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अशोक ने लगभग 36 वर्ष तक शासन किया इसके बाद लगभग 232 ईसा पूर्व में उसकी मृत्यु हुई इसके कई संतान तथा पत्नियां थी पर उनके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है उसके पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा नेबौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में काफी योगदान दिया था अशोक की मृत्यु के बाद मारे वहां से लगभग 50 वर्ष तक चला अशोक का दान दक्षिणा में वृद्धि होने और धर्म के अधिक प्रवृत्ति होने पर राज्य की आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे बढ़ती चली गई एवं इसी दौरान सम्राट अशोक की रानी इससे रक्षिता का साम्राज्य प्रभुत्व स्थापित पता चला गया और इसी वजह से अशोक के अंतिम दिन अच्छे नहीं रहे।

अशोक के पुत्र कुणाल और संपत्ति ने राज्य पर अधिकार कर लिया रानी रक्षिता द्वारा संपत्ति की रक्षा करने का उल्लेख अशोक में अंतिम अभिलेख में किया हैसम्राट अशोक के ऊपर अधिकारियों का विवरण पाली ग्रंथों में पाया गया है अतः इसके अनुसार अशोक के उपरांत कुणाल सर्वप्रथम सम्राट अशोक के उपरांत मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना कहा जाता है कि अशोक के 4 पुत्र थे जिनमें तीव्र महेंद्र कुमार एवं जालौर थे मगर अशोक की मृत्यु के उपरांत कुणाल ने राज्य ग्रहण किया बौद्ध एवं जैन ग्रंथों के अनुसार कुणाल का पुत्र संप्रति अशोक के बाद का शासक था जनश्रुति के अनुसार कुणाल को उसकी सौतेली माता ने अंधा करवा दिया था कुणाल ने 8 वर्ष तक शासन किया इसके बाद दशरथ टू टू शिक्षक बनने की जानकारी में उल्लेखित है पहाड़ी पर एक अभिलेख आया था जो आज के गया बिहार में स्थित है और इसमें भी देवा नाम किए की उपाधि धारण की थी।

इसके समय राज्य दो भागों में वर्गीकृत हो गया था पूर्वी भाग दशरथ के अधिकार एवं पश्चिमी भाग संपत्ति के अधिकार में चला गया इसकी दो राजधानियां थी पाटलिपुत्र और दशरथ मौर्य साम्राज्य का शासक बना इसका कार्यकाल 207 अशोक का उत्तराधिकारी माना जाता है यह जैन धर्म का अनुयाई था इसमें पाटलिपुत्र एवं दोनों स्थानों पर एक साथ शासन किया था मगर किसके शासनकाल में एक भयंकर अकाल में इसे बहुत दुखी कर दिया और इसमें श्रवणबेलगोला 207 अपने शरीर का त्याग कर दिया 20706 साली राज्य संभाला लेकिन उसकी स्थिति स्थिति के कारण 206 ईसापुर में उसकी हत्या कर दी गई देव वर्मा एवं व्रत में भी उत्तर अधिकारिता निभाई राजाओं की विपरीत परिस्थितियों में मौर्य साम्राज्य का अंत कर दिया मौर्य वंश का अंतिम शासक था इसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग में मौर्य साम्राज्य पर अधिकार करने के लिए राजा भरत की हत्या कर स्वयं राजा बन बैठा इस तरह मौर्य साम्राज्य के पतन के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इसइस प्रकार है :-

चाणक्य ने अपनी बुद्धि विवेक एवं एक कुशल राजनीतिज्ञ होने का परिचय देते हुए विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थापना में बहुत बड़ा योगदान दिया था।

अशोक के ब्राह्मण विरोधी सिद्धांतों के फलस्वरूप इस समय ब्राह्मणों में काफी प्रतिक्रियाएं हुई एवं इसी उपेक्षित स्थिति से मौर्य साम्राज्य के पतन होना प्रारंभ हो गया ।

धन विजय के कारण अशोक की सैन्य शक्ति कमजोर पड़ गई एवं उसकी अहिंसा की नीति के परिणाम स्वरुप उसे कई विदेशी आक्रमणों का सामना भी करना पड़ा इससे भी साम्राज्य का विघटन प्रारंभ हो गया अत्याधिक दान देने के फलस्वरूप मौर्य साम्राज्य का गोश्त होता चला गया एवं आर्थिक स्थिति काफी जगमग आ गई विपरीत परिस्थितियों के बाद भी अशोक के उत्तराधिकारी अच्छे होते तो शायद ऐसा कुछ नहीं होता ।

