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हो जनजाति की शासन व्यवस्था (मानकी मुंडा शासन व्यवस्था और विलकीन्सन रूल्स)

  • हो जनजाति झारखंड की आबादी की दृष्टि से चौथी सबसे बड़ी जनजाति है।
  • यहां डायन प्रथा पाई जाती है यदि किसी महिला के खिलाफ सबूत प्राप्त होते हैं तो उन्हें कड़ी सजा दी जाती है एवं अन्य लोगों के यहां खाने-पीने की भी पाबंदी लगाई जाती है।
  • गांव का प्रधान को “मुंडा” कहा जाता है एवं उसका सहायक “डाकुआ” कहलाता है।
  • कई गांव को मिलाकर पंचायत बनता है जिसे पीड़ कहते हैं इसका प्रधान “मानकी” होता है एक पीड़ में 5-10 गाँव होते हैं।
  • 1830-32 मे कर वसूली व अंग्रेजों के विरोध में कोल विद्रोह हुआ, कोल जनजाति को हो जनजाति भी कहा जाता है।
  • विद्रोह के बाद कंपनी और आदिवासियों के बीच 1837 में समझौता हुआ वह विलकिंस रूल बना।
  • इस समय थॉमस विलकिंस कमिश्नर थे इन्होंने गवर्नर को एजेंट के रूप कोल्हान के सभी मुंडा (ग्राम प्रधान) को अपने गांव का राजा घोषित किया।
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मुंडा जनजाति की शासन व्यवस्था

  • यह झारखंड में कोलेरियन समूह की शक्तिशाली जनजाति है।
  • झारखंड में आबादी की दृष्टि से तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है
  • यह जनजाति प्रोटोऑस्ट्रेलियाड समूह के होते हैं।
  • भाषा- मुंडारी (ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषा) यह अपनी भाषा को “होड़ो रजगर” भी कहते हैं।
  • मुख्य निवास स्थान -पलामू ,रांची ,गिरिडीह, हजारीबाग, गुमला, संथाल परगना, सिंहभूम।
  • झारखंड क्षेत्र में प्रवेश – 600 ईसापूर्व (यह झारखंड के मूल निवासी हैं)।
  • मुंडाओं के गोत्र – कंडुलना, बोदरा, केरकेट्टा, डुंगडुंग, टूटी ,बरला, आईद, तिर्की ,बागे ,पूर्ति, भेंगड़ा ,बेंगरा ,बलमुचू ,सुरीन।
  • मुंडाओं के तीन विशेष स्थान – सरना (इनके ग्राम देवता का निवास स्थान),अकडा(यहाँ पंचायत की बैठक होती है),शासन (समाधि स्थल)।
  • गांव में युवागृह को “गीतिओड़ा” कहा जाता है।
  • मृतकों की स्मृति में रखे गए पत्थर के सिल को “सासनदीरी” कहा जाता है ।
  • मुख्य देवता – सिंहबोंगा , ग्राम देवता – हातुबोंगा, पहाड़ देवता- बुरूबोंगा ।
  • गांव की सबसे बड़ी देवी – देशाउली।
  • गांव के मुखिया – हातुमुंडा या मुंडा ।
  • धार्मिक प्रधान – पाहन ।
  • मुख्य पर्व- सरहुल(बा),सोहराई ,करमा,फागु, जितिया, माघे,नवाखानी आदि।
  • कई गाँवो को मिलाकर पंचायत बनती है, जिसे “पड़हा पंचायत” कहते हैं।
  • यह गांव-गांव के बीच के विवादों का निपटारा करती है, इनका प्रधान “मानकी” कहलाता है। मुंडा एवं मानकी का पद वंशानुगत होता है।

