Q. नरम दल और गरम दल में किन बातों को लेकर मतभेद था?
- कांग्रेस के प्रति सरकार का रवैया अधिकाधिक शत्रुता पूर्ण हो गया था इसका कारण यह था कि नए नेताओं जिसमें जिन्हें गरम दल के नेता के रूप में जो प्रसिद्ध हुए उनमें बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और अरविंद घोष प्रमुख थे।
- कांग्रेस के सुरेंद्र नाथ बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले ,फिरोजशाह मेहता व अन्य पुराने नेता नरम दल के नेता कहलाए ।
- नरम दल के नेताओं ने ऐसी मांग की थी एवं उन्होंने ऐसे प्रस्ताव लाए थे जिससे कि ब्रिटिश सरकारों में कुछ सुधार लाया जाए परंतु गरम दल के नेता का कहना था कि सरकार से केवल अनुनय विनय करके भारत में अपने अधिकार नहीं प्राप्त कर सकते हैं।
- ब्रिटिश सरकार के सद्भावना में उन्हें कोई आस्था नहीं थी उन्होंने जनता को आत्मबल का पाठ पढ़ाया और जनता में देश प्रेम की भावना भावना भर दी। जिससे देश के जनता कुर्बानी तक देने को तैयार हो गए।
- “वंदे मातरम” सारे देश में राष्ट्रगीत के रूप में लोकप्रिय हो गया इससे मातृभूमि के प्रति जनता की भक्ति को व्यक्त किया गया था ।
- नरम दल के नेताओं का मानना था कि ब्रिटिश सरकार को भारत की जनता के हित में सुधार करने के लिए मजबूर किया जा सकता था।
Q. बंगाल विभाजन कब और क्यों हुआ? भारत में राष्ट्रीयता के विकास पर उसका क्या प्रभाव पड़ा?
- बंगाल का विभाजन 16 अक्टूबर 1905 ई० को हुआ था उस समय बंगाल भारत का सबसे बड़ा प्रांत था,इसमें बिहार और उड़ीसा के हिस्से भी शामिल थे ।
- उस समय बंगाल की आबादी 7 करोड़ 80 लाख थी कई सालों से बंगाल के पुनर्गठन की बात की जा रही थी क्योंकि यह कहा जा रहा था कि इतने बड़े प्रांत को प्रशासन द्वारा संभालना असंभव है इसलिए इसका विभाजन करना अति आवश्यक है ।
- इसके पीछे मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर बनाना था व बंगाल में राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूत बनाना था। उनका दूसरा उद्देश्य हिंदुओं और मुसलमानों में फूट डालना था वह कहने लगे कि प्रांत में मुसलमानों का बहुमत होगा इसलिए यह उनके हित में होगा ।
- अंग्रेजों को लगा इस तरह मुसलमानों को राष्ट्रीय आंदोलन से अलग करने में सफल होंगे, विभाजन के विरोध में बंगाल में सैकड़ों सभाएं हुई परंतु सरकार ने जनता की भावनाओं का कोई परवाह नहीं किया और जुलाई 1905 ई० में विभाजन की घोषणा कर दी।

- इस विभाजन के कारण पूरे बंगाल में विभिन्न शहरों में बड़ी-बड़ी सभाएं हुई और प्रदर्शन हुए विभाजन के विरुद्ध आंदोलन में गरम दल और नरम दल के नेताओं ने मिलकर इसका नेतृत्व किया जिसके कुछ प्रमुख नेता थे सुरेंद्रनाथ बनर्जी, विपिन चंद्र पाल और अब्दुल रसूल। विभाजन का दिन पूरे बंगाल में शोक दिवस के रूप में मनाया गया और सारा कारोबार ठप्प हो गया ।
- महाकवि रवींद्रनाथ ठाकुर के सुझाव पर वह दिन एक जन एकता और मैत्री दिवस के रूप में भी मनाया गया।
- सारे बंगाल के लोग चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम या ईसाई एक दूसरे को राखी बांधी इस तरह उन्होंने अपनी और भाईचारा को जाहिर किया। बंगाल विभाजन के आंदोलन को खत्म करने के लिए शुरू किए गए आंदोलन के दौरान कई नए तरीके अपनाए गए जिसमें स्वदेशी और बहिष्कार प्रमुख थे ।
Q. स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन का क्या मतलब है? इन आंदोलनों ने भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना कैसे जगाई?
