इसे धार्मिक साहित्य एवं लौकिक साहित्य में बांटा जा सकता है ब्राह्मण साहित्य और ब्रह्म नेत् र साहित्य में भी बांटा जा सकता है- ब्राह्मण साहित्य में वेद ब्राह्मण ग्रंथ आरण्यक उपनिषद वेदांग सूत्र महाकाव्य स्मृति ग्रंथ पुराण प्रमुख है वेदों में ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद एवं अथर्ववेद है। ऋग्वेद ब्राह्मण साहित्य में सबसे प्राचीन ग्रंथ है वेदों के द्वारा प्राचीन आज के धार्मिक सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक जीवन पर पूरी जानकारी दी हुई है इसे 1520 अपूर्व से 1000 ईसा पूर्व में लिखा गया होगा ऋग्वेद में 10 मंडल है और 1028 सूक्त ऋग्वेद के मंत्र की यज्ञ के अवसर पर देवता को की स्तुति के लिए होत्री ऋषि द्वारा उच्चारित किया गया था इसके दो ब्राह्मण थे एतरई एवं कौशितकी । यजुर्वेद में यज्ञ के नियम एवं कानून का संकलन है इसके पुरोहित और अधर्वायु थे इसे शुक्ल यजुर्वेद एवं कृष्ण यजुर्वेद में बांटा जाता है यजुर्वेद कर्मकांड प्रधान है इसके 5 भाग है काठक कपीश पिस्टल मैत्रायणी तेतरीई वाज सनई यजुर्वेद के प्रमुख उपनिषद है कठोपनिषद ईश उपनिषद श्वेता श्ववत उपनिषद मैत्रायणी उपनिषद यह वेद गद्य एवं पद्य दोनों में है। सामवेद मुख्य रूप से यज्ञ के अवसर पर गाया जाने वाला मंत्र था या भारतीय संगीत का मूल ग्रंथ है सामवेद में प्रमुख रूप से भगवान सूर्य की स्तुति के मंत्र है सामवेद को गाने वाला उदगात्री कहा जाता था इसके प्रमुख उपनिषद छंद गयो एवं जमीन या उपनिषद इसके मुख्य ब्राह्मण पंच विश थे इसके दूसरे ब्राह्मण टांडिया मना एवं तिमनिया थे। अर्थ वेद को सबसे अंत में लिखा गया है इसमें 731 सुक्त है 20 अध्याय है 6000 मंत्र है इसमें आज और अनाज के विचारधारा को बताया गया है इसमें कुरु के राजा परीक्षित की भी चर्चा है उत्तर वैदिक काल में अर्थव्यवस्था विशेष महत्व था इसमें ब्रह्म ज्ञान धर्म दवा जादू टोना तंत्र मंत्र के बारे में जानकारी इसके ब्राह्मण का नाम गुफा था था इसके मुख्य उपनिषद है मुंडकोपनिषद जिससे सत्यमेव जयते लिया गया है प्रश्न उपनिषद एवं मांडूक्योपनिषद। ब्राह्मण ग्रंथ- वेदों की व्याख्या के लिए ब्राह्मण ग्रंथ की रचना हुई थी जैसे कि ऋग्वेद का ऐतरेय ब्राह्मण यजुर्वेद का शतपथ ब्राह्मण सामवेद का पंच 20 ब्राह्मण और अथर्ववेद का गो पाथ ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण में राजा बनने का नियम बताया गया है तो शतपथ ब्राह्मण में गांधार शैली कई कई कुरु पांचाल कौशल विद ए राजा का जिक्र मिलता है। अरण्यक- या ब्राह्मण ग्रंथ का अंतिम भाग है इसमें दार्शनिक एवं रहस्य के बारे में बताया गया है मुख्य रूप से सात हैं- अप्रैल संख्या ज्ञान तैत राई मैत्रीयानी बृहद अरण्यक तलवे कार छंदों गयो। उपनिषद- वह रहस्य विद्या का ज्ञान जो गुरु के समीप बैठकर प्राप्त किया जाता था इसमें भारतीय दर्शन बताया गया है वैदिक साहित्य के अंतिम भाग होने के कारण उपनिषद को ही वेदांत कहते हैं उपनिषद उत्तर वैदिक काल की रचना है इसे परा विद्या अथवा आध्यात्म विद्या भी कहते हैं इसकी संख्या 108 है लेकिन मुख्य रूप से 12 इश, केन कठो प्रश्न मुंडक मंडुक्य त ऐतरेय ही कौशी टकी बृहदारण्यक श्वेता स्वतर इसमें आत्मा परमात्मा मोक्ष एवं पुनर्जन्म की अवधारणा को बताया गया है। वेदांग- इसकी संख्या 6 