Q. 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार की नीतियों के निर्माण में किन बातों का विशेष ध्यान रखा गया ?
- सन 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश शासन में एक नया दौर का शुरुआत हुआ जिसने भारत के प्रशासन में कंपनी की भूमिका को समाप्त कर दिया।
- भारत के प्रति ब्रिटिश सरकार की नीति और प्रशासनिक व्यवस्था में काफी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए –
- भारत पर ब्रिटिश सरकार का सीधा नियंत्रण हो गया इसके तहत ब्रिटिश पार्लियामेंट में 1858 में ऐक्ट पास किया गया इस ऐक्ट के द्वारा भारत का कंपनी अधिनियम को समाप्त किया गया। उस समय विक्टोरिया इंग्लैंड की महारानी थी।ब्रिटेन में सर्वोच्च संस्था पार्लियामेंट की। ब्रिटिश सरकार पार्लियामेंट के प्रति उत्तरदाई थी जिससे ब्रिटिश सरकार राजा या रानी के नाम पर का कामकाज चलाते थे । Vinayiasacademy.com
- भारत सरकार का एक मंत्री राज्य सचिव होता था जो भारत सरकार की जिम्मेदारी संभालता था ।
- ब्रिटिश पार्लियामेंट भारत की सर्वोच्च सत्ता बन गई थी भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय की पदवी मिल गई जिसका अर्थ है ब्रिटिश शासक का प्रतिनिधि।
- महारानी विक्टोरिया ने एक घोषणा जारी की जिसमें गवर्नर जनरल कैनिंग ने 1 नवंबर को इलाहाबाद में एक दरबार किया ।
- जिसमें महारानी की राजाज्ञा पढ़ी गई इस घोषणा के अंतर्गत कहा गया कि भारतीय राजाओं के अधिकार सुरक्षित होंगे और वह अब अंग्रेजी राज में इलाके नहीं मिलाए जाएंगे ।
- इसके साथ ही यह घोषणा और वादा किया गया कि लोगों के पुराने अधिकारों तथा रीति-रिवाजों को उचित सम्मान दिया जाएगा ,न्याय उदारता तथा धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई जाएगी ,इसके साथ ही प्रशासनिक सेवा में किसी भी धर्म और जाति का व्यक्ति प्रवेश पा सकेगा एवं दूसरी और मध्य वर्ग के लिए तरक्की के रास्ते भी खोलने के वादे किए गए थे।
- परंतु कुछ है कुछ ही दिनों में यह स्पष्ट हो गया कि तरक्की के लिए समान अवसर प्रदान करने का जो वादा किया गया है वह पालन नहीं किया जाएगा ।
- इसके साथ ही औद्योगिक क्रांति के बाद इंग्लैंड के राजनीतिक जीवन में ब्रिटिश उद्योगपति सबसे प्रभावशाली वर्ग का वर्ग बन कर उभरा।
- इस समय विश्व के अन्य भागों में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार हो रहा था एवं ससाम्राज्यवादी शक्तियों से संघर्ष।
- इस संघर्ष में ब्रिटेन के आर्थिक हितों के लिए भारत का इस्तेमाल किया गया तथा भारतीय साधनों से अंग्रेजों ने दूसरे देशों में खर्चीली लड़ाइयां लड़ी.
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Q. सन् 1858 के घोषणापत्र के बाद इंग्लैंड में भारतीय सरकार पर नियंत्रण रखने के तरीके में क्या परिवर्तन किए गए ?
- ब्रिटिश सरकार द्वारा अनेक परिवर्तन किए गए भारत सचिव को भारत सरकार के पूर्ण जिम्मेदारी दी गई एवं ब्रिटिश सरकार के अन्य मंत्रियों की तरह वह भी केवल ब्रिटिश पार्लियामेंट के प्रति उत्तरदाई था।
- इसके लिए भारत को सलाह देने के लिए एक इंडिया कौंसिल बनाई गई थी जिसमें कुछ सदस्य भारत में काम किया था इसलिए उन्हें भारतीय परिस्थितियों के बारे में जानकारी थी।
- 1857 गवर्नर जनरल इंग्लैंड में निर्धारित आम नीतियों के अनुसार निर्णय स्वयं लेता था ।
- इंग्लैंड के साथ संवाद स्थापित करने में काफी समय लगता था ।
- सन् 1870 ईसवी में भारत और इंग्लैंड के बीच टेलीग्राफ का संबंध स्थापित हुआ एवं भारत सरकार और भारत के बीच विचार विमर्श करना आसान व संभव हो गया।
- 1869 में स्वेज नहर खुल जाने के बाद भूमध्य सागर और लाल सागर एक दूसरे से जुड़े एवं इंग्लैंड और भारत के बीच की दूरियां कम होने लगी ।
- भारत के प्रशासन सीधी देखरेख में आ गई थी भारत सरकार ब्रिटिश सरकार के पूर्णता अधीन हो गई एवं भारत के शासन में ब्रिटिश सरकार के हित सर्वोपरि होगा और ब्रिटिश सरकार के हितों के वे लोग निर्धारित करते थे जो ब्रिटेन के आर्थिक जीवन पर जिसका कब्जा था। Vinayiasacademy.com
Q. वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के ढांचे और कार्यों में सन् 1853-1892 ईसवी तक क्या परिवर्तन हुए?
