Q. वहाबी और कूका आंदोलन के बारे में क्या समझते हैं ?उनके क्या लक्ष्य थे?
- सैयद अहमद बरेलवी द्वारा किए गए विद्रोह तथा उनके अनुयायियों को वहाबी कहा जाता है वहाबी का विद्रोह गतिविधि 1857 ईसवी के बाद भी चलता रहा।
- वहाबी को अंततः 1870 ईस्वी के दशक में कुचलने के लिए अंग्रेजों ने हजारों सैनिक भेजें। इस्लाम की धार्मिक शिक्षा के लिए 1867 ईसवी में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर शहर के नजदीक देवबंद स्थान में एक विद्या केंद्र की स्थापना हुई। विद्या केंद्र अपने विद्यार्थियों में स्वातंत्र्य प्रेम और ब्रिटिश शासन के प्रति विद्रोह की भावना उभारता रहा।
- सर सैयद अहमद खाँ ने इन गतिविधियों का विरोध किया क्योंकि वह मुसलमानों में अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार में जुटे थे और ब्रिटिश शासक के प्रति वफादार बने हुए थे।
- इन्हीं दिनों पंजाब में सिक्खों के गुरु राम सिंह ने एक नया आंदोलन किया जिसे कूका आंदोलन कहा जाता है।
- कुकाओ ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ हथियार उठाए उन्हें परंतु अंग्रेजों ने उन्हें 1872 ने क्रूरता से कुचल दिया और कई कूका विद्रोहियों को फांसी दे दी गई।
Q. आर्थिक जीवन में कौन से ऐसे परिवर्तन आए जिसके वजह से भारतीय जनता में एकता आई?
- 1857 ई० के बाद अनेक विद्रोह हुए जिसमें वहाबी विद्रोह कूका आंदोलन ,आंध्र में हुए रंपा आंदोलन आदि।
- सभी आंदोलन धीरे-धीरे एक बड़ा आंदोलन बन कर उभरा जो भारतीय जनता की आकांक्षाओं को एक राष्ट्र के रूप में व्यक्त करता है।
- धीरे-धीरे यह सभी आंदोलन में स्वतंत्रता आंदोलन का स्वरूप लेकर उभरा और यह आंदोलन किसी एक धर्म या एक समुदाय के ना रहकर पूरे राष्ट्र की मांगों का प्रतिनिधित्व करता था। जिसने पहली बार भारतीय जनता को 1 सत्ता के रूप में एकजुट किया।
- अशोक और अकबर जैसे महान सम्राटों ने भारत के विभिन्न भागों को एक राज्य में संगठित किया।
- 18वीं सदी में देश छोटे-बड़े अनेक राज्यों में बँटा हुआ था परंतु इसमें लोग आपस में लड़ते थे जिसके कारण भारत पर अंग्रेज अपना शासन स्थापित कर पाने में सफल हुए।
- देश में एकता का अभाव होने के कारण अंग्रेजों ने इसका फायदा उठाया।
- इसके विपरीत एक सही तो संस्कृति का विकास वक्त एकता का घोतक था हालांकि धार्मिक विश्वासों रीति-रिवाजों भाषाओं तथा कलाओं में उस समय भी विविधता थी एवं आज भी यह विविधता कायम है।

- शुरू से ही आदान-प्रदान की प्रक्रिया भारतीय जनता की संस्कृति की एक महत्वपूर्ण विशेषता रही है इसमें विभिन्न जन समुदाय और धार्मिक धर्मों के बीच पारस्परिक आदर भाव को जन्म दिया है।
- शासकों के बीच हुए संघर्ष और युद्ध के कारण आम जनता के बीच संघर्ष को जन्म नहीं दिया।
- अंग्रेजों द्वारा अपने हित साधन के लिए अपनाई गई ,इस नीति के परिणाम से जनता ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एकजुट हो गई जो ब्रिटिश सरकार के विनाश का कारण बनी।
- आर्थिक परिवर्तन होने के साथ ही देश के विभिन्न विभाग एक दूसरे पर अधिकाधिक आश्रित हो गया और एक समान आर्थिक जीवन का विकास हुआ।
- जिसमें परिवहन के साधन, रेल मार्ग के निर्माण, जिससे माल को लोगों को पहले की अपेक्षा अधिक आसानी तथा अधिक तेजी से देश के एक भाग से दूसरे भाग तक ले आने में संभव हुआ।
- मगर अन्योन्याश्रय में हुई वृद्धि ने लोगों को एकजुट करने और उन्हें एक समान आकांक्षाएं पैदा करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। आर्थिक परिवर्तन में हुए बदलाव का मुख्य कारण था आधुनिक व्यापार और उद्योग एकीकरण ।
