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महाराजा रणजीत सिंह के समकालीन बाबा दयालदास जो सिख धर्म सुधारक में सबसे आगे आए उन्होंने उन्होंने सामाजिक कुरीतियों की निंदा की बाबा दयाल ने मकबरा और कब्र की पूजा का विरोध किया उन्होंने आनंद कारज जो विवाह होता था उसका सरल रूप प्रस्तुत किया जिसने 1909 में आनंद विवाह अधिनियम के रूप में पारित होकर कानूनी मान्यता प्राप्त कर ली इस विवाह पद्धति में विवाह गुरु ग्रंथ साहिब की उपस्थिति में ग्रंथि द्वारा ग्रंथ साहिब से चार उचित पद गायन द्वारा संपन्न होता है इसमें किसी प्रकार का कोई धार्मिक कार्य नहीं होता है इस प्रकार के विवाह में दहेज बारात शराब एवं नाचना गाना सभी चीजों पर रोक लगा हुआ है। बाबा दयाल की मृत्यु 1855 में हो गया उसके बाद उनके पुत्र बाबा दरबारा सिंह ने अपने पिता की शिक्षा को आगे बढ़ाया इसका प्रचार एवं प्रसार किया लेकिन उस वक्त तक दरबारा सिंह का काफी विरोध हो रहा था स्वर्ण मंदिर के मुख्य ग्रंथी ने उन्हें मंदिर में प्रवेश कर आनंद कारज पद्धति के अनुसार विवाह करने पर रोक लगा दिया और फिर जब दरबारा सिंह की मृत्यु हो गई उनके भाई रतन चंद ने जिन्हें लोग बाबा रता जी भी कहा करते थे अब उस कार्य को निरंकारी आंदोलन को आगे बढ़ाया

या आंदोलन निरंकार इसका अर्थ हुआ आकार रहित ईश्वर के नाम से प्रसिद्ध है बाबा दयाल ने मानव गुरु की पूजा का विरोध किया और अपने सभी अनुयायियों को कहा कि वह आकार रहित ईश्वर की पूजा करें आकार रहित ईश्वर की उपासना किया जाए किसी भी देह धारी वाले लोगों से भ्रमित ना हो जपो प्यारीओं धन्न निरंकार जो देह धारी सब खूबार#vinayiasacademy.com


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