अथवा
सन् 1883 ईसवी में स्थानीय शासन में क्या परिवर्तन किए गए?
- नई नीतियां बनाना एवं उसे लागू करना इसका अधिकार गवर्नर जनरल और उसकी परिषद के हाथों में था।
- परिषद में गवर्नर जनरल , चार सदस्य और मुख्य सेनापति शामिल थे, जिसे कार्यकारी परिषद कहते थे।
- कानून बनाने के लिए एक लेजिसलेटिव काउंसिल (विधान परिषद) थे, जिसमें कार्यकारी परिषद के अलावा और 6 सदस्य शामिल थे।
- 1861 में बने कानून के तहत कार्यकारी परिषद के सामान्य सदस्यों की संख्या बढ़ाकर पांच कर दी गई परिषद का प्रत्येक सदस्य सरकार के कामकाज अथवा एक खास विभाग को देखने लगा । Vinayiasacademy.com
- विधान परिषद के सदस्यों की संख्या छह से बढ़ाकर दोगुनी कर दी गई एवं भारतीय वफादार को कभी-कभी परिषद द्वारा मनोनीत किया जाता था इसे काउंसिल के सदस्यों को गवर्नर जनरल मनोनीत करते हैं।
- विधान परिषद के कानून बनाने के अधिकार अत्यंत सीमित थे सन 1861 ईसवी के कानून के तहत प्रांतीय प्रशासन में भी कुछ परिवर्तन हुए जिसमें बंगाल, मद्रास व मुंबई आदि प्रांतों का प्रशासन एवं उनका तीन सदस्यों की एक कार्यकारी परिषद देखती थी ।
- प्रांतीय विधान परिषद में 4 से 8 अतिरिक्त सदस्य होते थे, केंद्रीय विधान परिषद को “इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल” कहा जाता था।
- सन् 1861 ईसवी के कानून ने सरकार के लिए एक बुनियादी ढांचा प्रस्तुत किया जो काफी लंबे अरसे तक चला एवं समय के साथ-साथ इसमें कुछ परिवर्तन भी किए गए।
- सन् 1892 ईसवी में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने “इंडियन काउंसिल एक्ट” नामक एक कानून पास किया जिसके तहत केंद्रीय विधान परिषद और प्रांतीय परिषदों के अतिरिक्त सदस्यों की भी संख्या में बढ़ोतरी की गई।
- इस कानून के तहत सदस्यों को कुछ सदस्य को अप्रत्यक्ष रूप से भी चुनने की मंजूरी दी गई इसके साथ ही कुछ सदस्यों को प्रश्न पूछने और बजट पर चर्चा करने के लिए अधिकार दिए गए थे।
- विधान परिषद की स्थापना के बावजूद भारत सरकार व्यवहार में निरंकुश रही सरकार ने व्यापारियों ,उद्योगपतियों, बागान मालिकों, प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों आदि के हितों की रक्षा की एवं इन समुदायों द्वारा जो भी नीतियां अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था वह भारतीय जनता के लिए हानि कर ही रही।
- भारतीय जनता का कार्य में कोई दखल नहीं था और ना ही भारत सरकार उनके हितों का कोई ध्यान रखती थी यह सदस्य चंद भारतीयों को एवं उच्च वर्गों के व्यक्तियों को इसमें शामिल किया जाता था। Vinayiasacademy.com
स्थानीय सरकार के संगठन में भी उस समय कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए-
- जिसमें भारत पर अंग्रेजों का कब्जा होने के बाद स्थानीय शासन की ग्राम पंचायतों जैसी व्यवस्थाएं बिखर गई।
- स्थानीय महत्व के मामलों में सफाई, सड़कों पर रोशनी, पेयजल की आपूर्ति आदि पर बहुत कम ध्यान दिया जाता था।
- 1882 ईस्वी के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में बोर्ड का गठन किया गया क्योंकि स्थानीय लोग ही अपने इलाके के समस्याओं को समझ सकते हैं और उन्हें सही ढंग से हल कर सकते हैं ।
- तथा स्थानीय शासन संस्था में उन इलाकों के लोगों के प्रतिनिधियों मगर अंग्रेजों द्वारा गठित स्थानीय शासन में कोई निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं होते थे।
- 1882 ईस्वी के बाद इन संस्थाओं में निर्वाचित सदस्यों को भी शामिल किया गया मगर उन्हें केवल धनी लोग ही वोट देकर चुन सकते थे। भारत के नेताओं ने गांव के स्तर तक स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था स्थापित करने की मांग की थी। Vinayiasacademy.com

