Q. वीटो की शक्ति क्या है भारत के राष्ट्रपति के संदर्भ में बताइए# विश्व के अलग-अलग देशों में वीटो की शक्ति कैसे प्रयोग की जाती है vinayiasacademy.com
भारत के राष्ट्रपति अनुच्छेद 111 का प्रयोग करके वीटो की शक्ति जो संविधान में दी गई है को लागू कर सकते हैं, आमतौर पर वीटो की शुरुआत छठी शताब्दी ईसा पूर्व में मानी जाती है रोमन साम्राज्य से ,इसके साथ साथ विश्व के अनेक देशों में जैसे कि ऑस्ट्रेलिया में वहां की महारानी इसका प्रयोग कर सकती है क्योंकि यह राष्ट्रमंडल का एक सहयोगी देश है, इसी प्रकार से अमेरिका में राष्ट्रपति 10 दिनों के अंदर अगर किसी विधेयक को लौटा देते हैं तो यह एक वीटो का प्रकार होता है ,हालांकि अगर संसद के दोनों सदन दो तिहाई बहुमत से फिर से कानून बना दे तो यह वीटो और स्वीकृत हो जाएगा । ऑस्ट्रिया में वीटो लगने के बाद जनमत संग्रह भी हो सकता है। आयरलैंड में यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक चला जाता है। स्पेन में न्यायपालिका को 15 दिन में आदेश देने का अधिकार है ।इसी प्रकार से इटली फ्रांस लाटविया में वीटो का कमजोर रूप को रखा गया है। भारत के संदर्भ में अगर देखा जाए तो पूर्ण अत्यंतिकveto की शक्ति दी गई है यानी कि संसद से अगर कोई विधेयक पारित हो जाता है और वह निजी विधेयक है जिसका अर्थ हुआ कि वर्तमान सरकार के कोई मंत्री के द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है तो इसमें ब्रिटेन के तर्ज पर रोक दिया जाएगा तो कानून नहीं बनेगा। इसी प्रकार से निलंबित veto जो फ्रांस में अक्सर यूज होता है भारत में भी इसका प्रयोग होता है ,जब कभी साधारण विधेयक को राष्ट्रपति के पास वापस भेजा जाता है एवं राष्ट्रपति उसे फिर से वापस भेज देते हैं तो बीच की अवधि का समय को निलंबित veto कहा जाता है, 1991 ईस्वी में भारत के राष्ट्रपति वेंकटरमन ने इसका प्रयोग किया था जबकि एक वित्तीय विल पेंशन संबंधी बिल था राष्ट्रपति ने यह कहते हुए रोक दिया कि उनके सलाह के बिना इसे लोकसभा में क्यों पेश किया गया, सबसे महत्वपूर्ण भारत के संदर्भ में पॉकेट वीटो है जिसमें संविधान में कोई समय का वर्णन नहीं किया गया है 1986- 87 में ज्ञानी जेल सिंह ने भारतीय डाक विधायक पर इसका प्रयोग किया था.

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जैसा कि हम जानते हैं किस संविधान का अनुच्छेद 74 के द्वारा भारत के राष्ट्रपति मंत्री परिषद एवं मंत्री मंडल प्रधान मंत्री की सलाह को मानने के लिए बाध्य हैं 42वां एवं 44 वा संविधान संशोधन से व्यवस्था कर दी गई थी लेकिन इसके अलावा भी veto की शक्ति किसी भी साधारण विधेयक पर राष्ट्रपति लगा सकते हैं, संविधान ने किसी भी धन विधेयक, वित्त विधेयक एवं संविधान संशोधन विधेयक पर वीटो की शक्ति को लगाने के लिए राष्ट्रपति को अधिकार नहीं दिया है ,यहां पर यह समझना जरूरी है कि राष्ट्रपति को दिया गया पॉकेट वीटो का अधिकार उन्हें मजबूत बनाता है कि वह किसी भी विवादित विधेयक, साधारण विधेयक जो उन्हें लगता है कि जनता के मौलिक अधिकार अथवा जनता के पैसे का दुरुपयोग हो रहा है तो वह उसे अनिश्चितकाल के लिए यह कहकर अपने पास रख सकते हैं कि अभी उनके पास समय नहीं है इस विधेयक को देखने के लिए अगर कोई भी राष्ट्रपति भविष्य में इस विधेयक को वापस कर देते हैं इस अवस्था में या पॉकेट वीटो ही निलंबित veto के जैसा समझा जाता है और यहां पर राष्ट्रपति पुनः दुबारा उस विधेयक को भेजे जाने के क्रम में अपने हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य हो जाएंगे
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