जनसंख्या पर्यावरण और विकास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां
जनसंख्या भूगोल का जनक है धरातलीय विभाग मैं क्षेत्रीय विभिनता मानव के द्वारा होती है। आज के भूगोल पत्ता विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों को जनसंख्या के जन्म दर मृत्यु दर तथा देशांतर इन का अध्ययन करते हैं इस प्रकार के अध्ययन करने वाले विभिन्न भूगोल वक्ताओं को विशेषकर सर्वश्री डोज और जेंडर के नाम उल्लेखनीय हैं। आदिकाल से मानव और प्रकृति का अटूट संबंध रहा है। सभ्यता के विकास में प्रकृति ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। वर्तमान में मनुष्य ने अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इतना अधिक विकास किया है कि उसका जीवन आराम दे हो गया है परंतु यह भी सत्य है कि अपनी बढ़ती हुई जरूरतों को पूरा करने के लिए मनुष्य जिस क्रूरता से पेड़ों और जंगलों को काट रहा है दिन प्रतिदिन नई-नई मारते सड़के भवन कारखाने आदि बना रहा है उसे प्रकृति में असंतुलन होने का खतरा उससे भी तेजी से बढ़ता जा रहा है। वर्तमान में मनुष्य प्रकृति का स्वामी बनने के प्रयास में लगा है आधुनिकता के नाम पर वह प्रकृति का शोषण करता जा रहा है जब हम आधुनिकता की बात कर रहे हैं तो यह जान लेना हमारे लिए भी आवश्यक है कि आधुनिकता से क्या तात्पर्य है? वास्तव में आधुनिकता का अर्थ किसी भी चीज का ऐसा नया रूप जिसमें ऐसी कोई भी संगति ना हो जो कि उसकी महत्वता को कम करती हो परंतु आज दिन प्रतिदिन आधुनिकता के परिणाम स्वरुप मनुष्य ने मनुष्य की महत्वता को समाप्त कर दिया है।

पर्यावरण एवं आर्थिक विकास
विकास एवं परिवार में गणेश संबंध है किसी भी राष्ट्र का विकास मुख्य तो इस बात पर निर्भर करता है कि उस राष्ट्र में प्राकृतिक संसाधनों की पूर्ति कितनी है और वह भविष्य के लिए उपलब्धता कितनी है। विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में जल एवं वायु प्रदूषण भी आते हैं जो आर्थिक क्रियाओं को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। वर्तमान समय में तेजी से बढ़ता हुआ और जोगी की करण पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है तू गति से बढ़ते हुए औद्योगिक करण के परिणाम स्वरूप शहरीकरण वाहनों में मेरी ध्वनि प्रदूषण आदि पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहे हैं। पिछले 20 वर्षों में जहां देश में आर्थिक वृद्धि दर में 163% की वृद्धि हुई वहीं पर पर्यावरण प्रदूषण का दबाव इन वर्षों में 475% से भी अधिक बड़ा है आवरण को प्रदूषित करने वाले कारकों में जल प्रदूषण का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है पिछले 6 वर्षों के दौरान देश में ऐसी कोई भी नदी नहीं है जो आवश्यक मानक अस्तर को पूरी कर सकती हो जिस कारण लोगों को पीने का स्वच्छ पानी नहीं मिल पाता और लोगों को अनेक प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। एकता के अनुसार विभिन्न प्रकार की औद्योगिक इकाइयों द्वारा दामोदर घाटी में प्रतिदिन लगभग 50 बिलियन प्रदूषित कचरा प्रवाहित किया जाता है जो घाटी को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है। वातावरण को दूषित करने में जल एवं वायु प्रदूषण का प्रमुख स्थान है इस बात से तो लगभग सभी परिचित है परंतु ध्वनि से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण के प्रति आज भी ज्यादातर व्यक्ति अनभिज्ञ है। शायद इसीलिए उन्हें यह आभास भी नहीं है कि तेज ध्वनि से ना केवल मनुष्य की कार्य क्षमता एवं स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है बल्कि इसे पेड़ पौधों और इमारतों आदि को भी नुकसान पहुंचता है। क्या पता चला है कि शोर-शराबे वाली जगह पर रहने वाले बच्चों की स्मरण शक्ति शांत जगह पर रहने वाले बच्चों की तुलना में कम है। वर्तमान समय में तो ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता प्रत्येक 10 वर्ष में दोगुनी से ज्यादा होती जा रही है।