सब कुछ परिवर्तित करना आसान था मगर अशोक के सारे उत्तराधिकारी कुणाल से लेकर रात तक सभी आयोग उत्तराधिकारी थे राज्य की गतिविधियां केंद्रीय थी उनकी उदासीनता ने मौर्य साम्राज्य के पतन की राह दिखाई अशोक के योग्य उत्तराधिकारी की स्थिति से परिचित होकर अधिकारियों ने प्रजा को परेशान करना प्रारंभ कर दिया तथा प्रजा पर अत्याचार बढ़ने से विद्रोह प्रारंभ होने लगे एवं इसी परिस्थिति का लाभ उठाते हुए पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य साम्राज्य पर अधिकार कर लिया और मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया मौर्य प्रशासन के ऐतिहासिक स्रोत कौटिल्य के अर्थशास्त्र एवं मेगास्थनीज इंडिका से प्राप्त होती है।

सम्राट अशोक के समय इनके मंत्रिपरिषद में राजा के सहयोग के लिए एक मंत्री परिषद होते थे जिसके सदस्य मंत्री से भी अधिक निम्न स्तर के होते थे अर्थशास्त्र में मंत्रिमंडल के सदस्य को 800 एवं मंत्री परिषद के सदस्य को 12000 वेतन दिए जाने का साथ मिलता है प्रशासन में उच्च अधिकारी के रूप में तीर्थ महामात्र या आवाज आते थे इनकी संख्या 18 थी वह मात्रों के बाद सामाजिक आर्थिक एवं धार्मिक प्रशासन के नियंत्रण के लिए अध्यक्ष होते थे अर्थशास्त्र में 30 अध्यक्षों का उल्लेख मिलता है ।

दंड पाल पुलिस का प्रधान होता था जो अपराधियों पर नियंत्रण रखता था एवं दंड व्यवस्था में सबसे नीचे ग्राम न्यायालय होते थे स्थानीय एवं जनपद ग्राम न्यायालयों के ऊपर होते थे केंद्रीय न्यायालय सबसे ऊपर होते थे गुड पुरुषों का कार्य संभालते थे यह लोग संपूर्ण गतिविधियों की गुप्त सूचना को दिया करते थे उक्त चारों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है स्थाई गुप्त चर और अचर स्थाई गुप्तचर खुदा स्थिति कार्तिक छात्र गिरी प्रतीक तापस एवं वर्दी के रूप में स्थाई रूप से कार्य करते थे इसके साथ ही दूसरे प्रकार के गुप्तचर भ्रमण कर सूचनाएं जुटाने के वैश्य एवं स्त्रियों की इस कार्य में सहयोग ली जाती थी।

यह सभी यह सभी वर्ग के लोगों पर दृष्टि रखते थे और संपूर्ण विवरण राजा को सकते थे सेना के संगठन में चंद्रगुप्त मौर्य के पास एक विशाल को संगठित सेना थी मेगास्थनीज एवं कोटि लेने इसका वर्णन किया है प्लिनी के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में छह लाख पैदल सेना 30,000 घुड़सवार 9000 हाथी और 8000 व्रत हुआ करते थे मौर्य साम्राज्य के प्रशासन सेना एवं अन्य गतिविधियों को संचालित करने के लिए राजस्व प्रणाली की व्यवस्था थी किसानों की उपज का 1/4 या 1/6 भाग भूमि कर के रूप में लिया जाता था राजा को निजी उद्योग धंधे एवं जुर्माना से भी आय प्राप्त होती थी सनी दाता राजकोष की देखभाल करने वाला अधिकारी होता था।

राजकोट से प्राप्त आय राज परिवार राज्य कर्मचारियों एवं जनहित के कार्यों में वह होते थे प्रांतीय प्रशासन में मौर्य साम्राज्य विभिन्न इकाइयों में विभक्त था प्रशासन की सबसे बड़ी इकाई प्रांत थी पुश्यगुप्त सौराष्ट्र का शासक था जो चंद्रगुप्त के आदेश पर कार्य किया करता था उत्तरी भाग का शासन पाटलिपुत्र के राजा द्वारा संभाला जाता था सीमावर्ती शासक के रूप में राजकुमारों का नियंत्रण होता था परंतु का शासक राष्ट्रपाल होता था।

