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Q. नवजागरण की शुरुआत कैसे हुई ?

Ans:-मध्य काल के उत्तरार्ध में व्यापार में वृद्धि होने के कारण अनेक नगरों की समस्या की समृद्धि में बढ़ोतरी हुई इसमें से या तो नगर व्यापारिक मार्गों के चौराहे पर बचे हुए थे या समूह तथा नदी के तट पर जोया पाठ्य दृष्टि से काफी सुविधाजनक है जिस कारण नगरों में रहने वाला व्यापारी समुदाय वहां का सबसे प्रमुख वर्ग बन गया।
ग्रामीण क्षेत्र की अपेक्षा शहरों में ज्यादा खुला वातावरण था इसलिए शहरों में तरह-तरह के विचारों का और कला-साहित्य से संबंधित कार्यकलापों का विकास हुआ एवं जैसे-जैसे व्यापार में वृद्धि हुई वैसे-वैसे व्यापारी वर्ग का महत्व बढ़ गया । उसके साथ ही समाज और सरकार में व्यापारियों को उच्च पद प्राप्त हुए। इस तरह से आम जनता के बीच एक नए मध्य वर्ग का उदय हुआ एवं व्यापारियों के साथ कुशल कारीगर भी जुड़े व बाद में निर्माता भी उनके समुदाय में शामिल हुए। इस प्रकार दायरा और महत्व बढ़ता चला गया।
यूरोप के नाविकों व नौचालकों ने एशिया के देशों में पहुंचने के लिए समुद्री मार्ग की खोज की एवं नए मार्गो और भूभागों की खोज के कारण यूरोप के सौदागर के व्यापार में खूब वृद्धि हुई एवं यूरोप वासियों ने अपनी व्यापारी बंदरगाह और उपनिवेश स्थापित किए। जिसके बाद यूरोप के कुछ देशों के लोग अमेरिका पहुंचकर वहां अनेक क्षेत्रों में रहने लगे ।
इस विकास के बाद यूरोप में सामंतवाद का पतन शुरू हुआ इसके स्थान पर नई समाज व्यवस्था अस्तित्व में आई और पूंजीवाद का जन्म हुआ (पूंजीवाद एक आर्थिक पद्धति है जिसमें उत्पादन के साधन और उसका वितरण पूंजीपतियों के हाथ में होता है एवं उत्पादन व वितरण उनके लाभ के लिए किए जाते हैं)।

नई समाज व्यवस्था की मुख्य विशेषता:-

पूंजीपतियों और श्रमिकों के दो वर्गों का उदय हुआ। पूंजीपति मशीनों की और कारखानों में उन मशीनों द्वारा तैयार होने वाले वस्तुओं के मालिक थे । उनका मुख्य उद्देश्य मुनाफा कमाना था। वस्तुओं की बिक्री पर भी उन्हीं का नियंत्रण था, श्रमिक लोग वस्तुओं का उत्पादन करते थे और उन पुंजीपतियों द्वारा वेतन प्राप्त करते थे।

Q. अब प्रश्न यह उठता है कि यह नई समाज व्यवस्था अस्तित्व में कैसे एवं किस तरह से आई?

Ans:-जैसे-जैसे देश में और विदेश में व्यापार का विस्तार हुआ वैसे ही यूरोप का व्यापारी समुदाय उत्पादन की प्रणाली में बदलाव करने पर विवश हुआ ताकि वह कम समय में ज्यादा वस्तुएँ तैयार की जा सके एवं वस्तुओं की जैसे-जैसे मांग बढ़ती गई उसके उत्पादन के तरीकों में भी बहुत ही तेजी से बदलाव आने लगे ।
पहले कारीगर सामान्य औजारों से अपने घर पर ही रह कर कार्य करते थे एवं उनके परिवार के सदस्य उनकी मदद करते थे परंतु आवश्यक कच्चा माल व्यापारिक प्राप्त करते थे और फिर उन्हें तैयार की गई वस्तुएं मुहैया कराई जाती थी। यह “घरेलू व्यवस्था” थी जिसे बाजार की लगातार मांग बढ़ने के कारण यह घरेलू व्यवस्था के तहत कार्य करना संभव नहीं था।
इसके साथ ही 18 वीं सदी में घरेलू व्यवस्था की जगह पर “कारखाना व्यवस्था” ने स्थान ले लिया। जिसमें कारखानों का मालिक पूंजी लगाकर बड़ी मात्रा कच्चा माल खरीदता था।
नए अविष्कार की गई मशीनों के उपयोग से ही कारीगरों को उत्पादन करने वाले काम पर लगाता था और तैयार किए सामानो को बाजार में बेचा जाता था जिससे धीरे-धीरे श्रमिक अपने घर में नहीं बल्कि कारखानों में काम करने लगे।

