राज्यपाल की शक्तियां एवं कार्य:-
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राज्यपाल (भारत):-
भारत का संविधान संघात्मक होते है। इसमें संघ तथा राज्यों के शासन के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है। संविधान के भाग 6 में राज्य शासन के लिए प्रावधान है। राज्य की भी शासन पद्धति संसदीय है। राज्यपाल की नियुक्ति राज्यों में होती है तथा केंद्र प्रशासित प्रदेशों में उपराज्यपाल की नियुक्ति होती है, भारत में 8 केंद्र शासित राज्य हैं जिनमें से 3 केंद्र शासित राज्यों में उप राज्यपाल का पद है वह 3 केंद्र शासित राज्य निम्न है अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह ,दिल्ली और पुडुचेरी बाकी चार केंद्र शासित राज्यों में प्रशासक होते हैं। वहां पर उप राज्यपाल का पद नहीं होता है वह 5 केंद्र शासित राज्य है। चंडीगढ़ , दमन और दीव/दादरा और नगर हवेली, लक्ष्यदीप जम्मू-कश्मीर, लद्दाख। राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख राज्यपाल (गवर्नर) होता है, जो मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करता है। कुछ मामलों में राज्यपाल को विवेकाधिकार दिया गया है, ऐसे मामले में वह मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना भी कार्य करता है।
राज्यपाल अपने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी होते हैं। इनकी स्थिति राज्य में वही होती है जो केन्द्र में राष्ट्रपति की होती है। केन्द्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल होते हैं।
7 वे संशोधन 1956 के तहत एक राज्यपाल एक से अधिक राज्यो के लिए भी नियुक्त किया जा सकता है।

राज्यपाल, राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। वह मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करता है परंतु उसकी संवैधानिक स्थिति मंत्रिपरिषद की तुलना में बहुत सुरक्षित होती है। वह राष्ट्रपति के समान असहाय नहीं है। राष्ट्रपति के पास मात्र विवेकाधीन शक्ति ही है जिसके अलावा वह सदैव प्रभाव का ही प्रयोग करता है किंतु संविधान राज्यपाल को प्रभाव तथा शक्ति दोनों देता है। उसका पद जितना शोभात्मक है, उतना ही कार्यात्मक भी है।
अनु 166[2] के अंर्तगत यदि कोई प्रशन उठता है कि राज्यपाल की शक्ति विवेकाधीन है या नहीं तो उसी का निर्णय अंतिम माना जाता है
अनु 166[3] राज्यपाल इन शक्तियों का प्रयोग उन नियमों के निर्माण हेतु कर सकता है जिनसे राज्यकार्यों को सुगमता पूर्वक संचालन हो साथ ही वह मंत्रियों में कार्य विभाजन भी कर सकता है।
अनु 200 के अधीन राज्यपाल अपनी विवेक शक्ति का प्रयोग राज्य विधायिका द्वारा पारित बिल को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रख सकने में कर सकता है।
अनु 356 के अधीन राज्यपाल राष्ट्रपति को राज्य के प्रशासन को अधिग्रहित करने हेतु निमंत्रण दे सकता है, यदि यह संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चल सकता हो।
विशेष विवेकाधीन शक्ति:-
पंरपरा के अनुसार राज्यपाल राष्ट्रपति को भेजी जाने वाली पाक्षिक रिपोर्ट के सम्बन्ध में निर्णय ले सकता है कुछ राज्यों के राज्यपालों को विशेष उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना होता है विशेष उत्तरदायित्व का अर्थ है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद से सलाह तो ले किंतु इसे मानने हेतु वह बाध्य ना हो और ना ही उसे सलाह लेने की जरूरत पडती हो