अतः प्रांतीय व्यवस्था केंद्रीय व्यवस्था के आधार पर गठित की और प्रांतीय प्रशासनिक व्यवस्था पर केंद्र का पूर्ण नियंत्रण रहता था अशोक का साम्राज्य प्रांतीय जिला या स्थानीय में विभक्त था जिला प्रशासन का प्रमुख तथा स्थानिक पर समाहर्ता का नियंत्रण होता था 800 गांव के समूह को स्थानीय कहा जाता था द्रोण स्थानीय से छोटी इकाई थी और इसमें 400 गांव का समूह तथा तथा द्रमुक से छोटी इकाई को खरवा ठीक कहा जाता था । इसमें 200 गांव का समूह हुआ करता था एवं संग्रहण में 100 गांव का समूह था ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई हुआ करती थी तथा इसे ग्रामीणों के समूह द्वारा चलाया जाता था। ग्राम के मुखिया को ग्रामीण जाता था तथा गुप्ता का इन पर पूर्ण नियंत्रणहुआ करता था। ग्रुप के पास 10 गांव का नियंत्रण हुआ करता था कौटिल्य का अर्थशास्त्र एवं मेगास्थनीज इंडिका से हमें मार कान के सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था के बारे पता चलता है वर्ण व्यवस्था की रक्षा करना राजा का प्रमुख कार्य हुआ करता था तथा इस समय सभी लोग अपने कार्यों का विभाजन अपने वर्गों के हिसाब से किया करते थे मौर्य काल में अनुलोम तथा प्रतिलोम विवाह प्रणाली से उत्पन्न संतान को मिश्रित कहा जाता था इस काल में आश्रम व्यवस्थाखानपान विवाह संबंधी नियमों का पालन भी वर्ण व्यवस्था के आधार पर किया जाता था उसने अपनी पुस्तक इंडिका में भारतीय समाज में 7 वर्णों को विभाजित किया है। कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में दास प्रथा का भी उल्लेख किया है। तथा इसके अनुसार देशों को 9 वर्गों में विभाजित किया गया था उन्होंने अपनी पुस्तक में स्त्री राशियों का भी उल्लेख किया है बंदगी ऐसी महिला दासी हुआ करती थी जो लोगों का मनोरंजन कर अपने मालिक के लिए पैसा इकट्ठा किया करती थी।


सम्राट अशोक के समय में इंजीनियर बड़े कुशल हुआ करते थे यही कारण है कि वह 5050 टनो के स्तंभ टुकड़ों को पहाड़ से काटकर दूर दूर स्थानों पर ले जाने में सफल हुए मौर्य काल में सुदर्शन झील का निर्माण वैज्ञानिक ढंग से किया गया डॉक्टर राधा को मोड मुखर्जी ने लिखा है कि मौर्य काल के इंजीनियर नगर योजनाएं बनाने में भी निपुण थे मेगास्थनीज का कहना है कि पाटलिपुत्र नगर एक निश्चित योजना के अनुसार बनाया गया था। मौर्य काल की कला के संबंध में यह कहा जा सकता है कि इस काल में इस क्षेत्र में बड़ी बड़ी चुनौतियां हुई इस काल की कलाकृतियों को संसार के इतिहास में अदिति स्थान प्राप्त है परंतु उसमें एक बड़ी त्रुटि भी थी उस काल मैं उस समय के लोग जीवन और जनसाधारण के विचारों को अभिव्यक्त ना किया गया परंतु सम्राट के जीवन चरित्र आदेशों धार्मिक विचारों और सिद्धांतों को अपना दे बनाया गया।मौर्यकालीन कला राजकीय कला थी उसका विकास सम्राटों के प्रयासों द्वारा हुआ उसमें लोक कला का रूप कभी धारण नहीं किया फलस्वरूप परिणाम यह हुआ कि मौर्य साम्राज्य के पतन के साथ-साथ उस कला का भी पतन हो गया।मौर्यकालीन कलाकृतियों की मूर्तियों में भाव का अंकन बड़े सुंदर ढंग से किया गया है इसका उदाहरण सारनाथ स्तंभ पर बनी 4 शेरों की मूर्तियों के संबंध में डॉ वी ए स्मिथ ने लिखा है कि इतनी प्राचीन और इतनी सुंदर पशुओं की मूर्तियां किसी भी देश में पाना दुर्लभ है रामपुर स्तंभ पर बनी सांड की मूर्ति में सजीव ता और स्वाभाविक ता है। मौर्यकालीन स्तंभों और ईरानी स्तंभों में काफी अंतर पाया गया है मोर स्तंभ पूर्णता गोलाकार है जबकि ईरान के स्तंभ में कंगूरे हैं मोर स्तंभ एक चट्टान से काटकर बनाया गया है जबकि ईरान के स्तंभ बहुत से पत्थर जोड़ कर बनाया गया है।

