जनपद एवं महाजनपदों से लेकर नंदू तक के राज्य निर्माण एवं नगरीकरण:–
लगभग 3000 साल पहले राजा बनने के लिए कुछ लोग बड़े-बड़े यज्ञ करने लगे जिनमें अश्वमेध यज्ञ भी शामिल है इस आयोजन को राजा अपनी सीमा के विस्तार के लिए किया करते थे जिनमें ब्राह्मण समुदाय का विशेष योगदान हुआ करता था इस आयोजन में एक विशेष घोड़े को छोड़ा जाता था और वह घोड़ा जिस जिस हिस्से से गुजरता था उन सारे हिस्सों पर राजा का अधिकार हो जाता था मगर जो लोग इस घोड़े को रोकते थे उन लोगों को राजा से युद्ध करना पड़ता था। घोड़े की वापसी पर यज्ञ का आयोजन किया जाता था इसके अलावा राजसुय यज्ञ और वाजपेय यज्ञ भी काफी महत्वपूर्ण माने जाते थे, राजसूय यज्ञ राजा के अभिषेक की समाप्ति होने पर संपन्न किया जाता था और वाजपेई यज्ञ में राजा के द्वारा रथों को दौड़ाया जाता था शूद्र जाति के लोगों को यज्ञ में शामिल होना वर्जित था इस प्रकार की महायज्ञ करने वाले राजाओं के शक्ति में वृद्धि होती थी इससे वह राजाजन कर आ जाना होकर अब जनपदों का राजा बन जाता था क्योंकि छोटे-छोटे कई जन मिलकर एक विशाल जनपद का निर्माण किया करते थे जिसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण हमें पूरू एवं भरत को मिलाकर कुरू जनपद का निर्माण हुआ था पता चलता है।समस्त उत्तर भारत 16 महाजनपदों में विभाजित हो गया इसका साक्ष्य हमें पाली भाषा में रचित बौद्ध ग्रंथ अंगुन्तरनिकाय से मिलती है.vinayiasacademy.com

इसमें 16 महाजनपदों के नाम कुछ इस प्रकार है:– १.काशी २.वत्स ३.कंबोज ४.कुरु ५.कौशल ६.चेदी ७.गंधार ८.पांचाल ९.मल्ल १०.अंग ११.मगध १२.वज्जी १३.मत्स्य १४.शूरसेन १५.अश्मक और १६.अवंती।इसके अलावे महा वस्तु नामक ग्रंथ से भी 16 महाजनपदों की जानकारी प्राप्त होती है। मगर महा वस्तु और अंतर निकाय मैं दिए गए 16 महाजनपदों के नामों को लेकर कुछ विशमताएं भी हैं। कोशल, काशी, वज्जी, वत्स, मगध और अंग ऐसा 6 महाजनपद है जिसमें अंगुंन्तरनिकाय एवं भगवती सूत्र में समानता है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व की राजनीतिक स्थिति को प्रमाणिक स्वरूप में प्रदर्शित करने का एकमात्र साक्ष्य अंगुन्तरनिकाय को माना जाता है। अंगुन्तरनिकाय, भगवती सूत्र, महावस्तु नामक धार्मिक ग्रंथों ने भी 16 महाजनपदों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। 16 महाजनपद—vinayiasacademy.com महाजनपद—पाली भाषा में रचित बौद्ध ग्रंथ अंगुग्तरनिकाय में वर्णित महाजनपदों में वज्जी एवं मल्ल महाजनपद गणतंत्रात्मक थे साथ ही अंगुन्तरनिकाय के अनुसार बाकी 14 महाजनपद राजतंत्रात्मक हुआ करते थे। महाजनपद मुख्यतः दो प्रकार के हुआ करते थे गणतंत्रात्मक और राजतंत्रात्मक।