नागवंशी शासन व्यवस्था

  • प्रथम शताब्दी 64 ई० में स्थानांतरित ।
  • नागवंशी का पहला राजा – फणिमुकुट राय। पहला हस्तक्षेप -1585 ई० (मुगलों के द्वारा) राजा दुर्जन साल का कारावास काल -1616 ई० में कर ना दे पाने के कारण 12 साल तक छोटानागपुर खास के महाराजा दुर्जन साल को ग्वालियर के किले में कैद किया गया ।
  • 12 साल बाद ₹6000 सालाना कर देने की सहमति पर उन्हें कैद मुक्त किया गया।
  • नागवंशी राजाओं ने पडहा के प्रमुख मानकियों को भुईंहर कहा , इनका काम कर वसूली करना था ।
  • कर देने को पहले “मालगुजारी” तथा बाद में इसे “नजराना” कहा गया परंतु यह अनियमित थी।
  • 1765 ई० में अंग्रेजों को दीवानी अधिकार मिली।
  • इन्होंने पटना कौंसिल की व्यवस्था में फोर्ट विलियम के अधीन रखा गया ।
  • 1773 तक भी कर नियमित नहीं मिला जिसके बाद 1793 ई० में कर वसूली नियमित करने के लिए यह प्रथा जमींदार प्रथा में बदल गई।
  • नागवंश की राजधानी- सुतियांबे।
  • नागवंशी राज्य की स्थापना- परगना 66
  • सालाना कर – 6000 सालाना कर को1627 में 1 लाख 61 हजार राशि कर दी गई।
  • नए कर- पंचा बहीं और हाकिमी कर ।
  • नागवंशी राजवंश की वर्तमान राजधानी – झारखंड के नवरत्नगढ़ ,खुखरागढ़, रातू में थी।
  • भाषा- प्रकृत, नागपुरी
  • धर्म- हिंदूधर्म, बौद्ध धर्म ,जैन धर्म
  • शासन- पूर्ण राजशाही।
  • नागवंशी अंत- 1952 ई०.
  • नागवंशी के अंतिम राजा- चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव
  • नागवंशी (छोटा नागपुर) के महाराजा के पुत्र विधायक रहे ।(पुत्र- गोपाल शरणनाथ सहदेव) नागवंशी परिवार राजनीति/ कारोबार- बेस्ट ऑफ वर्ल्ड
  • नागवंशी राजघराने के नृपेंद्र नाथ शाहदेव बेस्ट आउट ऑफ द वर्ल्ड रहे।
  • नागवंशी सिक्कों की पहचान- सिक्कों पर बृहस्पति , नाग, गणपति लिखे प्राप्त हुए।
  • नागवंशीओ का अधिकार- मथुरा और भरतपुर से लेकर ग्वालियर और उज्जैन तक भूभाग पर इनका अधिकार था।
  • देवता – सूर्य (नाग)
  • नागवंशी काल में गरीबी नहीं थी।
  • इनकी मदईली परंपरा थी।
  • नागवंशियो के नाम- उनके नाम नाग( सर्प देवता) के नामों पर रखा जाता था , कश्मीर में ऋषि कश्यप की 8 पुत्र थे जिनके नाम अनंत (शेष नाग), वासुकी, तक्षक, महापद्ध, शंख, कुलिक थे।
  • उरांव भुईंहरी जमीन बनाकर गांव बसाते थे।
  • नागवंशी शासन का प्रमुख “महाराजा”होते थे, उसके बाद कुंवर ,ठाकुर ,लाल आदि होते थे , ये अपने इलाके के राजा कहलाते थे ।
  • धन, धरती ,धर्म और इज्जत कि जब लूट होने लगी ,अत: यहां कई उलगुलान हुए।

चेरो जनजाति की शासन व्यवस्था# vinayiasacademy. Com#

  • इस जनजाति को 12 हजारी या तेरहा हजारी के नाम से भी जाना जाता है इनकी अपनी जातीय पंचायत होती है ।
  • यह गांव अचल और मंडल स्तर पर कार्य करती है इन दोनों पंचायतों का प्रधान मुख्य होता है और जिला स्तर पर सभापति कार्य करता है। पंचायतों में विवादों का निपटारा दंड की व्यवस्था ,जाति बहिष्कार की प्रथा है।

चीक बड़ाईक जनजाति की शासन व्यवस्था

  • जनजाति की शासन व्यवस्था बुनकर जनजाति की व्यवस्था है यह कपड़े बिनना ,कपड़े बनाना की किस्म की कार्य करना इस जनजाति का कार्य है।
  • इसमें जाति की कोई शासन व्यवस्था नहीं होती इसका मुख्य प्रधान होता है जो वंशानुगत होता है।
  • इनके अपने परंपरागत नियम कानून होते हैं पर अब सरकारी पंचायती होती है।

गोंड जाति की शासन व्यवस्था

  • यह जनजाति की अपनी जाति पंचायत होती है इस पंचायत का मुखिया बैगा /सयाना देखते हैं। यह विवादों का निपटारा दंड क्षमा जाति भोज करवाना इन की सलाह से होता है ।
  • अब यह भी सरकारी पंचायत के द्वारा देखी जाती है।