मौर्यकालीन स्तंभ एक बड़ा है का बनाया हुआ प्रतीत होता है जबकि ईरानी स्तंभ हर आज का बनाया हुआ दिखता है मोर स्तंभ में कोई आधार नहीं है किंतु इरानी स्तंभ की आधारशिला उल्टे कमल के फूल के समान है मोर स्तंभ में ईरानी और यूनानी कला का ऋण अवश्य दिखाई देता है परंतु उसमें भारतीय कला की देन भी बहुत स्पष्ट है। कठोर पत्थरों की चट्टानों को काटकर गुफाएं बनाने की कला का जन्म मौर्य काल में हुआ था मौर्य काल की सात गुफाओं का वर्णन प्राप्त होता है जिनमें चार गुफाएं अशोक के द्वारा बनाई गई थी तथा बाकी तीन गुफाएं उनके पुत्र मौर्य सम्राट दशरथ के द्वारा बनवाई गई यह सारी गुफाएं गया के पास बराबर और नागार्जुनी की पहाड़ी पर ओके ने की गई इन गुफाओं की दीवार पर की गई पोलिस आज भी शीशे की भांति चमकदार है। सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए स्तंभ टोपरा मेरठ इलाहाबाद सांची सारनाथ लोरिया एरा राज लौरिया नंदनगढ़ रामपुरवा रोमन देवी आदि स्थानों पर मिले हैं इन स्तंभों पर जो पॉलिश है वह शीशे की भांति आज भी चमकती है उनके पॉलिश के रहस्य को आज के कारीगर भी नहीं समझ सके।कहा जा सकता है कि वर्तमान युग की कलात्मक शक्तियों के लिए यह एक खोई हुई कला है।कला की दृष्टि से सम्राट अशोक का सारनाथ का स्तंभ अभिलेख सबसे अच्छा है। इसे अशोक ने बौद्ध के धर्म चक्र परिवर्तन की स्मृति में बनवाया था। माना जाता है कि इन स्तंभों की ऊंचाई 40 से 50 फुट और वजन 50 टन तक हुआ करती थी 80 टन वजन के स्तंभों का भी वर्णन मिलता है। अशोक ने बड़ी संख्या में साम्राज्य के भिन्न-भिन्न भागों में इन स्तंभों को बनवाया था हमें अशोक के द्वारा बनवाए गए स्तंभों की ठीक संख्या प्राप्त नहीं हुई परंतु एक अनुमान के अनुसार यह कहा जा सकता है की उनकी संख्या 30 से 40 तक थी इन स्तंभों का निर्माण चुनार के बलुआ पत्थर से किया गया था इन स्तंभों का आधार की ओर तो मोटा हुआ करता था परंतु सिर की ओर पतले होते गए।हेनसांग नहीं तक्षशिला में अशोक के बनवाए हुए तीन स्तूप देखें जिनकी ऊंचाई लगभग 100 फुट थी नेपाल की सीमा पर पिपरवा के खंडहरों में एक स्तूप मिला है । जो पत्थर के एक विशाल कक्ष के चारों ओर है।

