संथाल जनजाति
यह जनसंख्या की दृष्टि से झारखंड की सबसे बड़ी जनजाति ( प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड) है ।
निवास स्थान- धनबाद ,गिरिडीह ,चतरा, हजारीबाग ,पूर्वी सिंहभूम, कोडरमा, बोकारो, पश्चिम सिंहभूम आदि ।
भाषा – संथाली
लिपि – ओलचिकी ।
12 गोत्र – मुर्मू, सोरेन, पोरिया, हांसदा , हेंब्रम ,टूडू ,मरांडी ,गेंडुवार, चोड़े, बास्के, किस्कु ,बेसरा आदि।
गांव का पूजा स्थान- माँझीथान।
प्रमुख देवी देवताओं का निवास स्थान- जाहिर एरा।
सर्वोच्च देवता- मरांग बुरु अथवा ठाकुर जी
प्रिय भोजन – पोचाई (चावल की शराब) और चावल।
आजीविका का मुख्य आधार – कृषि
कीरिंग बापला सर्वाधिक प्रचलित विवाह है। विवाहों के प्रकार – किंरिंग बापला, निरबोर्लक, घर दी जमाई, सांगा विवाह ,सेवा विवाह आदि।
कन्या पक्ष को वधू-मूल्य प्रदान किया जाता है, जिसे पोन कहते हैं।
मुख्य पर्व- सोहराई ,सरहुल बाहा,करम, हरिहारसिम, माघसिम आदि।
उरांव जनजाति
जनसंख्या की दृष्टि से झारखंड की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति(द्रविड़) है।
निवास स्थान- लातेहार, रांची ,संथाल परगना, हजारीबाग, पलामू, सिंहभूम आदि।
मुख्य पेशा- कृषि
शिकार करना इनका शौक है फागुन में “फागुन सेंदरा”, वैशाख में “विशु सेंदरा” वर्षा ऋतु में “जेठ सेंदरा “शिकार एवं इसके अलावा “दौराहा” शिकार करते हैं।
प्रमुख देवता- धर्मेश (सूर्य)
अन्य देवी-देवता- मरांग बुरु (पहाड़ देवता), डीहवार (सीमांत देवता),ठाकुर देव (ग्राम देवता) पूर्वजात्मा (कुलदेवता)
पुजारी व धर्म प्रधान पाहन होता है ।
मुख्य पूजा स्थल- सरना ।
प्रमुख गोत्र- एक्का, खलखो ,कच्छप, तिर्की, लकड़ा, केरकेट्टा ,कुजूर, खाखा ,टोप्पो आदि। यह जनजाति आपस में कृत्रिम नाता स्थापित करने के लिए “सिया” का चुनाव करते हैं जिसे ‘सहिआरो’ कहा जाता है।
धूमकुड़िया- वह स्थान जहां अविवाहित युवक युवतियां रहते हैं ।
लड़कों के धूमकुड़िया को “जोंखएरेपा” कहते हैं कहते हैं एवं इनके नियंत्रण व देखभाल के लिए जो मुखिया नियुक्त किया जाता है उसे “धांगर कुड़िया” कहते है।
लड़कियों के धूमकुड़िया को “पेल एरिया” कहा जाता है इसके देखभाल के लिए प्रौढ़ या विधवा महिला को मुखिया के रूप में नियुक्त किया जाता है।जिसे “बड़की धांगरिन” कहा जाता है। मुख्य पर्व – जितिया ,करमा,फागु जत्रा ,नवा खानी ,सरहुल आदि।
धूमकुड़िया में प्रवेश लगभग 10 से 11 वर्ष की उम्र में होता है इनकी तीन श्रेणियां हैं –
पहला पूना जोखर – जो नए प्रवेश करते हैं ।
दूसरा मांझ जोखर (3 साल बाद )
तीसरा कोहा जोखर।
मुंडा जनजाति
यह जनजाति झारखंड में आबादी की दृष्टि से तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है। (कोलेरियन समूह के शक्तिशाली जनजाति)
भाषा – मुंडारी (प्रोटो-ऑस्ट्रेलियाड)यह अपनी भाषा को “होड़ो जगर”भी कहते हैं।
