक स्वतंत्र शासक के जैसे ही राज किया। उसने आसफजाही वंश की नींव डाली जो उसके उत्तराधिकारी तथा हैदराबाद के निजाम कहलाएं।
अवध
सैयद बंधुओं को उखाड़ फेंकने में सआदत खाँ ने मदद की थी यह एक मुगल अफसर था जिसने 1722 ई० में अवध का सुबेदीर बनाया गया था एवं उसका उत्तराधिकारी उसका दामाद सफदरजंग था जो कुछ सालों तक उस साम्राज्य का वजीर रहा।
अवध के शासकों ने सूबे के वित्तीय साधनों, न्याय व शांति को बढ़ाने का शासन स्थापित करने का प्रयास किया । अराजकता को खत्म करने प्रयास किया एवं उन्होंने शक्तिशाली सेना खड़ी थी। जिसमें हिंदू ,मुस्लिम के अलावा नागा सन्यासी भी थे। अवध के शासकों का राज्य का विस्तार रुहेलखंड तक था जो दिल्ली के पूर्व में था एवं भारत के पश्चिमोत्तर सीमा पर रूह से अफगान लोग बड़ी संख्या में आकर बस गए थे जिन्हें रुहेला कहा जाता था। वह अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की कोशिश करते थे।
पंजाब
दिल्ली के उत्तर में लाहौर और मुल्तान के क्षेत्रों पर मुगल सूबेदार का शासन था परंतु नादीरशाह और अहमद शाह अब्दाली के हमलों के कारण उनकी शक्ति खत्म हो गई एवं उस क्षेत्र में सर्वोच्च राजनीतिक शक्ति सिक्खों का उदय हुआ एवं उसी के दौरान दिल्ली ,आगरा व मथुरा के आसपास के क्षेत्र में जाटों का शक्ति का उदय हुआ । उन्होंने भरतपुर पर अपना राज्य कायम किया एवं वहां आसपास लूट मचाया, उन्होंने साथ ही साथ उन्होंने दिल्ली दरबार में चल रहे षड्यंत्र में भी भाग लिया।
सिक्ख
गुरू गोविंद सिंह सिक्खों के दसवें गुरु अंतिम गुरु थे परंतु औरंगजेब के शासनकाल में हुए अपना राज्य स्थापित नहीं कर पाए थे परंतु इनकी मृत्यु के बाद सिक्खों को बंदा बहादुर के रूप में एक योग्य नेता मिले। इनके नेतृत्व में सिक्खों ने मुगलों से बहादुरी के साथ मुकाबला किया। लाहौर से दिल्ली तक सारे इलाकों में मगर अंतिम में उनकी पराजय ही हुई एवं कुछ समय बाद अपने को इन्होंने संगठित कर लिया और नादिरशाह के आक्रमण के बाद में मुगलों का पतन हो गया तथा क्षेत्र में नासा द्वारा छोड़े गए अनुयायियों के बीच संघर्ष छिड़ जाने के कारण गड़बड़ी हुई जिसका फायदा उठाकर सिखों ने धीरे-धीरे पूरे पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया ।
जिसके बाद सिक्ख 12 छोटे समूहों में संगठित हुआ उनको मिसल कहते हैं इनके नेताओं में इलाकों को आपस में बांट लिया एवं अहमद शाह अब्दाली ही इन मसलों को खत्म नहीं कर पाया उसके चले जाने के बाद 2 साल के अंदर ही उसने उसके लाहौर और सरहिंद के सुबेदारों को निकाल बाहर किया गया एवं नाभा, पटियाला और कपूरथला जैसे छोटे राज्यों का उदय हुआ तथा 18वीं सदी के अंतिम दौर में शक्तिशाली राज्य की स्थापना की।
कर्नाटक व मैसूर
अली मैसूर के राजा की गद्दी छीन कर उस पर अपना आधिपत्य कर लिया एवं हैदर अली ने अपना जीवन का शुरुआत एक सैनिक के रूप में किया था एवं हैदर अली कविता टीपू सुल्तान बड़ा ही योग्य शासक था उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण सुधार किया है मैसूर भारत का एक अत्यंत शक्तिशाली राज्य बन गया।
मराठा शक्ति का उत्थान और पतन औरंगजेब ने मराठा राज्य की स्थापना की थी परंतु औरंगजेब की मृत्यु के बाद शिवाजी के पोते शाम को कैद से जब रिहा किया गया तो राजाराम की विधवा पत्नी तारा बाई ने अपने बेटे को एक प्रतिद्वंदी राजा के रूप में कोल्हापुर के गद्दी पर बैठाया इससे मराठा राज्य के दो दावेदार और समर्थकों के बीच युद्ध छिड़ गया एवं अंतिम में साहू का आधिपत्य स्थापित हुआ।

