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मौर्य साम्राज्य की विस्तृत जानकारी:-छठी शताब्दी में महाजनपदों की शक्ति के बल पर मगर में मौर्य ने एक शक्तिशाली साम्राज्य जिसका नाम मगध था इस साम्राज्य की स्थापना की इस साम्राज्य की स्थापना का श्रेय मगध संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य और उनके मंत्री आचार्य कौटिल्य (चाणक्य) हो जाता है इतिहास में मौर्य साम्राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका थी ।यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य से लेकर गंगा नदी के मैदान तक विस्तृत था। इसकी राजधानी (पाटलिपुत्र) थी जो आज के पटना शहर के नाम से विख्यात है इसने पूर्व की तरफ तो कई छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला था चला गया जो सिकंदर महान के आक्रमण के पश्चात अस्त व्यस्त हो गए थे चक्रवर्ती सम्राट अशोक के राज्य में मौर्य वंश का वृहद स्तर पर विस्तार हुआ सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान एवं एक शक्तिशाली राज्य बनकर विश्व भर में प्रसिद्ध हुआ।

मौर्य वंश के शासकों का विवरण कुछ इस प्रकार-इसके प्रथम शासक चंद्रगुप्त मौर्य थे जो 321 से 300 ई पू इसका शासनकाल रहा इनका वास्तविक नाम चंद्रगुप्त मौर्य था इनके पूर्वज पीपलीवन के शासक थे मगर इनका बाल्यकाल जंगलों में बीता कुछ समय बाद तक्षशिला के आचार्य चाणक्य ने नंद वंश के विनाश के लिए चंद्रगुप्त मौर्य को कूटनीति की शिक्षा प्रदान करने लगे इनका मुख्य लक्ष्य यूनानी आक्रमणकारियों से लोगों को सुरक्षा प्रदान करना तथा मगध को नंदू से मुक्त कराना था। चंद्रगुप्त मौर्य ने घनानंद जो नंद वंश के अंतिम शासक थे उनको मारकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की माना जाता है कि धनानंद को मारने के लिए चंद्रगुप्त ने सिकंदर से सहायता मांगी थी मगर वह इसमें असफल रहा है पाटलिपुत्र में चंद्रगुप्त मौर्य को मुक्तिदाता के रूप में स्वीकार किया गया है।विष्णु पुराण के अनुसार चंद्रगुप्त का जन्म नंद राजा की पत्नी मोरा से हुआ था और इस पुराण के अनुसार चंद्रगुप्त को शूद्र जाति का माना गया है मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त के लिए वृषभ और कुल ही शब्द का प्रयोग किया गया।इसी प्रकार ब्राह्मण धर्म ग्रंथों में इसे शूद्र जाति का माना गया है और बौद्ध धर्म के अनुसार इसे क्षत्रिय कुल का माना गया।मगर जैन धर्म के मतानुसार कहा जाता है कि इस स्कूल के लोग मोर पाला करते थे और इसी वजह से इन्हें मौर्य वंश का नाम दिया गया।

इतिहासकार जस्टिन के अनुसार सेंन्डद्रीकोटस(चंद्रगुप्त)निम्न जाति में पैदा हुआ था मगर उसे दैवीय शक्ति प्राप्त होने की वजह से उसे राज पद की प्राप्ति हुई।चंद्रगुप्त के राजा बनने के उपरांत उसने एक विशाल सेना की सहायता से एक वृहद साम्राज्य की स्थापना की ऐसा माना जाता है कि सौराष्ट्र के शासक उसे गुप्त को चंद्रगुप्त ने मनोनीत किया था।माना जाता है कि चंद्रगुप्त ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी।चंद्रगुप्त का साम्राज्य पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चिम में हिंदू कुश पर्वत तक विस्तृत थी और उत्तर में हिमालय की श्रृंखला से दक्षिण में मैसूर तक विस्तृत था साथ ही पश्चिमोत्तर में मध्य एशिया तक इसने अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया था। इस की प्रशासनिक व्यवस्था अत्यंत सुदृढ़ थी राजा राज्य का सर्वोपरि हुआ करता था और सभी अधिकारी राजा के अधीन होते थे।पदाधिकारियों द्वारा प्रशासन का नियंत्रण राजा करता था तथा गुप्त चारों की सहायता से राजा सभी अधिकारियों पर नियंत्रण रखता था स्त्रियां महल में अंग रक्षकों के साथ रहती थी वह लोग मद्यपान एवं खेलकूद में भी अभिरुचि लिया करती थी। ब्राह्मणों का आदर किया जाता था तथा चंद्रगुप्त मौर्य जैन धर्म का संस्थापक था।

चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पहले 12 वर्ष का अकाल पड़ा जिस से त्रस्त होकर चंद्रगुप्त मौर्य ने आचार्य भद्रबाहु के साथ मैसूर चला गया और वही उसने उपवास करते हुए आत्महत्या (सल्लॆखन) कर लिया, श्रवणबेलगोला में चंद्रगुप्त मौर्य को कैवल्य की प्राप्ति हुई बिंदुसार:-(अमित्रघात) चंद्रगुप्त मौर्य, मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे उनके पुत्र का नाम बिंदुसार हुआ जो चंद्रगुप्त मौर्य के बाद मौर्य साम्राज्य के अगले राजा बने बिंदुसार के विषय में इतिहास में कोई खास जानकारी उपलब्ध नहीं है।बिंदुसार भारत का दूसरा मौर्य शासक था और मौर्य सम्राट के सबसे महान शासक सम्राट अशोक के पिता भी थे।चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक इतने महान शासक थे कि उनके सामने बिंदुसार का जीवन चरित्र धूमिल नजर आता है।बिंदुसार का उपनाम अमित्र घाट था जिसका अर्थ है शत्रुओं का संघार इसके अलावा भी बिंदुसार के कई और नाम थे जैसे अमित्रकेटे, अमितश्रचेत्से, सिंह सेन इत्यादि। पुराणों के अनुसार इसकी शासन अवधि तो 4 वर्षों की थी चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के उपरांत बिंदुसार के शासन प्रशासन में भी उनकी योगदान दीया जितनी कि चंद्रगुप्त मौर्य के समय उन्होंने किया था।बिंदुसार ने अपने पिता द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य पर शासन किया और अपने पिता के राज्य को अक्षुण्य रखा।

बिंदुसार के जीवन चरित्र के बारे में प्राचीन एवं मध्यकालीन सूत्रों और दस्तावेजों से कुछ खास विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है उनके जीवन से संबंधित बहुत सी जानकारी बौद्ध और जैन धर्मों से प्राप्त की गई है। बिंदुसार के शासनकाल में तक्षशिला में दो विद्रोह हुए, जिन का दमन करने के लिए पहली बार अशोक को तथा दूसरी बार सुशील को इन्होंने भेजा था ।बिंदुसार के राज दरबार में यूनानी शासक एंटीओकस प्रथम ने डायमेकस नामक व्यक्ति को राजदूत के रूप में नियुक्त किया। मिश्रा नरेश फिलाडेल्फिया टालमी द्वितीय ने डियानीसियस नामक मिस्र के राजदूत को बिंदुसार के राज दरबार में नियुक्त किया था। बिंदुसार की मृत्यु 272 ई पू मैं हो गई।


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