राज्य न्यायपालिका:-
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न्यायपालिका (Judiciary या judicial system या judicature) किसी भी जनतंत्र के तीन प्रमुख अंगों में से एक है। अन्य दो अंग हैं – कार्यपालिका और व्यवस्थापिका। न्यायपालिका, संप्रभुतासम्पन्न राज्य की तरफ से कानून का सही अर्थ निकालती है एवं कानून के अनुसार न चलने वालों को दण्डित करती है। इस प्रकार न्यायपालिका विवादों को सुलझाने एवं अपराध कम करने का काम करती है जो अप्रत्यक्ष रूप से समाज के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धान्त के अनुरूप न्यायपालिका स्वयं कोई नियम नहीं बनाती और न ही यह कानून का क्रियान्यवन कराती है।
सबको समान न्याय सुनिश्चित करना न्यायपालिका का असली काम है। न्यायपालिका के अन्तर्गत कोई एक सर्वोच्च न्यायालय होता है एवं उसके अधीन विभिन्न न्यायालय (कोर्ट) होते हैं।

भारतीय न्यायपालिका:-
भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका का शीर्ष सर्वोच्च न्यायालय है, जिसका प्रधान प्रधान न्यायाधीश होता है। सर्वोच्च न्यायालय को अपने नये मामलों तथा उच्च न्यायालयों के विवादों, दोनो को देखने का अधिकार है। भारत में 25 उच्च न्यायालय हैं, जिनके अधिकार और उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय की अपेक्षा सीमित हैं। न्यायपालिका और व्यवस्थापिका के परस्पर मतभेद या विवाद का सुलह राष्ट्रपति करता है।भारतीय न्यायपालिका (Indian Judiciary) आम कानून (कॉमन लॉ) पर आधारित प्रणाली है। यह प्रणाली अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के समय बनाई गई थी। इस प्रणाली को ‘आम कानून व्यवस्था’ के नाम से भी जाना जाता है। जिसमें न्यायाधीश अपने फैसलों, आदेशों और निर्णयों से कानून का विकास करते हैं।
15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र होने के बाद 26 जनवरी 1950 से भारतीय संविधान लागू हुआ। इस संविधान के माध्यम से ब्रिटिश न्यायिक समिति के स्थान पर नयी न्यायिक संरचना का गठन हुआ था। इसके अनुसार, भारत में कई स्तर के तथा विभिन्न प्रकार के न्यायालय हैं। भारत का शीर्ष न्यायालय नई दिल्ली स्थित सर्वोच्च न्यायालय है। जिसके मुख्य न्यायधीश की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। नीचे विभिन्न राज्यों में उच्च न्यायालय हैं। उच्च न्यायालय के नीचे जिला न्यायालय और उसके अधीनस्थ न्यायालय हैं जिन्हें ‘निचली अदालत’ कहा जाता है।

भारत मे चार महानगरों में अलग अलग उच्चतम न्यायालय बनाने पर विचार किया जा रहा है क्योंकि दिल्ली देश के अनेक भौगोलिक भागों से बहुत दूर है तथा उच्चतम न्यायालय में कार्य का भार ज्यादा है।
सर्वोच्च न्यायालय:-
भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका का शीर्ष सर्वोच्च न्यायालय है, जिसका प्रधान प्रधान न्यायाधीश होते है। सर्वोच्च न्यायालय को अपने नये मामलों तथा उच्च न्यायालयों के विवादों, दोनो को देखने का अधिकार होता है। भारत में 25 उच्च न्यायालय हैं, जिनके अधिकार और उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय की अपेक्षा सीमित हैं। न्यायपालिका और व्यवस्थापिका के परस्पर मतभेद या विवाद का सुलह राष्ट्रपति करता है।
भारत का उच्चतम न्यायालय या भारत का सर्वोच्च न्यायालय या भारत का सुप्रीम कोर्ट भारत का शीर्ष न्यायिक प्राधिकरण है। जिसे भारत का संविधान/भारतीय संविधान के भाग 5 अध्याय 4 के तहत स्थापित किया गया है। भारतीय संघ की अधिकतम और व्यापक न्यायिक अधिकारिता उच्चतम न्यायालय को प्राप्त होती हैं। भारत का संविधान/भारतीय संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय की भूमिका संघीय न्यायालय और भारत का संविधान/भारतीय संविधान के संरक्षक की है। भारत का संविधान/भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक में वर्णित नियम उच्चतम न्यायालय की संरचना और अधिकार क्षेत्रों की नींव होती हैं। उच्चतम न्यायालय सबसे उच्च अपीलीय अदालत है, जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च न्यायालय/उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ अपील सुनता है। इसके अलावा, राज्यों के बीच के विवादों या मौलिक अधिकारों और मानव अधिकारों के गंभीर उल्लंघन से सम्बन्धित याचिकाओं को आमतौर पर उच्च्तम न्यायालय के समक्ष सीधे रखा जाता है। भारत के उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी 1950 को हुआ और उसके बाद से इसके द्वारा 24,000 से अधिक निर्णय दिए जा चुके हैं।

