Q. एक्ट के प्रति कांग्रेस का रुख क्या था?
- सरकार ने कांग्रेस की मांग की उपेक्षा की और अगस्त 1935 ईस्वी में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट की घोषणा की इस एक्ट के अनुसार भारत एक संघ राज्य बनेगा बशर्ते कि 50% रियासतें इसमें शामिल हो जाए तब उन्हें दोनों केंद्रीय विधान मंडलों में पर्याप्त संख्या में प्रतिनिधित्व मिलेगा 1935 ईसवी का कानून तत्कालीन स्थिति बेहतर था उसमें प्रांतीय स्वायत्तता तथा लागू की प्रांतीय सरकारों के मंत्री विधानसभा के प्रति उत्तरदाई होगा विधानसभा के अधिकारों को भी बढ़ा दिया गया

- केवल 14 प्रतिशत आबादी को ही मत देने का अधिकार था गवर्नर जनरल और गवर्नर की नियुक्ति का अधिकार ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथों में रखा था।
- जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लखनऊ में 1936 ईस्वी में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में उन्हें पर्याप्त इस एक्ट को अस्वीकार कर दिया और संविधान सभा गठित करने की मांग की, मगर उसने 1937 में होने वाले प्रांतीय चुनावों में भाग लेने का निर्णय किया और यह निर्णय किया कि वह एक्ट को वापस लेने की मांग की करेगी। उन्होंने कहा कि गरीबी और बेरोजगारी भारत की दो प्रमुख समस्याएं हैं लोगों को महत्व के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मसलों का परिचय कराने के लिए चुनाव में एक अच्छा मौका प्रदान किया।
- चुनाव में कांग्रेस की भारी विलय हुई। 6 प्रांत में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ एवं तीन अन्य प्रांतों में वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरे। मुस्लिम लीग ने जो कि सभी मुसलमानों का प्रतिनिधि संगठन था उसके लिए सुरक्षित स्थानों में से एक चौथाई से भी कम स्थान प्राप्त किया। हिंदू सांप्रदायिक दलों का भी सफाया हो गया। कांग्रेस में एक 11 प्रांतों में से 7 प्रांतों में मंत्रिमंडल बनाएं। केवल 2 प्रांतों में गैर कांग्रेसी मंत्री मंडल बने ।
- कांग्रेसी मंत्रिमंडल नें कुछ अच्छे काम किए जिससे शिक्षा का प्रचार प्रसार हुआ और किसानों की हालत में सुधार हुई, राजनीतिक बंदियों को भी रिहा कर दिया गया तथा समाचार पत्रों पर लगाए गए प्रतिबंध को ही हटा दिया गया । इस मंत्रिमंडल में भारतीय रियासतों की जनता को भी प्रभावित किया।