
इस सिद्धांत को ऑर्गन कुबेर एवं suess ने दिया। हिमालय की उत्पत्ति में उन्होंने बताया कि मूल रूप से 200 मिलियन ईयर पहले tethys महासागर दो बड़े भूखंड के बीच में स्थित है जिसको लौरेंशियन एवं गोंडवाना लैंड कहते थे यह लगभग 200 मिलियन ईयर पहले पेनजिया के नाम से जाना जाता था 180 मिलियन ईयर पहले हिमालय आज जहां पर है उसी क्षेत्र में tethys महासागर था ।पूरी पृथ्वी पश्चिम में यूरोप की तरफ और पूरब में चीन की तरफ आगे बढ़ रही थी चीन की तरफ की गति इतनी ज्यादा थी जबकि यूरोप के तरफ कम थी भारत उस समय गोंडवाना खंड का भाग था ।जब गोंडवाना उत्तर की ओर जा रहा था तो दोनों के बीच में एक बड़ा जियोसिंक्लिन बन चुका था और दोनों और से नदियां बालू और मिट्टी यहां जमा कर रही थी ।मैग्मा के गतिशीलता के चलते गोंडवाना भूखंड जो चल रहा था अंगारा भूखंड के नीचे आ गया। चुकी गोंडवाना भूखंड के आगे की ओर बेसाल्ट चट्टाने की लेकिन अंगारा भूखंड पूर्ण रूप से सिर्फ ग्रेनाइट से ही बना था इसलिए गोंडवाना भूखंड जिसकी घनत्व अधिक थी वह धीरे-धीरे अंगारा भूखंड के नीचे चली गई अब बेसाल्ट चट्टान पृथ्वी के अंदर जाकर मैग्मा में परिवर्तित हो गई और यहां ज्वालामुखी उद्गार होने लगा लेकिन जब बेसाल्ट चट्टान समाप्त हो गई तो ग्रेनाइट वापस पृथ्वी की ओर आने लगा जैसे ही वह ऊपर की ओर आने लगा तो तिब्बत क्षेत्र का निर्माण हुआ जो इतना ऊंचा पठार बन गया और उसी समय सीमेंट प्रकृति की ऑफ ophiyolite पदार्थ के आने से दोनों भूखंड एक दूसरे से जुड़ गए इसके बाद जब गोंडवाना भूखंड और अधिक उत्तर की ओर खिसकने लगा तो उसके ठीक सामने समुद्र में स्थित बालू और मिट्टी में वलय ही होना शुरू हो गया और पहले ग्रेट हिमालय फिर लाखो वर्ष के बाद मध्य हिमालय और फिर लाखों वर्ष के बाद शिवालिक की रचना हुई vinayiasacademy. Com