गणतंत्रात्मक महाजनपदों में शासन समूह के द्वारा चलाया जाता था जिसका चयन आम लोग किया करते थे यहां कोई भी राजा नहीं होता था। कोई भी निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाता था वही राजतंत्र य महाजनपद में राजा का शासन हुआ करता था और राजा का पद अनुवांशिक हुआ करता था और राजा का पद अनुवांशिक हुआ करता था इस अवस्था में राजा की मृत्यु के बाद सामान्यतः राजा के बड़े बेटे को राजा घोषित कर दिया जाता था। अश्मक महाजनपद की भौगोलिक स्थिति, गोदावरी नदी के तट को माना गया है।इसकी राजधानी पोतन हुआ करती थी।यहां के शासक इक्ष्वाकुवंशीय छत्रिय हुआ करते थे संप्रभुता के लिए मंत्री के साथ इसका संघर्ष हुआ करता था मगर इस युद्ध में अवंती ने इसे परास्त कर दिया था ।
यूनानी इतिहासकारों के मतानुसार सिंधु नदी के किनारे पर एस्सेकेनाय राज्य अश्मक महाजनपद ही था। कंपोज कंबोज महाजनपद की भौगोलिक स्थिति भारत के उत्तर पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्र में था।इसकी राजधानी घटक या राजपूर कहलाती थी इसके प्रमुख शासक चंद्रवंमन एवं सुदक्षिण को माना जाता है।यहां प्रारंभ में राजतंतत्रात्मक व्यवस्था थी जो आगे चलकर गणतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में परिवर्तित हो गई।गंधार महाजनपद की भौगोलिक स्थिति भारत के उत्तर पश्चिम सीमा में स्थित थी जो आज के पाकिस्तान के क्षेत्र में आता है यह अत्यंत शक्तिशाली राज्य था इसकी राजधानी तक्षशिला थी इस महाजनपद के शक्तिशाली शासक पुष्कर सारिन हुआ करता था यहां की राजधानी शिक्षा एवं व्यापार का मुख्य केंद्र माना जाता था यहां के शासक की मित्रता मगध सम्राट बिंबिसार के साथी अवंती महाजनपद की भौगोलिक स्थिति पश्चिमी भारत के मालवा प्रदेश में अवस्थित था इसे दो भागों में विभाजित किया गया था उत्तरी अवंति एवं दक्षिणी आमंत्रित इसकी राजधानी उज्जैन यहां के प्रमुख शासक चण्डप्रघोत था जो बुध के समकालीन थे यह बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र था मगर अंत में मगध सम्राट शिशुनाग में अमन की पर आक्रमण कर इस पर विजय प्राप्त कर लिया था शूरसेन महाजनपद की भौगोलिक स्थिति जेबी महाजनपद के पश्चिमोत्तर में एवं पूर्व के दक्षिणी भाग में अवस्थित था, इसकी राजधानी मथुरा थी यहां के प्रमुख शासक अवंतऩिपुत्र थे।जो बुध के समकालीन थे महाभारत और पुराणों के अनुसार मथुरा प्रसिद्ध व्यापारी एवं धार्मिक स्थल हुआ करता था। वृषिण यादों के संग के प्रमुख कृष्ण थे पाणिनि एवं पाली साहित्य के अनुसार पहले यहां गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली थी बाद में यह राजतंत्रात्मक बनी। शुरसेन एवं अवंती में वैवाहिक संबंध थे मथुरा की प्रशासनिक व्यवस्था अत्यंत सुदृढ़ थी मत्स्य जनपद की भौगोलिक स्थिति चंबल की नदी से सरस्वती नदी तक विस्तृत नाम पर इसकी राजधानी का नाम करण हुआ इस जनपद का उल्लेख महाभारत में मिलता है पंचाल महाजनपद की भौगोलिक स्थिति रुहेलखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश मध्य क्षेत्र में दोआब क्षेत्र में अवस्थित था। यहां की राजधानी अहिछत्र और कामिपल्य हुआ करती थी द्रौपदी पंचाल नरेश द्रुपद की बेटी थी अतः पंचाली कहलाती थी पंचाल महाजनपद की जानकारी हमें दिव्यावदान,जातक कथाएं एवं महाभारत जैसे साहित्यिक स्रोतों से प्राप्त होती हैं।