न्यायालय का गठन:-
28 जनवरी 1950, भारत के एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के दो दिन बाद, भारत का उच्चतम न्यायालय अस्तित्व में आया। उद्घाटन समारोह का आयोजन संसद भवन के नरेंद्रमण्डल(चेंबर ऑफ़ प्रिंसेज़) भवन में किया गया था। इससे पहले सन् 1937 से 1950 तक चैंबर ऑफ़ प्रिंसेस ही भारत की संघीय अदालत का भवन था। आज़ादी के बाद भी सन् 1958 तक चैंबर ऑफ़ प्रिंसेस ही भारत के उच्चतम न्यायालय का भवन था, जब तक कि 1958 में उच्चतम न्यायालय ने अपने वर्तमान तिलक मार्ग, नई दिल्ली स्थित परिसर का अधिग्रहण किया।
भारत के उच्चतम न्यायालय ने भारतीय अदालत प्रणाली के शीर्ष पर पहुँचते हुए भारत की संघीय अदालत और प्रिवी काउंसिल की न्यायिक समिति को प्रतिस्थापित किया था।
28 जनवरी 1950 को इसके उद्घाटन के बाद, उच्चतम न्यायालय ने संसद भवन के चैंबर ऑफ़ प्रिंसेस में अपनी बैठकों की शुरुआत की। उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एस. सी. बी. ए.) सर्वोच्च न्यायालय की बार है। एस. सी . बी. ए. के वर्तमान अध्यक्ष प्रवीण पारेख हैं, जबकि के. सी. कौशिक मौजूदा मानद सचिव हैं।
उच्चतम न्यायालय परिसर:-
उच्चतम न्यायालय भवन के मुख्य ब्लॉक को भारत की राजधानी नई दिल्ली में तिलक रोड स्थित 22 एकड़ जमीन के एक वर्गाकार भूखंड पर बनाया गया है। निर्माण का डिजाइन केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के प्रथम भारतीय अध्यक्ष मुख्य “वास्तुकार गणेश भीकाजी देवलालीकर” द्वारा इंडो-ब्रिटिश स्थापत्य शैली में बनाया गया था। न्यायालय 1958 में वर्तमान इमारत में स्थानान्तरित किया गया। भवन को न्याय के तराजू की छवि देने की वास्तुकारों की कोशिश के अंतर्गत भवन के केन्द्रीय ब्लाक को इस तरह बनाया गया है, की वह तराजू के केन्द्रीय बीम की तरह लगे। 1979 में दो नए हिस्से पूर्व विंग और पश्चिम विंग को 1958 में बने परिसर में जोड़ा गया। कुल मिलकर इस परिसर में 15अदालती कमरे हैं। मुख्य न्यायाधीश की अदालत, जो कि केन्द्रीय विंग के केंद्र में स्थित है। सबसे बड़ा अदालती कार्यवाही का कमरा है। इसमें एक ऊंची छत के साथ एक बड़ा गुंबद भी है।