Q. राज्य के मुख्य राजस्व स्त्रोत क्या थी ? राजस्व का वितरण केंद्रीय सरकार और प्रांतीय सरकारों के बीच कैसे होता था?
- 1857 ईसवी के बाद वित्तीय प्रशासन का पुनर्गठन किया गया।
- विभिन्न बजट में सरकार को विभिन्न स्रोतों से होने वाले वार्षिक आय का और विभिन्न मदों में होने वाले खर्च का अनुमानित व्यय प्रस्तुत किया जाता था।
- 1860 ईसवी में बजट की व्यवस्था शुरू की गई एवं इसमें प्रत्येक स्त्रोत में होने वाली अनुमानित आय का ब्यौरा दिया जाता था एवं कुछ साल बाद केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों के बीच आय वितरण के बारे में भी निर्णय लिया गया।
- जिसमें डाकघरों ,रेलवे, अफीम तथा नमक की बिक्री पर चुंगी से होने वाले आय को पूर्णता केंद्रीय सरकार के लिए सुरक्षित रखा गया ।
- भू राजस्व, आबकारी आदि से होने वाली आय को केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों के बीच में बांटा गया।
- अफीम तथा नमक उत्पादन और बिक्री पर सरकार का एकाधिकार था एवं अदालतों में मुकदमा चलाने के लिए स्टैंप ड्यूटी नामक कर लिया जाने लगा।
- हालांकि 1860 में आयकर भी लगाया गया मगर उसे खत्म कर दिया गया कुछ समय बाद आयकर फिर से शुरू किया गया ।
- यह तमाम एक ऐसी सरकार को देने पड़ते थे जो उनके प्रति उत्तरदाई नहीं होते थे बल्कि ब्रिटेन के हितों की रक्षा तथा बढ़ोतरी के लिए चलाई जा रही थी।
- भारत में उस समय सूती वस्त्र के कारखानों के अन्य कुछ उद्योग स्थापित किया गया था जिस पर आय विदेशों से आयातित वस्तुओं पर लगाए जाते थे।
- 1882 ई० में उद्योगपतियों के दबाव के कारण चुंगी को खत्म कर दिया गया मगर राजस्व की कमी को पूरा करने के लिए 1894 में पुनः चुंगी लगाना शुरू कर दिया गया। Vinayiasacademy.com
Q. सन् 1857 ईसवी के विद्रोह के बाद सेना में यूरोपियों का अनुपात भारतीय की अपेक्षा क्यों बढ़ाया गया?
- 1857 के विद्रोह में भारतीय सैनिकों का भूमिका अतुलनीय रहा इसलिए ऐसा दुबारा ना हो इसलिए सेना का पुनर्गठन किया गया।
- सभी अलग-अलग प्रांतों में अपनी सेना का पुनर्गठन किया भारतीय सैनिक कंपनी द्वारा भर्ती किए गए यूरोपीय सैनिकों की टुकड़ी टुकड़ियों तथा ब्रिटिश सैनिकों की रेजीमेंट होती थी ।
- 1858 ई० के बाद यूरोपीय सैनिक और ब्रिटिश सेना की इकाइयों को मिला दिया गया था एवं 1859 में प्रांतों की पृथक सेना का एकीकरण किया गया ।
- भारतीय सैनिकों को तोपखाने और सरदारों से अलग रखने का निर्णय लिया गया यूरोपीय सैनिकों की संख्या में भी बढ़ोतरी की गई। भारतीय सैनिकों का अनुपात 2:1 रखा गया बाद में बढ़ाकर 5:2 कर दिया गया ।
- अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए अंग्रेजों ने “फूट डालो और शासन करो” की नीति अपनाई ।
- इनका उद्देश्य यह था कि अगर एक कंपनी विद्रोह करें तो उसे कुचलने के लिए दूसरी कंपनियों का इस्तेमाल किया जा सके।
- भारत को दो वर्गों में बांटा गया जिसमें एक वर्ग वीर लड़ाकू का एक वर्ग लड़ाकू नहीं है।
- भारतीय जनता में फूट डालने के लिए भी यही नीति अपनाई गई थी।
- भारत पर अंग्रेजों द्वारा अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए नहीं बल्कि पूरे विश्व में अन्य भागों में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए भी यही नीति अपनाई गई।