कुरूमहाजनपद की भौगोलिक स्थिति यमुना नदी के किनारे इंद्रप्रस्थ और हस्तिनापुर के आसपास थी यहां की कौशांबी में स्थापित हो गया कुरु महाजनपद में 300 संघ थे।वत्स महाजनपद की भौगोलिक स्थिति काशी महाजनपद के दक्षिण पश्चिम में अवस्थित थी यहां की राजधानी कौशांबी थी महाभारत के अनुसार इस वंश को चेदियो ने बसाया था। चेदी महाजनपद की भौगोलिक स्थिति वत्स के दक्षिणी भाग में यमुना के किनारे स्थित था।

कलिंग के चेदी इसी जनपद से संबंधित थे यहां के प्रतापी राजा को शिशुपाल के नाम से जाना जाता था मल्ल महाजनपद यह एक गणतांत्रिक महाजनपद था इस की भौगोलिक स्थिति वज्जि महाजनपद के पश्चिमोत्तर एवं कौशल महाजनपद के पूर्व में हिमालय की तराई में स्थित है बुद् की महा परीनिवांण स्थल के रूप में मल्ल महाजनपद की राजधानी कुशी नारा थी। वज्जि महाजनपद की भौगोलिक स्थिति मगध के ऊपरी भाग में स्थित है यह बिगड़ तांत्रिक महाजनपदों में सर्वोत्कृष्ट स्थिति पर था यहां कोई गणतंत्र की संख्या 8 थी ।जिनमें विदेह, लिच्छवी,ज्ञातृक प्रमुख माने जाते थे बुद्धिधर्म का प्रमुख केंद्र हुआ करता था भूतनी प्रमुख नर्तकी आम्रपाली को यही उपदेश दिया था वज्जि महाजनपद का उल्लेख पाली एवं प्राकृत साहित्य से प्राप्त होता है।मगध के सम्राट अजातशत्रु ने वज्जी को मगध साम्राज्य में विलीन कर लिया था। कोशल महाजनपद की भौगोलिक स्थिति पूर्वी उत्तर प्रदेश की अवध क्षेत्र में स्थित थी। इसकी सीमाएं पूर्व में गंडक नदी तक और पश्चिम में पंचाल तक फैली हुई थी। यहां के प्रमुख शासन प्रसनजीत था, जो बुध का समकालीन था कौशल महाजनपद का उल्लेख पाली ग्रंथ एवं रामायण से प्राप्त होता है काशी महाजनपद की भौगोलिक स्थिति वरुणा और 80 नदियों के संगम पर स्थित था इसकी राजधानी वाराणसी था जो बनारस के नाम से जाना जाता है।अंग महाजनपद की भौगोलिक स्थिति बिहार के उत्तरी पूर्वी भाग में स्थित है यहां की राजधानी चंपा नगरी थी अंग महाजनपद का उल्लेख जातक कथाओं और अंगुत्तरनिकाय से प्राप्त होता है।मगध महाजनपद की भौगोलिक स्थिति गंगा के दक्षिणी भाग में स्थित है जिसे वर्तमान में पटना एवं शाहाबाद के नाम से जाना जाता है यहां की रानी गिरीव़ज थी मगध साम्राज्य का उल्लेख अंगुत्तरनिकाय में उल्लिखित है।महाजनपदों में सर्वाधिक शक्तिशाली माना जाता था यहां के प्रमुख शासकों ने बिंबिसार, अजातशत्रु,शिशुनाग,हर्यक एवं नंद वंशों का नाम आता है।