- इससे देश के विभिन्न भागों को एक दूसरे के नजदीक लाई जाती थी । इस प्रकार देश के विभिन्न क्षेत्र एक दूसरे पर आश्रित हो गए और वह एक दूसरे के नजदीक आ गए ,कारखानों में भी काम करने वाले लोगों में भाईचारे की भावना जागृत है ।
- ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत पर शोषण करने के लिए भारतीय जनता के हितों में और अंग्रेजों के भारत पर शासन करने के उद्देश्य दोनों में काफी अंतर था मगर भारतीयों ने कुछ ऐसे वर्ग भी थे जिनकी अंग्रेजों ने अपना शासन मजबूत बनाने के लिए उनकी मदद की।
- उसके अलावा शेष भारतीय जनता ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में जो भी परिवर्तन आए उसमें जनता ने एकजुट होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक आंदोलन में संगठित होने की मदद की।

Q. ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में स्थापित प्रशासन व्यवस्था में राष्ट्रीयता के उदय में क्या योगदान दिया?
- ब्रिटिश शासन के अंतर्गत लगभग देश का एक राजनीतिक इकाई के रूप में एकीकरण हुआ भारत में सभी इकाई ब्रिटिश शासन के नियंत्रण में था एवं पूर्ण रूप से ब्रिटिश शासन की कृपा पर ही आश्रित है।
- दूसरे देशों की में उनकी रक्षा की जिम्मेदारी पूर्णत: अंग्रेजों के हाथों में थी भारत की राजनीति एकता एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।
- हालांकि विदेशी शासन के अंतर्गत और उनके हित साधन के लिए प्राप्त की गई थी ,परंतु इस एकता को ब्रिटिश शासित प्रदेशों में स्थापित करने की एकरूप व्यवस्था को और अधिक मजबूत बनाया।
- इसके लिए एकरूप कानून बनाए गए व प्रशासन में समान व्यवस्था के लिए हर व्यक्ति पर समान रूप से इसे लागू किया गया ।
- चूंकि कानून की नजर में सबको समान अधिकार मिले थे इसलिए कानून के सामने समानता एकता की एक अभिन्न अंग बन गई व पूरे देश में प्रशासन की समान व्यवस्था और एकरूपता कानून ने देश के विभिन्न भागों में रह रहे लोगों ने समानता और एकता की भावना को बढ़ावा दिया।
Q. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब हुई? शुरू के 20 वर्षों में उनके मुख्य मांगे क्या थी?
- देश के सभी प्रांतों से आए 72 प्रतिनिधियों का मुंबई में 1885 ईसवी में 28 से 30 दिसंबर तक एक सम्मेलन हुआ उसके साथ ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई ।
- स्थापना में भारत के एक अवकाश प्राप्त ब्रिटिश अफसर एलान ऑक्टेवियन ह्यूम ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
- कांग्रेस की स्थापना में इन्होनें महत्वपूर्ण सहयोग दिया। मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में आयोजित कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में सम्मिलित हुए कुछ नेता थे- दादा भाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, एस सुब्रमण्यम अय्यर, ओमजी चंदावरकर, उमेश चंद्र बनर्जी,आदि।
- एक महत्वपूर्ण नेता जो पहले अधिवेशन में अनुपस्थित थे वे थे सुरेंद्रनाथ बनर्जी । उन्होंने उसी दौरान कोलकाता में एक राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया एवं इस प्रथम राष्ट्रीय राजनीतिक संगठन के महत्त्व को जल्दी ही महसूस किया गया। कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष उमेश चंद्र बनर्जी थे उनके द्वारा घोषित कांग्रेस के उद्देश्य थे –
- देश के विभिन्न भागों के नेताओं को एकजुट करना ,जाति, धर्म तथा क्षेत्र से संबंधित सभी संभव विद्वेशों को खत्म करना एवं देश के प्रमुख उपस्थित प्रमुख समस्याओं पर विचार विमर्श करना। कांग्रेस के पास हुए 9 प्रस्तावों में ब्रिटिश नीति में परिवर्तन करने और प्रशासन में सुधार करने की भी मांग की गई थी।

Q. सन् 1885-1905 ईसवी तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मांगों के प्रति ब्रिटिश सरकार के रुख क्या थे?