Q. सिविल सर्विस में भारतीयों के लिए प्रवेश करना क्यों कठिन था?
- ब्रिटिश साम्राज्य का “इस्पाती चौखट” कहा जाता था। इससे सिविल सर्विस में 1853 ईसवी से सिविल सर्विस के सदस्यों की भर्ती प्रतियोगिता परीक्षा के जरिए होने लगी थी।
- यह परीक्षा केवल इंग्लैंड में ही होती थी परीक्षा अंग्रेजी में होती थी इस कारण उसमें भारतीय बहुत कम संख्या में ही बैठ पाते थे।
- 1853 ईसवी में परीक्षा में बैठने की उम्र 23 वर्ष थी ,जिसे 1866 ईसवी में घटाकर 21 वर्ष एवं 1876 ईसवी में घटकर 19 वर्ष कर दिया गया। Vinayiasacademy.com
- इस प्रतियोगिता में अंग्रेजों की बराबरी करने में भारतीयों को काफी कठिनाई होने लगी हालांकि महारानी विक्टोरिया की घोषणा में कहा गया था कि अंग्रेजों के बराबर ही भारतीयों को भी यह अवसर प्रदान किया जाएगा ।
- मगर वास्तव में सिविल सर्विस पर केवल अंग्रेजों का ही एकाधिकार था एवं कई गवर्नर जनरल ने यह सुझाव भी दिया था कि भारतीयों को ऊंचे पद पर नौकरी नहीं दी जाए।
- शिक्षित भारतीयों ने यह मांग की कि यह प्रतियोगिता परीक्षा की आयु की सीमा बढ़ाई जाए और यह परीक्षा इंग्लैंड तथा भारत में हो।
- शिक्षित भारतीय अपने को अंग्रेजों के बराबर समझी, यह ब्रिटिश सरकार के साथ-साथ अंग्रेज गवर्नर जनरल को भी पसंद नहीं था।
- विदेशी अफसरों को यही सिखाया जाता था कि वे जिन लोगों पर शासन करते हैं उन्हें निकृष्ट जाति का समझें एवं शासित लोगों को वे अक्सर देना की दृष्टि से देखते थे ।
- 1876 ईसवी में अंग्रेज वकील ने अपने भारतीय नौकरों को इस तरह पीटा कि वह मर गया वकील को केवल ₹30 जुर्माना हुआ और ऐसी ही कई घटनाएं अक्सर होती रहती थी ।
- 1883 ईसवी में गवर्नर जनरल रिपन के समय एक विधेयक पेश किया गया जिसमें भारतीय और यूरोपीय देशों के बीच के भेद को खत्म किया गया जिसे “इलबर्ट विधेयक” कहते हैं ।
- बाद में बड़ी तादाद में यूरोपीय लोगों ने एवं सिविल सर्विस के लोगों ने इसका विरोध किया जिसके बाद मजबूरन इस विधेयक को वापस लेना पड़ा ।
- 1879 में एक नई प्रशासकीय सेवा बनी जिससे हर साल कुछ भारतीय की भर्ती की जाती थी 1886 ईसवी के बाद विभिन्न प्रकार की 3 सेवाएं बनी, जिसमें एक पुरानी सिविल सर्विस थी जिसे इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) का नाम दिया गया।
- उच्च पदों पर अधिकारी इसी सेवा के होते थे एवं अधिकतर अंग्रेज होते थे ,बाद में इसे प्रांतों के लिए भी सिविल सर्विस बनाया गया जिसे प्रांतों के आधार पर नाम दिए गए जैसे बंगाल सिविल सर्विस ,बिहार सिविल सर्विस आदि। Vinayiasacademy.com