कुछ इतिहासकारों का विचार है कि स्तंभों के शीर्ष भाग यूनानी तथा ईरानी कला के अनुकरण पर बनवाए गए हैं। सर जॉन मार्शल ने लिखा है कि अशोक ने राज्य काल में ईरान से बुलाए गए कलाकारों द्वारा भारतीय कलाकारों का प्रशिक्षण हुआ सारनाथ स्तंभ शीर्ष पर केवल यूनानी प्रभाव ही पड़ सकता था एके में नीड साम्राज्य के कलाकारों से अशोक के कलाकारों ने अपनी कृतियों को चमक देने का ढंग सीखें बैक्टीरिया के यूनानी कलाकारों से उन्होंने मॉडल बनाना सिखा। इतने बड़े स्तंभ पूर्णता विधि अनुसार काटे गए और छीन ले गए और उन्हें ऐसे चमक दी गई जो शायद आज के कलाकार उस पत्थर को ना दें पुनः चमकाने की इतनी परिपूर्ण बना दी गई कि उसे आधुनिक युग में लुप्त कला कहा जाता है इन स्तंभों का निर्माण रचनात्मक और स्थापना मौर्य युगीन शीला आचार्य और शीला तक्षक को को वृद्धि एवं कुशलता का अद्भुत प्रकार प्रतिष्ठीत करते हैं। चंद्रगुप्त मौर्य के समय तक निर्माण में लकड़ी मिट्टी आदि का प्रयोग हुआ करता था परंतु अशोक ने लकड़ी और पत्थर का प्रयोग शुरू किया अशोक को स्थापत्य निर्माण का बड़ा शौक था उसने अपने रहने के लिए पाटलिपुत्र में एक अत्यंत सुंदर महल बनवाया जोकि उद्यान में स्थित था जब फाहियान ने उसे देखा तो वह चकित रह गया।इसी काल में वैदिक धर्म बौद्ध धर्म और जैन धर्म के धार्मिक साहित्य का विकास हुआ इस काल में गृृह सूत्र धर्मसूत्र और वेदांग ग्रंथों का प्रणब किया गया। बहुत रिपीट को की रचना का समय तृतीय बहुत संगीता के कुछ बात बताया जाता है और वह अशोक के समय में हुई इस संगीति के अध्यक्ष मोगली पुत तिस्य ने,अभिधम्य पिटक के कथावस्तु की रचना की।। इस काल में लोहे के प्रयोग से जंगलों को काटने और हल चलाने में बड़ी सहायता मिली कृषि की उन्नति से अधिक वस्तुएं पैदा हुई फालतू वस्तुओं के उत्पादन ने आंतरिक और विदेशी व्यापार की वृद्धि की अधिक से अधिक लोग नगरों में आकर रहने लगे मंडियों के समीप श्रावस्ती वाराणसी चंपा राजगिरी उज्जैन कौशांबी कुशीनगर साकेत आदि बड़े-बड़े शहर बन गए थे कई प्रकार के कारीगर उन शहरों में आकर बस गए जो जो मंडिया बढ़ती गई नए नए शहर बसते गए और चंद लोगों के हाथों में बहुत सा धन आ गया। मौर्य कालीन सरकार या अपना कर्तव्य समझती थी कि वह असहाय पीड़ित लोगों की सहायता करें। वह यतीमो बोलो कमजोर हो और गरीब स्त्रियों की सहायता करती थी। जब तक कोई अपनी बीवी और बच्चों का प्रबंध नहीं करता था उसे सन्यासी नहीं बनने दिया जाता था इन नियमों का उल्लंघन करने वालों को जुर्माना देना पड़ता था सरकार सार्वजनिक सफाई का बड़ा ध्यान रखती थी मकान के मालिकों को मल-मूत्र का स्थान अवश्य बनाना पड़ता था और गंदा पानी निकालने का रास्ता भी महामारी से बचने के लिए बंदोबस्त किया जाता था यदि अकाल पड़ जाए तो सरकार अपने अनाज के भंडार खोल दिया करती थी आग से बचने के लिए सरकार उपाय करती थी यदि बाढ़ के कारण किसी की हानि हो जाए तो सरकार उसका मुआवजा भी देती। सरकार व्यक्तिगत मामला जातियों मैं अपना हस्तक्षेप नहीं करती थी व्यक्तिगत मामलों में ब्राह्मणों का नियंत्रण रहता था पंचायतें जातियों और श्रेणियों का प्रबंध कर दी थी।मौर्य काल में शिक्षा का बड़ा प्रचार था यही कारण था कि अशोक सम्राट ने जगह-जगह पर शिलालेखों और स्तंभ लेखों पर अपने धर्म के सिद्धांत अंकित करवाएं ताकि आम लोग उन्हें पढ़ कर अपने जीवन को सुधार सके मौर्य काल में शिक्षा गुरुकुल ओ मठों और बिहारो में दी जाती थी बुद्धू और जैनियों के मंदिर शिक्षा के केंद्र थे वहां विद्वान बिच्छू और मुनि लोगों को शिक्षा देते थे ब्राह्मण आचार्य लोग को पढ़ाते थे उनको सरकार की ओर से भूमि मिलती थी । जिसको ब्रह्मा देव कहते थे उसका कोई कर सरकार को नहीं दिया जाता था, एक आचार्य के पास प्रायर 500 विद्यार्थी होते थे ऐसा प्रतीत होता है कि तक्षशिला में कई कॉलेज थे जिनमें से प्रत्येक में लगभग 500 विद्यार्थी पढ़ते थे। कॉलेज के प्रधान को आचार्य कहा जाता था यह संसार प्रसिद्ध व्यक्ति होते थे ना केवल राजकुमार बल्कि ब्राह्मण और क्षत्रिय आदि सभी जातियों के विद्यार्थी भारत के कोने कोने से वहां पढ़ने के लिए जाते थे केवल नींद जातियों के लोग वहां पढ़ नहीं सकते थे कौशल राजा प्रसेनजीत तक्षशिला का विद्यार्थी था चंद्रगुप्त मौर्य भी वही अपनी पढ़ाई पूरी की मौर्य काल में काशी भी शिक्षा का बड़ा केंद्र था। तक्षशिला में पढ़ने के बाद कई आचार्यों ने काशी में पढ़ाने का काम शुरू किया। धीरे-धीरे व प्रसिद्ध विद्यापीठ बन गया। मौर्य काल में यातायात का काफी महत्वपूर्ण योगदान था इस काल में सड़कें बनाने के लिए एक विशेष अधिकारी हुआ करता था। पाटलिपुत्र को केंद्र बनाकर उत्तर दक्षिण पूरब और पश्चिम सब दिशाओं में सड़कें रहती थी । आधे आधे को उसके बाद सड़कों पर दूरी सूचक प्रस्तर लगे हुए थे जहां बहुत मार्ग मिलते थे वहां प्रत्येक माह की दिशा का प्रदर्शन करने वाले चिन्ह लगे होते थे कौटिल्य का कहना है कि हिमालय की ओर जाने वाले मार्ग की अपेक्षा दक्षिण की ओर जाने वाला मार्ग अधिक लाभदायक था क्योंकि दक्षिण से बहुमूल्य व्यापार की चीजें जैसे मुक्ता मणि हीरे सोना संघ इत्यादि आते थे उत्तर की ओर एक मार्ग चंपा से बनारस और शहजादी तक आता था ,यहां से यमुना के किनारे किनारे कौशांबी तक जा सकते थे ।