- बंगाल विभाजन को समाप्त करने के लिए जिस स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन की शुरुआत की गई थी वह जल्द ही आजादी की लड़ाई का प्रमुख हथियार बना ।
- इससे भारतीय उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा और राष्ट्र मजबूत बनेगा देशभक्ति बढ़ाने का यह प्रभावकारी तरीका साबित हुआ स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देने के साथ-साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का भी नारा दिया गया था। जिससे जनता की राष्ट्रीय भावनाओं को उभारने में काफी मदद मिली अधिकांश विदेशी वस्तुओं इंग्लैंड से आती थी इंग्लैंड के आर्थिक हितों को क्षति पहुंचे और तब ब्रिटिश सरकार को भारतीय मांगे स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाएगा।
- कांग्रेस ने 1905 ई० के वाराणसी अधिवेशन में और 1906 के कोलकाता अधिवेशन में स्वदेशी और बहिष्कार के आंदोलनों का समर्थन किया। स्वदेशी और बहिष्कार का आंदोलन केवल बंगाल तक सीमित न रहकर पूरे देश में फैल गया कपड़ों, चीनी तथा अन्य वस्तुओं का बहिष्कार किया जाने लगा।
- लोग झुंड बनाकर दुकानों पर जाते और दुकानदारों से विदेशी सामान ना बेचने का अनुरोध करते ,विदेशी सामान इस्तेमाल करने वाले लोगों से बातचीत करना छोड़ दिया गया कहीं जगह में नाइयों और धोबियों ने विदेशी वस्तुओं का उपयोग करने वाले लोगों का काम करना बंद कर दिया।
- इसमें स्कूल और कॉलेजों के विद्यार्थियों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, उन्होंने केवल स्वदेशी वस्तुएं का इस्तेमाल करना शुरू किया।
- इस विभाजन के कारण पूरे बंगाल में विभिन्न शहरों में बड़ी-बड़ी सभाएं हुई और प्रदर्शन हुए विभाजन के विरुद्ध आंदोलन में गरम दल और नरम दल के नेताओं ने मिलकर इसका नेतृत्व किया जिसके कुछ प्रमुख नेता थे सुरेंद्रनाथ बनर्जी, विपिन चंद्र पाल और अब्दुल रसूल। विभाजन का दिन पूरे बंगाल में शोक दिवस के रूप में मनाया गया और सारा कारोबार ठप्प हो गया ।
- महाकवि रवींद्रनाथ ठाकुर के सुझाव पर वह दिन एक जन एकता और मैत्री दिवस के रूप में भी मनाया गया।
- सारे बंगाल के लोग चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम या ईसाई एक दूसरे को राखी बांधी इस तरह उन्होंने अपनी और भाईचारा को जाहिर किया। बंगाल विभाजन के आंदोलन को खत्म करने के लिए शुरू किए गए आंदोलन के दौरान कई नए तरीके अपनाए गए जिसमें स्वदेशी और बहिष्कार प्रमुख थे ।
स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन का क्या मतलब है? इन आंदोलनों ने भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना कैसे जगाई?