निवास स्थान -गिरिडीह ,हजारीबाग ,पूर्वी सिंहभूम, पलामू ,गुमला आदि ।
झारखंड में इस जनजाति का प्रवेश लगभग 600 ईसा पूर्व हुआ ।
गोत्र – केरकेट्टा, तिर्की ,बरला ,डुंगडुंग ,बलमूचू, बागे, सुरीन, मुंडा, बोदरा, बेंगरा आदि।
तीन मुख्य स्थल –
सरना- जहां ग्राम देवता निवास करते हैं।
अखरा – जहां पंचायत की बैठक होती है एवं रात में युवक युवतियां एकत्र होकर नाचते गाते हैं। सासन – जो समाधि होता है यहां मृतक के पुण्य स्मृति के पत्थर के सील रखे जाते हैं जिसे सासन देवी कहा जाता है।
युवा गृह को “गीतिओड़ा” कहा जाता है ।
मुख्य देवता – सिंहबोंगा
ग्रामदेवता- हातुबोंगा
पहाड़ देवता- बुरुबोंगा
सबसे बड़ी देवी- देशाउली
कुलदेवता – ओड़ाबोंगा
मुख्य पर्व- माघे, सोहराई,सरहुल, करमा ,फागू, जितिया, अनौबा इत्यादि।
इनके अधिकांश पर्व कृषि तथा प्रकृति से जुड़ी होती है।
हो जनजातीय
झारखंड की जनसंख्या की दृष्टि से चौथी बड़ी जनजाति है एवं यह भी प्रोटो आस्ट्रेलियाड से संबंधित है।
इनकी भाषा व विवाह के प्रकार मुंडारी तथा संथाली से मिलती जुलती है।
लिपि – बारडःचिति।
आजीविका का मुख्य आधार- खेती .
इसकी तीन श्रेणियां है -भारतीय
जो भूमि निम्न उपजाऊ होती है उसे बेड़ो कहते हैं। धनखेती को “वादी” तथा जिसमें मोटे अनाज उगाए जाते हैं उसे “गोडा भूमि” कहते हैं।
पेय पदार्थ- ‘इली’ जो देवी-देवताओं को भी चढ़ाया जाता है
बंजारा जनजाति
यह जनजाति घुमक्कड़ प्रजाति की होती है। मुख्य स्थान- संथाल परगना ,दुमका, राज महल आदि।
अनुसूचित जनजाति में शामिल -1956 एसपी। इनकी भाषा मिली-जुली होती है ।
चार समूह में विभाजित होते हैं -चौहान, राठौर पवार और उर्वा।
कुछ बंजारा अपने आपको कश्यप गोत्र का बतलाते हैं ।
राय की उपाधि इनमें काफी प्रचलित है।
लोक नृत्य – दंड खेलना ।
मुख्य देवी – बंजारी देवी।
मुख्य वाद्ययंत्र – चिंकारा ,ढोल, नरसिम्हा ,ठपरा आदि।
बिझिया जनजाति
यह अल्पसंख्यक जनजाति होती है।
यह स्वयं को विंध्य निवासी कहते हैं। (प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड समूह से संबंधित)
निवास स्थान- रांची, सिमडेगा ,गुमला आदि।
वधू मूल्य देने की प्रथा को “डाली कटारी” कहते हैं।
विवाह के प्रकार- गुलैची विवाह ,सगाई संघा विवाह ,गोलट विवाह, ढुकु विवाह आदि।
इनके पुजारी को बैगा कहते हैं।
बथुड़ी जनजाति
यह एक लघु जनजाति है ।
इन्हें भूमिज भी कहा जाता है( प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड समूह से संबंधित)
निवास स्थान- सिंहभूम
भाषा- मुंडारी।
बिरजिया जनजाति
यह एक अल्पसंख्यक आदिम जनजाति है (प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड से संबंधित)
निवास स्थान- गुमला, लातेहार, गढ़वा ,लोहरदगा आदि।
मुख्य पेशा -काश्तकारी एवं खेती।