समुद्री मार्ग भडोच और काठियावाड़ से होकर लंका जाता था।मौर्य काल में आंतरिक और बाह्य व्यापार दोनों उन्नत अवस्था में थी भारत का व्यापार चीन सीरिया मिस्र यूनान नेपाल श्रीलंका आदि देशों के साथ हुआ करता था चीन से रेशमी कपड़ा नेपाल से उन और ईरान से मोती आते थे भारत मिश्र को हाथी दांत मोती नील और विशेष प्रकार की लकड़ी भेजता था पश्चिमी देशों से भारत मीठी शराब मंगाता था इसके साथ ही समुद्री मार्गों से भी व्यापार हुआ करता था। प्रत्येक बंदरगाह का प्रबंध एक अध्यक्ष के हाथों में होता था दुकानदार कितना मुनाफा ले इस पर भी राज्य की ओर से नियंत्रण होता था आम चीजों पर लागत का 5 फ़ीसदी मुनाफा लिया जा सकता था विदेशी माल पर 10 फ़ीसदी मुनाफा लेने की अनुमति थी। मौर्य काल में आंतरिक व्यापार बेहद उन्नत थी सौदागर व्यापार के लिए बड़े-बड़े काफिले बनाकर जब जगह-जगह जाते थे काफी लोगों की रक्षा का भार राज्य पर था काफीलो के एक व्यापारी से राज्य मार्ग कर वसूली करता था और रक्षा भी किया करता था।मौर्य काल में लोगों का जीवन सुखी और आमोद प्रमोद हुआ करता था आमोद प्रमोद में कई साधन थे, गाना- बजाना, नृत्य, नाटक ,जुआ शिकार इत्यादि कई लोग ऐसे थे। जिनका व्यवसाय केवल लोगों का आमोद प्रमोद करना और तमाशे दिखाना ही था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में नाटो नृत्य को गायकों वादों को की बोलियां बोलकर आजीविका कमाने वालों रस्सी पर नाचने वालों और चरणों का वर्णन है।

शिकार खेलना उस समय बहुत रिवाज था राजा शिकार के लिए बाहर जाया करते थे और उसकी सहायता के लिए बहुत से लोग तैनात रहते थे मेगास्थनीज ने रथ दौड़ दौड़ दौड़ सारण युद्ध और मल युद्ध का वर्णन किया है यूनानी यों ने लिखा है कि भारतीयों का प्रमुख आहार भात था जिसके ऊपर मसालेदार मांस रखा जाता था शाही भोजनालय में भी मांस बनता था जब अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया तब उसने पशुओं के वध पर रोक लगा दी। राजस्थानी के अनुसार भारत के लोग अकेले में भोजन करते हैं ,उनका इकट्ठे मिलकर भोजन करने का कोई नियत समय नहीं है जिस समय जिस की इच्छा होती है वह भोजन कर लेता है मौर्य काल में स्वादु भोजन बनाने के लिए बहुत प्रयत्न किया जाता था बाजार में भी कई प्रकार के भोजन पदार्थ बेचे जाते थे दूध पीने का बहुत रिवाज था लोग अंगूरों का रस, मधु और शराब भी पीते थे फलों और बूटियों का भी प्रयोग किया जाता था सूरा का भी प्रयोग प्रचलित था परंतु इस पर सरकार का नियंत्रण था।