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन हर वर्ष दिसंबर में तथा प्रति वर्ष अलग अलग स्थान पर आयोजित होते रहते थे 1886 ईसवी में यह कोलकाता में हुआ।
- कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन 1886 ईसवी में कोलकाता में हुआ जिसमें 450 प्रतिनिधि ने भाग लिया एवं इसमें सुरेंद्रनाथ बनर्जी और इंडियन एसोसिएशन के अन्य नेता भी इस अधिवेशन में शामिल थे।
- अब इसके बाद अधिवेशन में सम्मिलित होने वाले प्रतिनिधि स्थानीय स्तर पर आयोजित सम्मेलनों में भी चुने जाने लगे थे।
- कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन को भारत की प्रथम राष्ट्रीय सभा और “हमारे देश के भविष्य की संसद का केंद्र कहा गया”।
- कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन के अध्यक्ष दादा भाई नौरोजी थे वे 20 वर्ष अधिक साल तक कांग्रेस के एक अग्रणी नेता थे इन्होंने इंग्लैंड के अपने निवास काल में भारतीय जनता की मांगों को लेकर ब्रिटिश नेताओं तथा वहां की जनता का समर्थन प्राप्त करने के उद्देश्य से एक संगठन बनाया था।
- तीन बार वह कांग्रेस के अध्यक्ष बने ,ब्रिटिश पार्लियामेंट के भी सदस्य चुने गए वहां उन्होंने भारत के हितों के लिए आवाज उठाई, यह ऐसे एक नेता थे जिनका मत था कि भारतीय जनता का दरिद्र अंग्रेजों द्वारा भारत के शोषण और भारत के धन को इंग्लैंड ले जाने का परिणाम है। इसे भारत के “पितामह” के रूप में भी जाना जाता है 1887 ई० में मद्रास में आयोजित कांग्रेस के अध्यक्ष ने इस बात पर बल दिया एवं बदरुद्दीन तैयब जी ने यह कहा कि-” यह कांग्रेस भारत के किसी एक समुदाय या 1 बिरादरी या भारत की 1 भाग के प्रतिनिधियों की नहीं है बल्कि भारत के विभिन्न समुदायों की है”।
- 1888 ईस्वी में इलाहाबाद में आयोजित अधिवेशन में करीब 1300 प्रतिनिधियों ने भाग लिया उस समय इस अधिवेशन के अध्यक्ष अंग्रेज जॉर्ज यूले थे।
- इसके अलावा अन्य अंग्रेज विलियम वेडरबर्न, अल्फ्रेड वेब और हेनरी कार्टन भी थे । अब 1885 से 1905 तक की अवधि में कांग्रेस के कुछ अन्य अध्यक्ष- फिरोजशाह मेहता, सुरेंद्रनाथ बनर्जी ,रहमतुल्ला सयानी, आनंद चारलू, शंकरण नायर, रमेश चंद्र दत्त और गोपाल कृष्ण गोखले रहे।
- कांग्रेस के आरंभिक 20 साल आम तौर पर “नरम” के नाम से जाना जाता है इस काल में कांग्रेस ने धीरे-धीरे सुधार लागू करने और सरकार तथा प्रशासन में भारतीयों को अधिकाधिक स्थान देने की मांग की थी।
- अन्य प्रमुख मांगे थे- भाषण तथा बोलने की आजादी, शिक्षा का प्रसार, लोक कल्याण के योग्यताओं का विस्तार।