इनकी सामाजिक व्यवस्था को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है- सिंदुरिया और तेलिया सिंदुरिया बिरजिया विवाह में सिंदूर का प्रयोग किया जाता है तथा तेलिया बिरजिया जनजाति में सिंदूर का प्रयोग नहीं किया जाता।
तेलिया बिरजिया के दो भाग हैं- दूध बिरजिया और रस बिरजिया।
दूध बिरजिया जो गाय का दूध पीते हैं परंतु मांसाहारी खाना नहीं खाते जबकि रस बिरजिया मांस एवं दूध दोनों का सेवन करते हैं।
बैगा जनजाति
अल्पसंख्यक जनजाती है जो प्रोटो-ऑस्ट्रेलियाड से संबंधित है।
निवास स्थान- रांची ,हजारीबाग, पलामू ,गढ़वा आदि।
प्रधान नृत्य- करमा नृत्य।
अन्य नृत्य- झरपट ,विमला आदि।
विवाह के प्रकार – सेवा विवाह ,ढुकु विवाह, उठावा विवाह आदि।
मुख्य देवता- बड़ादेव।
देवता का निवास स्थान- सखुआ।
अन्य देवता- धरती माता, रात माई, ठाकुर देव आदि ।
मुख्य पर्व- चरेता, बिखरी, फाग, नव भोज, हरेली आदि ।
प्रत्येक 9 वर्ष पर रस- नावा पर्व मनाया जाता है। पुरुषों का नृत्य – दर्शन या सैला कहलाता है स्त्रियों का नृत्य को रीना नृत्य कहते हैं।
चिक बढ़ाईक जनजाति
यह झारखंड की बुनकर जनजाति है।
निवास स्थान- गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, रांची आदि।
मुख्य पेशा- कपड़ा बुनने का कार्य, इसलिए इन्हें “हाथों से बने कपड़ों का जनक” भी कहा जाता है।
सर्वोच्च देवता- सिंह बोंगा ।
सर्वोच्च देवी- देवी माई ।
अन्य देवता- नाग देव, पितर देव ,बाघ देव, ग्राम देवता आदि।
वैशाख में यह लोग सुरजाही और बढ़ पहाड़ी पूजा करते हैं।
पुनर्विवाह को यह सगाई कहते हैं।
इनकी संस्कृति में विवाह ठाकुर के द्वारा कराया जाता है, पूजा पाहन के द्वारा कराया जाता है तथा वर पक्ष द्वारा कन्या को वधू मूल्य देने का प्रचलन है जिसे गोनोड़ कहा जाता है।
बिरहोर जनजाति
यह अल्पसंख्यक जनजाति है जो विलुप्त होती जा रही है (घुमंतू जनजाति) प्रोटो ऑस्ट्रेलिया समूह से संबंधित।
भाषा बिरहोरी है( यह ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषा परिवार से संबंधित)
निवास स्थान- चतरा, रांची ,कोडरमा ,लोहरदगा, सिमडेगा ,गिरिडीह, बोकारो।
बिरहोर को दो वर्गों में बांटा जाता है-
उथलू या भुलिया( घुमक्कड़)- यह जंगलों में भोजन की तलाश में घूमते हैं ।
जांघी या धनिया (आदिवासी)-इनके पास भूमि है जिस पर या खेती करते हैं।
विवाह के प्रकार -बोलो बापला, नपम बापला, हीरूम ,बेंग कढ़ी आदि।
प्रमुख देवता- सिंह बोंगा।
पारिवारिक देवी देवता- हेमरोम।
नृत्य – लागरी, मुतकर व डोंग।
चेरो जनजाति
यह प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड से संबंधित है।
निवास स्थान- पलामू ,लातेहार, गढ़वा आदि। गोत्र- महतो, समबार, उम्र, बड़ा व छोटा कुँवर आदि।
चेरों अपने आपको चंद्रवंशी राजपूत कहते हैं। विवाह के प्रकार-
ढोला- इस विवाह में लड़की को लड़के के घर लाया जाता है।