पहले की समाज व्यवस्था में राजा व सामंत सबसे शक्तिशाली व्यक्ति होते थे परंतु जैसे यह व्यवस्था लागू की गई उनका स्थान कारखानों के मालिकों ने ले लिया।

सबसे पहले इंग्लैंड में नई समाज का उदय हुआ एवं मशीनों का उपयोग भी सबसे पहले इंग्लैंड में ही हुआ था और भाप की शक्ति से चलने वाले इंजन का आविष्कार के कारण इंग्लैंड में सूती वस्त्र उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई। विकास के इस दौर औद्योगिक क्रांति के नाम से जाना जाता है । इस क्रांति की शुरुआत में 18वीं सदी के उत्तरार्ध में हुई थी बाद में क्रांति की उत्पादन प्रणाली को प्रभावित किया एवं आगे चलकर बिजली तथा धमन भट्टी आविष्कारों ने लोहे की ढलाई जैसे अविष्कारों ने औद्योगिक क्रांति को पहले ही प्रभावकारी बना दिया था एवं नई पूंजीवादी समाज व्यवस्था और औद्योगिक क्रांति में पूरे विश्व के इतिहास में एक नई दिशा दी।

Q. आधुनिक दुनिया के निर्माण में अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांति की क्या भूमिका थी?बताएं।

Ans:-पहली क्रांति की शुरुआत अंग्रेजी सरकार द्वारा उत्तरी अमेरिका में बसाए गए 13 उपनिवेशों का था तथा यह उपनिवेश के अधिकांश लोग इंग्लैंड से अमेरिका आए थे परंतु उन्हें अधिकार नहीं दिए गए थे जो इंग्लैंड से बसे हुए बाकी अंग्रेजों को दिए गए थे।
जिस कारण यह सभी उपनिवेश बसे हुए लोग अंग्रेजी सरकार के अधीन थे एवं उन्हें अंग्रेजों को कर देना पड़ता था जिसके बाद करों में वृद्धि होती चली गई एवं वाणिज्य व्यवस्था तथा प्रशासन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध भी लगाए गए जिसके बाद उपनिवेशो ने विरोध करना शुरू किया । 18 वीं सदी के सातवें और आठवें दशक में अनेक जगहों पर विद्रोह हुआ एवं वह अपने को अमेरिकी मानने लगे वह उसकी मांग करने लगे कि उनका राष्ट्र इंग्लैंड से स्वतंत्र होना चाहिए जिसके बाद अनेक उपनिवेश लोगों को इससे इस क्रांतिकारी विचारों से प्रेरणा मिली एवं कुछ कुछ अंग्रेज व फ्रांसीसी दार्शनिक ने अपने विचार व्यक्त किए थे जिसमें उन्होंने कहा था कि मनुष्य को कुछ मौलिक अधिकार प्राप्त है जिन्हें उनसे कोई नहीं छीन सकता है ।अन्याय के खिलाफ विद्रोह करना भी एक ऐसा ही अधिकार है इस अधिकार का उपयोग करने के लिए अमेरिकी नेता थॉमस जेफरसन ने अपनी उपनिवेश साथियों को प्रोत्साहित किया व 4 जुलाई 1776 को 13 उपनिवेशो के प्रतिनिधि आपस में मिले जिसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता की घोषणा की एवं यह भी कहा कि मनुष्य जन्मत: समान है मनुष्य को जो जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त है उन्हें कोई नहीं छीन सकता परंतु अंग्रेज सरकार इन अधिकारों को मानने के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए अमेरिकियों ने स्वतंत्रता की लड़ाई शुरू की .
उन्होंने गणतंत्र प्रणाली की सरकार स्थापित की जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका कहने लगे गणतंत्र में सरकार की उसी जनता से मिलती है एवं जनप्रतिनिधियों ने अमेरिका में एक नई सरकार का गठन किया उन्होंने एक अधिकार विधेयक “बिल ऑफ राइट्स” स्वीकार किया ।
इस विधेयक के जरिए अमेरिकी नागरिकों को कुछ अधिकार प्रदान किए गए जिसके तुरंत बाद फ्रांस में क्रांति हुई उस समय फ्रांस की जनता की दशा काफी दयनीय थी । यहां तक कि जो लोग धनी थे मगर सामंती परिवार के नहीं थे जैसे कि व्यापारी उन्हें भी अधिकार प्राप्त नहीं थे ।