Q. 19वीं शताब्दी के अंतिम दिनों में राष्ट्रीय आंदोलन में किन नई प्रवृत्तियों का उदय हुआ?
- आरंभिक वर्षों में कांग्रेस द्वारा चलाया गया आंदोलन उद्योगपतियों, व्यापारियों ,वकीलों और समाज के मध्य तथा उच्च वर्गों के शिक्षित लोगों तक सीमित रहा परंतु धीरे-धीरे अन्य समुदाय आरंभ में निम्न वर्ग और बाद में आम जनता भी इसमें शामिल हुए।
- जिसके बाद कांग्रेस का स्वरूप बदल गया और अंततः यह एक जन आंदोलन के रूप में परिवर्तित हो गया।
- 19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में भारतीय जनता को अनेक कष्ट झेलने पड़े, कई भागों में अकाल पड़ी जिससे लाखों लोगों की मृत्यु हो गई ,गरीबी एक मुख्य सवाल बनकर उभरा ,भारतीय नेताओं ने जनता की गरीबी के लिए सरकार की नीतियों को दोषी ठहराया एवं ब्रिटिश शासन की पहले की अपेक्षा स्पष्टता से निंदा करने लगे।
- 19वीं सदी के अंत में सरकार दमन की कार्रवाइयों में वृद्धि हुई। कर्जन ने 1898 में गवर्नर जनरल था,उन्होंने घोषणा की कि “भारतीय लोग महत्वपूर्ण पदों को संभालने के लिए योग्य नहीं है”।
- उन्होंने कांग्रेस को नष्ट करने के अपने लक्ष्य की घोषणा की और पुरानी नीति “फूट डालो और शासन करो” की नीति को अपनाएं और इसका सबसे बड़ा कदम था बंगाल का विभाजन ।
- 19 वी सदी के अंतिम दशक में राष्ट्रीय आंदोलन में नई प्रवृत्तियों को उभारने वाले नेता थे- बाल गंगाधर तिलक ,लाला लाजपत राय ,बिपिन चंद्र पाल। इन नेताओं ने कांग्रेस की नीति को “नरम” कहकर उनकी आलोचना की और उन्होंने कहा कि सरकार सरकार से भलाई की उम्मीद रखने के बजाय जनता को अपने बल पर भरोसा करना जरूरी है।
- भारतीय जनता का उद्देश्य होना चाहिए- स्वराज प्राप्त करना। तिलक द्वारा प्रसिद्ध नारा दिया- मस्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे प्राप्त करके रहूंगा”।
- इसके लिए जनता में काम करना और जनता को सहभागी बनाना जरूरी था ,इन नेताओं ने जनता को देशभक्ति के प्रति जागृत किया और देश हित के लिए बलिदान देने को कहा।
- बाल गंगाधर तिलक द्वारा “केसरी” पत्र राष्ट्र वादियों के प्रवक्ता बना। उन्होंने हड़ताल और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार जैसे राजनीतिक आंदोलन के नए तरीके भी अपनाए यह सबसे अधिक लोकप्रिय होती गई और जल्द ही राष्ट्रीय आंदोलन पर छा गए।
- जिस कांग्रेस का आरंभ प्रार्थना पत्र और प्रतिवेदन के जरिए सरकार में धीरे-धीरे सुधार लाने के लिए हुआ था।
- 1905 ई० इसमें में राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में एक नए दौर की शुरुआत हुई कांग्रेस ने आरंभ के 20 सालों में एक व्यापक राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए लोगों को एकजुट करने का कार्य किया। बाद के वर्षों में यह एकता और अधिक मजबूत हुई और अब उनके उद्देश्य भी और अधिक स्पष्ट हो गए ,आंदोलन में समाज के केवल छोटे वर्ग सक्रिय थे वह लाखों लोगों का एक ऐसा आंदोलन बन कर उभरा जो जिसका केवल एक लक्ष्य था स्वतंत्रता की प्राप्ति।