पर्यावरण एवं जनसंख्या किसी भी देश में प्राकृतिक संपदा का समुचित विकास एवं उपयोग करने के लिए उस देश में विशेष सीमा तक जनसंख्या का होना अति आवश्यक होता है के उपरांत व्यक्तियों की संख्या की अपेक्षा उनकी गुणवत्ता देश को समृद्ध बनाने में योगदान करती है। मनुष्य द्वारा ही प्राकृतिक संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सकता है मनुष्य ही वह तत्व है जो प्राकृतिक पर्यावरण को मारता भी है और नष्ट भी करता है और स्वयं उससे प्रभावित भी होता है इसलिए मनुष्य और पर्यावरण का तो घनिष्ठ संबंध है। जनसंख्या वृद्धि किसी भी देश के लिए लाभदायक है अथवा हानिकारक यह उस देश के प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करती है। आबादी के बढ़ने के कारण जंगल के पेड़ पौधे चारे और मकान आदि के लिए काटे जा रहे हैं यहां आबादी के दबाव के कारण घाट तक चल जाती है खेती की भूमि पर दबाव बढ़ने से उनका उपजाऊ पर नष्ट होता जा रहा है और जिसे खेती योग्य भूमि बंजर और रेगिस्तान में बदलती जा रही है। उपरोक्त तथ्यों से यह कहा जा सकता है कि पर्यावरण जनसंख्या एवं आर्थिक विकास एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं और एक दूसरे पर निर्भर भी हैं जनसंख्या वृद्धि एवं आर्थिक विकास किसी देश के पर्यावरण को किस हद तक झकझोर सकते हैं यह जनसंख्या के आकार पर भूमि की उपलब्धता एवं प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। पर्यावरण जिसका एक महत्वपूर्ण अंग जंगल है एवं जोकि से मिलकर बनते हैं हमारे देश की परंपरा में भी वृक्षों को काटना पाप माना गया है।
पर्यावरण अध्ययन के उद्देश्य दुनिया का विकास करना है जिसमें व्यक्ति पर्यावरण और इसके साथ जुड़ी समस्याओं के बारे में जान ले और व्यक्तिगत रूप से काम करने के लिए प्रतिबंध हो और साथ ही साथ वर्तमान समस्या और भविष्य की रोकथाम के समाधान के लिए सामूहिक रूप से काम करें।

पर्यावरण संरक्षण का महत्व
पर्यावरण संरक्षण का समस्त प्राणियों के जीवन तथा इस धरती के समस्त प्राकृतिक परिवेश से गणित संबंध है। प्रदूषण के कारण हो रही परेशानियां से मानव सभ्यता का भविष्य में अंत दिखाई दे रहा है। इस स्थिति को ध्यान में रखकर सन 1992 में ब्राजील में विश्व के 174 देशों का पृथ्वी सम्मेलन आयोजित किया गया। इसके पश्चात सन 2002 में जोहांसबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित कर विश्व के सभी देशों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए अनेक उपाय बताए गए। अगर हमने इन उपायों का सही से इस्तेमाल नहीं किया तो मंगल ग्रह आदि ग्रहों की तरह धरती का जीवन चक्र भी एक दिन समाप्त हो जाएगा।
पर्यावरण संरक्षण के उपाय
कारखानों से हवा में मिलने वाले जल में और भूमि के अंदर फेंके जाने वाले अपशिष्ट पदार्थों का उचित निस्तारण किया जाना चाहिए।
विषैले और खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के निपटान के लिए कड़े कानूनों का प्रावधान करना चाहिए।
संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग हेतु जन जागरण करके लोगोको जागरूक करना चाहिए।
कृषि में रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करने का सुझाव देना चाहिए।
वन प्रबंधन के द्वारा वनों के क्षेत्र में वृद्धि किया जाना चाहिए।