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वैदिक साहित्य में चार वेद उपभेद ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद वेदांग को शामिल किया जाता है। ऋग्वेद जिसमें श्लोक और स्तुति देवताओं के ध्यान में गाली गई है इसमें 10 मंडल है दो से 7 मंडल सबसे पुराने इसके बाद आठवें और नौवें मंडल को लिखा गया और सबसे अंत में प्रथम एवं दसवें मंडल को जोड़ा गया कुल मिलाकर 1028 सूक्त है इसमें 33 प्रकार के भगवान के बारे में बताया गया है इसके तीसरे मंडल में गायत्री मंत्र जो सविता देवी या सावित्री को समर्पित है। aetereya एवं कौशिटकी इस वेद के ब्राह्मण है एवं होत्री इसके पुरोहित है। सामवेद- ऋग्वेद में दिए गए मंत्र को जब गाने में असुविधा हुई तो इसे गाने योग्य बनाने के लिए सामवेद की रचना की गई यही कारण है कि इसमें 1810 श्लोक है जिसमें से 75 ही नए हैं बाकी सभी किसी न किसी रूप में ऋग्वेद में लिखा हुआ है। मुख्य रूप से सामवेद की तीन शाखा है भारतीय संगीत की प्रथम कल्पना इसी पुस्तक में की गई है। तानडिया मना एवं ताई मनिया इसके ब्राह्मण है उदगात्री इसके पुरोहित है। यजुर्वेद- मुख्य रूप से इसमें धनुष विद्या के अलावा यज्ञ करने की परंपरा और तरीके को बताया गया है। इस पुस्तक को गद्य और पद्य दोनों में रखा गया है। यह कृष्ण एवं शुक्ल यजुर्वेद में बटा हुआ है। कृष्ण यजुर्वेद भी मैत्रायणी काठक कापिंथल और संहिता में बटा हुआ है जबकि शुक्ल यजुर्वेद मध्यानअंदीन और कण्व संहिता में बटा हुआ है।। 2 साल तक चलने वाला राजसूय यज्ञ और 17 दिनों तक चलने वाला बाजपेई आगे इसमें ही लिखा हुआ है। taitereya एवं शतपथ इसके ब्राह्मण है , adharvavayu पुरोहित है ।अथर्ववेद- इस वेद के पुरोहित एवं ब्राह्मण गोपाथा हैं, तंत्र मंत्र जादू टोना एवं दवा का उल्लेख इसी ग्रंथ में।


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