- बंगाल विभाजन को समाप्त करने के लिए जिस स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन की शुरुआत की गई थी वह जल्द ही आजादी की लड़ाई का प्रमुख हथियार बना ।
- इससे भारतीय उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा और राष्ट्र मजबूत बनेगा देशभक्ति बढ़ाने का यह प्रभावकारी तरीका साबित हुआ स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देने के साथ-साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का भी नारा दिया गया था। जिससे जनता की राष्ट्रीय भावनाओं को उभारने में काफी मदद मिली अधिकांश विदेशी वस्तुओं इंग्लैंड से आती थी इंग्लैंड के आर्थिक हितों को क्षति पहुंचे और तब ब्रिटिश सरकार को भारतीय मांगे स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाएगा।
- कांग्रेस ने 1905 ई० के वाराणसी अधिवेशन में और 1906 के कोलकाता अधिवेशन में स्वदेशी और बहिष्कार के आंदोलनों का समर्थन किया। स्वदेशी और बहिष्कार का आंदोलन केवल बंगाल तक सीमित न रहकर पूरे देश में फैल गया कपड़ों, चीनी तथा अन्य वस्तुओं का बहिष्कार किया जाने लगा।
- लोग झुंड बनाकर दुकानों पर जाते और दुकानदारों से विदेशी सामान ना बेचने का अनुरोध करते ,विदेशी सामान इस्तेमाल करने वाले लोगों से बातचीत करना छोड़ दिया गया कहीं जगह में नाइयों और धोबियों ने विदेशी वस्तुओं का उपयोग करने वाले लोगों का काम करना बंद कर दिया।
- इसमें स्कूल और कॉलेजों के विद्यार्थियों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, उन्होंने केवल स्वदेशी वस्तुएं का इस्तेमाल करना शुरू किया।

- जिसके बाद विद्यार्थियों को स्कूल कॉलेजों से निकाल दिया गया और कई विद्यार्थियों को मारपीट कर जेल में बंद कर दिया गया।
- इस प्रकार बंगाल के विभाजन को रोकने के लिए शुरू हुआ आंदोलन तथा विदेशी शासन से आजादी हासिल करने का एक साधन बन कर उभरा।
Q. मार्ले मिंटो सुधार की क्या विशेषताएं थी? राष्ट्रीय नेताओं ने क्यों उसकी निंदा की?
- सरकार ने ब्रिटिश सरकार ने एक और दमन की नीति को तीव्र बनाया और दूसरी और नरम दल वालों को संतुष्ट करने की कोशिश की ।
- 1909 ईस्वी में “इंडियन काउंसिल एक्ट” की घोषणा की गई जिसे मार्ले मिंटो सुधार के नाम से जाना जाता है ।
- उस समय मार्ले भारत का मंत्री था और मिंटो वायसराय था इस एक्ट के अनुसार केंद्रीय तथा प्रांतीय सभाओं में सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई।
- अंग्रेजों ने सुधारों के अंतर्गत सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की भी प्रथा चलाई इनका एक ही मकसद था हिंदू और मुसलमानों में फूट पैदा करना ,राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर बनाने के लिए अंग्रेजों ने भारत में सांप्रदायिकता को लगातार बढ़ावा देने की नीति अपनाई सांप्रदायिकता की वृद्धि के भारतीय जनता की एकता और आजादी के संघर्ष के लिए घातक परिणाम निकले ।
- कांग्रेस में दोनों ने अपने अधिवेशन में इन सुधारों का स्वागत किया मगर धर्म पर आधारित पृथक प्रतिनिधित्व का विरोध किया।
- मार्ले मिंटो सुधार में कुछ खास परिवर्तन नहीं हुआ भारत मंत्री ने तो खुले आम कहा कि- भारत में संसदीय सरकार की स्थापना करने का उनका कोई इरादा नहीं है।
- 1857 ई० के विद्रोह के बाद जो निरंकुश सरकार स्थापित हुई थी वह मार्ले मिंटो सुधार के बाद भी पहले जैसी ही रही, बाद में सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद के पहले भारतीय सदस्य बने। बाद में वह ‘लॉर्ड’ बने ।
- उन्हें बिहार और उड़ीसा का गवर्नर बनाया गया एवं ब्रिटिश शासन के दौरान ऊंचे पद पर पहुंचने वाले एकमात्र भारतीय बने ।