चढ़ा – इस विवाह इसमें लड़की के घर लड़का बारात लेकर जाता है यह विवाह अधिक खर्चीला होता है।
गोड़ाइत जनजाति
यह अल्पसंख्यक जनजाति है गोड़ाइत को गौड़त भी कहा जाता है (प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड से संबंधित )
निवास स्थान- रांची ,धनबाद ,संथाल परगना, हजारीबाग, सिंहभूम आदि।
गोत्र – खलखो ,टोप्पो, टूडू ,बाघ आदि।
मुख्य पर्व- नवाखानी ,जितिया, सरहुल, सोहराय, करमा आदि।
गोंड जनजाति
यह भारत की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है। मूल निवास स्थान- गोंडवाना क्षेत्र ।
निवास स्थान- पलामू ,लातेहार, गिरिडीह ,चतरा, धनबाद ,बोकारो, पश्चिमी सिंहभूम ,सरायकेला आदि।
द्रविड़ भाषा परिवार का एक अंग है।
बोलचाल नागपुरी व सादरी पेशा मजदूरी व खेती इनका समाज तीन भागों में बांटा है अभिजात वर्ग जिसे राजगोंड कहते हैं, सामान्य वर्ग जिसे धुरगोंड कहते है, भुमिहीन श्रमिक मजदूरी जिन्हें कमियां कहते हैं।
प्रमुख देवता -ठाकुर देव।
पुजारी को बैगा कहा जाता है।
खरवार जनजाति
यह जनजाति लड़ाकू जनजाति कहलाती है। निवास स्थान- रांची, गढ़वा ,हजारीबाग ,लातेहार चतरा आदि।
इस जनजाति को पलामू तथा लातेहार में 18 हजारी के नाम से जानते हैं ।
मुख्य देवता -सिंह बोंगा।
पुजारी को बैगा कहते हैं ।
इनका जीवन दर्शन – खाओ पियो और मौज में जियो।
करमाली जनजाति
यह जनजाति प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड समूह से संबंधित है एवं अति प्राचीन जनजाति है।
निवास स्थान- रांची, हजारीबाग, संथाल परगना, सिंहभूम आदि।
भाषा- कुरमाली ।
विवाह के प्रकार – विनिमय विवाह, राजी खुशी विवाह ,गोलक विवाह ,आयोजित विवाह आदि। वधू मूल्य को पोन या हथुआ कहा जाता है ।
मुख्य देवता- सिंहबोंगा।
धार्मिक कार्य करने वाले को पाहन या नाया कहा जाता है ।
पवित्र स्थान – जिसे देउकरी कहा जाता है।
प्रमुख त्यौहार- सरहुल, करमा, सोहराई, टुसु ( मीठा परब या बड़का परब)आदि।
कंवर जनजाति
प्रोटो ऑस्ट्रेलिया से संबंधित
निवास स्थान- सिमडेगा ,लातेहार ,पलामू आदि। भाषा- कँवरराती या कवरासी।
वधु- मूल्य- सुकदाम कहा जाता है।
पुजारी को बैगा कहते हैं।
सर्वश्रेष्ठ देवता- भगवान्
खोंड जनजाति
यह अल्पसंख्यक जनजाति है एवं द्रविड़ प्रजाति से संबंधित है।
निवास स्थान- संथाल परगना, छोटा नागपुर आदि।
बोली – कोंधी
इस जनजाति के तीन समूह है-
कुहिया जो पहाड़ों में रहते हैं ।
देशिआ जो निम्न भूमि में निवास करते हैं। डोंगरिया जो निचली पहाड़ी में निवास करते हैं। प्रमुख देवता- बेलापून या बुरा पेनू।
अन्य देवता- ठाकुर देव, मरांग बुरु, ग्राम देवता।
कोरबा जनजाति
प्रोटो ऑस्ट्रेलिया से संबंधित है यह झारखंड राज्य में मध्य प्रदेश से आए हैं।
निवास स्थान- पलामू, गढ़वा ,लातेहार आदि। पहाड़ी कोरवा- पहाड़ पर रहने वाले ,
डिहारिया- नीचे गांव में रहने वाले।