Q. सन् 1858 ईस्वी में घोषणा पत्र के बाद ब्रिटिश सरकार और भारतीय राजाओं के आपसी संबंधों में क्या परिवर्तन हुए?
- ब्रिटिश सरकार सरकार ने अपने शासन को मजबूत बनाने के उद्देश्य से भारतीय राजाओं को बनाए रखने की नीति अपनाई ।
- जिसमें उन्होंने भारतीय राज्यों के अधिकारों तथा उनकी प्रतिष्ठा का सम्मान किया एवं भारत के ब्रिटिश सरकार ने इन राजाओं को अपना सहयोगी भी मान लिया।
- उस समय भारत में 562 रजवाड़े थे इस प्रकार 1857 ईसवी के बाद भारत दो भागों में बटाँ जिसमें एक ब्रिटिश सरकार सीधे शासन करती एवं दूसरा जिस पर भारत सरकार के जरिए ब्रिटिश सरकार ने शासन करती थी।
- सन् 1857 के बाद हुए भारत में हुए विभिन्न भारतीय राज्यों के संबंध एवं उनके बीच हुई संधि के अलग-अलग किस्म थे।
- कुछ राज्यों में भारत की ब्रिटिश सरकार के समकक्ष और पुर्णत: स्वतंत्र समझते थे , कुछ अन्य ब्रिटिश सरकार के अधीन समझे जाते थे। भारत में ब्रिटिश प्रभुसत्ता 1876 ईसवी के एक्ट में स्पष्ट रूप से व्यक्त की गई थी ।
- जिस समय भारत के कई भागों पर भयंकर अकाल पड़ा उसी समय इंपीरियल असेंबली का भी आयोजन किया गया।
- भारत में ब्रिटिश सरकार की प्रभुसत्ता कायम हो जाने पर भारतीय राजाओं की शक्ति घट गई। राज्य के उत्तराधिकार के हर मामले में ब्रिटिश राज सत्ता व भारत में उसके प्रतिनिधि वायसराय की अनुमति प्राप्त करना भी जरूरी हो गया। भारत में राज्यों की अंतरराष्ट्रीय रूप से कोई हैसियत नहीं थी एवं गवर्नर जनरल कर्जन ने भारतीय राजाओं को बिना अनुमति के विदेश जाने पर भी रोक लगा दिया था।
- राज्यों की सेना अंग्रेज अफसरों के नियंत्रण में थी एवं किसी अन्य देश की यात्रा करते हैं और निवास करते तो उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य का प्रजा मान लिया जाता था।
- इन राज्यों की रेलवे, टेलीग्राफ और डाक ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में थी और इसी प्रकार अंग्रेजों ने भारतीय राजाओं पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित की।
- राजाओं की शक्ति को नष्ट कर दिया जिसके बाद उन्होंने ब्रिटिश सरकार की अधीनता स्वीकार कर ली एवं बड़े ऐसो आराम में रहते थे ।
- प्रशासन के कामों पर बहुत कम ध्यान देते थे इसके बाद कुछ राज्य में प्रशासन इतना बिगड़ गया कि ब्रिटिश सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा।
- चुंकि ब्रिटिश शासन पर इन राजाओं का अस्तित्व निर्भर करता था इसलिए वे ब्रिटिश निष्ठावान समर्थक बन गये। Vinayiasacademy.com

Q. अंग्रेजों ने “फूट डालो और शासन करो” की नीति कैसे लागू की?
- अंग्रेजों ने भारत में “फूट डालो और शासन करो” की नीति अपनायीं।
- उन्होंने जनता में पहले से मौजूद मतभेदों का फायदा उठाया एवं एक समुदाय को दूसरे से लड़ा कर, एक के विरुद्ध दूसरे को समर्थन देकर नए मतभेद पैदा करते थे।
- जिसके कारण इनकी यह नीति के बहुत दिनों तक भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुए।
- 1857 ई० के विद्रोह को कुचलने के बाद अवध में तालुकेदारों की जमीन वापस कर दी गई। अंग्रेजों ने जमींदारों के बेटों को नौकरी देकर इसमें भी शिक्षित भारतीयों के साथ भेदभाव किया था, जिसके बाद भारत की जनता को अंग्रेजों ने इस नीति से दो समुदाय में बांट दिया जिसमें भारतीय राज्य की जनता और ब्रिटिश भारत की जनता दो समुदाय थी।
- 1857 ईसवी में कोई सामाजिक सुधार न करके भारतीय समाज में विद्यमान जाति तथा धर्म पर आधारित अंतरों को बरकरार रखने के लिए उन्होंने मतभेदों को बनाए रखा ।
- 1858 ई० के बाद अंग्रेजों ने हिंदू और मुसलमानों के बीच भी फूट डालने की नीति को अपनाया।
- 1857 ई० के विद्रोह के लिए अंग्रेजों ने अपनी पुस्तक के इतिहास में यह दिखाने का कोशिश की कि मुसलमानों ने हिंदुओं का दमन किया इसलिए हिंदुओं का हित इसी में है कि वह ब्रिटिश शासन का समर्थन दे।
- बाद में उन्होंने मुस्लिम विरोधी नीति बदल दी जिसके बाद हिंदुओं के विरुद्ध उच्च वर्गीय मुसलमान को सुविधाएं देना शुरू किया मगर इस नीति का उद्देश्य वही कायम रहा हिंदू और मुसलमान में फूट डालना।
- भारतीय जनता की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने वाला राष्ट्रीय आंदोलन शुरू हुआ ।
- अंग्रेजों ने धर्म पर आधारित दलों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया इस प्रकार उन्होंने आजादी की लड़ाई को कमजोर करने की कोशिश की।Vinayiasacademy.com