प्रथम महायुद्ध के दौरान राष्ट्रीय आंदोलन के विकास पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रथम महायुद्ध(1914-1918) के दौरान सभी दलों ने सहस्त्र बलों के जरिए प्रशासन को उखाड़ फेंकने के लिए भारत में चोरी-छिपे हथियार लाने की कोशिश की।
- यह तब तक का सबसे बड़ा युद्ध था इसलिए इसे प्रथम महायुद्ध कहा गया । अंग्रेजों ने पहले के युद्ध की तरह प्रथम महायुद्ध में भारतीय साधन और सिपाहियों का इस्तेमाल किया भारत में स्वशासन की स्थापना की मांग होने लगी यह ‘होमरूल’ के आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध है। श्रीमती एनी बेसेंट और तिलक के नेतृत्व में होमरूल लीग की स्थापना हुई ।
- एनी बेसेंट1993 ईस्वी में भारत आए थे और थियोसॉफिकल सोसायटी की नेता बने। बाल गंगाधर तिलक के निर्वासित जीवन से छूटकर आए और कांग्रेस मे शामिल हो गए ।
- होमरूल आंदोलन में शामिल होने वाले अन्य प्रमुख नेता चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू थे।
- एनी बेसेंट व उनके दो सहयोगियों सहित नजरबंदी में रखा गया था तिलक और बिपिन चंद्र पाल को पंजाब जाने पर भी रोक लगा दी गई थी और बंगाल में दमन की कार्रवाई या ज्यादा तीव्र थी।
- इस दौरान की एक महत्वपूर्ण घटना 1916 में हुई वह थी लखनऊ समझौता। इस समझौते पर कांग्रेस और मुस्लिम दोनों ने हस्ताक्षर किए जिससे जल्दी से स्वराज मांग उठाने के लिए ही दोनों संगठन एक हुए थे।
- एक सामूहिक उद्देश्य के लिए कांग्रेस और मुस्लिम का एकजुट होना एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसके बाद सूरत अधिवेशन के 9 साल बाद अब कांग्रेस के गरम दल और नरम दल एकजुट हुए।
- दिसंबर 1917 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार भारत में स्थापित करने के उद्देश्य से धीरे-धीरे शासित संस्थाओं की स्थापना करना चाहती है, दिसंबर 1917 में कांग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ एनी बेसेंट को अध्यक्ष चुना गया कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला थी अधिवेशन में 4000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया इनमें करीब 400 महिलाएं शामिल थी।
- 1918 में मॉन्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें मॉन्टेग्यू- मंत्री और चेम्सफोर्ड-वायसराय था।इस रिपोर्ट में उन सुधारों का जिक्र हुआ था जिन्हें ब्रिटिश सरकार भारत में लागू करना चाहती थी।

- और उन्होंने गरीब किसानों और नीलू के अत्याचार की जांच के लिए सरकार को मजबूर कर दिया 1918 इसवी में अहमदाबाद के कपड़ा मिल मजदूरों का और गुजरात के खेड़ा स्थान के किसानों का नेतृत्व किया अहमदाबाद के मिल मजदूर वेतन में वृद्धि सैयद हसन इमाम की अध्यक्षता में मुंबई में कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन बुलाया गया जिसमें यह रिपोर्ट एवं यह सुधारों को निराशाजनक हुआ संतोषप्रद बताया गया। कांग्रेस ने यह मांग की कि जिस कानून के जरिए सुधारों को लागू किया जाएगा उनमें ब्रिटिश नागरिकों की तरह भारतीय नागरिकों के अधिकारों की भी घोषणा का समावेशन होना चाहिए ।
- बाद में एक और रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें युद्ध के दौरान भारतीयों की सरकार विरोधी गतिविधियों की जांच करने के लिए स्थापित रौलट कमीशन की रिपोर्ट थी।
- इसमें दमन के नए तरीके सुझाए गए जिसके बाद इस रिपोर्ट पर आधारित कानून ने देश के राजनीतिक माहौल को बदल कर रख दिया और भारत की आजादी के संघर्ष में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई।
