
तुगलक वंश गयासुद्दीन तुगलक 1320-1325 ने 94 वर्षों तक शासन किया इसके बाद मोहम्मद बिन तुगलक वन 1325-1351तक शासन किया जो कि बहुत पढ़ा लिखा शासक थे इन्होंने काफी बदलाव किया जैसे कॉपर सिक्के से सिल्वर सिटी में बदलाव दिल्ली राजधानी से दौलताबाद जिसे(देवगिरी)भी कहते हैं सबके बदलाव करने की वजह से इनका खजाना खाली हो गया जिसके कारण से यह बदलाव असफल रहा।फिरोज खान तुगलक 1351-1388 हजारीबाग के सतगांवा के इलाके को जीता और राजधानी बनाया। इसके आक्रमण के समय नाग वंश के शासक शिवदास करण था जो 1401 में हाथामुनि मंदिर का निर्माण करवाया। सैयद वंश:-1414-1451 ई० सैयद वंश में झारखंड का कोई हस्तक्षेप नहीं किया। लोदी वंश:-1451-1526ई० इसके शासनकाल में छोटानागपुर पर शासन करने वाले नागवंशी राजा प्रतापकणं,छत्रकणं एवं विराट कणं थे, इसके समकालीन उड़ीसा के गणपति वंश का सामना झारखंड में करना पड़ा।कपिलेंद्र गजपति जो उड़ीसा का अंतिम राजा का मंत्री था इसने ही गजपति वंश की स्थापना की और बाद में उड़ीसा राज्य दक्षिण-पूर्वी भारत का एक महाशक्ति वान बन गया। इसने संथाल-परगना तथा हजारीबाग को छोड़कर बहुत बड़े भाग को कब्जा कर लिया।आदिल-शाह२,आदिल खान२ एक शक्तिशाली शासक था

इसने अपने सैन्य दल को उत्तराखंड भेजा इसलिए वहां “झारखंडी सुल्तान” के नाम से प्रसिद्ध हो गया। शाहजहां काल:-इनके शासनकाल में कोकराह में दुर्जन शाल (नागवंश)का शासन था और पलामू में प्रताप राय (चेरो वंश) का शासन था शाहजहां नागवंशी काल में जहांगीर के कैद से छूटकर दुर्जन शाल ने दोइसा को अपनी राजधानी बनाई, नवरत्न गढ़ में किले का निर्माण कराया किले में कला स्थापत्य की जो मुगलों के कला काफी मिलते-जुलते थे सूर्य निकलने से पहले राजा को प्रणाम करना जिसे “झरोखा दर्शन” कहते थे यह प्रथा शुरू किया मुगलों से प्रभावित होकर दुर्जन सामने कराया था यह कर देने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। चेरो वंश :-पलामू का प्रताप राय चेरो वंश का राजा था।शाहजहां के शासनकाल में अपने क्षेत्र को चारों तरफ किलेबंदी करवा दिया था जिससे बाहर से कोई आक्रमण ना कर सकें। मुगल ने 1623 में अब्दुल खान को बिहार झारखंड का सूबेदार बनाया,जिससे पलामू 1,36,000 रुपया सलाना कर लागू किया,लेकिन प्रताप राय कर देने से मना कर दिया जिससे पलामू सीधे उसके अधीन हो गया।जब शाहजहां को पता चला तो इससे शाइस्ता खां को चेरों के राजा प्रताप राय पर आक्रमण करने का आदेश दिया।”बाबली चेरवान युद्ध”कोरिया गांव और बरसाए-ए- दोरोहा बावली चेरवान के गांव में युद्ध हुआ जो प्रताप राय और शाइस्ता खां के बीच जिसमेें शाइस्ता खां की जीत हो जाती है फिर प्रताप राय को बंदी बना लिया जाता है 80,000हजार देकर पता प्रताप राय निकल जाता है और मुगलों के साथ एक समझौता करता है जिसमें प्रताप राय को चेरों का राजा रहने दिया और 1000 का मनसब प्रदान किया, बदले में प्रताप राय ने एक करोड़ वार्षिक कर देना स्वीकार किया शाहजहां के अंतिम समय चेरो शासक मेदिनी राय थे।