कौटिल्य ने कई प्रकार के मदिरा का उल्लेख किया है मेगास्थनीज ने लिखा है कि विशेष अवसरों को छोड़कर साधारण तो भारत के लोग मद्यपान से दूर रहते थे क्षत्रियों में मद्यपान का रिवाज बहुत प्रचलित था यद्यपि बौद्ध और जैन धर्म में इसको कम करने की कोशिश की तथा पीवे सफल ना हुएमेगास्थनीज ने लिखा है कि मौर्य काल में भारतीयों का नैतिक स्तर बहुत ऊंचा था साधारण पर लोग झूठ चोरी आदि से घृणा करते थे यज्ञ के अवसरों के अतिरिक्त वे शराब नहीं पीते थे लोग अपने घरों पर ताला नहीं लगाते थे इस समय लोग बड़े ईमानदार हुआ करते थे इनमें बहुत कम झगड़े भी होते थे अशोक ने धर्म महा मात्रों की नियुक्ति की थी ताकि लोगों का जीवन सुधरे। मेगास्थनीज के साथ-साथ कई अन्य इतिहासकारों ने भारत में दास प्रथा नहीं होने का उल्लेख किया है मगर वास्तविकता इसके विपरीत थी भारत में दातों की प्रथा थी यह हो सकता है कि मेगास्थनीज को भारत में दातों के प्रति स्वामियों द्वारा किया गया व्यवहार अच्छा लगा हो अथवा उसने किसी विशेष क्षेत्र का ही उल्लेख किया हो एक ही स्थान पर पाटिल ने लिखा है कि किसी भी परिस्थिति में हार के लिए दास्तां नहीं होगी मौर्य काल में दांतो का बड़ा योगदान था त्रिपिटक में दातों के चार प्रकार बताए गए हैं कौटिल्य ने 9 प्रकार के दोषों का वर्णन किया है दास संपत्ति का एक रुप हुआ करता था दास श्रम के द्वारा भूमि कर्षण का तरीका सामान्य हो गया था।कौटिल्य ने आजीवन दासू और किसी काल विशेष के लिए दांतों में अंतर रखा है दसों के व्यक्तित्व और उनके श्रम का निपटारा करने में स्वामी को असीमित अधिकार थे।मौर्य काल में क्षत्रियों में कई वर्ग बन गए थे जो क्षत्रिय निर्धन बन गए उन्हें लोगों से पैसे लेकर उनके लिए लड़ने का व्यवसाय अपना लिया कई क्षत्रियों ने व्यापार का काम शुरूकर दिया।मौर्य काल में पैसो की अवस्था क्षत्रिय और ब्राह्मणों के नजदीक पहुंच गई क्योंकि उनका वाणिज्य की श्रेणियों पर अधिकार था इसलिए उन्होंने नागरिक संस्थाओं पर भी अपना अधिकार जमा लिया क्योंकि उनको आपने अवस्था के अनुसार समाज में ऊंचा स्थान ना दिया गया इसलिए उनमें बड़ा असंतोष था उसी कारण उन्होंने बौद्ध और जैन धर्म को सहायता दी। इस युग में शूद्रों के कर्तव्य अधिक थे और अधिकार कम। समाज और पुरुष और स्त्री दोनों को पुनर्विवाह का अधिकार प्राप्त था पुरुषों के पुनर्विवाह संबंध में यह नियम थे यदि किसी स्त्री के 8 साल तक बच्चा ना हो या जो बंध्या हो उसका पति पुनर विवाह से पूर्व 8 साल की प्रतीक्षा करें यदि स्त्री के मृत बच्चा पैदा हो तो 10 साल तक प्रतीक्षा करें स्त्री के मर जाने पर तो पुनर्विवाह हो ही सकता था।