Q. स्वतंत्रता आंदोलनों के दौरान गांधीजी ने किन तरीकों को अपनाने के लिए कहा?
- भारतीय जनता के आजादी के संघर्ष के नए दौर के महानतम नेता थे मोहनदास करमचंद गांधी इन्होंने भारतीय राजनीतिक में अपना पदार्पण प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान किया था ।
- उन्होंने भारतीय जनता की आजादी के संघर्ष का करीब 30 साल तक नेतृत्व किया और भारतीय जनता में महात्मा गांधी के नाम से प्रचलित हुए महात्मा गांधी जी का जन्म 1869 में हुआ था इन्होंने अपना अध्ययन इंग्लैंड में तथा इसके बाद वह एक वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका गए।
- दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए इन्होंने भारतीयों पर होने वाले गोरे शासकों के अत्याचार के खिलाफ संघर्ष शुरू किया उसी दौरान इन्होंने अत्याचारों के खिलाफ लड़ने का अपना तरीका विकसित किया और भारतीय जनता की आजादी के अपने संघर्ष के लिए अपनाया जिसे “सत्याग्रह” कहा गया।
- सत्याग्रह करने वाले हर व्यक्ति को हर प्रकार के कष्ट तथा दंड झेलना पड़े इसके साथ ही जेल जाने के लिए भी तैयार रहना पड़ा।
- गांधीजी 1915 में भारत लौटे और दमन के खिलाफ संघर्ष करने में जुट गए इन्होंने अपना प्रारंभिक संघर्ष की शुरुआत बिहार के चंपारण से कि वहां वे हो रहे गरीब किसानों पर अत्याचार से मुक्त कराने के लिए लड़े 1917 में चंपारण मगर गांधी जी ने वहां उन्हें चंपारण छोड़े जाने का आदेश दिया गय

- परंतु वह नहीं मानी उन्होंने निलहों पर हो अत्याचारों की जांच के लिए सरकार को मजबूर कर दिया।
- बाद में 1918 ई० में उन्होंने अहमदाबाद के कपड़ा मिल के मजदूरों का और गुजरात के खेड़ा स्थान के किसानों का नेतृत्व किया अहमदाबाद के मजदूर वेतन में वृद्धि की मांग कर रहे थे और खेड़ा के किसान फसल बर्बाद हो जाने के कारण राजस्व वसूली रोक देने की मांग कर रहे थे।
- गांधीजी के साथ जन आंदोलन में लाखों लोग आजादी की लड़ाई में कूद पड़े एवं गांधी जी ने जनता में निर्भयता की भावना पैदा की और जेल, लाठी और गोली सहित हर प्रकार के दमन को सहने की इच्छाशक्ति उनमें भरा।
- उनके नेतृत्व में लोगों ने कानून की खुलेआम अवहेलना की ,करों की अदायगी नहीं की, शांतिपूर्ण प्रदर्शन किए ,कारोबार ठप्प कर दिया, कचहरी तथा दफ्तरों का बहिष्कार किया और विदेशी माल बेचने वाले दुकानों के सामने धरना प्रदर्शन किया।
- राष्ट्रीय आंदोलन में किसानों तथा अन्य गरीब लोगों के शामिल हो जाने से यह सही मायने में एक जन आंदोलन बन कर उभरा।
- उस समय लाखों भारतीय अपमान का निकृष्ट जीवन जी रहे थे क्योंकि उच्च जातियों के लोग उन्हें “अछूत”मानते थे, गांधीजी ने इस बुराई को मिटाने के लिए भी संघर्ष किया जिनके लिए तथाकथित अछूत हरिजन थे।
- गाँधीजी ने गांव के लोगों को कि हालात सुधारने में भी कई प्रयत्न किए । उन्होनें कहा कि गांव में रहने वाले करीब 80% जनता की हालत नहीं सुधरती तब तक भारत प्रगति नहीं कर सकता। उन्होंने हर कांग्रेसी के लिए खाली पहनना अनिवार्य किया, जिससे गांव के छोटे उद्योग स्थापित हो सके।
- चरखा ग्राम उद्योग के महत्व का प्रतीक बन गया और बाद में यह कांग्रेस के झंडे का भी अभिन्न अंग बना।