राज्यपाल की योग्यता:-
अनुच्छेद 157 के अनुसार राज्यपाल पद पर नियुक्त किये जाने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताओं का होना अनिवार्य है–
- वह भारत का नागरिक हो,
- वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
- वह राज्य सरकार या केन्द्र सरकार या इन राज्यों के नियंत्रण के अधीन किसी सार्वजनिक उपक्रम में लाभ के पद पर न हो,
- वह राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने के योग्य हो।
- वह पागल या दिवालिया घोषित न किया जा चुका हो।
राज्यपाल की नियुक्ति:-
संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार- राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाएगी, किन्तु वास्तव में राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफ़ारिश पर की जाती है। राज्यपाल की नियुक्ति के सम्बन्ध में निम्न दो प्रकार की प्रथाएँ बनी हुई थीं-
- किसी व्यक्ति को उस राज्य का राज्यपाल नहीं नियुक्त किया जाएगा, जिसका वह निवासी है।
- राज्यपाल की नियुक्ति से पहले सम्बन्धित राज्य के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किया जाएगा।
यह प्रथा 1950 से 1967 तक अपनायी गयी, लेकिन 1967 के चुनावों में जब कुछ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ, तब दूसरी प्रथा को समाप्त कर दिया गया और मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किए बिना राज्यपाल की नियुक्ति की जाने लगी।
राज्यपाल की कार्य अवधि:-
राज्यपाल राज्य में केन्द्र का प्रतिनिधि होता है। तथा राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद पर बना रहता है। वह कभी भी पद से हटाया जा सकता है।

यद्यपि राज्यपाल की कार्य अवधि उसके पद ग्रहण की तिथि से पाँच वर्ष तक होती है, लेकिन इस पाँच वर्ष की अवधि के समापन के बाद वह तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद नहीं ग्रहण कर लेता। जब राज्यपाल पाँच वर्ष की अवधि की समाप्ति के बाद पद पर रहते है, तब वह प्रतिदिन के वेतन के आधार पर पद पर बना रहता है। राज्य पाल विश्विविद्यालयो का कुलपति भी होता है।
राज्यपाल से सम्बन्धित सरकारिया आयोग की सिफारिशें:-
भारतीय राजनीति में राज्यपाल का पद तथा भूमिका दीर्घ काल से विवाद का कारण रही है। जिसके चलते काफी विवाद भी हुए हैं। सरकारिया आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस तरह की सिफारिश दी थी:-
- एक राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह के बाद ही राष्ट्रपति करे।
- वह जीवन के किसी क्षेत्र का महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हो।
- वह राज्य के बाहर का रहने वाला हो।
- वह राजनैतिक रूप से कम से कम पिछले 5 वर्शो से राष्ट्रीय रूप से सक्रिय ना रहा हो, तथा नियुक्ति वाले राज्य में कभी भी सक्रिय ना रहा हो।
- उसे सामान्यत अपने पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने दिया जाये, ताकि वह निष्पक्ष रूप से काम कर सके।
- केन्द्र पर सत्तारूढ राजनैतिक गठबन्धन का सद्स्य ऐसे राज्य का राज्यपाल नहीं बनाया जाये, जो विपक्ष द्वारा शासित हो।
- राज्यपाल द्वारा पाक्षिक रिपोर्ट भेजने की प्रथा जारी रहनी चाहिए।
- यदि राज्यपाल राष्ट्रपति को अनु 356 के अधीन राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा करे तो उसे उन कारणॉ, स्थितियों का वर्णन रिकार्ड में रखा जाना चाहिए, जिनके आधार पे वह इस निष्क़र्ष पे पहुँचा हो।
भारतीय राज्यों के वर्तमान राज्यपालों की सूची:-
भारत गणराज्य में राज्यपाल 28 राज्यों में राज्य प्रमुख का संवैधानिक पद होता है। राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति पाँच वर्ष के लिए करते हैं, और वे राष्ट्रपति की मर्जी पर पद पर रहते हैं। राज्यपाल राज्य सरकार का विधित मुखिया होता है जिसकी कार्यकारी कार्रवाई राज्यपाल के नाम पर सम्पन्न होती है।

