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सिंधु सभ्यता में नगरों में चौड़ी चौड़ी सड़कें पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर थी जो पराया एक दूसरे को समकोण पर काटती थी इस प्रकार प्रत्येक नगर अनेक खंड जो मोहल्ला के रूप में जाना जाता था इस में विभाजित हो गया था प्रमुख सड़कों से गलियां निकलती थी जो 1 मीटर से 2 मीटर तक चौड़ी होती थी मोहनजोदड़ो में एक 11 मीटर चौड़ी सड़क भी थी जो उस काल की राजमार्ग रही होगी नगर की सभी सड़कें इस प्रमुख राजमार्ग में आकर मिल जाती थी नगर में जल निकासी का समुचित प्रबंध होता था सड़क के किनारे किनारे नलिया होती थी चक्की एवं ढकी हुई होती थी जैसा कि आज होता है। इस काल में नगर निर्माण की तरह इनका भवन निर्माण भी अच्छा होता था इसकी पुष्टि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से हो सकती है साधारण भवन का आकार आवश्यकतानुसार छोटा बड़ा होता था भवन एक से अधिक मंजिल के भी होते थे ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए पत्थरों की सीढ़ी बनाई होती थी भवन में दरवाजा खिड़की रोशनदान रसोईघर स्नान गिरी एवं आंगन भी होता था। दरवाजे बचत लकड़ी के बने होते थे दीवारी बहुत मोटी बनाई जाती थी हर्षिता खड़िया और गारा से बनाया जाता था। भवन में जल निकास की समुचित व्यवस्था की जाती थी ।मोहनजोदड़ो में सार्वजनिक एवं राजकीय भवन के भग्नावशेष भी प्राप्त हुए, मोहनजोदड़ो में प्राप्त एक भवन की लंबाई 70 मीटर और चौड़ाई 24 मीटर है इस भवन की दीवारें 1.50 मीटर मोटी है इस विशाल भवन में अनेक कमरा भंडारा एवं दो आंगन मोहनजोदड़ो में इसी प्रकार के विशाल भवन मिला है जो 71 मीटर लंबा और चौड़ा है इसमें एक विशाल कमरा है जिसकी स्तंभ पर टिकी हुई है एवं इसके फर्श पर अनेक स्थान पर चौकी बनी हुई है संभवत इस भवन का प्रयोग विचार-विमर्श करने के लिए होता होगा हड़प्पा एवं विशाल भवन भी मानते हैं ।इसकी लंबाई और चौड़ाई 18 मीटर एवं 7 मीटर। इसके अतिरिक्त स्नानागार का जला से आयताकार होता था जिसकी लंबाई 12 मीटर चौड़ाई 7 मीटर और गहराई 2.5 मीटर होती थी इसके प्रत्येक और जल तक पहुंचने के लिए * की सीढ़ियां बनाई गई है जलाशय की दीवार एवं फर्श पक्की ईंटों का बना होता था जलाशय से जल निकास की पूरी व्यवस्था होती थी। जलाशय के चारों ओर बरामदा है और इसके पीछे कमरा बना हुआ है


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