Q. प्रथम महायुद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत में कौन सी नीति अपनाई?
- मॉन्टेग्यू- चेम्सफोर्ड सुधारों के अंतर्गत 1919 ईस्वी में भारत सरकार ने एक कानून बनाकर शासन पद्धति में कुछ परिवर्तन किया।
- इन परिवर्तन के अंतर्गत केंद्रीय विधानमंडल के दो सदस्य बनाए गए एक विधान परिषद और दूसरा राज्य सभा इन दोनों सदस्यों में निर्वाचित सदस्यों का बहुमत था मगर इन दोनों केंद्रीय सदनों में अधिकारों में कुछ खास परिवर्तन नहीं था।
- सभी प्रांतों में चलाई गई दोहरी सरकार की व्यवस्था के अंतर्गत उन्हें व्यापक अधिकार दिए गए ।
- इस व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षा और जन स्वास्थ जैसे कुछ विभाग ऐसे मंत्रियों को सौपे गए जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदाई थे ।
- वित्त और पुलिस जैसे महत्वपूर्ण विभाग गवर्नर जनरल के हाथों में था। गवर्नर जनरल किसी की निर्णय को अस्वीकार कर सकता था इस प्रकार मंत्री और विधान परिषदों के अधिकार भी सीमित थे।
- जैसे शिक्षा मंत्री यदि शिक्षा के विस्तार से करना चाहता है तो उसके लिए धन गवर्नर की स्वीकृति से ही मिल सकता है इसके अलावा गवर्नर जनरल प्रांत के किसी भी निर्णय को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है।
- सभी महत्वपूर्ण अधिकार गवर्नर जनरल और उनके कार्यकारिणी परिषद के हाथों में थे। वे अपने को सरकार के प्रति उत्तरदाई मानते थे ना कि भारतीय जनता के प्रति।
- इस असंतोष के दौरान ही सरकार ने दमन के नए तरीके अपनाएं, जिसमें 1919 में रोलेट एक्ट बना। यह रोलेट कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर बना था। देश ने इसका विरोध किया एवं कई नेताओं में जो परिषद के सदस्य थे जिसमें मोहम्मद अली जिन्ना में इस्तीफा में कहा -” जो सरकार शांति काल में ऐसे कानून को स्वीकार करती है वह अपने को एक सभ्य सरकार पहनाने का हक खो बैठती है”।
- कानून के जरिए कार को किसी भी व्यक्ति पर बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल देने का अधिकार प्राप्त था। इसके बाद लोगों में रोष की भावना बढ़ गए ।
- दमन के नए तरीकों को लोगों ने काले कानूनो का नाम दिया, 6 अप्रैल 1919 का दिन “राष्ट्रीय अपमान दिवस” के रूप में मनाया गया पूरे देश भर में प्रदर्शन और हड़ताल के साथ सारी व्यवस्थाएं ठप्प पड़ गया ।