पेशा- कृषि, पशुपालन ,शिकार ,शिल्प ,निर्माण, मजदूरी आदि ।
गोत्र- कासी, खरपो, कोकट आदि।
प्रमुख देवता- सिंह बोंगा। जिसे भगवान कहा जाता है।
पुजारी को बैगा कहते हैं।
अन्य देवी-देवता- कुलदेवता, धरती माई, ग्रामदेवता, सुखा आदि।
कोल जनजाति
झारखंड के 32 में जनजाति है इस जनजाति को 2003 में मान्यता मिली।
प्रोटो ऑस्ट्रेलिया से संबंधित ।
भाषा- संथाली से मिलती-जुलती।
निवास स्थान – देवघर, गिरीडीह आदि।
प्रमुख देवता- सिंह बोंगा।
किसान जनजाति
यह झारखंड की अल्पसंख्यक अनुसूचित जनजाति है ।
निवास स्थान- रांची,सिंहभूम,पलामू ,लोहरदगा आदि।
यह अपने आप को नगेसिया भी कहते हैं ।
इनका समाज दो भागों में विभक्त है -सिंदुरिया और तेलिया।
कोड़ा जनजाति
इस जनजाति को डांगर भी कहा जाता है पहली बार इस जनजाति को 1872 ईस्वी में सूचीबद्ध किया गया।
यह प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड से संबंधित होते हैं।
पेशा – मिट्टी कोड़ना- काटना
निवास स्थान- हजारीबाग, धनबाद ,संथाल परगना इत्यादि ।
गोत्र – मेरोम, चीरा, चिरवेल, कच(सबसे ऊँचा),बुटकोई(सबसे नीच) आदि।
मुख्य नृत्य- दोहरी, गोल वारी, खेमटा आदि। पूजा स्थल- अखरा, आहिर थान ,दादी थान आदि।
पुजारी को बैगा कहा जाता है।
महली जनजाति
झारखंड की पहली शिल्पी जनजाति है।
मुख्य पेशा- बांस की कला में दक्ष।
निवास स्थान -संथाल परगना, रांची, गुमला, सिमडेगा, धनबाद, हजारीबाग आदि ।
प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड से संबंधित।
प्रमुख देवता- सुरजी देवी।
पर्व – नवाखानी ,बंगरी इत्यादि।
इनकी पांच उपजातियां है-
पातर महली- बांस के उपकरण बनाना एवं खेती करना ।
महली मुंडा- मजदूरी एवं कृषि कार्य ।
बांस फोड़ महली- बांस से जुड़ा कार्य।
ताँती महली- शादी विवाह पर पालकी ढोने एवं बाजा बजाने का कार्य।
सुलकी महली- खेती और मजदूरी का कार्य।
लोहरा जनजाति
यह जनजाति प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड से संबंधित होती है।
परंपरागत पेशा- लुहारी।
निवास स्थान- रांची, सिमडेगा ,लातेहार ,बोकारो, गिरिडीह, पलामू, संथाल परगना ,धनबाद ,बोकारो ,सिंहभूम आदि।
भाषा- सदानी भाषा।
साबर जनजाति
झारखंड के अल्पसंख्यक आदिम जनजाति है। त्रेता युग से इस जाति के अस्तित्व का उल्लेख। निवासस्थान- पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, धनबाद, बोकारो ,गुमला, लोहरदगा ,रांची आदि। यह अपने आप को “पहाड़ी खड़िया” भी कहते हैं।
इनकी चार उपजातियां है- जंटापति ,झरा ,जाहरा बासु।
सौरिया पहाड़िया जनजाति
यह अपने आप को मलेर कहते हैं व प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड से संबंधित है।
बोली -मालतो (द्रविड़ भाषा से संबंधित)
निवास स्थान- दुमका ,साहिबगंज ,देवघर ,गोड्डा, जामताड़ा आदि।
इनके आवास को ‘अड्डा’ कहते हैं।
