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Q. प्रारंभिक समाज में मानव सभ्यता की विभिन्न स्थितियों का संक्षिप्त में वर्णन करें?

(Vinay’s IAS academy)

  • ‌ प्रारंभिक समाज में मानव की उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मत प्रचलित है।माना जाता है कि प्राचीन काल में जब मनुष्य इस पृथ्वी पर आया होगा तब उस समय उसका अपना कोई संभाल नहीं था नीलू अपने लिए भोजन की व्यवस्था के लिए काफी भटकते रहते थे वह लोग खुद के खाने के लिए शिकार किया करते थे फल कंदमूल और इत्यादि इकट्ठा करके उनका भरण-पोषण करते थे मगर उसके लिए भी उनके सामने बहुत बड़ी चुनौती थी क्योंकि पेड़ पौधे से प्राप्त होने वाले फल फूल खाने योग्य है या नहीं यह बहुत बड़ी समस्या रही होगी।
  • मनुष्य के क्रमिक विकास को आधारभूत मानते हुए मानव सभ्यता को दो भागों में विभक्त किया गया है प्रथम पाषाण युग और द्वितीय धातु युग-पुन:पाषाण युग को तीन भागों में विभाजित किया गया है पुरा पाषाण काल, मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल निम्नलिखित कालों में से पुरापाषाण काल को तीन भागों में विभाजित किया गया है पुरा पुरापाषाण काल, मध्य पुरापाषाण काल और उत्तर पुरापाषाण काल और मानव सभ्यता के द्वितीय भाग धातु युग को भी तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है ताम्र युग कांस्य युग और लौहयुग।
  • पूर्व पाषाण काल को मुख्यत:20लाख साल पहले से 12000 साल पहले का माना जाता है पूर्व पुरा पाषाण काल में मानव,भोजन, वस्त्र आवास अन्य सभी प्रकार से अस्थिर था, इस काल के सभी हथियार बेडौल एवं भारी हुआ करते थे।पूर्वी पुरापाषाण काल के उपकरण और हथियार नर्मदा घाटी, महाराष्ट्र की प्रवरा नदी, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश एवं असम की घाटियों में मिले हैं। इस काल की गुफाएं महाराष्ट्र मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के बेलन घाटी (मिर्जापुर) क्षेत्र से बरामद हुए हैं। तत्कालिक मानव औजार बनाना नहीं जानते थे वे लोग एक पत्थर से दूसरे पत्थर को चोट मारकर औजार बनाया करते थे यही वजह है जिस कारण से इस सभ्यता के लोगों का हथियार अपार में बेडौल और भारी हुआ करते थे .
  • पाषाण कालीन मानव जानवरों के मांस का उपयोग अपनी भूख मिटाने के लिए करते थे और जब ठंड लगती थी तो इन्हीं जानवरों की खाल को ठंड से बचने के लिए प्रयोग में लाते रहे होंगे उनका ये वस्त्र के रूप में प्रयोग करते थे बाद में इसे फेंक दिया जाता था क्योंकि कुछ समय पश्चात इसमें से दुर्गंध आ जाती थी।।मध्य पूर्व पाषाण काल विद्वानों ने मध्य पुरापाषाण काल को फल संस्कृति नाम दिया है।
  • इस काल में हथियार क्वांटजाईट की जगह जैस्पर एवं चर्ट पत्थरों से सुंदर एवं चमकीले मनाए जाने लगे थे मध्य पूर्व पाषाण काल में मृतकों के संस्कार की परंपरा एवं अग्नि का प्रयोग किया जाने लगा था माना जाता है कि जब मानव औजार बनाने के लिए पत्थरों को आपस में टकराते थे तभी उत्पन्न चिंगारियां निकली होगी और इन्हीं चिंगारियों के द्वारा सुखी घास और पतियां जली होगी घास और सुखी पत्तियों के जलने से ठंड के दिनों में उन्हें राहत महसूस हुई होगी तभी से मानव आग से परिचित हुआ।