उच्चतम न्यायालय की संरचना:-
न्यायालय का आकार:–
भारत के संविधान द्वारा उच्चतम न्यायालय के लिए मूल रूप से दी गयी व्यवस्था में एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीशों को अधिनियमित किया गया था। और इस संख्या को बढ़ाने का जिम्मा संसद पर छोड़ा गया था। प्रारंभिक वर्षों में, न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत मामलों को सुनने के लिए उच्चतम न्यायालय की पूरी पीठ एक साथ बैठा करती थी। जैसे-जैसे न्यायालय के कार्य में वृद्धि हुई और लंबित मामले बढ़ने लगे, भारतीय संसद द्वारा न्यायाधीशों की मूल संख्या को आठ से बढ़ाकर 1956 में ग्यारह, 1960 में चौदह, 1978 में अठारह, 1986 में छब्बीस 2008 में इकत्तीस और 2019 में चौंतीस तक कर दिया गया। न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि हुई है, वर्तमान में वे दो या तीन की छोटी न्यायपीठों (जिन्हें ‘खंडपीठ’ कहा जाता है) के रूप में सुनवाई करते हैं। संवैधानिक मामले और ऐसे मामले जिनमें विधि के मौलिक प्रश्नों की व्याख्या देनी हो, की सुनवाई पांच या इससे अधिक न्यायाधीशों की पीठ (जिसे ‘संवैधानिक पीठ’ कहा जाता है) द्वारा की जाती है। कोई भी पीठ किसी भी विचारा-धीन मामले को आवश्यकता पड़ने पर संख्या में बड़ी पीठ के पास सुनवाई के लिए भेज सकती है।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति:-
संविधान में तैतीस (33) न्यायधीश तथा एक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति का प्रावधान है। उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के परामर्शानुसार की जाती है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इस प्रसंग में राष्ट्रपति को परामर्श देने से पूर्व अनिवार्य रूप से चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समूह से परामर्श प्राप्त करते हैं। तथा इस समूह से प्राप्त परामर्श के आधार पर राष्ट्रपति को परामर्श देते हैं।

अनु 124[2] के अनुसार मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह लेगी। वहीं अन्य जजों की नियुक्ति के समय उसे अनिवार्य रूप से मुख्य न्यायाधीश की सलाह माननी पडेगी।
‘सर्वोच्च न्यायालय एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन’ बनाम भारत संघ वाद 1993 मे दिये गये निर्णय के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति तथा उच्च न्यायालय के जजों के तबादले इस प्रकार की प्रक्रिया है। जो सर्वाधिक योग्य उपलब्ध व्यक्तियों की नियुक्ति की जा सके। भारत के मुख्य न्यायाधीश का मत प्राथमिकता पायेगा। उच्च न्यायपालिका मे कोई नियुक्ति बिना उस की सहमति के नहीं होती है। संवैधानिक सत्ताओं के संघर्ष के समय भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायपालिका का प्रतिनिधित्व करेगा। राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश को अपने मत पर फिर से विचार करने को तभी कहेगा जब इस हेतु कोई तार्किक कारण मौजूद होगा। पुनः विचार के बाद उसका मत राष्ट्रपति पर बाध्यकारी होगा यद्यपि अपना मत प्रकट करते समय वह सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठम न्यायधीशों का मत जरूर लेगा। पुनःविचार की दशा मे फिर से उसे दो वरिष्ठम न्यायधीशों की राय लेनी होगी वह चाहे तो उच्च न्यायालय/सर्वोच्च न्यायालय के अन्य जजों की राय भी ले सकते है लेकिन सभी राय सदैव लिखित में होगी।
बाद में अपना मत बदलते हुए न्यायालय ने कम से कम 4 जजों के साथ सलाह करना अनिवार्य कर दिया था। वह कोई भी सलाह राष्ट्रपति को अग्रेषित नहीं करेगा यदि दो या ज्यादा जजों की सलाह इसके विरूद्ध हो किंतु 4 जजों की सलाह उसे अन्य जजों जिनसे वो चाहे, सलाह लेने से नहीं रोकेगी।

न्यायाधीशों की योग्यताएँ:-
व्यक्ति भारत का नागरिक हो।
कम से कम पांच साल के लिए उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम पांच वर्षों तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो।
किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार दस वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो। अथवा
वह व्यक्ति राष्ट्रपति की राय में एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता होना चाहिए।
यहाँ पर ये जानना आवश्यक होता है की उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने हेतु किसी भी प्रदेश के उच्च न्यायालय में न्यायाधीश का पांच वर्ष का अनुभव होना अनिवार्य है ,
और वह 62 वर्ष की आयु पूरी न किया हो, वर्तमान समय में CJAC निर्णय लेगी। किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या फिर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के एक तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
कार्यकाल:-
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष होती है। न्यायाधीशों को केवल (महाभियोग) दुर्व्यवहार या असमर्थता के सिद्ध होने पर संसद के दोनों सदनों द्वारा दो-तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव के आधार पर ही राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।
पदच्युति:-
उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों की राष्ट्रपति तब पदच्युत करेगा जब संसद के दोनों सदनों के कम से कम 2/3 उपस्थित तथा मत देने वाले तथा सदन के कुल बहुमत द्वारा पारित प्रस्ताव जो कि सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर लाया गया हो, के द्वारा उसे अधिकार दिया गया हो। ये आदेश उसी संसद सत्र मे लाया जायेगा जिस सत्र मे ये प्रस्ताव संसद ने पारित किया हो। अनु 124[5] मे वह प्रक्रिया वर्णित है। जिससे जज पदच्युत होते है। इस प्रक्रिया के आधार पर संसद ने न्यायधीश अक्षमता अधिनियम 1968 पारित किया था। इसके अन्तर्गत