लोहरा जनजाति की पंचायत व्यवस्था

  • जनजाति की शासन व्यवस्था पंचायती होती है जिसमें दंड विवादों का निपटारा भी होता है। इनके बीच रीति रिवाज एवं परंपरागत नियम कानून है ।
  • दूसरे गांव के लोहरा से किसी खास मौके पर संपर्क सूत्र बनाकर अंतर ग्राम में परिषद बनाया जाता है जो 2 गांव के बीच के विवादों को सुलझाता है ।

महली जनजाति शासन व्यवस्था

  • दूर-दूर तक इनके गांव होते हैं जिनकी अपनी कोई पंचायत नहीं होती संथाली क्षेत्र में परग्नैत (प्रधान) तथा मुंडा क्षेत्र में मुंडा मुखिया ही महली मुखिया होता है।
  • गंभीर अपराध के लिए गांव तथा आसपास के सभी लोगों को भोज देना पड़ता है।

माल पहाड़िया जनजाति की शासन व्यवस्था

  • इस जनजाति का अपना ग्राम पंचायत होता है, इनका मुखिया मांझी होता है गोड़ाईत, दीवान प्रमाणिक इनके सहायक होते हैं।
  • इनके विवादों का निपटारा पंचायत द्वारा होते हैं यह फैसला सभी के लिए मान्य होता है यदि कोई उनके फैसले का उल्लंघन करता है तो उसे जाति बहिष्कार कर दिया जाता है।
  • इनके बीच बिटलाहा की प्रथा नहीं है ।
  • जुर्माना में दिए गए रुपए से भोज कराया जाता है।

सौरिया पहाड़िया जनजाति की शासन व्यवस्था

  • इस जनजाति की शासन व्यवस्था लोकतांत्रिक राजनीतिक जीवन होता है इनका प्रधान मांझी होता है ।
  • कोतवाल, भंडारी, गोड़ैल आदि इनके सहायक होते हैं।
  • इनमें 15 से 20 गांव के मुखिया और 70 से 80 गांव में सरदार होता है इनके भी सरकारी पंचायतों के बनने से व्यवस्था कमजोर हो गई है।

परहिया जनजाति की शासन व्यवस्था# vinayiasacademy. Com#

  • यह जनजाति अल्पसंख्यक है ,8-10 गाँव मिलकर अंतग्रामीण पंचायत बनती है ,इसे “कारा भैयारी” कहते हैं।
  • हर गांव में इसका जाति पंचायत होता है जिसे ‘भैयारी’ या ‘जातीगोठ’ भी कहते हैं।
  • गांव पंचायत का मुखिया महतो या प्रधान कहलाता है, इसका सहायक ‘कहतो’ और ‘खेतों’ कहलाता है।

सबर जनजाति की शासन व्यवस्था

  • जनजातियों की परंपरागत पंचायत व्यवस्था होती है, इनके प्रमुख प्रधान होते हैं ,कानून ,दंड आदि उनके फैसले परंपरागत तरीकों से निपटारा किया जाता है ।
  • इनके सहायक गुड़ाईल होते हैं, सरकारी पंचायतों के कारण इनके भी पंचायत व्यवस्था कमजोर हो गई है।

खोंड जनजाति की शासन व्यवस्था

  • खोंड जनजाति का पारंपरिक ग्राम संगठन बहुत मजबूत था।
  • इनका मुखिया ‘गोटिया’ होता है इसका प्रधान भी गोटिया कहलाता है यह मिले-जुले गांव में रहते हैं ।
  • उनकी ग्रामीण व्यवस्था अंतरजातीय होती है इनकी शासन व्यवस्था में मिलीजुली गोत्र के लोग रहते हैं जो सरपंच के कार्य सब संभालते हैं।

किसान जनजाति के शासन व्यवस्था

  • इस जनजाति में ग्रामीण पंचायत जाति व्यवस्था होती है जिनमें 12 से अधिक गांव मिलकर पंचायत का निर्माण करते हैं।
  • बड़े व छोटे विवादों का निपटारा ग्राम में ही होता है।