फ्रांस के राजा सोलहवां लुई अधिक कर लेना चाहता था तथा धन के नाम पर जनता से अधिक धन उगाहना चाहता था ,परंतु तब तक फ्रांसीसी दार्शनिकों ने आम जनता में क्रांतिकारी विचार एवं अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए वह उन्हें प्रेरित कर चुके थे। जिसके बाद लोग अपने अधिकार को प्राप्त करने के लिए क्रांति की शुरुआत की एवं जनता के प्रतिनिधियों ने अपने को फ्रांस की राष्ट्रीय असेंबली के रूप में गठित किया।
14 जुलाई 1789 को जनता ने पेरिस में बैस्तिल के कैदखाने को तोड़ दिया एवं हर साल यह दिन फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस के रुप में मनाया जाता है। राष्ट्रीय असेंबली में “मनुष्य और नागरिकों के अधिकारों” का घोषणा पत्र पारित किया। घोषणापत्र में कहा गया कि सब “मनुष्य को जन्म से ही स्वतंत्रता और समानता के अधिकार जीवन भर के लिए मिले हुए हैं” क्रांति के बाद फ्रांसीसी गणराज्य की स्थापना की गई एवं स्वतंत्रता और समानता उसके मार्गदर्शक सिद्धांत बन गए।

राष्ट्रवाद से क्या समझते हैं?

राष्ट्र का निर्माण उस वक्त शुरू हुआ जब एक निश्चित भूभाग पर रहने वाले लोग जिनका अपना एक लंबा इतिहास था उन्होंने एक जनगण के रूप में मानना शुरू कर दिया तथा वे लोग एक दूसरे पर आश्रित और दूसरों से अलग थे । मध्य युग में यूरोप के अधिकांश देशों के राजाओं के हाथ में बहुत काम शक्ति रह गई एवं अपनी जागीरो मे सामंती सरदार अत्यंत शक्तिशाली बन गए थे।
यहां तक कि एक ही देश के कार्यकाल में दूसरे प्रदेश के कायदे कानून के अलग अलग थे। यहां सम्राज्य थे वहां अक्सर ही एक देश का शासक दूसरे देशों के कुछ हिस्सों को हड़पने का प्रयास करता था।
राज्यों की सीमाएं परिवर्तित होती रहती थी परंतु धीरे-धीरे सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के साथ-साथ बड़े पैमाने पर राजनैतिक परिवर्तनों की शुरूआत हुई। जिसके बाद देश के कई राज्यों में बैठे हुए लोग एकजुट हुए एवं विभिन्न भाग में एक राज्य का निर्माण हुआ था ।
यूरोप में इंग्लैंड और फ्रांस पहला ऐसा देश था जिनका स्वतंत्र और संयुक्त राज्य के रूप में उदय हुआ जो पूर्ण रूप से आंशिक विदेशी शासन के अधीन था।
उसने गुलामी की जंजीर को फेंकने के लिए अपने संयुक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के लिए संघर्ष शुरू किया। 19वीं सदी में पोलैंड, जर्मनी, इटली इत्यादि में स्वतंत्रता राज्य के लिए संघर्ष किए ।

Q. साम्राज्यवाद क्या है?

Ans:-पंद्रहवीं शताब्दी में एशिया के बंदरगाहों में मसाले ,सूती कपड़ा ,चीनी ,मलमल आदि चीजें खरीदने आते थे, जिससे यूरोप में इन सब चीजों की मांग में बढ़ोतरी हुई और यूरोप से आने वाले यह सभी नाविक और व्यापारी मुख्यतः इंग्लैंड, फ्रांस ,हालैंड ,डेनमार्क, पुर्तगाल के निवासी थे। ये सभी समुंद्र तटवर्ती देश से संबंधित हैं ।
यूरोप का व्यापारी अपना माल को श्रीलंका, मलेशिया, इंडोनेशिया ,भारत आदि देश से खरीदते थे एवं इससे व्यापार में काफी मुनाफा होता था । इस लड़ाई में उन्हें अपनी सरकारों से मदद मिलती थी एवं 18 वीं सदी के मध्यकाल तक इंग्लैंड ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों का व्यापार करने वाले यूरोप के व्यापारी समुदाय का प्रमुख स्थान प्राप्त कर लिया।
इस कंपनी का मुख्य केंद्र भारत था।