(१) संसद के किसी भी सदन मे प्रस्ताव लाया जा सकता है। लोकस्भा मे 100 राज्यसभा मे 50 सदस्यों का समर्थन अनिवार्य होता है।
(२) प्रस्ताव मिलने पर सदन का सभापति एक 3 सदस्य समिति बनायेगा जो आरोपों की जाँच करेगी। समिति का अध्यक्ष सप्रीम कोर्ट का कार्यकारी जज होगा। दूसरा सदस्य किसी हाई कोर्ट का मुख्य कार्यकारी जज होगा। तीसरा सदस्य माना हुआ विधिवेत्ता होगा। इसकी जाँच-रिपोर्ट सदन के सामने आयेगी। यदि इस मे जज को दोषी बताया हो तब भी सदन प्रस्ताव पारित करने को बाध्य नहीं होता। किंतु यदि समिति आरोपों को खारिज कर दे तो सदन प्रस्ताव पारित नही कर सकता है।
अभी तक सिर्फ एक बार किसी जज के विरूद्ध जांच की गयी है। जज रामास्वामी दोषी सिद्ध हो गये थे किंतु संसद मे आवश्यक बहुमत के अभाव के चलते प्रस्ताव पारित नहीं किया जा सका था।
न्यायालय की जनसांख्यिकी:-
उच्चतम न्यायालय ने हमेशा एक विस्तृत क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को बनाए रखा है। इसमें धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यक वर्गों से संबंधित न्यायाधीशों का एक अच्छा हिस्सा है। उच्चतम न्यायालय में नियुक्त होने वाली प्रथम महिला न्यायाधीश 1987 में नियुक्त हुईं न्यायमूर्ति “फातिमा बीवी” थीं। उनके बाद इसी क्रम में न्यायमूर्ति ‘सुजाता मनोहर’, न्यायमूर्ति ‘रूमा पाल’ और न्यायमूर्ति ‘ज्ञान सुधा मिश्रा’ का नाम आता है। न्यायमूर्ति ‘रंजना देसाई’, जो सबसे हाल ही में उच्चतम न्यायालय की महिला जज नियुक्त हुईं हैं, को मिलाकर वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में दो महिला न्यायाधीश हैं, उच्चतम न्यायालय के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब दो महिलायें एक साथ न्यायाधीश हों।
2000 में न्यायमूर्ति के. जी. बालकृष्णन दलित समुदाय से पहले न्यायाधीश बने। बाद में, सन् 2007 में वे ही उच्चतम न्यायालय के पहले दलित मुख्य न्यायाधीश भी बने। 2010 में, भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद सँभालने वाले न्यायमूर्ति एस. एच. कपाड़िया पारसी अल्पसंख्यक समुदाय से सम्बन्ध रखते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय की खण्डपीठ
अनु 130 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली मे होगा परन्तु यह भारत मे और कही भी मुख्य न्यायाधीश के निर्णय के अनुसार राष्ट्रपति की स्वीकृति से सुनवाई कर सकेगा
क्षेत्रीय खंडपीठों का प्रश्न- विधि आयोग अपनी रिपोर्ट के माध्यम से क्षेत्रीय खंडपीठों के गठन की अनुसंशा कर चुका है न्यायालय के वकीलॉ ने भी प्राथर्ना की है कि वह अपनी क्षेत्रीय खंडपीठों का गठन करे ताकि देश के विभिन्न भागॉ मे निवास करने वाले वादियॉ के धन तथा समय दोनॉ की बचत हो सके, किंतु न्यायालय ने इस प्रश्न पे विचार करने के बाद निर्णय दिया है कि पीठों के गठन से
- ये पीठे क्षेत्र के राज नैतिक दबाव मे आ जायेगी।
- इनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट के एकात्मक चरित्र तथा संगठन को हानि पहुँच सकती है,
किंतु इसके विरोध मे भी तर्क दिये गये है।