है शिक्षा कल्प व्याकरण निरुक्त छंद ज्योतिष। शिक्षा का निर्माण वैदिक काल के शुद्ध उच्चारण के लिए था कल्प का निर्माण नियम के लिए था व्याकरण में किसी भी वाक्य को शुद्ध रूप से कैसे बोलेंगे इसके लिए था निरुक्त भाषा विज्ञान है छंद वैदिक साहित्य में गायत्री मंत्र के लिए ज्योतिष में ब्रह्मांड की जानकारी है। सूत्र- स्रोत सूत्र जिसमें यज्ञ के बारे में बताया गया है गृह इस सूत्र जिसमें लौकिक पारलौकिक कर्तव्य का है धर्मसूत्र जिसमें धार्मिक सामाजिक राजनीतिक कर्तव्य बताया गया धर्मसूत्र में ही स्मृति ग्रंथ का विकास हुआ जिसमें मनुस्मृति याज्ञवल्क्य स्मृति पराशर स्मृति नारद स्मृति बृहस्पति स्मृति कात्यायन स्मृति गौतम स्मृति। मनुस्मृति का रचना काल ईसा पूर्व 200 से लेकर 200 ईसवी तक है मनुस्मृति के भाष्य कार या टीकाकार मेघा तिथि गोविंदराज भरुचि एवं कुल लुक भट्ट थे। याज्ञवल्क्य स्मृति का रचनाकाल 120v से 300 ईसवी है इसके टीकाकार विश्वरूप विज्ञान ईश्वर या मिताक्षरा एवं अपराक है। उपवेद- आयुर्वेद धनुर्वेद गंधर्व वेद सील पैक व्याकरण गणित में सबसे महत्वपूर्ण अष्टाध्याई है जिसे पाणिनि ने लिखा था इसका रचनाकाल 400 ईसवी के लगभग माना जाता है। यश के नाम के विद्वान ने निरुक्त ग्रंथ लिखा था वैदिक साहित्य के बाद रामायण महाभारत दो महाकाव्य प्राचीन इतिहास को जानने का स्रोत है महाभारत महाकाव्य की रचना 400 ईसा पूर्व में हुआ था लेकिन इसका संकलन ईशा के बाद चौथी शताब्दी में हुआ इसकी रचना का श्रेय वेदव्यास को दिया जाता है शुरुआती समय में महाभारत में सिर्फ 8800 लोग थे और इसका नाम जय संहिता था बाद में श्लोक की संख्या 24000 हो गई और इसका नाम भारत हुआ उसके बाद श्लोक की संख्या 100000 हो गई इसका नाम महाभारत पड़ा। रामायण महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य है इसमें मुख्य रूप से 6000 से लोग थे जो बाद में 12000 से लॉक हो गए और अंत में 24000 श्लोक हो गए इसकी रचना ईशापुर में पांचवीं शताब्दी में स्वीकार की जाती है लेकिन इसका संकलन ईशा के पश्चात चौथी शताब्दी ईस्वी में माना गया है रामायण पुराना ग्रंथ एड इसमें हिंदू या 1 छक्के संघर्ष का विवरण मिलता है महाभारत में भी सत्य वन होना दी जातियों का विवरण है। पुराण- पुराणों की संख्या 18 है ब्रह्म पुराण पदम पुराण विष्णु पुराण वायु पुराण भागवत पुराण नारद पुराण मार्कंडेय पुराण अग्नि पुराण भविष्य पुराण ब्रह्म वैवर्त पुराण लिंग पुराण वराह पुराण स्कंद पुराण वामन पुराण कूर्म पुराण मत्स्य पुराण गरुड़ पुराण ब्रह्मांड पुराण पुराण के रचयिता महर्षि बम उनका बेटा उग्र सर्वदा अधिकांश पुराण की रचना तीसरी चौथी शताब्दी ईस्वी में हुई थी मत्स्य पुराण सबसे अधिक प्राचीन है मौर्य वंश की जानकारी के लिए विष्णु पुराण सातवाहन वंश तथा शुंग वंश की जानकारी के लिए मत्स्य पुराण और गुप्त वंश के लिए वायु पुराण महत्वपूर्ण ग्रंथ है

August 15, 2020
भारतीय नौसेना के मध्यम दर्जे वाले युद्धपोत का निर्माण अब झारखंड में(important current affairs for jpsc/jssc/bpsc/upsc)
Share it झारखंड के पांच पुलिसकर्मियों को केंद्रीय गृह मंत्रालय मंत्रालय को केंद्रीय गृह मंत्रालय मंत्रालय द्वारा बेहतर अनुसंधान के लिए गृहमंत्री अवार्ड दिया जाएगा। इन्हें रांची के बूटी मोड़ में बीटेक छात्र की हत्या...