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सर्वोच्च न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णय:-
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1.मामला:- शंकरी प्रसाद बनाम भारत सरकार, 1951
उच्चतम न्यायालय का निर्णय:- संसद को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति है।
2.मामला:- सज्जन सिंह बनाम राजस्थान सरकार, 1965
उच्चतम न्यायालय का निर्णय:- संसद को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति है।
3.मामला:- गोलक नाथ बनाम पंजाब सरकार, 1967.
उच्चतम न्यायालय का निर्णय:- संसद को संविधान के भाग III (मौलिक अधिकारों) में संशोधन करने का अधिकार नहीं है।
4.मामला:- केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार, 1971
उच्चतम न्यायालय का निर्णय:- संसद के किसी भी प्रावधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन ‘बुनियादी संरचना’ को कमजोर नहीं कर सकती है।
5.मामला:- इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण, 1975
उच्चतम न्यायालय का निर्णय:- सर्वोच्च न्यायालय ने बुनियादी संरचना की अपनी अवधारणा की भी पुष्टि की।
6.मामला:- मिनर्वा मिल्स बनाम भारत सरकार, 1980
उच्चतम न्यायालय का निर्णय:- बुनियादी विशेषताओं में ‘न्यायिक समीक्षा’ और ‘मौलिक अधिकारों तथा निर्देशक सिद्धांतों के बीच संतुलन’ को जोड़कर बुनियादी ढांचे की अवधारणा को आगे विकसित किया गया।
7.मामला:- मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम , 
उच्चतम न्यायालय का निर्णय:- भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा १२५ के अन्तर्गत स्त्री को भरण-पोषण पाने का अधिकार है क्योंकि यह एक अपराधिक मामला है न कि दीवानी (सिविल)।
8.मामला:- कीहोतो होल्लोहन बनाम जाचील्लहु, 1992
उच्चतम न्यायालय का निर्णय:- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव’ को बुनियादी विशेषताओं में जोड़ा गया।
9.मामला:– इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार, 1992
उच्चतम न्यायालय का निर्णय:- ‘कानून का शासन’, बुनियादी विशेषताओं में जोड़ा गया।

  1. मामला:-एस.आर बोम्मई बनाम भारत सरकार, 1994
    उच्चतम न्यायालय का निर्णय:- संघीय ढांचे, भारत की एकता और अखंडता, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, सामाजिक न्याय और न्यायिक समीक्षा को बुनियादी विशेषताओं के रूप में दोहराया गया।
    समालोचना:-
    भ्रष्टाचार:—

वर्ष 2008 में सर्वोच्य न्यायालय विभिन्न विवादों में उलझ गया, जिसमें न्यायप्रणाली के उच्चतम स्तर पर भ्रष्टाचार का मामला,करदाताओं के पैसे से महंगी निजी छुटियाँ, न्यायाधीशों की परिसम्पतियों को सार्वजनिक करने से मना करने का मामला, न्यायाधीशों की नियुक्ति में गोपनीयता, सूचना के अधिकार के तहत सूचना को सार्वजनिकर करने से मना करना जैसे सभी मामले शामिल रहे। मुख्य न्यायाधीश के॰ जी॰ बालकृष्णन ने अपने पद को जनसेवक का न होकर एक संवैधानिक प्राधिकारी का होने को लेकर काफी आलोचनाओं का सामना भी किया। बाद में उन्होंने अपना बयान वापस भी ले लिया।न्यायव्यवस्था को अपनी धीमी प्रक्रिया के लिए पूर्व राष्ट्रपतियों प्रतिभा पाटिल और ए॰पी॰जे॰ अब्दुल कलाम से भी कठिन आलोचना झेलनी पड़ी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था, कि न्यायव्यवस्था का भ्रष्टाचार के दौर से गुजरना बहुत ही बड़ी समस्या है और सुझाव दिया कि इसको बहुत शीघ्र इससे उबारने की आवश्यकता है।

भारत के कैबिनेट सचिव ने भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में राष्ट्रीय न्याय परिषद् का पैनल घटित करने के लिए संसद में न्यायाधीश जाँच (संशोधन) बिल 20080में प्रस्तुत किया। यह परिषद् उच्च न्यायालय और सर्वोच्य न्यायालय के न्यायाधीशों पर लगे भ्रष्टाचार और दुराचार के आरोपों की जाँच करेगी।

नियमावली:-
भारत के संविधान के अनुच्छेद 145 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को अपने क्रियाकलापों एवं प्रक्रिया को विनियमित करने के लिए स्वयं के नियमों को लागू करने का अधिकार देता है। (राष्ट्रपति के अनुमोदन के साथ)। तदनुसार, “सर्वोच्च न्यायालय की नियमावली (रूल्स), 1950” तैयार किए गए थे। इसके बाद १९६६ (1966) में इसमें संशोधन करके नयी नियमावली बनाई गयी। 2014 में, सर्वोच्च न्यायालय ने 1966 के नियमों को बदलकर ‘सर्वोच्च न्यायालय नियमावली २०१३ (2013) अधिसूचित किया जो 19 अगस्त 2015 से प्रभावी हुई।

जुलाई २०१९(2019) से सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में भी निर्णय की प्रति उपलब्ध कराई जा रही है।


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