Q. औरंगजेब की मृत्यु के बाद राजपूत सत्ता का पतन क्यों हुआ?
Ans:-मुगल साम्राज्य के समय राजपूत सरदार अकबर के दृढ़ समर्थन में रहते थे मगर जब औरंगजेब का विरुद्ध विद्रोह की शुरुआत हुई तो औरंगजेब उनके पैतृक भूमि के उत्तराधिकारी में हस्तक्षेप करने लगे जिसके बाद औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य के बंधन से राजपुत अपने को मुक्त करने का प्रयास किया ।
उन्होंने अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने का भी प्रयास किया परंतु जोधपुर और आमेर के शासकों को क्रमशः गुजरात और मालवा का सूबेदार बनाया गया। कुछ समय तक राजपूत मुगल साम्राज्य में अपना स्थान और प्रभाव प्राप्त कर लिया परंतु जाट और मराठों के विरुद्ध साम्राज्य के मुख्य समर्थन बने रहे इस काल के सबसे सर्वश्रेष्ठ राजपूत शासक आमिर का सवाई राजा जयसिंह 1681 से 1743 तक इन्होंने शासन किया। इन्होंने एक खूबसूरत जयपुर नगर का निर्माण कराया तथा इन्होंने खगोल के अध्ययन के लिए दिल्ली, जयपुर ,उज्जैन, वाराणसी तथा मथुरा में वेधशाला स्थापित की ।
इसके बावजूद राजपूतों का प्रभाव अधिक दिन तक नहीं टिक सका और आपसी कलह के कारण इतने अधिक उलझ गए कि अपने प्रभाव क्षेत्र से बाहर सत्ता की होड़ के लिए ना उन में ताकत बची थी और ना ही उनकी क्षमता थी जिसके बाद जाटों, मराठों शासकों की शक्ति बढ़ गई तथा राजपूतों के हाथों से राज्य की जागीर बाहर हो गई और उनका प्रभाव घटने लगा यद्यपि राजपूतों का पतन होने लग गया।
उसी समय राजस्थानी के एक समूह का देश की अर्थव्यवस्था में प्रभाव बढ़या।वे सौदागर लोग थे जो उस समय गुजरात ,दिल्ली और आगरा के महत्वपूर्ण केंद्रों में अंतर राज्य व्यापार करते थे । राजस्थानी सौदागर नए केंद्र पर पहुंचे और उन्होंने बंगाल, अवध तथा दक्कन में वाणिज्य व्यापार पर अपना कब्जा जमाना शुरू किया।

Q. पेशवाओं का उदय कब हुआ?
Ans:-पेशवा के उदय के साथ साथ मराठा राज्य के विस्तार का युग शुरू हुआ जिसमें सैय्यद बंधुओं में से एक के साथ समझौता किया गया। 1719 में पेशवा मराठा सेना लेकर सैयद बंधु उनमें से एक की मदद से दिल्ली गया और वह फर्रूखसियर को गद्दी से हटाया गया जिसके बाद दिल्ली में मराठों ने मुगल साम्राज्य की कमजोर दशा देखी ।
पेशवा का पद सबसे शक्तिशाली बन गया और मराठा राजा की शक्ति कम होती चली गई। जिसके बाद बालाजी विश्वनाथ का बेटा बाजीराव प्रथम 1720 इसमें पेशवा बना एवं उसने अपने अनुसार मराठा शक्ति का विस्तार करने के लिए नई नीति अपनाई।
जिसके बाद मालवा, उत्तर गुजरात तथा बुंदेलखंड को जीतकर उसने ठेठ दिल्ली तक हमला किया। मगर दिल्ली पर कब्जा नहीं किया क्योंकि अभी तक मुगल बादशाह की काफी इज्जत थी।
मराठो की दिलचस्पी मुख्य रूप से भू राजस्व का अधिकांश हिस्सा हथियाने की थी ।
मराठों की राज्य व्यवस्था की शक्ति की अपनी कुछ कमजोरियां थी जिसके कारण आखिर में उनका पतन हो गया।
इस प्रकार 18 वी सदी के मध्यकाल तक पांच मराठा शक्तियों का उदय हुआ यह शक्तियां थी- नागपुर के भोंसले
पुणे में पेशवा
बड़ौदा में गायकवाड
इंदौर में होलकर और
ग्वालियर में सिंधिया
Q. पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई?
Ans:-पानीपत की पहली लड़ाई बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच 1526 ई० तथा पानीपत की दूसरी लड़ाई हेमू और अकबर के बीच में 1556 में हुई थी परंतु पानीपत की तीसरी लड़ाई जब 1716 निर्णायक लड़ाई हुई तब ना तो राजपूतों ने ना जाटो, ना ही सीख और ना ही किसी अन्य शक्ति ने मराठों की मदद की। जिस कारण मराठों की करारी हार हुई जिसके बाद इस लड़ाई को पानीपत की तीसरी लड़ाई के नाम से जाना गया।
अहमद शाह अब्दाली के साथ लड़ाई के नतीजे मराठों के लिए काफी भयंकर साबित हुई। लड़ाई के बाद इनकी आपस की एकता खत्म हो गई एवं उसके साथ ही मराठा सरदार भी आपस में लड़ने झगड़ने लगे एवं इनकी आंतरिक कलह के कारण इनकी हार हुई।