महाजनपदों की राजतंत्रात्मक व्यवस्था:—(vinayiasacademy.com:–राजतंत्रात्मक व्यवस्था का मुखिया राजा हुआ करता था और इसका पद वंशानुगत हुआ करता था निर्वाचन द्वारा राजा को चुनने की प्रक्रिया समाप्त हो गई थी। उत्तर वैदिक साहित्य के अनुसार राजा को देवताओं का अंश माना जाता था राज्य को सुरक्षित रखने के लिए सेना रखना प्रारंभ हो गया इस कान में राजा अपनी सहायता के लिए कुछ चुने हुए लोगों को अपने राज्यसभा में नियुक्त करते थे जिनके अलग अलग विशेषताएं हुआ करते थी, इस प्रमुख अधिकारियों का वर्ग महापात्र कहलाता था मगर कुछ राज्यों में आयुक्त के नाम से जाना जाता था राजाओं के विभिन्न अधिकारियों का समूह वंशानुगत नहीं होता था। यह लोग अपने पद का उपयोग राजा की अनुमति के उपरांत करते थे इनकी ऊपर आजा का पूर्ण नियंत्रण हुआ करता था इनको राजा के द्वारा वेतन दिया जाता इन्हीं अपने पद का गलत इस्तेमाल करने पर राजा द्वारा पदस्चुत भी कर दिया जाता थाऔर साथ ही साथ ही में दंड भी दिया जाता था प्रत्येक समूह का अपना अपना कार्य विभाजित हुआ करता था कोई भी अधिकारी को दूसरे मुखिया का चुनाव किया जाता गांमणी या गांमिक के नाम से जाना जाता था इसका कार्य जतना में शांति स्थापित करना था और कर उगाहने की व्यवस्था करना था। राजतंत्रीय व्यवस्था में राजस्व इकट्ठा करने की के कई स्रोत प्राप्त होते हैं उपहार भेंट इकट्ठा करने वाले अधिकारी को बलि साधक कहा जाता था।कर इकट्ठा करने वाले अधिकारी को भाण्डागारिक कार्य एवं भागदूध कहा जाता ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ग कर मुक्त थे मगर वैश्य वर्ग से कर लिया जाता था क्योंकि यह व्यवसाई वर्ग हुआ करता था कानून सभी लोगों के लिए अलग अलग हुआ करता था क्योंकि यह वर्ण व्यवस्था पर आधारित था निम्न वर्ग के लोगों को अधिक सजा और उच्च वर्ण के लोगों को कम सजा दिया जाता था। न्याय का प्रधान राजा हुआ करता। (विनय आईएएस अकैडमी):—-गणतंत्रात्मक व्यवस्था:– गणतंत्र दिवस था मेरा निर्वाचित हुआ था राजा का पद वंशानुगत नहीं था यह कुलिनों के सहयोग से चलते थे।छठी शताब्दी ईसा पूर्व राजत्रात्मक व्यवस्था भी अस्तित्व में थे। पाली साहित्य में 10गणतंत्रात्मक व्यवस्था भी अस्तित्व में थे। पाली साहित्य में 10 गणतंत्रात्मक अवस्था का उल्लेख मिलता है बाली साहित्य में कई प्रमुख गणराज्य का उल्लेख मिलता है। शक्यों से पहले कोंलियो का राज्य था।इन दोनों के राज्यों के बीच रोहिणी नदी प्रभावित होती थी यही नदी इन दोनों राज्यों के बीच विभाजन की रेखा थी और यही नदी कि इन दोनों के बीच शत्रुता का कारण भी बना। कपिलवस्तु शाक्यों की राजधानी थी। गौतम शाक्यों के प्रमुख थे। शाक्यों की प्रसिद्ध नगरी लुंबिनी में ही गौतम बुध का जन्म हुआ था। इस स्थान पर इक्ष्वाकु वंश का शासन हुआ करता था। आगे चलकर यह कौशल राजतंत्र में विलीन हो गया।पावापुरी महावीर स्वामी का निर्वाण स्थल और कुशिनारा गौतम बुध के निर्माण स्थल के रूप में प्रसिद्ध था। मिथिला की संस्कृति अत्यंत प्रसिद्ध थी इसकी संस्कृति की बेसन से पूरे देश भर में हुआ करता था यह विशेष स्थान प्राप्त नहीं होता था रिंकू राजा के सलाहकार समिति में सम्मिलित नहीं किया जाता था। (Vinay’s IAS academy)