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लोहरा जनजाति की शासन व्यवस्था पंचायती होती है जिसमें दंड विवादों का निपटारा भी होता है। महली जनजाति की शासन व्यवस्था-दूर-दूर तक इनके गांव होते हैं जिनकी अपनी कोई पंचायत नहीं होती संथाली क्षेत्र में पर परगनैत(प्रधान)तथा मुंडा क्षेत्र में मुंडा मुखिया ही महली मुखिया होता है। माल-पहाड़िया जनजाति की शासन व्यवस्था-इस जनजाति में अपना ग्राम पंचायत होता है इनका मुखिया मांझी है गोड़ाइत, दीवान,प्रमाणिक इनके सहायक होते हैं विवादों का निपटारा,दंड विठलाहा द्वारा होता है।गांव के विवादों के लिए संगठन होता है तथा इनका मुखिया सरदार होता है। सौरिया पहाड़िया की शासन व्यवस्था-इस जनजाति की शासन व्यवस्था लोकतांत्रिक राजनीतिक जीवन होता है इनका प्रधान मांझी होता है कोतवार,भंडारी,गोड़ैल आदि सहायक होते हैं इनमें 15-20 गांव के मुखिया और 70-80 गांव में सरदार होता है इनके भी सरकारी पंचायतों के बनने से व्यवस्था कमजोर हो गई है। सबर जनजाति की शासन व्यवस्था-इन जनजातियों की परंपरागत पंचायत व्यवस्था है इनके प्रमुख प्रधान होते हैं कानून, दंड आदि इनके फैसले परंपरागत तरीकों से निपटारा किया जाता है उनके सहायक गोड़ाइल होते हैं सरकारी पंचायतों के कारण इनके भी पंचायत व्यवस्था कमजोर है।

परहिया जनजाति की शासन व्यवस्था-यह जनजाति अल्पसंख्यक हैं 8-10 गांव मिलकर ही बनता है जिन्हें “कारा विहारी”पंचायत कहते हैं जिनका प्रधान महतो मुखिया होता है मुखिया की सहायता करने वाला “कहतो या खतो”कहलाता है।खोड़ जनजाति की शासन व्यवस्था-खोंड जनजाति में इनका संगठन बहुत मजबूत था इनका मुखिया”गोटिया”होता है इनका प्रधान भी गोटिया कहलाता है इनकी मिली-जुली गांव होते हैं अंतर्जातीय ग्रामीण व्यवस्था होते हैंखोड़ जनजाति की शासन व्यवस्था में मिलीजुली गोत्र के लोग रहते हैं सरपंच के सभी कार्य संभालते हैं। किसान जनजाति की शासन व्यवस्था-इस जनजाति में ग्रामीण पंचायत जाति व्यवस्था होती है जिनमें 12 अधिक गांव मिलकर पर “परगना पंचायत” कहते हैं बड़े विवादों का निपटारा पंचायत करती है तथा छोटे विवादों का निपटारा ग्राम में ही हो जाता है।असुर जनजाति की शासन व्यवस्था-यह जनजाति झारखंड के अल्पसंख्यक जनजाति व्यवस्था है गांव का सारा निपटारा गांव में ही किया जाता है जो अपने में राजनीतिक इकाई क्षेत्र होता है गांव में असुर पंचायत होता है जिनमें महतो, बैगा गोड़ाइल,पूजार ये प्रधान होते हैं जो अपने-अपने कार्य करते हैं संदेशवाहक के रूप में पंचायत में दंड का प्रावधान होता है गांव के वरिष्ठ नागरिक “पंच”होते हैं। परिवर्तनों के कारण ग्राम पंचायतों में कमजोरी आ गई है।


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