भारत के वर्तमान राज्यपाल:-
1.बि॰डी॰ मिश्रा-अरुणाचल प्रदेश-03 अक्टूबर 2017
(2 वर्ष, 266 दिन)
- जगदीश मुखी-असम-10 अक्टूबर 2017
(2 वर्ष, 259 दिन) - विश्व भूषण हरिश्चंद्र-आंध्र प्रदेश-24 जुलाई 2019
(337 दिन) - आनंदीबेन पटेल-उत्तर प्रदेश-29 जुलाई 2019
(332 दिन) - बेबी रानी मौर्य-उत्तराखंड-8 जनवरी 2015
(5 वर्ष, 169 दिन) - गणेशी लाल-उड़ीसा-29 मई 2018
(2 वर्ष, 27 दिन) - वजूभाई वाला-कर्नाटका-1 सितम्बर 2014
(5 वर्ष, 298 दिन) - आरिफ मोहम्मद खान-केरल-6 सितम्बर 2019
(293 दिन) - आचार्य देवव्रत-गुजरात-22 जुलाई 2019
(339 दिन) - सत्यपाल मलिक-गोवा-3 नवम्बर 2019
(235 दिन)
11.अनुसुइया उइके-छत्तीसगढ़-29 जुलाई 2019
(332 दिन) - द्रोपति मुर्मू-झारखंड-18 मई 2015
(5 वर्ष, 38 दिन) - बनवारीलाल पुरोहित-तमिल नाडु-31 अगस्त 2011
(8 वर्ष, 299 दिन) - तमिलसाई सुंदर रंजन-तेलंगाना-8 सितम्बर 2019
(291 दिन) - रविंद्र नारायण रवी-नागालैंण्ड-1 अगस्त 2019
(329 दिन)
16.विजेन्द्रपाल सिँह बदनौर-पंजाब-22 अगस्त 2016
(3 वर्ष, 308 दिन) - जगदीप धनखड़-पश्चिम बंगाल-30 जुलाई 2019
(331 दिन) - फागु चौहान-बिहार-29 जुलाई 2019
(332 दिन)
19.नजमा हेपतुल्ला-मणिपुर-15 सितम्बर 2014
(5 वर्ष, 284 दिन - लालजी टंडन-मध्य प्रदेश-29 जुलाई 2019
(332 दिन) - भगत सिंह कोश्यारी-महाराष्ट्र-5 सितम्बर 2019
(294 दिन)
22.पी एस श्रीधरन पिल्लई-मिजोरम-5 नवम्बर 2019
(233 दिन) - तथागत राय-मेघालय-6 जनवरी 2015
(5 वर्ष, 171 दिन) - कलराज मिश्रा-राजस्थान-9 सितम्बर 2019
(290 दिन) - गंगा प्रसाद-सिक्किम-26 अगस्त 2018
(1 वर्ष, 304 दिन) - सत्यदेव नारायण आर्य-हरियाणा-22 अगस्त 2018
(1 वर्ष, 308 दिन)
27.बंडारू दत्तात्रेय-हिमाचल प्रदेश-11 सितम्बर 2019
(288 दिन) - रमेश बैस-त्रिपुरा-29 जुलाई 2019
(332 दिन)।

केन्द्रशासित प्रदेशों के उप-राज्यपाल:-
- देवेंद्र कुमार जोशी-अंडमान एंड निकोबार द्वीपसमूह-8 अक्टूबर 2017
(2 वर्ष, 261 दिन) - गिरीश चंद्र मुर्मू-जम्मू और कश्मीर-31 अक्टूबर 2019
(238 दिन)
3.अनिल बैजल-दिल्ली-31 दिसम्बर 2016
(3 वर्ष, 177 दिन) - किरण बेदी-पुदुच्चेरी-29 मई 2016
(4 वर्ष, 27 दिन) - राधे कृष्ण माथुर-लद्दाख-31 अक्टूबर 2019
(238 दिन)।
केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासक:-
1.विजेन्द्रपाल सिँह बदनौर-चंडीगढ़-22 अगस्त 2016
(3 वर्ष, 308 दिन)
2.प्रफुल खोदा पटेल-दमन और दीव-29 अगस्त 2016
(3 वर्ष, 301 दिन)
4.प्रफुल खोदा पटेल-दादरा और नागर हवेली-30 दिसम्बर 2016
(3 वर्ष, 178 दिन)
5.मिहिर वर्धन-लक्ष्यदीप-19 जुलाई 2019
(342 दिन)।