पुरुषों की तरह स्त्रियों को भी पुनर्विवाह का अधिकार प्राप्त था पति के मरने के बाद यदि कोई स्त्री दूसरा विवाह करना चाहे तो उसे अपने ससुर तथा पति पक्ष संबंधियों द्वारा प्राप्त धन वापसी करना होता था। अर्थशास्त्र में लिखा है कि भूमि अपने संबंधियों को ही बेची जा सकती थी साधारण दूसरे गांव के लोगों को नहीं बेची जाती थी भूमि के स्वामी को अपनी भूमि कुछ की राय लेकर किसी दूसरे व्यक्ति को देने का अधिकार था वे जमींदार उस भूमि के स्वामी समझे जाते थे राजा को भूमि की उपज का एक भाग लेना या छोड़ने का अधिकार था।कौटिल्य ने अपने आप शास्त्र में लिखा है कि जिस भूमि पर किसी ने खेती ना की हो उसको बसाने का राजा को पूरा अधिकार था मौर्य ने इस प्रकार 94 भूमि पर शूद्रों को बसाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुधारा राज्य के कई निजी कृषि फार्म भी हुआ करते थे जिस दिन से राज्य को बहुत आए होता था सिंचाई के साधनों में भी कृषि को लाभ होता था कभी-कभी राजा दूसरे व्यक्तियों की भूमि जप्त कर लेता था राजकीय कृषि फार्म के प्रबंध के लिए अलग-अलग अध्यक्ष रखने की व्यवस्था थी फुल फॉर्म में से कुछ बर्दाश्त मजदूर अथवा अपराधी काम करते थे जो किसान अपने बैल और हल्ला ते थे उनको उपज का आधा भाग दिया जाता था और यदि सरकार उन्हें बैल और हल देती थी तो उन्हें उपज का 1/ 5 से 1/4 भाग तक दिया जाता था । गांव के चारों ओर 800 भूमि पूरे गांव की संपत्ति होती थी।कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उस समय के डाक प्रबंध का वर्णन है संदेश भेजने के लिए कबूतरों का प्रयोग किया जाता था उसके गले आदि में पत्र बांधकर उन्हें उड़ा दिया जाता था और वह सीधे उड़ते हुए ठीक स्थान पर पहुंच जाते थे। मौर्य काल में ब्राह्मणों का विशेष स्थान हुआ करता था मेगास्थनीज ने लिखा है कि सरकार ब्राह्मणों से किसी प्रकार का कर नहीं लेती थी उन्हें अपनी जाति के बाहर विवाह करने का विशेष अधिकार था ब्राह्मण लोग सादा जीवन बिताते थे उनमें से कुछ जंगल में जाकर रहते थे पत्तों और फलों से अपना निर्वाह किया करते थे कई स्थानों में लिखा है कि ब्राह्मणों को भूमि और धन राजा ने दिए कई ब्राह्मणों ने कर इकट्ठा करने का निरीक्षण किया कई ब्राह्मण परिवार धनी और प्रभावशाली थेयदि पी ब्राह्मण करो से मुक्त थे तथा पर कौटिल्य ने लिखा है कि जो ब्राह्मण सरकार के कामों में हस्तक्षेप करता है उसे डुबो देना चाहिए यदि कोई ब्राह्मण चोरी करें तो भी उसे विशेष दंड देना चाहिए ऐसा प्रतीत होता है कि मौर्य काल में ब्राह्मणों ने अपने परंपरागत व्यवहार छोड़ने शुरू कर दिए और पशु पालन और वाणिज्य के काम शुरू कर दिए थे। अशोक समय-समय पर साम्राज्य के भिन्न-भिन्न भागों में दौरा किया करता था इस दौरे का मुख्य उद्देश्य प्रजा के कष्टों के बारे में जानकारी प्राप्त करना था अशोक के धर्म महामात्र भी लोगों के जीवन सुधारने के लिए स्थान स्थान पर भ्रमण किया करते थे अशोक ने प्रचलित दंड विधान का सुधार किया उसकी कठोरता को थोड़ा कम करने का प्रयास किया अशोक ने अपने पांचवें स्तंभ लेख में लिखा है कि वह प्रतिवर्ष अपने अभिषेक दिवस पर बंदियों को मुक्त करता था तथा चौथे स्तंभ लेख में लिखा है कि अशोक अपराधियों को मृत्युदंड देने से पहले 3 दिन का समय देता था ताकि वे अपने आने वाले जीवन को सुधारने का प्रयत्न कर सके।मंत्री अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए राजा के प्रति उत्तरदाई होते थे यद्यपि वह जनता द्वारा नहीं चुने जाते थे तथापि उनकी एक प्रकार से जनता के प्रति जिम्मेदारी भी होती थी आपने चरित्र और कार्यों द्वारा मंत्री जनता का हृदय जीतने की कोशिश करते थे।

प्रधानमंत्री देश में अच्छी सरकार चलाने के लिए जिम्मेदार था।निष्कर्ष मौर्य काल में मदद साम्राज्य का जितना विकास हुआ उतना कभी नहीं हुआ इस काल में साम्राज्य का विस्तार भी संपूर्ण भारत वर्ष में हुआ राज्य विषय के पूर्व काल से लेकर साम्राज्यवाद के आविर्भाव चंद्रगुप्त मौर्य के राज्याभिषेक एवं मगध साम्राज्य के विस्तार के मूल में चाणक्य कौटिल्य की भूमिका सर्वोत्कृष्ट रही उसी सुदृढ़ नींव के बल पर अशोक जैसे महान सम्राट ने संपूर्ण विश्व में ख्याति प्राप्त की मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था पर चर्चा की जाए तो वह निश्चित रूप से संतोषप्रद थी एवं संपूर्ण प्रक्रिया में नयापन कुछ भी नहीं था मौर्य काल अध्यात्म एवं धर्म के प्रचार प्रसार एवं संस्था अपना में महती भूमिका का निर्वाह हक रहा अशोक का धम्म मानव कल्याण की दिशा में किसी शासक द्वारा अपनाया गया पहला कदम कहना अतिशयोक्ति ना होगा मौर्यकालीन कला संस्कृति एवं स्थापत्य की दृढ़ता आज भी अवशेष स्थलों पर देखी जा शक्ति है।मौर्य काल को कला संस्कृति का स्वर्ण युग कहना उपयुक्त होगा साहित्य स्रोत का अभाव अवश्य मां काल हो कठोरता रहेगा ऐतिहासिक शोध में अभिलेख शिलालेख स्तूप के अतिरिक्त लिखित साहित्य में कौटिल्य का अर्थशास्त्र एवं मेगास्थनीज की इंडिका उपलब्ध है उपलब्ध साहित्य भीम और काल की संतोषजनक सामग्री उपलब्ध नहीं करा पाता इन दोनों में अतिशयोक्ति पूर्ण एवं तिथि रहित तथ्य भरे पड़े हैं।


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