- भारत की जनता ने इससे पहले एकजुट होकर ऐसा व्यापक विरोध नहीं किया था।
Q. खिलाफत और असहयोग आंदोलन के क्या लक्ष्य थे? उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए गए?
- ब्रिटिश शासन के खिलाफ बढ़ता हुआ विरोधी खिलाफत और असहयोग आंदोलन का रूप धारण किया।
- प्रथम महायुद्ध में तुर्की ने ब्रिटेन के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी युद्ध में तुर्की को ब्रिटेन के अत्याचारों का शिकार होना पड़ा इस अन्याय के विरुद्ध 1919 में शौकत अली ,अबुल कलाम आजाद हसरत मोहानी और दूसरे के नेतृत्व में आंदोलन चलाया गया।
- युद्ध के दौरान सभी नेताओं को बंदी बनाया गया हालांकि बाद में सभी को छोड़ दिया गया इस आंदोलन को चलाने के लिए खिलाफत कमिटी बनी उसमें गांधीजी भी शामिल है।

- तुर्की के मुसलमान सुल्तान को खलीफा (मुसलमानों का धार्मिक नेता) भी माना जाता था इसलिए तुर्की के खिलाफ हो रहे अन्याय के खिलाफ जो आंदोलन चलाया गया उसका नाम खिलाफत आंदोलन रखा गया।
- इस आंदोलन में असहयोग का नारा दिया इसके बाद यह आंदोलन जल्दी पंजाब में दमन के विरोध में और स्वराज के लिए चल रहे आंदोलन में मिल गया।
- 1920 ईस्वी में कांग्रेस में प्रथम कलकत्ता के अपने विशेष अधिवेशन में और फिर नागपुर में 2020 के अंत में आयोजित अधिवेशन में गांधी जी के नेतृत्व में खिलाफ संघर्ष के 1 नियम एक नई योजना स्वीकार की।
- नागपुर अधिवेशन में करीब 15000 प्रतिनिधि शामिल हुए इस अधिवेशन में कांग्रेस के संविधान में संशोधन किया गया न्यायोचित और शांतिमय साधनों से भारतीय जनता द्वारा स्वराज प्राप्त करना।
- संविधान की प्रथम धारा साधनों को असहयोग आंदोलन का नाम दिया गया । पंजाब व तुर्की के साथ हो रहे अन्याय को खत्म करना और स्वराज प्राप्त करना इस आंदोलन का लक्ष्य था।
- आंदोलन में अपनाए गए नहीं तरीकों के कारण इसका नाम “असहयोग आंदोलन” पड़ा.गांधीजी ने 1920 में अपना “कैसर ए हिंद” पदक लौटा दिया जिसके बाद हजारों विद्यार्थी और अध्यापकों ने कॉलेज स्कूल छोड़ दिए राष्ट्रवादी दिल्ली में जामिया मिलिया और वाराणसी में काशी विद्यापीठ जैसी नई शिक्षण संस्थाएं स्थापित हुए।
- लोगों ने सरकारी नौकरियां छोड़ दी, वकीलों ने अदालत का बहिष्कार किया, असहयोग आंदोलन काफी सफल रहा।
- 1921 ईस्वी का साल खत्म होने के पहले 30000 लोग जेल में बंद हो गए जिसमें प्रमुख नेता शामिल थे केरल के कुछ भागों में भी यह विद्रोह भड़क उठा ।
- इसमें अधिकांश विद्रोही मोपला किसान थे, इसलिए इस विद्रोह को मोपला विद्रोह कहते हैं जिसमें दो हजार से अधिक मोपला मारे गए और करीब 45 हजार को बंदी बना लिया गया ।
- सन् 1921 में कांग्रेस का अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ इसके अध्यक्ष हकीम अजमल खान थे, इसके साथ ही असहयोग आंदोलन का अंतिम दौर शुरू हुआ जिसमें लोगों से कहा गया कि वह कर अदा ना करें जब लोग यह घोषणा करते थे कि वह कर अदा नहीं करेंगे तो सरकार इसे वैध नहीं मानती थी।
- गांधी जी ने सदैव पूरे आंदोलन को शांतिपूर्ण चलाने की कोशिश की मगर कभी-कभी अपने को वह काबू नहीं रख पाते थे ।
- फरवरी 1922 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के चौरी- चोरा स्थान पर लोग प्रदर्शन में भाग ले रहे थे कि पुलिस ने गोलियां चला दी।