मुख्य पेशा -कृषि एवं वन पर आश्रित।
वेद सीढू- विवाह के कार्यक्रम का संपादन करते हैं ।
कोड़बाह- युवा गृह।
मरस्मक कोड़बाह- युवकों का युवा गृह ।
पेलमक कोड़बाह- युवतियों का युवा गृह ।
मुख्य देवता- बेरू गोसाई (सूर्य),दरमारे गोसाई (सत्यदेव),लैहू गोसाई (सृष्टिकर्ता), बिल्प गोसाई (चांद )
शिकार का देवता- औटगा।
धार्मिक कार्यों के संपादन कांडू माझी द्वारा किया जाता है।
माल पहाड़िया जनजाति
प्रोटो-ऑस्ट्रेलियाड से संबंधित।
निवास स्थान- दुमका, जामताड़ा, देवघर, पाकुड़ आदि।
मुख्य कार्य- मजदूरी, खेती आदि।
यह भूमि को चार श्रेणी में विभाजित करते हैं- सेम – काफी उपजाऊ होती है।
डेम- कम और ज्यादा उपजाऊ के बीच की भूमि होती है।
बाड़ी भूमि- घर से सटे किचन गार्डन होते हैं जहां सब्जी उगाई जाती है ।
टिकुर- कम उपजाऊ भूमि होती है।
परहिया जनजाति
यह झारखंड के अल्पसंख्यक आदिम जनजाति है । (प्रोटो ऑस्ट्रेलिया से संबंधित)
निवास स्थान- हजारीबाग, पलामू ,लातेहार आदि।
झोपड़ी नुमा घर को झाला कहते हैं।
इनकी नातेदारी को दो भागों में विभाजित किया गया है- सनाही और धैयानिया।
धैयानिया जो संबंध जन्म से जुड़ा होता है एवं उनके सदस्य को “कुल कुटुंब” कहते हैं ।
सनाही को “हित कुटुंब” कहा जाता है यह शादी के संबंध से जुड़े होते हैं।
मुख्य देवता- सिंह बोंगा, बघौत आदि।
मुख्य पर्व – करमा, जितिया, सोहराई ,फागू ,राम नवमी आदि।
खड़िया जनजाति
निवास स्थान- हजारीबाग, गुमला , सिंहभूम आदि।
मूल निवास- मगध एवं रोहतास ।
झारखंड के अलावा यह उड़ीसा ,छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल ,मध्य प्रदेश में भी निवास करते हैं। (प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड से संबंधित)
इनकी भाषा खड़िया मुंडारी है (ऑस्ट्रिक एशियाटिक भाषा परिवार से संबंधित)
इनके तीन प्रमुख वर्ग हैं – पहाड़ी खड़िया जो सबसे अधिक पिछड़ा वर्ग है व दूध खड़िया सर्वाधिक उन्नत है । दूध खड़िया व दूध खड़िया साथ रहते हैं।
गोत्र- टोप्पो , सुरेंद्र, हेंब्रम ,चाहा,टोपनो,बरलिया आदि।
मुख्य पर्व- बंगारी, नयोदेम, बाबिड आदि।
भूमिज जनजाति
कोलेरियन समूह से संबंधित व प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड प्रजाति।
निवास स्थान- रांची ,धनबाद, हजारीबाग , सिंहभूम आदि।
भाषा- मुंडारी
घने वन में रहने के कारण भूमिज को ‘चुआड़’ का उपनाम दिया गया है।
इन्हें ‘धनबाद के सरदार’ से के नाम से भी जाना जाता है।
बेदिया जनजाति
यह जनजाति प्रोटो-ऑस्ट्रेलियाड से संबंधित है। निवास स्थान- बोकारो ,हजारीबाग आदि। निवास स्थान पर बोले जाने वाले भाषा का प्रयोग करते हैं।
आजीविका का मुख्य आधार -वन्य पदार्थ और मजदूरी, कृषि ।
महिलाओं के परंपरागत परिधान – ठेठी और पाचन ।
पुरुष के परंपरागत परिधान- भगवा या करेय कहा जाता है।
गोत्र – फेचा,चिड़रा,महुआ आदि