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  • उत्तर पुरापाषाणकाल–इस काल की संस्कृति की शुरुआत हिम युग के अंत में हुआ था इस काल के मानव की प्रजाति होमोसेपियंस था।इस काल में हड्डी,हाथी दांत एवं पत्थर के ब्लेड से हथियार बनाए जाते थे इस काल की संस्कृति के साक्ष्य के रूप में उत्तर प्रदेश के बेलन घाटी में उत्खनन से हड्डी की मातृ देवी प्राप्त हुई है इस साल की अवधि 4लाख वर्ष पूर्व से 10000 वर्ष पूर्व माना जाता है।सभी काल में चित्रकारी नकाशी मूर्ति निर्माण एवं आभूषण बनाने का आविष्कार हो चुका था।
  • मध्य पाषाण काल—पुरातत्व विदों के अनुसार इस काल की अवधि 12000 साल से 10000 साल पहले तक माना जाता रहा है। आज से लगभग 12000वर्ष पूर्व दुनिया की जलवायु में परिवर्तन होने के कारण गर्मी बढ़ने लगी थी एवं घास के मैदान बनेंने प्रारंभ हो चुके थे इस साल में खरगोश, हिरण,बकरी आदि जानवर पैदा हुए। अतः छोटे जानवरों के शिकार के लिए छोटे हथियार बनाएं गए जिसे Microliths कहा गया । इस काल में हड्डियों एवं लकड़ी के सभी औजारों का निर्माण प्रारंभ हो चुका था।मध्य पाषाण काल में भी पहला मानव अस्थि पिंजर, झोपड़ियां तथा लंघनाज (गुजरात) से मिट्टी के बर्तन विद्यांचल की गुफाओं और शैलश्रयों से युद्ध, शिकार एवं नृत्य के चित्र प्राप्त हुए। (Vinay’s IAS academy)
  • नवपाषाण काल:–इस साल की अवधि 10000 साल से 4000 साल तक का माना जाता है। इसमें मानव पूर्ण रूप से स्थाई और विकसित हो चुका था इसे नवपाषाण युग कहा जाता है। गार्डन चाइल्ड नामक पुरातत्वेकता के अनुसार इस संस्कृति का आरंभ पश्चिमी एशिया के धन्वाकर क्षेत्र में हुआ और इन्हीं से पूरे विश्व में इसका प्रसार हुआ भारत में इस संस्कृति का विस्तार सिंध और बलूचिस्तान पाकिस्तान में प्राप्त हुए हैं। नवपाषाण काल का मानव पॉलिशदार, हत्येयुक्त हथियार, मिट्टी के बर्तन,मूर्तियां, आभूषण, खिलौने, भोजन उत्पादन, स्थाई निवास से परिचित हो गया था ।
  • इस काल में वर्ण व्यवस्था कबीली प्रथा, दफनाने की प्रथा,पुनर्जन्म, पूजा इत्यादि की प्रथाएं प्रचलित हो गई थी। धातु युग:–धातु युग को तीन भागों में बांटा गया है १.ताम्र युग,२.कांस्य युग और ३.लौह युग।पत्थर के पुराने हथियारों के साथ तांबे के नए-नए उपकरणों हथियारों के प्रयोग होने के कारण इसे ताम्र युग को ताम्र पाषाण काल कहा गया है इसी काल में मानव में तांबे पहिए, नाव मुटरआदि के बारे में जानकारी हासिल कर व्यक्तिगत स्वामित्व विनिमय का प्रसार किया। (Vinay IAS academy)
  • कांस्य युग:– कांस्य युग 3000 ईस्वी पूर्व के लगभग प्रारंभ हुआ। तांबे के स्थान पर कांस्य का प्रयोग होने से इसे कांस्य युग कहा गया ।इस युग में तांबे कांसे के अतिरिक्त टीन,सोना, चांदी का भी प्रयोग होना प्रारंभ हो गया था। कांस्य युग की अवधि में व्यवसाय एवं व्यापारिक केंद्र के रूप में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल, कालीबंगा जैसे शहरों का उदय हुआ।
  • लौह युग:– लगभग 1400 ई०पूर्व ताम्र एवं कांस्य के प्रयोग के बाद लोहे का विकास हो गया था। लोहयुग की सभ्यता नदियों से दूर विकसित हुई सिक्के का प्रचलन हुआ था। इसी काल में आर्यों का भी आगमन हुआ और उन्होंने लोहे का प्रयोग प्रारंभ किया 1000 ईं०पूर्व दक्षिण भारत के महापाषाणों में लौह प्राप्त हुए अतः इसी आधार पर लौह युग का आरंभ माना गया है।
  • निष्कर्ष:—इस काल की संस्कृति सर्वाधिक विकसित संस्कृति थी, जलवायवीय एवं भौगोलिक परिवर्तनों के क्रमिक विकास से यह संभव हो पाया तथा विभिन्न चरणों के प्रगति कदमों से यह सभ्यता को शिखर पर पहुंचाया गया। (विनय आईएएस अकैडमी)..

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