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Q. मौलिक अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए- क्या मौलिक अधिकारों पर आवश्यकता से अधिक प्रतिबंध लगाया गया है# मौलिक अधिकारों पर आलोचनात्मक विवरण भी प्रस्तुत करें
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  • संविधान के भाग 3 में वर्णित मौलिक अधिकार एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक स्वतंत्रता दोनों है लेकिन इसे सीमा में बांध देना संकुचित किया गया है मौलिक अधिकार को लेकर संविधान सभा में भी कई बार चर्चा हुई थी इसके सदस्य कृति शाह ने कहा था कि यह स्वतंत्रता इतनी संदेह पूर्ण हो गई है कि इनके ढूंढने के लिए सुषमा दर्शी यंत्र की जरूरत पड़ेगी उन्होंने यह कहा था कि मौलिक अधिकार को अनुच्छेद 359 के तहत रोक देना निवारक निरोध को साथ में रखना सही नहीं है, आर्थिक आधार का इसमें अभाव रखा गया है पूर्व सोवियत संघ के संविधान में आर्थिक अधिकार प्रबल है लेकिन भारत में इस पर हमारा संविधान चुप है काम का अधिकार बीमारी और हैंडीकैप्ड के मामले में राज्य से सहायता पाने का अधिकार विश्राम का अधिकार शिक्षा पाने का अधिकार इन सभी को समय समय पर परिवर्तित व किया जाता है लेकिन यह पूर्ण अधिकार लोगों को नहीं दिया गया है
  • मौलिक अधिकारों पर जिस प्रकार से प्रतिबंध लगाया गया है इससे लगता है कि तानाशाही एवं पुलिस राजकीय स्थापना भी हो सकता है 44 वें संविधान संशोधन में आंतरिक अशांति के स्थान पर सशस्त्र विद्रोह को अनुच्छेद 352 में रखा गया है अभी मौलिक अधिकारों पर एक प्रकार का अंकुश ही है
  • अगर निवारक निरोध दो को देखा जाए तो संविधान के अनुच्छेद 21 जिसके अंतर्गत व्यक्तिगत स्वतंत्रता दी गई है लेकिन अनुच्छेद 22 के द्वारा पुलिस को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी को हिरासत में लेकर पूछताछ कर सकते हैं
  • शंकरी प्रसाद बनाम बिहार राज्य के केस में 1951 में तथा 17 वां संविधान संशोधन से जुड़े एक वार्ड में 1965 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा की परिस्थितियों के अनुसार मौलिक अधिकार में संशोधन किया जा सकता है 1967 ईस्वी में गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के केस में निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने का मौलिक अधिकार में ऐसा कोई संशोधन नहीं कर सकते जिससे कि मौलिक अधिकार कम हो जाता है लेकिन केसवानंद भारती केस में संशोधन की परमिशन देते हुए मूलभूत ढांचा को नष्ट ना किया जाए ऐसा निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया
  • क्या निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है-
  • के पुत्तास्वामी बनाम भारत संघ के केस में जेएस खेहर की खंडपीठ ने 9 सदस्य के साथ 2017 में यह निर्णय दिया कि निजता के अधिकार को मूल अधिकार माना जाएगा और यह अनुच्छेद 21 का जीवन स्वतंत्रता के तहत ही रहेगा इसमें यह भी कहा गया की निजता का अधिकार सिर्फ कानूनी अधिकार नहीं है या वैधानिक अधिकार मूल अधिकार है और प्राकृतिक अधिकार है हालांकि उच्चतम न्यायालय ने एमपी शर्मा के केस में निजता के अधिकार को मूल अधिकार नहीं माना था इसके अलावा जब देश में आपातकाल लगा था तो एडीएम जबलपुर बनाम एसएस शुक्ला बाद 1976 में जिसे है heabeascorpus भी कहा जाता है ,उच्च न्यायालय ने कहा था कि धीरे-धीरे मौलिक अधिकार के बारे में सोचा जाएगा और निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है व्यक्तिगत संबंध पारिवारिक जीवन को जीना ,विवाह करने के लिए अपना फैसला लेना, अपने घर का संरक्षण ,एकांत छोड़ देने का अधिकार ,यह सभी किसी व्यक्ति के अपने सिद्धांत हो सकते हैं ,उसकी अपनी रुचि हो सकती है इसके लिए दबाव नहीं डालना चाहिए सभी उदारवादी विचारधारा एक व्यक्ति के मौलिक अधिकार है इस अधिकार को करने के लिए व्यक्ति स्वतंत्र इसी प्रकार से अनुच्छेद 28 स्पष्ट तौर पर यह बताता है कि किसी शैक्षणिक संस्थान में अनुराग की अनुमति से धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए बाद नहीं किया जा सकता है निजता का अधिकार सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार का ही एक हिस्सा है इसलिए जब किसी अधिकार का प्रयोग किया जाता है तो उसे सकारात्मक रूप रूप में अथवा नकारात्मक रूप में सोचना चाहिए नागरिक स्वाधीनता का अर्थ होता है
  • क्या आधार कार्ड बनाना भी निजता के अधिकार का उल्लंघन है- समाज के वंचित वर्ग को लाभ पहुंचाना सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है राज्य के नीति निदेशक तत्व को लागू करना भी सरकार का प्रमुख कार्यक्रम है तो यह कैसे किया जाएगा इसके लिए सरकार के पास आंकड़ा जरूरी होता है इसलिए न्यायपालिका ने सरकार के तर्क का समर्थन करते हुए कहा कि डिजिटल माध्यम से अगर कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं तो बिना आंकड़ा का कैसे चलाया जाएगा इसलिए इसे निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं कहेंगे समय-समय पर सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि निजता के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है या नहीं हो रहा है इसके लिए सकारात्मक व नकारात्मक विचारधारा से सोचने की आवश्यकता होगी
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