यूरोप के अन्य देशों के व्यापारियों ने भी अपना केंद्र एशिया के अन्य देशों में स्थापित कर लिया एवं उस समय एशिया और अफ्रीका के देशों की स्थिति यूरोप से काफी अलग थी एवं उनकी सरकारें कमजोर थी ,अच्छी नौसेना नहीं थी जिसके कार्य से व आर्थिक परिवर्तन में यूरोप के देशों को और भी शक्तिशाली बना दिया।
एशिया और अफ्रीका के देशों में तब तक शुरुआत भी नहीं हुई थी एवं व्यापार के लिए एशिया के देशों में पहुंचे हुए यूरोप वासियों कल कपट और लड़ाई उसे इन पर कब्जा कर लिया।
एशिया व अफ्रीका की देश की स्थिति कमजोर होती गई जो महत्वपूर्ण कारण था ।
जिसने यूरोप वासियों को इन देशों पर अपना कब्जा जमाने एवं अपने उपनिवेश स्थापित करने के लिए प्रेरित किया जिसके बाद औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कारखानों में उत्पादन लगातार बढ़ता रहा और मालिकों को अधिक मुनाफा मिलता रहा ।
यूरोप के व्यापारी एशिया के बाजारों से अच्छी तरह परिचित थे जिसके बाद उन्होंने बाजारों पर कब्जा करके इस पर राजनीतिक प्रभुत्व भी स्थापित कर लिया।
इस प्रकार से एशिया पर साम्राज्यवाद का कब्जा शुरू हुआ जो 19 वी सदी के मध्यकाल से अफ्रीका भी इसकी चपेट में आ गया और यूरोप के देशों पर उद्योगों का विकास कर लिए जो सैनिक दृष्टि से अधिक बलशाली थे। उन्होंने एशिया और अफ्रीका की जनता पर विजय प्राप्त किया ।दूसरे महायुद्ध 1939-1945 में साम्राज्यवादी शक्तियों को और कमजोर बना दिया एवं उपनिवेश पर उनका कब्जा कम होने लगा जिसके बाद साम्राज्यवाद के विरुद्ध भी तैयार हुए।
साम्राज्यवादी शक्तियों के विरूद्ध काफी संघर्ष पहले से ही शुरू हो गए थे वह स्वतंत्रता सेनानियों को इसका कड़ा मुकाबला करना पड़ता था और उन्हें कुर्बानियां देनी पड़ती थी। सन् 1945 में दूसरे महायुद्ध समाप्त होने के बाद एशिया और अफ्रीका समेत लगभग सभी देश स्वतंत्र हो गए।

19वीं सदी में फ्रांसीसी क्रांति ने एक ऐसे जनतंत्र का प्रचार किया जो किसी भी व्यक्ति को समान अधिकार देने का समर्थन करता था। पूंजीवाद के विकास के बाद जनता को दो प्रमुख वर्गों में बांटा गया था जिसमें एक वर्ग था पूंजीपति वर्ग और दूसरा वर्ग था मजदूर वर्ग।
मजदूर वर्ग को नए उद्योगों के अधिकांश कार्य नहीं मिल पाते थे और वे गरीब तथा प्रायः बेरोजगार बने रहते थे।

Q. मजदूर संघ की स्थापना कब और कैसे हुई ?

An:-19 वीं सदी के दौरान मजदूरों ने अपने हितों की रक्षा एवं प्राप्ति के लिए अपना संगठन बनाना शुरू किया जो संगठन “मजदूर संघ” (ट्रेड यूनियन) कहलाया.
बेहतर जिंदगी के लिए उन्होंने राजनीतिक आंदोलन की भी शुरुआत की एवं कुछ विचारको और दार्शनिकों ने यह मांग भी उठाई थी की जमीन, कारखाने और उत्पादन के अन्य साधन चंद व्यक्तियों के कब्जे में ना रहकर सभी के लिए होना चाहिए.इस पर आम जनता का स्वामित्व होना चाहिए।
इसमें दो विचारक जिनमें सिद्धांतों का पूरी दुनिया पर गहरा असर पड़ा ऐसे दो विचारक थे कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स।
यह दोनों मित्र थे और दोनों ने करीब 40 साल तक साथ काम करके अपने विचार को विकसित किया था। उन्होंने कहा कि पूंजीवाद के स्थान पर एक नई समाज व्यवस्था समाजवाद की स्थापना होनी चाहिए ।


समाजवाद व्यवस्था में उत्पादन के साधन जमीन, कारखाने आदि पूरे समाज की सामूहिक संपत्ति होगी ना कि केवल कुछ लोगों की। इन विचार पर समाजवाद की स्थापना के लिए दुनिया के लगभग सभी भागों में राजनीतिक आंदोलन शुरू हो गए एवं इन विचारों से प्रेरित होकर 1917 की पहली सफल क्रांति रूप में हुई जिसमें निरकुंश जारशाही को उखाड़ फेंका। क्रांति के बाद यहां समाजवादी व्यवस्था का भी निर्माण शुरू हो गया एवं अमेरिका और फ्रांसीसी की तरह ही रूसी क्रांति का भी पूरी दुनिया पर गहरा असर पड़ा तथा हमारा राष्ट्रीय आंदोलन भी रूसी क्रांति से असर से अछूता नहीं रहा मार्क्स तथा एंगेल्स ने रूसी क्रांति ने सभी देशों को काफी प्रभावित किया।


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