असुर जनजाति के शासन व्यवस्था

  • यह जनजाति झारखंड के अल्पसंख्यक जनजाति व्यवस्था है गांव के द्वारा निपटारा गांव में ही किया जाता है जो अपने में राजनीतिक इकाई क्षेत्र होता है।
  • गांव में आंसू पंचायत होता है जिसमें महतो, बैगा गोड़ाइत ,पूजार ये प्रधान होते हैं जो अपने-अपने कार्य करते हैं।
  • अपराधियों व दोषियों को शारीरिक तथा आर्थिक दंड देने का प्रावधान है ।
  • गांव के वरिष्ठ नागरिक ‘पंच’ होते हैं।

कंवर जनजाति की शासन व्यवस्था

  • परंपरागत जाति पंचायत व्यवस्था है, ग्राम पंचायत का मुखिया सयाना कहलाता है।
  • ग्राम पंचायत का मुखिया प्रधान व पटेल कहलाता है।
  • कई अंचलों को मिलाकर एक केंद्रीय संगठन का गठन होता है जो पंचायत के फैसलों के विरुद्ध सुनवाई करता है।

बिरजिया जनजाति की शासन व्यवस्था#vinayiasacademy.com#

  • इस जनजाति पंचायत में प्रमुख व्यक्ति मुखिया होता है ।
  • बैगा,बेसरा ,धावक तथा गांव के माननीय व्यक्ति इसमें शामिल होते हैं।
  • इस पंचायत में हर तरह के जातीय मामले सुलझाए जाते हैं।

बेदिया जनजाति की शासन व्यवस्था

  • ग्राम पंचायत का मुखिया प्रधान होता है, इन्हें महतो या ‘ओहदार’ भी कहते हैं।
  • प्रधान का सहायक गुडै़त होता है कई गांवों को मिलाकर एक सरकार चुना जाता है जो गांवो के विवादों का निपटारा करते हैं सबसे बड़े प्रधान को परगनैत वंशानुगत कहते हैं ।
  • इसमें सभी पर अनुवांशिक होते हैं।

बंजारा जनजाति की शासन व्यवस्था

  • यह जनजाति घुमक्कड़ जनजाति है, इनकी राजनीतिक संगठन नहीं होती बल्कि एक सामुदायिक परिषद होता है । वर्तमान में स्थिति सुधारने हेतु एक “बंजारा सेवक संघ” का निर्माण किया गया है।
  • इनका सामुदायिक परिषद होता है जिसका संचालन ‘नायक’ द्वारा होता है।

बथुड़ी जनजाति की शासन व्यवस्था

  • यह लघु जनजाति है ।मुखिया ‘देहरी’ पुरोहित का भी कार्य करता है इनके पद वंशानुगत तथा कानून पारंपरिक होते हैं इसमें दंड का भी प्रावधान है।
  • इनका अंतर ग्राम पंचायत भी है जिसका मुखिया ‘प्रधान’ कहलाता है।

खरवार जनजाति की शासन व्यवस्था

  • इस जनजाति में वरिष्ठ व्यक्ति मुखिया होता है यह परंपरागत जाति पंचायत व्यवस्था है इसमें 4 (चट्टी) ,5 (पट्टी) ,7 (सतोरा)गांव कहा जाता है।

करमाली जनजाति की शासन व्यवस्था

  • इस व्यवस्था में राजनीतिक संगठन नहीं है ग्राम पंचायत पाहन तथा मुंडा होते हैं जातीय पंचायत का प्रधान वंशानुगत मालिक होते हैं जो अधिक जटिल समस्याओं के समाधान के लिए परगना स्तर पर पंचायत मालिक होता है।
  • इनमें 17 से 22 गांव होते हैं इसके मुख्य को मुख्य मालिक कहते हैं इनमें गोड़ाइल (संदेशवाहक) होता है।

कोल जनजाति का शासन व्यवस्था#vinayiasacademy.com#

  • यह जनजाति झारखंड के 32 में जनजाति है जो 200 ईसवी पूर्व पुरानी जनजाति है इनका मुखिया मांझी होता है।
  • इनमें समस्याओं का समाधान ,दंड का अधिकार होता है कोरा/कोड़ा परंपरागत ग्राम पंचायत है, जिनका मुखिया महतो होता है।
  • महतो की सहायता करने वाले को प्रमाणिक और जोग मांझी कहते हैं इसमें महतो द्वारा दंड दिया जाता है।
  • कोरवा जनजाति पंचायत या विवादों का निपटारा करती है तथा बहिष्कृत व्यक्तियों को जातिगत भोज करवाना पड़ता है इनका मुखिया प्रधान कहलाता है ।

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