- गुस्से में आकर लोगों ने पुलिसस्टेशन में आग लगा दी जिसमें 22 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई। जबकि गांधी जी की शर्त थी कि आंदोलन होने पर शांतिपूर्ण होनी चाहिए।
- इस घटना के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया और उन्हें 10 मार्च 1922 को गिरफ्तार किया गया तथा उन्हें 6 साल की सजा सुनाई गई।
- आंदोलन के खत्म होने के साथ राष्ट्रीय आंदोलन का एक और दौर खत्म हुआ इस आंदोलन से देश भर के लोगों ने बड़े पैमाने पर भाग लिया और यह आंदोलन केवल कुछ लोगों तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि नगर वासियों से लेकर गांवों तक फैल गया था।
- इस आंदोलन में हिंदू और मुसलमानों की एकता को मजबूत बनाया आंदोलन का एक सर्वाधिक लोकप्रिय नारा रहा “हिंदू मुसलमान की जय”।

Q. जालियांवाला बाग हत्याकांड म कब और क्यों हुआ था?
- 10 अप्रैल 1919 को दो राष्ट्रवादी नेता सत्यपाल और डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया।
- अमृतसर में जलियांवाला बाग नाम का एक पार्क है यहां पर 13 अप्रैल को उन दोनों नेताओं की गिरफ्तारी पर विरोध प्रकट करने के लिए जनता इकट्ठे हुए थे और शांतिपूर्ण सभा चल रही थी । इस सभा में काफी संख्या में वृद्धि पुरुष, स्त्रियों और बच्चे भी शामिल थे।
- तभी अचानक ब्रिटिश अफ़सर जनरल डायर ने अपने सैनिकों को लेकर वहाँ पहुंचा तथा जनता को तितर-बितर होने की चेतावनी दिए बिना ही उस पर अपने सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया।
- सैनिकों ने 10 मिनट तक निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाई ,गोलियां खत्म हो गई तो वहां चले गए,। कांग्रेस के अनुमान के अनुसार 10 मिनट में करीब 1000 आदमी मारे गए थे एवं दो हजार लगभग 2000 लोग घायल हो गए थे। जलियांवाला बाग की दीवारों में आज भी गोलियों के निशान देखे जा सकते हैं । अब यह एक राष्ट्रीय स्मारक बन चुका है ।
- इस हत्याकांड को जानबूझ कर कराया गया था जनरल डायर ने शान के साथ कहा था कि लोगों को सबक सिखाने के लिए यह सब किया गया है उसने निश्चय कर लिया था कि यदि सभा चालू रहती है तो वह सब की हत्या कर देगा।
- इसके बाद वह इंग्लैंड चला गया आधुनिक इतिहास का यह एक नृशंस हत्याकांड कहा गया है।
- करीब 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को एक भारतीय क्रांतिकारी उधम सिंह ने गोली मारकर माइकल ओ डायर की हत्या की
- यह 1919 में हुए जालियांवाला बाग की घटना के समय पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था। जलियांवाला बाग हत्याकांड से भारतीय जनता में गुस्सा बढ़ गया था। पंजाब के लोगों को सड़कों पर रैली निकाली मजबूर किया गया, उन्हें खूले पिंजरे में रखा गया और कोड़े लगाए इसके साथ ही वहां अखबार बंद कर दिए गए, संपादकों को जेल में डाल दिया गया।
- अगस्त 1919 में अमृतसर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ इसमें लोग, किसान भी बड़ी संख्या में शामिल हुए।
- ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों ने आग में घी डालने का काम किया तब आजादी के लिए और दमन के खिलाफ लड़ने के लिए लोगों ने कमर कस ली थी।