Q. अफगानिस्तान और बर्मा के प्रति ब्रिटिश नीति का क्या आधार था?
- भारत सरकार की विदेश नीति तथा इंग्लैंड की सरकार की विदेश नीति का ही एक अंग थी। जिसने उपनिवेशो के लिए साम्राज्यवादी शक्तियों की बीच होड़ लगी हुई थी जिस कारण अक्सर इनके बीच झगड़े होते रहते थे ।
- 19वीं सदी में रूसी साम्राज्य के मध्य एशिया का विस्तार हो रहा था जिससे अंग्रेज चौकन्ने हो गए थे ।
- रूसी विस्तार को रोकने के लिए अंग्रेजों ने अफगानिस्तान पर अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू किया एवं वह सोचते थे कि अफगानिस्तान में कब्जा जमाने के बाद मध्य एशिया में भी अपने उनका प्रभाव बनाने में उन्हें आसानी होगी। अफगानिस्तान का राजा दोस्त मोहम्मद एक योग्य शासक था। अंग्रेजों ने 1839 ईस्वी में अपनी फौज अफगानिस्तान भेजी एवं दोस्त मोहम्मद की सेना को हराया और उसकी एक विरोधी को गद्दी पर बैठा दिया।
- दोस्त मोहम्मद को बंदी बना कर भारत लाया गया और अफगानिस्तान में अंग्रेजों के हस्तक्षेप के खिलाफ विद्रोह हुए।
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- इसलिए दोस्त मोहम्मद को पुनः गद्दी पर बैठाना पड़ा और अंग्रेजों को अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा।
- इस लड़ाई में अंग्रेजों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था और हजारों सैनिक मारे गए थे जिसके बाद अफगानिस्तान के शासक और अंग्रेजो के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुआ।
- भारत में अफगानिस्तान के मामले में हस्तक्षेप न करने की नीति अपनाई और 1878 ईसवी में अंग्रेजों ने पुन: अफगानिस्तान पर हमला कर दिया।
- 40 साल बाद अफगानिस्तान के शासक ने ब्रिटिश भारत के खिलाफ युद्ध किया और 1921 में अपने देश को पूर्णत: आजाद किया। भारत और अफगानिस्तान के बीच सीमा निर्धारित की गई तथा उत्तर पश्चिम के सीमावर्ती क्षेत्र के कबीलों के विद्रोह को दबाने के लिए सरकार को अक्सर फौज भेजनी पड़ती थी। सीमावर्ती क्षेत्रों में नियंत्रण रखने के लिए अंग्रेजों ने आंतकवादी तरीके अपनाएं और विमानों से बम फेंकने लग गई जिसमें उन्हें सफलता नहीं मिली।
- बाद में बर्मा के राजा ने असम पर अधिकार कर लिया अंग्रेजों ने 1824-26 ई० में बर्मा के युद्ध करके असम पर पुन: अधिकार जमा लिया।
- 1852 ई० में अंग्रेजों ने वर्मा पर पुन: हमला किया और तटवर्ती प्रांत ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के अंग बन गए।
- 1880 के दशक में फ्रांसीसियों में हिंद-चीन में अपना शासन कायम कर लिया।
- फ्रांसीसियों के बढ़ते प्रभाव से अंग्रेज घबरा गए एवं उन्होंने वर्मा के राजा से कहा की विदेश नीति पर उनका नियंत्रण स्वीकार करें और मांडल में एक्सीडेंट अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया।
